असमंजित अतृप्ता
By टी सिंह
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ये कहानी तीन बहनो मधुलिका, नीलिमा, और राधिका को केंद्र में रखकर रची गयी है। तीनो जवान बहनें अपने अपने सुखी वर्तमान में होते हुए भी असंतुष्ट रहती हैं। मधुलिका शारीरिक संबंधों और संस्कारों के बीच झूलती रहती है, विवाहित राधिका अपने पति दीपक से हमेशा ही असंतुष्ट रहती है, मुख्यतः जीवन के शारीरिक पक्ष को लेकर, तो सबसे छोटी नीलिमा अपनी पढ़ाई के सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँचने के प्रयास में लगी अन्य लोगों के जीवन के बारे में समय समय पर अपने विचारों को व्यक्त करती रहती है।
कहानी के मुख्य पुरुष पात्रों कमलकांत, दीपक, और शुशांत की अपनी अलग ही दुनिया है जहां वो अपने जीवन को आगे बढ़ाते हुए अजीब अजीब स्त्रीजन्य परिस्थितियों से झूझते रहते हैं।
प्यार और वैराग की पृष्ठभूमि में लिखा गया ये उपन्यास आपके मष्तिष्क पर एक अमिट छाप छोड़ देगा। तो बस शुरू हो जाइये। हम यकीन से कहते हैं के एक बार जब आप इस उपन्यास को पढ़ना शुरू कर देंगे तो आपका इसको छोड़ने का मन ही नहीं करेगा।
शुभकामना
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असमंजित अतृप्ता - टी सिंह
अध्याय 1
मुझे लगता है के वो एक शैतान है जो बार बार मुझे परेशान करता है। नहीं नहीं, कोई शैतान नहीं है; मैं एक सपने की बात कर रही हूँ। लेकिन सपना बिलकुल सच जैसा ही होता है।
बार बार उस सपने को देखकर मैं खुद को समझाती हूँ के इसमें कोई शर्म की बात नहीं है क्योंकि वो सपना कहीं अवचेतन से आता है। मैं हमेशा ही जब सपने से निकलकर फिर से उठकर बैठती हूँ, मैं खुद से ही कहती हूँ,नहीं नहीं,मेरा उसके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है!
लेकिन इस बात को मैं स्वीकार करती हूँ के सपना बहुत ही मजेदार होता है और सपने के समाप्त होने के बाद भी मैं बहुत देर तक हलकी फुलकी महसूस करती हूँ, हवा में तैरती हुई, अंतरिक्ष में इधर से उधर कई ग्रहों का भ्रमण करती हुई।
सपने के टूटने के बाद मैं जिन कल्पनाओं में डूब जाती हूँ उसमें मुझे ऐसा लगता है के मुझे कमलकांत ने अपनी बाहों में समेट रखा है और मेरे शरीर में गर्मी भर रही है। मेरे होंठ मुलायम होने लगते हैं और मेरे उरोजों और नाभि में और शरीर के अन्य कई अंगों में एक कंपकंपी सी उत्पन्न होने लगती है। मेरी सांस तक फूलने लगती है और ऐसे लगता है जैसे के मेरा शरीर पिघल रहा हो। मुझे ऐसा लगने लगता है के मैं अभिभूत हो गयी हूँ और मेरे शरीर के अंदर कामशक्ति ने प्रवेश कर लिया है लेकिन मेरे लाख प्रयास करने के बाद भी वो शक्ति मेरे अंग अंग को हिला कर रख देती है। ना जाने कैसी शक्ति है ये!
आज भी मैंने ऐसा ही सपना देखा है और मैं अब तक उस सपने के प्रभाव में हूँ। जिस ताप ने कमलकांत के शरीर से मेरे शरीर में प्रवेश किया वो ताप अभी तक मेरे शरीर में है। उसने उसके होठों से मेरे गालों और होंठों को चूमा था। मैं अपने हाथों से फिर से अपने गालों और होठों को छू कर देखती हुई फिर से एक झुरझुरी सी महसूस करती हूँ। लेकिन अचानक गाल और होंठों पर रेत का आभास होते ही मेरे हाथ रुक जाते हैं। मेरे होठों और गालों पर रेत कहाँ से आयी? शायद हम समुन्दर के किनारे बैठे हुए थे।
अचानक ही मैं उठकर बैठ गयी और इधर उधर देखने लगी। मुझे दिखा के कमरे में पड़े मेज और कुर्सी और अन्य कई चीजों पर रेत के परत सी जमी हुई साफ़ साफ़ दिख रही थी।
मैं सोचने लगी के शायद पिछली रात को आंधी आयी होगी और हवा इस रेत को कमरे के अंदर उड़ाकर ले आयी होगी। मुझे तो ध्यान ही नही था के पिछली रात को मेरी आंखें कब बंद हुई थी। मैंने नजर घुमाकर देखा तो पाया के कमरे की खिड़कियाँ तो पूरी तरह से बंद थी। मैंने सोचा के शायद वो खिड़कियाँ नीलिमा ने ही बंद की होंगी। पहले मैं भी अक्सर नीलिमा की तरह रात के एक दो बजे तक पढ़ा करती थी।
मुझे रात को देर तक पढ़ती हुई देखकर नानी जब बाथरूम जा रही होती थी तो हर रात ही वो पूछा करती थी,तू ये कैसी पढ़ाई कर रही है? पूरी रात बत्ती जलती रहती है?
मैं भी जवाब दे देती थी,बस हो गया, अम्मा, अभी बंद कर देती हूँ,
मैं नानी की तरफ देखे बिना ही जवाब दे देती थी।
एक बात बताना जरूरी है। मेरी नानी मुझे नानी जैसी नहीं लगती थी क्योंकि वो बहुत ही छोटी लगती थी इसीलिए हम उनको अम्मा ही कहा करते थे। मुझे बताया गया था के जब मेरी माँ का विवाह हुआ था उस समय मेरी नानी जी की उम्र सिर्फ पैंतीस या छत्तीस साल ही थी।
मेरे मामा जी का जन्म मेरे जन्म से चार साल पहले हुआ था। जब मेरे मामा जी का जन्म हुआ था उस समय मेरी माँ ससुराल में थी और वो अपनी सास से बिनती करके मेरी नानी के प्रसव के समय सहयोग करने के लिए आयी थी। मेरी माँ ने मेरी नानी की मामा जी के जन्म के समय बहुत मदद की थी।
नानी शादी शुदा बेटी की माँ होने के बाद बच्चा पैदा नहीं करना चाहती थी और अपने पति यानी मेरे नाना जी को कोसा करती थी, इस आदमी ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा है। इस उम्र में फिर से माँ बनना क्या अच्छा लगता है? समधिन ने भी मुझे कितना नीचा दिखाया के मुझे चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए! पता नहीं मैं मरी क्यों नहीं!
मैं उठकर खड़ी हो गयी। मुझे ना जाने अचानक ही ये ख्याल आया के शायद नानी को उनकी इच्छा के विरुद्ध ही गर्भ ठहर गया होगा और मेरे मामा जी का जन्म हो गया था।
मैं हंसने लगी के शायद नानी के जींस मेरे अंदर से होकर मेरे आने वाले बच्चों और उनके बच्चों तक भी पहुंचेंगे और लड़कियों के जीवन की तहजीब पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती रहेगी।
मैंने कमरे में इधर उधर देखा और आगे बढ़कर खिड़की का पल्ला खोल दिया। बाहर से आ रही ठंडी ठंडी हवा ने मुझे एक बार मीठी सी सिहरन दे दी। रात को चली तेज हवा के कारण गर्मी कम हो चली थी।
तभी नीलिमा ने आवाज लगाकर पूछा,दीदी, क्या समय हुआ है?
मैंने उसकी तरफ देखे बिना ही कहा,पांच बज गए हैं।
आप इतनी सुबह सुबह क्यों जाग गयी हो? यूनिवर्सिटी तो जाना नहीं है! अभी तो छुट्टियां है!
"मैं क्या करूँ जब नींद खुद ब खुद ही खुल गयी है। नीलिमा, क्या