और भी अर्थ: और भी दूरी
By टी सिंह
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About this ebook
कसक
बाँझ
अकेलापन
भारी पदोन्नति
बातचीत
अच्छा दिन बुरी शाम
उसके बाद
सब बिखर गया
डायरी
टी. सिंह में किसी भी सामान्य घटना या ज़रा सी बात को एक लम्बी कहानी या उपन्यास में बदल देने की अद्भुत क्षमता है। उनकी ज्यादातर कहानियाँ और उपन्यास अपनी ही तरह की होती हैं जिनमें बिलकुल 'साधारण' सा सबकुछ होते हुए भी वो 'असाधारण' सबसे अधिक होता है जो लेखक की कला को प्रदर्शित करता है और पाठक पर अपनी एक अमिट छाप छोड़ जाता है!
"और भी अर्थ: और भी दूरी" उपन्यास में उन्होंने अपनी लेखन कला का लोहा मनवा लिया है और एक बहुत ही सामान्य सी बात को एक सुन्दर कहानी का रूप दे दिया है। बात तो बहुत छोटी सी है: एक शादीशुदा औरत माँ नहीं बन सकती है; लेकिन पति बहुत प्रेम करता है, पर अचानक ही सबकुछ ऐसे घटित हो जाता है के उनकी दुनिया ही ऊपर नीचे हो जाती है और पाठक की आँखों मे आंसू आ जाते हैं...
तो आइये दोस्तों, इस सुन्दर कहानी का आनंद लीजिये और राहुल और माया की प्रेम की दुनिया में खो जाइये!
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Book preview
और भी अर्थ - टी सिंह
कसक
माया उस स्थिति में खुद को बहुत ही असहाय महसूस कर रही थी। उसको मालूम था के वो कभी भी संतान को जनम नहीं दे सकेगी, लेकिन उसने उस वास्तविकता को बहुत ही साहस के साथ सहन किया था और अपने दर्द को संजोये रखा था। उसका धैर्य ही अब तक उसका सबसे बड़ा हथियार रहा था, हालाँकि कभी कभी उसकी उसके पति के साथ नोकझोंक हो जाती थी और कभी कभी कुछ समय के लिए दोनों में बातचीत भी बंद हो जाती थी।
हालाँकि वो सिर्फ ३२ बरस की थी, उसने ना जाने कितने ही परीक्षण करवा लिए थे, कभी एक डॉक्टर से, तो कभी एक डॉक्टर से। लेकिन हर तरफ से ही इंकार मिला था। वो पूरी तरह से मायूस हो चुकी थी। उसको ऐसा लगने लगा था जैसे के सभी डॉक्टर और विशेषज्ञ उसके सपने को तोड़ने के लिए पहले से ही तैयार बैठे थे।
ना जाने कितने ही विशेषज्ञों से परामर्श लिए जा चुके थे। लेकिन सिर्फ डॉक्टरों और सलाहकारों के बिल के सिवा कुछ नहीं मिला। इलाज पर लाखों रूपए खर्च हो चुके थे। माया किसी भी तरह से माँ बनना चाहती थी लेकिन जीवन की वास्तविक सच्चाई जैसे उसके सामने खड़ी उसको मुंह चिढ़ा रही थी।
उसका पति राहुल हर स्थिति में उसके साथ ही खड़ा रहा था और एक सच्चे साथी की तरह उसको समर्थन देता रहा था। राहुल बहुत ही समर्पित पति था और वो अपनी पत्नी के लिए कुछ भी कर सकता था।
आखिर जब वो डॉक्टरी परीक्षणों और इन्कारो से तंग आ गए तो उन्होंने बैठकर बहुत ही गंभीरता से बच्चा गोद लेने के विकल्प पर भी विचार किया। उन्होंने अपने जानने वाले लोगों की मदद से बहुत से अनाथालयों के बारे में जानकारी हासिल की।
वो जान चुकी थी के अब उसके लिए गर्भवती होना और अपने बच्चे को जन्म देना एक ऐसा सपना बनकर रह गया था जो किसी भी हाल में साकार नहीं होने वाला था। सिर्फ बच्चा गोद लेने का अंतिम विकल्प था उन दोनों के सामने।
फिर भी माया हारी नहीं थी और हर आने वाली कठिनाई का मुकाबला करने के लिए तैयार थी। भावनात्मक उथल पुथल से गुजरते हुए भी उसने खुद को संभाल कर रखा था और खुद को विश्वास दिलाती आयी थी के सब कुछ ठीक हो जाएगा।
बच्चा गोद लेने का खट्टा मीठा विकल्प बार बार उसके सामने आ रहा था लेकिन वो जानती थी के उस तरीके को शायद परिवार के लोग स्वीकार नहीं करने वाले थे।
फिर भी पति पत्नी दोनों ही एक दूसरे का साहस बढ़ाते रहते थे और एक दूसरे को आश्वासन देते