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आँसू छलक पड़े: काव्य पथ पर 2
आँसू छलक पड़े: काव्य पथ पर 2
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आँसू छलक पड़े: काव्य पथ पर 2

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कविता, शब्दों का नाजुक नृत्य, एक अनोखा जादू रखती है जो आत्मा को मोहित कर लेती है और भाषा की तूलिका से भावनाओं को चित्रित करती है। यह भावनाओं की संगीतलहरी है, एक कला रूप है जो गद्य की सीमाओं को पार करके हृदय के उदात्त क्षेत्रों तक पहुँचती है। साहित्य के क्षेत्र में, कविताएँ बेजोड़ रत्नों के रूप में खड़ी हैं, जो घनीभूत भावना और गहन विचार की चमक से जगमगाती हैं।

साहित्य के अन्य रूपों के विपरीत, कविता मानवीय अनुभव के सार को एक संक्षिप्त और शक्तिशाली अमृत में बदल देती है। प्रत्येक पंक्ति एक सावधानीपूर्वक तैयार की गई अभिव्यक्ति है, जो भावनाओं को उद्घाटित करती है जो मानव अस्तित्व के महान रंगमंच में प्रतिध्वनित होती है। बहुत ही कम शब्दों का प्रयोग करने की कला की साथ, कवियों के पास प्रेम के आनंद से लेकर हानि के मार्मिक दर्द तक, भावनाओं के एक ब्रह्मांड को व्यक्त करने की शक्ति होती है। एक अच्छी तरह से रचित कविता हमारी साझा मानव यात्रा के बहुरूपदर्शक को प्रतिबिंबित करने वाला दर्पण हो सकती है।

जो चीज़ कविता को अलग करती है, वह है समय और संस्कृति की बाधाओं को पार करने की इसकी क्षमता। कविताएँ कालजयी वाहिकाएँ हैं, जिनमें सार्वभौमिक सत्य और भावनाएँ हैं जो हमें मनुष्य के रूप में बांधती हैं। वे अतीत की फुसफुसाहट, वर्तमान की गूँज और भविष्य के दर्शन हैं। जैसे-जैसे पाठक छंदों में डूबते हैं, वे एक ऐसी यात्रा पर निकलते हैं जो सामान्य से परे होती है, शब्दों की भूलभुलैया में सांत्वना, प्रेरणा और संबंध ढूंढती है।

साहित्य के क्षेत्र में, कविताएँ चमकदार रत्न हैं जो मानव अभिव्यक्ति की विशाल कृति को रोशन करती हैं। वे सिर्फ कागज पर लिखे शब्द नहीं हैं; वे रसायन मिश्रण हैं जो भाषा को एक अलौकिक माधुर्य में बदल देते हैं। एक कुशल कवि के हाथों में, शब्द एक रंगों वाली तश्तरी बन जाते हैं, और प्रत्येक कविता मानव आत्मा के रंगों से रंगी हुई एक उत्कृष्ट कृति हो जाती है। तो, छंदों को अपना जादू बुनने दें, और कविता की सुंदरता को अपने भीतर गूंजने दें, क्योंकि कविताओं के दायरे में ही साहित्य का सच्चा दिल धड़कता है।

टी. सिंह

कहीं अब भी दुनिया रह्ती है
कुछ घट गया
कुछ बोल ले लो प्यार के
कुदरत के सब बन्दे
कोई गीत सुनाते हैं
क्या पाया जीवन रीत में
गीत तो लिखे पर साजों की कमी है
गुरु की पुकार है
घडे की सोहनी को पुकार
जो मिलता था जहर तो पीने लगे
झूठ ही लोग मुझको सिकन्दर बताते थे
तुम जैसा
तेरा मकान
तेरी यादों के खिलौने टूट जाते हैं
दूरियाँ नज्दीकियाँ
दो रास्ते
ना साकी ना जाम बाकी है
पत्थर और शब्द
पैदल पंजाब से बिहार
प्यार करने वाले
प्रेम के घाट पर
बस कुछ लम्हों को जीना है
बस खुद से बातें करता हूँ
मत दो टुकड़ों का संसार
मन तन धन को बेचे
मृत्यु का अभ्यास
मेरी प्यास
मेरी वो दुनिया
मेरे गीत श्री योगेश गौढ़ को समर्पित
मैं फिर सपनों में खो गया
ये एहसास भुला देते हैं
ये पागल आंसू बहते हैं
रास्ते तक्दीरों के खुद ही मोड आए हैं
वो तारे हो गए
वो माँ की नंगी लाश थी
सब नज़र नज़र की बात है
हम हर रंग लगा कर चलते बने
अपना देश प्यारा माँ
आँख मिलाते लोग
किताब पढता भगत सिंह
जलता देख रहा हूँ
ढूँढता तुम्हें
दिया जलाना
दुनिया डूबी राग रंग में
परी के पर
प्यारे लोग
बदलते रहते है
माँ बूढ़ी हो गयी है
मुझको लिखे तुम्हारे खत वो सारे याद आएंगे
मेरी कब्र पे कुछ फूल सजा देना

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateFeb 25, 2024
ISBN9798215117255
आँसू छलक पड़े: काव्य पथ पर 2

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    आँसू छलक पड़े - टी सिंह

    कहीं अब भी दुनिया रह्ती है

    उँची मीनारों के शहरों में

    विकराल समुद्र की लहरों में

    तुम जाले बुनते रह्ते हो

    धन मोती चुनते रह्ते हो

    उस हरियाली के गांव में

    उन मीठे आमों की छाव में

    इक अदभुत दुनिया रह्ती है

    कुदरत ये मुझ से केहती है

    इन बन्द उदास से कमरों में

    कोमल रिश्तों के भवरों में

    तुम दानव जैसे पलते हो

    हर इक इन्सान से जलते हो

    उस पायल वाले पावँ में

    माझी की छोटी नाव में

    संगीत की लहरी बह्ती है

    हर चिडिया मुझसे कहती है

    प्रगती की मादक लहरों में

    इन बन्दूकों के पहरों में

    तुम खुश हो खुद से कहते हो

    और पंखहीन से रहते हो

    जामुन के छोटे बाग में

    जाड़े की मीठी आग में

    इन्सानों की खुश्बु रहती है

    ये नानी मुझसे कहती है

    खुद के जन्माए कहरों में

    इन जात पात के पहरों में

    तुम जीते हो ना मरते हो

    खुद को भी बोझ सा सहते हो

    वर्षा में भीगे हाथ में

    चंचल हिरनी के साथ् में

    कहीं अब भी दुनिया रहती है

    सब स्वर्ग है खुद से कह्ती है

    Chapter 2

    कुछ घट गया

    वृद्धों के सम्मान को रोको

    कुण्ठित होते ज्ञान को रोको

    भूले तुम माँ के आदेश

    वृद्ध पिता को मान से रोको

    कोई चिट्ठी वाले काका ला दो

    वो राह देखती माता ला

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