यादों की आहटें (काव्य संग्रह)
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एहसास और संवेदनाएं लहर बनकर जब मनरूपी समंदर की गहराईओं में उतरती हैं और फिर शब्द के साहिलों से आकर मिलती हैं तब कहीं जाकर एक कविता जीवंत रूप लेती है। कभी-कभी ये कवितायें किसी एक ख़ास पल का प्रतिनिधित्व करती हैं तो कभी किसी का संपूर्ण जीवन एक कविता में आकर समाहित हो जाता है। कभी ये समाज का दर्पण बन इसकी सत्यता से अवगत कराती है, तो कभी ये हमारे स्वयं के स्वरुप का प्रतिनिधित्व करती है। "यादों की आहटें" काव्य-संग्रह अंतर्मन की गहन संवेदनाओं पर विशेष रूप से आधारित है। हृदय की गहराई से महसूस की गयी और उतने हीं प्रेम और संवेदनाओं में लिप्त होकर कलमबद्ध की गयी रचनाओं का संकलन है, जो आपके हृदय को भी द्रवित करेगी, और आप सभी पाठकों को अवश्य पसंद आएगी।
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Book preview
यादों की आहटें (काव्य संग्रह) - Manisha Manjari
समर्पण
माता एवं पिता के कर-कमलों में
सादर, सस्नेह समर्पित
प्राक्कथन
एहसास और संवेदनाएं लहर बनकर जब मनरूपी समंदर की गहराईओं में उतरती हैं और फिर शब्द के साहिलों से आकर मिलती हैं तब कहीं जाकर एक कविता जीवंत रूप लेती है। कभी-कभी ये कवितायें किसी एक ख़ास पल का प्रतिनिधित्व करती हैं तो कभी किसी का संपूर्ण जीवन एक कविता में आकर समाहित हो जाता है। कभी ये समाज का दर्पण बन इसकी सत्यता से अवगत कराती है, तो कभी ये हमारे स्वयं के स्वरुप का प्रतिनिधित्व करती है। कभी ये कवितायें यथार्थ को परिलक्षित करती है, तो कभी कल्पनाओं की उड़ान बनती है। पर अपने हर रूप में काव्य मन की संवेदनाओं को दिखाती है।
यदि मैं अपनी सहित्यिक यात्रा की बात करूँ तो मैंने अपनी यात्रा बतौर एक अंग्रेजी उपन्यासकार के रूप में शुरू की थी, और कविताओं से तो दूर-दूर तक मेरा कोई रिश्ता नहीं था। पर साहित्यपीडिया के मंच से जुड़ने की वजह से मेरी रूचि धीरे-धीरे कविताओं में जागी। पर शुरुआत तब भी अंग्रेजी कविताओं से हीं हुई थी, और एक लम्बे समय तक अंग्रेजी कविताओं तक हीं सीमित भी रही। पर जाने क्यों और कैसे साहित्य की ये विधा मुझे आकर्षित कर गयी। एक अलग सा सुकून मिलने लगा मुझे, अपनी भावनाओं को यूँ शब्दों में पिरोने में। फिर रूचि जागी की क्यों ना अपनी मातृभाषा में लिखने की कोशिश करूँ, ये थोड़ी ज्यादा मुश्किल थी पर अभिनीत सर के सहयोग और मार्गदर्शन से वो भी संभव हो सका। छोटी-छोटी कविताओं से शुरुआत की और अपनी पहली हिंदी उपन्यास भी लिखी, जिसे आप पाठकों का पूरा स्नेह मिला। हिंदी काव्यों की यात्रा चलती रही और इस जटिल जीवन में इन कविताओं के माध्यम से सुकून और सुख की अनुभूति भी मुझे मिलती रही। एक से दो, दो से तीन और ऐसा करते-करते अनगिनत पुष्पों का समावेश मेरी काव्य की बगिया में हुआ। मेरी उसी कविता के बागीचे से मैंने सौ कविताएं चुनी है, आप सब के लिए। मुझे उम्मीद भी है और विश्वास भी की निःसंदेह मेरी ये काव्य-संग्रह आपके ह्रदय को छुएगी भी और आपकी आत्मा के साथ एक विशेष सम्बन्ध भी बनाएगी।
यादों की आहटें मेरी पहली काव्य-संग्रह है, जिसमें आपको जीवन के कई रंग देखने को मिलेंगे, कहीं प्रेम के पुष्प खिलेंगे, तो कहीं विरह के अश्रु बहेंगे, कहीं उम्मीद के दीये रौशन होंगे, तो कहीं आशाओं के दीप बुझेंगे, कहीं किसी माँ का प्रेम, तो कहीं किसी पिता की विवशता, कहीं रिश्तों का ताना-बाना, तो कहीं रिश्तों की कड़वाहट से आपका हृदय रूबरू होगा। चुकीं साहित्य समाज का दर्पण कहलाती है, तो थोड़ी कोशिश मैंने भी की है, की अपनी समझ और अपने अनुभवों के अनुसार मैं भी आप सब को कुछ सत्य, तो कुछ कल्पनाओं से मिलवा सकूं।
यादों की आहटें काव्य-संग्रह अंतर्मन की गहन संवेदनाओं पर विशेष रूप से आधारित है। हृदय की गहराई से महसूस की गयी और उतने हीं प्रेम और संवेदनाओं में लिप्त होकर कलमबद्ध की गयी रचनाओं का संकलन है, जो आपके हृदय को भी द्रवित करेगी, और आप सभी पाठकों को अवश्य पसंद आएगी।
मनीषा मंजरी
दरभंगा, बिहार
1. थोड़ा सा सूरज तुम ले आना
कर्त्तव्य रिश्ते का कुछ इस कदर निभाना,
कि प्रकाश के उस दरिया को, लाँघ कर चले आना।
सरल नहीं है, इस अविश्वनीय दूरी को मिटाना,
पर त्याग आऊंगी ये संसार मैं, थोड़ा तुम भी ईश्वर से लड़ आना।
असंभव हीं तो है, बहुमूल्य स्मृतियों को भूलना,
तो कुछ बातें मैं ले आउंगी, कुछ खामोशियाँ तुम ले आना।
विखंडित हुई लहरों का भी, सागर हीं है अंतिम ठिकाना,
बनकर तारा टूटूँगी मैं भी, क्षितिज बन तुम बाहें फैलाना।
फैले इस अन्धकार को, भोर से कभी तो होगा मिलाना,
तो परछाईं बन मैं आउंगी, थोड़ा सा सूरज तुम ले आना।
किस्मत ने भले हीं लिख दिया, रूह और काया के विरह का फ़साना,
पर उम्मीद की मोतियाँ मैं लाऊंगी, धागे जन्मों के तुम ले आना।
निरंतर यात्रा से समय थका, उचित है अब धैर्य का टूट जाना,
किस्तों में जी लिया जीवन ये, अब तो मृत्यु में मुझे सम्पूर्ण कर जाना।
* * *
2. कोरा रंग
लाख रंग फैले हैं फ़िज़ाओं में,
पर रंग मुझपर कोई चढ़ता नहीं है,
तेरे कोरे रंग में रंगी हूँ इस तरह,
की रंग मुझपर से तेरा उतरता नहीं है।
तन को छूते गुलाल आज भी,
पर रंग कोई मन पर आकर ठहरता नहीं