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सम्बन्धों की दुनिया (खेल प्यार के)
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सम्बन्धों की दुनिया (खेल प्यार के)

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सम्बन्धों की दुनिया (खेल प्यार के)
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Table of Content
दो शब्द
गलत सम्बन्ध
एक वो थी
एक पन्ना जीवन का
दुनिया को बताओ
दो जिस्म एक रूह
धूमिल स्याही
ढलती शाम
डैडी की रखैल
बोलते ज़ख्म
बिलकुल सही सज़ा
बड़ी बहन का आशिक
बाद में
आश्चर्य, दुःख, या शर्म
अंतिम चिट्ठी
अनंत प्रेम
आखिर वो मुझे सुन्दर लगा
ऐसी ही है वो
आओ भाग चलें
पहली नजर में असफल
प्यार का सही वक्त
चुप्पी ने कह दिया
क्या फरक पड़ता है
प्रेम और विवाह
कभी नहीं

बड़े बड़े वाक्यों और बड़े बड़े साहित्यिक शब्दों के कारण बहुत से लोग आजकल साहित्य में रूचि नहीं रखते हैं! पहले ये एक धारणा थी के बड़े बड़े वाक्यों और गंभीर शब्दावली के बिना कोई भी उत्कृष्ट कहानी तैयार नहीं हो सकती है। लेकिन ये धारणा सही नहीं है।

कुछ कहानियां जरूर साहित्य के दृष्टिकोण से पढ़ी जाती हैं लेकिन ज्यादातर कहानियां मनोरंजन और ज्ञान प्राप्ति के दृष्टिकोण से पढ़ी जाती हैं। लेकिन कुछ कहानियां ऐसी भी होती जो सिर्फ इसलिए पढ़ी जाती हैं के उनसे पाठक को कुछ राहत मिले, दिमागी उलझनों से छुटकारा मिले, भले ही कुछ पलों के लिए।

कहने को तो हमारी कहानियां बहुत ही सरल और आम भाषा में लिखी होती हैं पर हमारी कहानियों में हर वर्ग के पाठक के लिए कुछ ना कुछ जरूर होता है!

इस पुस्तक में जो प्रेम कहानियां हम प्रस्तुत कर रहे हैं वो प्रेम के अलावा जीवन के अन्य बहुत से पक्षों को भी खोलती हैं और हम आपको यकीन दिला सकते हैं के ये कहानियां आपके दिमाग में निश्चित ही अपनी छाप छोड़ देंगी। भरोसा कीजिये और शुरू हो जाइये!

शुभकामना

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateJul 22, 2022
ISBN9781005469221
सम्बन्धों की दुनिया (खेल प्यार के)

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    सम्बन्धों की दुनिया (खेल प्यार के) - टी सिंह

    टी सिंह

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    Copyright@2022 टी सिंह

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    सम्बन्धों की दुनिया (खेल प्यार के)

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    Table of Content

    दो शब्द

    गलत सम्बन्ध

    एक वो थी

    एक पन्ना जीवन का

    दुनिया को बताओ

    दो जिस्म एक रूह

    धूमिल स्याही

    ढलती शाम

    डैडी की रखैल

    बोलते ज़ख्म

    बिलकुल सही सज़ा

    बड़ी बहन का आशिक

    बाद में

    आश्चर्य, दुःख, या शर्म

    अंतिम चिट्ठी

    अनंत प्रेम

    आखिर वो मुझे सुन्दर लगा

    ऐसी ही है वो

    आओ भाग चलें

    पहली नजर में असफल

    प्यार का सही वक्त

    चुप्पी ने कह दिया

    क्या फरक पड़ता है

    प्रेम और विवाह

    कभी नहीं

    दो शब्द

    बड़े बड़े वाक्यों और बड़े बड़े साहित्यिक शब्दों के कारण बहुत से लोग आजकल साहित्य में रूचि नहीं रखते हैं! पहले ये एक धारणा थी के बड़े बड़े वाक्यों और गंभीर शब्दावली के बिना कोई भी उत्कृष्ट कहानी तैयार नहीं हो सकती है। लेकिन ये धारणा सही नहीं है।

    कुछ कहानियां जरूर साहित्य के दृष्टिकोण से पढ़ी जाती हैं लेकिन ज्यादातर कहानियां मनोरंजन और ज्ञान प्राप्ति के दृष्टिकोण से पढ़ी जाती हैं। लेकिन कुछ कहानियां ऐसी भी होती जो सिर्फ इसलिए पढ़ी जाती हैं के उनसे पाठक को कुछ राहत मिले, दिमागी उलझनों से छुटकारा मिले, भले ही कुछ पलों के लिए।

    कहने को तो हमारी कहानियां बहुत ही सरल और आम भाषा में लिखी होती हैं पर हमारी कहानियों में हर वर्ग के पाठक के लिए कुछ ना कुछ जरूर होता है!

    इस पुस्तक में जो प्रेम कहानियां हम प्रस्तुत कर रहे हैं वो प्रेम के अलावा जीवन के अन्य बहुत से पक्षों को भी खोलती हैं और हम आपको यकीन दिला सकते हैं के ये कहानियां आपके दिमाग में निश्चित ही अपनी छाप छोड़ देंगी। भरोसा कीजिये और शुरू हो जाइये!

    शुभकामना

    टी सिंह

    गलत सम्बन्ध

    डाइनिंग रूम की दीवार पर लगी घडी की तरफ देखते हुए माया ने कहा,हमें दफ्तर के लिए देरी हो जाएगी!

    अखबार पढते पढ़ते ही राकेश ने कहा, मैं बस पांच मिनटों में तैयार हो जाऊंगा।

    माया और राकेश की शादी को दो वर्ष हो गए थे। वो बैंगलोर के एक बहुत अच्छे इलाके में एक बहुत ही विलासितापूर्ण घर में रहते थे।

    राकेश सिंह एक बहुत बड़ी आई टी कंपनी का डायरेक्टर था और उसकी पत्नी माया उसकी ही कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर थी।

    राकेश का काम बहुत तनावपूर्ण था लेकिन वो हर समय काम में ही डूबा रहता था। वो अक्सर देर रात तक काम करता था। वो दोनों काम में इतने व्यस्त थे के उन्होंने कभी बच्चे के बारे में सोचा ही नहीं।

    शादी के शुरू के दिनों में वो दोनों बहुत खुश थे अपने विवाहित जीवन से लेकिन दो वर्षों में ही उनके जीवन से उत्तेजना गायब हो गयी थी और फिर धीरे धीरे दोनों दूर दूर होने लगे थे।

    अब तो वो दो अजनबियों की तरह ही उस घर में रह रहे थे। एक दूसरे से बहुत कम बोलते थे।

    राकेश अपने काम में इतना व्यस्त रहने लगा था के उसके पास अपनी पत्नी के बारे में सोचने का समय ही नहीं होता था।

    आधी रात के बाद दफ्तर से घर आता और फिर सीधा अपने अध्ययन कक्ष में जाकर अमेरिका में अपने कर्मचारियों से बातें करता रहता था।

    वो प्रायः रात का खाना भी बाहर से ही खाकर आने लगा था। वो सिर्फ कभी कभी ही अपनी पत्नी से डिनर और सुबह नाश्ते की मांग करता था।

    जब माया ने देखा के राकेश तैयार होकर नहीं आया था तो वो फिर से ऊपर अपने बैडरूम में जाकर अपने मेकअप को देखने लगी।उसने खुद को आईने में देखा।

    वो पतली थी और बला की खूबसूरत थी। वो जानती थी के बहुत से पुरुष उसकी तरफ आकर्षित होते थे। उसकी सुंदरता उसका बड़ा हथियार थी।

    तभी उसने राकेश की आवाज सुनी। वो उसको बुला रहा था,क्या तुम तैयार हो?

    माया को गुस्सा तो बहुत आया और मन किया के चिल्लाकर कह दे के वो पिछले पंद्रह मिनटों से तैयार थी, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। उसने बस इतना कहा,हाँ चलो चलते हैं!

    दफ्तर पहुँच कर माया ने अपनी मेल चेक की और फिर एक कॉफ़ी ले ली और फिर अपने कर्मचारियों के साथ मीटिंग के लिए चली गयी।

    करीब ग्यारह बजे वो संजय के केबिन में चली गयी उसके साथ एक प्रोजेक्ट के बारे में बात करने के लिए। संजय और माया दोनों ही उस प्रोजेक्ट पर इकट्ठे काम कर रहे थे।

    माया, राकेश, और संजय बचपन के दोस्त थे। हालाँकि पढ़ने में संजय राकेश से बहुत तेज़ था लेकिन राकेश ने ज्यादा तरक्की कर ली थी और संजय को बहुत पीछे छोड़ दिया था कंपनी के बड़े खेल में।

    अब संजय माया की तरह ही प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर काम कर रहा था। माया के हाथ में कॉफ़ी के कप को देखकर संजय ने कहा, क्यों ना हम कांफ्रेंस रूम में चलें और इस काम को वहीँ करें?

    माया थोड़ी सी हैरान हुई क्योंकि वो अक्सर संजय के केबिन में ही काम करते थे। कुछ देर के बाद दोनों बड़े से खाली कांफ्रेंस रूम में पहुँच गए।

    संजय ने कुछ घबराहट से कहा,माया, इससे पहले के हम काम शुरू करें मुझे राकेश के बारे में तुमसे कुछ कहना है!

    माया ने भी डरते डरते संजय की तरफ देखना शुरू कर दिया।तभी संजय ने कहा, मुझे राकेश और रेखा के बारे में कुछ कहना है! लोग उनकी दोस्ती के बारे में बातें कर रहे हैं!

    मेरे पति और उस कुतिया के बीच कुछ चल रहा है क्या? माया तो जैसे बिफर ही गयी। ऐसा लग रहा था के जैसे वो किसी भी क्षण फट पड़ेगी।

    संजय जानता था के माया एकदम गंभीर थी। वो बोला, देखो माया! उन दोनों के बीच ऐसा कुछ प्रेम वगैरह नहीं है ।हाँ थोड़ी बहुत फ्लर्टिंग साफ़ दिखती है। ऐसी कोई गंभीर बात नहीं है मेरे ख्याल में!

    "फ्लर्टिंग? थोड़ी बहुत फ्लर्टिंग? सच में संजय! तुम पुरुष लोग इसको फ्लर्टिंग कहते हो,हैं ना? एक शादीशुदा आदमी ऐसा कैसे कर सकता है?

    ये फ्लर्टिंग शब्द भ्रष्ट पुरुषों ने बनाया है अपने अनैतिक संबंधों को छिपाने के लिए! होती तो ये मर्द और पुरुष के बीच में ही ना!"

    माया उठकर कमरे में इधर उधर टहलने लगी। वो बहुत ही गुस्से में दिख रही थी।

    तभी उसने रूककर संजय से पूछा,क्या मेरा पति उस लड़की के साथ सो चुका है? तुम राकेश के दोस्त हो! क्या उसने तुमसे कभी इस बारे में कोई बात की?

    संजय ने कहा, नहीं मुझे नहीं लगता के उन दोनों का सम्बन्ध इतना आगे तक बढ़ा है ।लेकिन फिर भी तुमको सावधान रहना ही होगा।

    माया ने कहा,ठीक है संजय! क्या तुम ये प्रोजेक्ट अकेले कर सकते हो? मैं आज बिलकुल काम नहीं कर पाउंगी! मेरा दिमांग खराब हो रहा है!

    ठीक है मैं कर लूँगा! तुम कुछ देर बैठ कर आराम से सोचो कुछ देर तक, संजय ने कहा।

    जब माया का दिमाग थोड़ा सा ठंडा हुआ वो इंटरनेट पर ये खोजने लगी के धोखा देने वाले पतियों से कैसे व्यवहार करना चाहिए।

    उसने इस बारे में बहुत से लोगों के द्वारा लिखे हुए लेख पढ़े पर सभी में एक बात लिखी थी के इस मामले में औरत को जल्दी नहीं करनी चाहिए और धैर्य रखना चाहिए और अपने पति को वापिस अपने पास खींचने की कोशिश करनी चाहिए।

    माया ने निर्णय लिया के और भी सुन्दर दिखने के लिए और राकेश को अपनी तरफ फिर से आकर्षित करने के लिए खुद को मेकअप से सुन्दर दिखना होगा। वो दफ्तर से निकलकर सबसे महंगे ब्यूटी पार्लर में पहुँच गयी।

    उसने कुछ घंटे उस ब्यूटी पार्लर में बिताये और काफी पैसे खर्च कर दिए। जब वो उस ब्यूटी पार्लर से बाहर निकली तो वो बहुत सुन्दर दिख रही थी।

    उस रात को राकेश कुछ ज्यादा देर से ही घर वापिस आया। गुस्से से भरी हुई माया उसका ही इंतजार कर रही थी। लेकिन उसके दिमाग में धैर्य वाली बात घूम रही थी।

    अंदर आते ही राकेश ने माया से कहा, मैं कैंटीन में कुछ खा कर आया हूँ। मुझे अब अमेरिका फ़ोन पर बात करनी है। मैं स्टडी रूम में ही रहूंगा! तुम सो जाओ!

    राकेश ने स्टडी रूम में जाकर दरवाजा बंद कर लिया। माया का मन हो रहा था के उस दरवाजे पर जोर से लात मार दे। राकेश ने तो उसके नए हेयर स्टाइल और सुन्दर चेहरे की तरफ देखा तक नहीं था।

    वो जानती थी के उसका चेहरा सुंदरता से चमक रहा था। वो गुस्से से दांत भींचने लगी। वो बैडरूम में जाकर बिस्तर पर पसर गयी। उसका मन जोर जोर से चिल्लाने को कर रहा था।

    जब राकेश काफी देर के बाद

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