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Nateeja (नतीजा)
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Ebook128 pages1 hour

Nateeja (नतीजा)

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About this ebook

यह कहानी है दो महिलाओं के संघर्ष की, एक महिला सहकर्मी है तो दूसरी धर्मपत्नी। सहकर्मी के द्वारा झूठे आरोप में फंसाए गए पति को बचाने के लिए पत्नी को बड़े ही विचित्र तरीके से एक ऐसी तरकीब मिलती है जो उसके पति को तो बचा लेगा पर उसे दुनिया के सामने शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी। फिर पत्नी ने क्या किया? क्या उसने उस तरकीब को अपनाया पति को बचाने के लिए? कैसे उसे वह तरकीब मिली? इतना भी हैरान न हों बस पढ़ डालिए इस लघु उपन्यास को। एक ही बैठक में इसे पढ़ डालने को विवश हो जाएंगे आप।.
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateApr 15, 2021
ISBN9789390504299
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    Nateeja (नतीजा) - Binay Kumar Pathak

    Pathak

    एक

    रागिनी उस आवाज को पहचान रही थी। यह आवाज उसके मोबाइल की थी। उसने मोबाइल में अलार्म सेट कर रखा था। वैसे पहले उसे अलार्म की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। वह सुबह सुबह उठ जाती थी। पर इधर कुछ महीनों से उसके सोने उठने का समय गड़बड़ा गया था। कभी भाग दौड़ में समय बीतता तो कभी चिंतातुर हो रात में काफी देर से सो पाती थी। कभी कभी तो बीच में ही नींद टूट जाती और दुबारा काफी देर से नींद आती थी।

    नींद में ही उसने मोबाइल को हाथ से टटोल कर उठाया। स्क्रीन पर स्नूज और स्टॉप दो टैब दीख रहे थे। उसने अपनी आँखों को खोल ध्यान से देखा कि कौन सा स्नूज बटन है। फिर उसे अपने अंगूठे से टच कर मोबाइल को तकिये के बगल में रख दिया।

    कई बार ऐसा होता था कि वह मोबाइल अलार्म को स्टॉप कर देती थी और आलस्यवश लेटी लेटी नींद की आगोश में चली जाती थी। फिर देर से उठने पर कभी बेहद हड़बड़ी में हर्ष को जगा कर स्कूल जाने के लिए तैयार करती थी। किसी-किसी दिन स्कूल बस के निकल जाने पर वह स्कूटी से हर्ष को स्कूल पहुँचाती, फिर स्कूल के बस कंडक्टर को हिदायत कर कि हर्ष को वह वापसी में लेता आए, वापस आती थी। कई बार देर इतनी हो जाती कि स्कूल जाने का कोई मतलब ही नहीं रहता था।

    मोबाइल को स्नूज करने से हर पाँच मिनट पर मोबाइल फिर से शोर मचाने लगता था और फिर उसे जगना पड़ता था। कभी-कभी वह फिर से मोबाइल को स्नूज कर देती थी और उसे अगले पाँच मिनट और मिल जाते थे झपकी लेने के लिए। कल ही दो तीन बार उसने ऐसा किया था और नतीजतन हर्ष की बस छूट गई थी और उसे पहुँचाने स्कूटी से स्कूल जाना पड़ा था। आज फिर वह इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहती थी। अतः उसने मन ही मन ‘आलस्यहि मनुष्यानां महान शत्रु’ श्लोक पढ़ा और एक झटके से आलस्य को त्यागा और उठकर बैठ गई। पाँच वर्ष का हर्ष उसी बिस्तर पर बेसुध सोया हुआ था। रागिनी ने उसके सिर पर हाथ फेरा। हर्ष ने करवट बदल ली। रागिनी ने उसके गाल में धीरे से चिकोटी काटते हुए पुकारा- मेरा राजा बेटा आज स्कूल नहीं जाएगा क्या?

    हर्ष बगैर कोई प्रतिक्रिया किए लेटा रहा। रागिनी समझ सकती थी कि हर्ष को सुबह सुबह उठने में कितनी परेशानी हो रही होगी। पर किया क्या जा सकता था? आखिर स्कूल भी तो समय से पहुँचना था। रागिनी ने घड़ी की ओर देखा, सात बज चुके थे। अर्थात् वास्तविक समय पौने सात। दीवाल घड़ी को वह हमेशा पंद्रह मिनट फास्ट रखती थी ताकि समय से पहले तैयार हुआ जा सके। साढ़े सात तक स्कूल बस आ जाती है। वह उठकर बाथरूम चली गई। फ्रेश हो कर बाहर आई और हर्ष को किसी प्रकार जगा पाई। वह बार बार करवट बदल लेता और फिर से सोने लगता। हर्ष को उसने बाथरूम भेज दिया और स्वयं उसके स्कूल जाने की तैयारी करने लगी।

    सबसे पहले उसने हर्ष के स्कूल यूनिफॉर्म को एकत्र कर ड्राइंग रूम में रख दिया। कपड़े, जूते, स्कूल-बैग। रूटीन देख पुस्तकें एवं कॉपियाँ बैग में रख दी। फिर रसोई की ओर गई। हर्ष के नाश्ते और टिफिन की व्यवस्था की। इस बीच हर्ष बाथरूम से फ्रेश हो कर आ चुका था। रागिनी ने उसे यूनिफॉर्म पहनने में मदद की। ड्राइंग टेबल पर उसके लिए पराठे और भूजिया परोस दिया। अब हर्ष काफी कुछ नींद की गिरफ्त से मुक्त हो चुका था। वह बीच-बीच में भांति भांति के बाल सुलभ प्रश्न अपनी मम्मी से करता और कुछ ज्ञान की बातें भी बताता रहता। इस बीच रागिनी उसके स्कूल बैग में टिफिन बॉक्स रख घर की चाभी हाथ में लिए तैयार हो चुकी थी।

    हर्ष का स्कूल बैग ले कर वह बाहर निकली। दरवाजे को लॉक किया और गेट से बाहर चल पड़ी। दोनों माँ-बेटे सड़क के किनारे-किनारे चलते हुए करीब दो सौ कदम की दूरी पर स्थित चौराहे पर पहुँचे। चौराहे पर अन्य कई बच्चे आ चुके थे। कई बच्चे विभिन्न दिशाओं से आ रहे थे। बड़े बच्चे अकेले थे जबकि छोटे बच्चों को पहुँचाने के लिए कोई न कोई बड़ा व्यक्ति साथ में था। किसी के साथ माँ तो किसी के साथ पिता तो किसी के साथ काम वाली बाई या कोई और। अलग अलग स्कूल के बच्चे अलग अलग यूनिफॉर्म में थे। कुछ बच्चे गंभीरतापूर्वक खड़े थे तो कुछ अपनी मित्रमंडली में चुहलबाजी कर रहे थे। किसी विशेष स्कूल की बस आती तो उस स्कूल के बच्चे उस बस में सवार हो जाते। कुछ बच्चों के पहुँचने के पहले ही उनकी स्कूल बस जा चुकी थी। वैसे बच्चों में कुछ खुश होते कुछ मायुस होते घर वापस लौट रहे थे।

    पाँच मिनट भी नहीं बीते होंगे कि हर्ष के स्कूल ‘नॉटी किड्स’ की बस आ गई। हर्ष पीठ पर स्कूल बैग लादे बस की ओर बढ़ा। हेल्पर ने उसे बस की सीढ़ियों पर चढ़ने में मदद की। बस के अंदर जा कर हर्ष ने खिड़की से अपनी मम्मी को देखा और हाथ हिलाते हुए टा-टा बाई-बाई कहा। बस आगे बढ़ गई।

    रागिनी वापस घर की ओर चल पड़ी। रास्ते में मिसेज वर्मा तेजी से अपने बेटे अंश के साथ चौराहे की ओर आ रही थी। रागिनी को देख उसने पूछा, बस चली गई क्या?

    हाँ! अभी अभी गई- रागिनी ने जवाब दिया।

    मिसेज वर्मा अपने बेटे को डांटने लगी, कब से तुझे कह रही थी जल्दी कर, जल्दी कर। अब जा पापा से डांट सुन, मार खा। दोनों माँ बेटे वापस मुड़ गये। मिसेज वर्मा अंश को डांटते जा रही थी और अंश शायद पिता की डांट की सोच चुपचाप चलता जा रहा था।

    रागिनी अपने घर के सामने पहुँच दरवाजा पर लगे ताला को खोला और अंदर आ गई। दो पल को ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठ गई। सोचने लगी अब क्या किया जाए। कुछ माह पहले उसे ऐसा सोचना नहीं पड़ता था। बल्कि समय की कमी पड़ती थी। श्रेयस ठीक साढ़े नौ बजे ऑफिस के लिए निकल जाता था। मतलब अगले एक घंटे में उसे श्रेयस के नास्ते के लिए और उसके टिफिन के लिए किचन में व्यस्त रहना पड़ता था। पर अब श्रेयस घर में नहीं है। न जाने कब तक आ पाएगा। उसकी सहकर्मी संजना ने उस पर गंभीर आरोप लगाये हैं और वह बलात्कार के आरोप में जेल में है। बेल

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