बीस साल बाद
By प्रकाश भारती
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नीना ब्रिगेंजा...चार साल की उम्र से चर्च में पत्नी...बिन ब्याही माँ की औलाद थी...फादर ब्रिगेंजा ने मरने से पहले उसकी माँ जूली की आखिरी निशानी सोने का क्रॉस सौंपते हुए यह राज उसे बताया तो उसे कोई दुःख या परेशानी नहीं हुई न ही मन में हीन भावना पखी । वह चौबीस वर्षीया सुन्दर युवती थी– खुद्दार, गैरतमंद और अपने अलग ढंग से जिंदगी को जीने वाली...मर्दों की किसी भी हरकत पर वह हैरान नहीं होती थी...।
उस रात भी हैरान नहीं हुई... जब पिस्तौल के दम पर उसके घर से ही दो अजनबियों ने उसका अपहरण किया...नीना ने अपनी सूझबूझ और हौसलामंदी से किडनैपिंग को कार एक्सीडेंट में तब्दील कर दिया नतीजा...एक अपहरणकर्ता की मौत और दूसरा गंभीर रूप से घायल...नीना बिलकुल सही सलामत बच निकली...पुलिस स्टेशन जाकर रिपोर्ट लिखवा दी...। यह महज शुरुवात थी–निहायत ही अजीब सिलसिले की...अगली शाम ऑफिस से लौटती नीना अपनी इमारत में पहुंची तो एक बॉक्सर द्वारा चाकू से उस पर हमला...अचानक आ पहुंचे पुलिस इंस्पेक्टर ने बॉक्सर को शूट कर दिया...।
नीना फिर बच गयी...।
उसी रात एक अजनबी युवक नीना से मिलने आ पहुंचा–करोड़ों कमाने की योजना लेकर...योजना थी–जिंदगी की आखिरी सांसे ले रहे करोड़पति बिजनेसमैन जगत नारायण मेहरा की तमाम दौलत हड़पने की...।
मेहरा की बेटी पूनम दो साल पहले अपनी मर्जी से शादी करके बाप का घर छोड़ गयी थी और कार एक्सीडेंट में मारी जा चुकी थी...उसकी मौत से अनजान मेहरा के एक ही ख्वाहिश थी–पूनम उससे आकर मिले ताकि अपना सब कुछ उसे सौंपकर चैन से मर सके...।
योजना के मुताबिक नीना को मेहरा की बेटी और इकलौती वारीसा पूनम के तौर पर मेहरा के सामने पेश किया जाना था...क्योंकि कद-बुत, रंग और चेहरे मोहरे से वह काफी हद तक पूनम से मिलती थी...।
नीना ने पूरी योजना अच्छी तरह समझने के बाद अपनी सहमति दे दी...।
पुलिस की निगरानी के बावजूद वे इमारत से निकलने में कामयाब हो गए...।
तब नीना की मुलाकात हुई दीवानचंद से...बरसों से मेहरा का पी. ए. और सबसे ज्यादा भरोसेमंद रहा आदमी...इस सारी योजना को बनाने और अमली जामा पहनाने वाला मास्टर क्रिमिनल...।
उसने नीना को पूनम के उठने–बैठने, बोल-चाल वगैरा की बाकायदा रिहर्सल कराकर पूरी तैयारियों के साथ जगतनारायण के सामने पेश कर दिया...।
दीवानचंद को पूरा यकीन था योजना कामयाब हो जायेगी ??
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Book preview
बीस साल बाद - प्रकाश भारती
बीस साल बाद
प्रकाश भारती
* * * * * *
Aslan-Reads.pngअसलान रीड्स
के द्वारा प्रकाशन
असलान बिजनेस सॉल्यूशंस की एक इकाई
बोरिवली, मुंबई, महाराष्ट्र, इंडिया
ईमैल: hello@aslanbiz.com; वेबसाइट: www.aslanreads.com
कॉपीराइट © 1988 प्रकाश भारती द्वारा
ISBN
इस पुस्तक की कहानियाँ काल्पनिक है। इनका किसी के जीवन या किसी पात्र से कोई
संबंध नहीं है। यह केवल मनोरंजन मात्र के लिए लिखी गई है।
अत: लेखक एवं प्रकाशक इनके लिए जिम्मेदार नहीं है।
यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि प्रकाशक की
लिखित पूर्वानुमती के बिना इसे या इसके किसी भी हिस्से को न तो पुन: प्रकाशित
किया जा सकता है और न ही किसी भी अन्य तरीके से, किसी भी रूप में
इसका व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है।
यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
* * * * * *
अंतर्वस्तु
प्रकाश भारती - बीस साल बाद
प्राक्कथन
बीस साल बाद
* * * * * *
प्रकाश भारती - बीस साल बाद
–...तब क्या इस बात को छिपाया जा सकेगा जगतनारायन जिसे अपनी बेटी पूनम मेहरा समझता है, असल में वह कोई और ही लड़की है । जिसका इकलौता मकसद बाक़ायदा योजनाबद्ध तरीके से जगतनारायन की करोड़ों की दौलत हड़पना है ।
–लेकिन कल ही काम खत्म करना क्यों जरूरी है ?
–इसलिए कि हमारे पास वक्त बहुत कम है । जमशेद की बेवकूफी ने भारी गड़बड़ कर दी है । जिन दो किराए के बदमाशों का इंतजाम उसने किया था वे मारे जा चुके हैं और चाकूबाज रंगनाथ एक इंसपेक्टर की गोली से जख्मी होकर पुलिस के हाथ पड़ चुका है ।
(एक रोचक एवं तेज रफ्तार उपन्यास)
* * * * * *
प्राक्कथन
पचपन वर्षीय फादर ब्रिगेन्जा ने कई बार उस पत्र को पढ़ा । बम्बई के एक पते के अलावा उसमें सिर्फ पांच लाइनें लिखी थीं–
परम आदरणीय फादर ब्रिगेन्जा,
मैं इन्सानियत के नाम पर अपील करती हूं, आप जल्दी से जल्दी आकर मुझसे मिलने की कृपा करें ।
सिर्फ आपके इंतजार में;
जूली गोंसाल्विस
फादर ब्रिगेन्जा का प्रभु यीशु के अलावा कोई नहीं था । चर्च में रहकर धर्मोपदेश देना और दीन–दुखियों की निःस्वार्थ सेवा करना ही उनके जीवन के उद्देश्य थे । ज़रूरतमंद लोग अपनी समस्याएं लेकर उनके पास आते थे । वह सहानुभूति पूर्वक उनकी परेशानियां सुनते और मदद करने की हर मुमकिन कोशिश किया करते थे ।
जहां तक जूली गोंसाल्विस का सवाल था । उसके बारे में ज्यादा जानकारी उन्हें नहीं थी । सिवाय इसके कि, इस नाम की एक युवती हर इतवार को नियमपूर्वक चर्च आया करती थी । वह बेहद खूबसूरत थी । और कहीं अच्छी–खासी नौकरी करती प्रतीत होती थी । शुरू में, वह खुश नजर आया करती थी । फिर धीरे–धीरे गंभीर होती चली गई । उन्होंने दो–चार मर्तबा उससे पूछा भी मगर वह जबरन हंसकर टाल गई थी ।
अचानक वह चर्च में दिखाई देना बंद हो गई ।
फादर ने चर्च आने वाले दूसरे लोगों से, उसके बारे में पूछा । तब उन्हें पहली बार पता चला कि नाम के अलावा उसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता था ।
धीरे–धीरे कई महीने गुजर गए ।
फादर उसे लगभग भूल ही चुके थे कि यह पत्र आ पहुंचा ।
पत्र की भाषा से स्पष्ट था, जूली को फौरन उनकी मदद की सख्त जरूरत थी । वह रात भर दुविधा में फंसे रहे बम्बई तक का हजार मील लम्बा सफर करें या न करें ।
अंत में, उनके परोपकारी मन ने जाने का ही फैसला कर लिया ।
वह बम्बई पहुंचे ।
खत में दिए गए पते पर जाकर जूली गोंसाल्विस से मिले तो हैरान रह गए । एकाएक अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर सके ।
जूली का सौंदर्य, यौवन और आकर्षण सब न जाने कहां गायब हो गए थे । उसकी रंगत एकदम पीली पड़ी हुई थी । शरीर हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया । आंखों के नीचे गहरे स्याह गड्ढे पड़ गए थे । लेकिन, चेहरे पर मुर्दनी छायी होने के बावजूद दृढ़ता थी और आंखों की चमक उसी तरह कायम थी ।
उसके पास ही, एक करीब चार वर्षीया बड़ी ही प्यारी गुड़िया–सी खूबसूरत बच्ची सोयी हुई थी ।
वह जूली की बेटी थी–डॉली ।
जूली की उस हालत की वजह थी ब्लड–कैंसर । हॉस्पिटल से, लाइलाज करार देकर, उसे घर भेज दिया गया था डॉक्टरों के कथनानुसार, उसने हफ्ते भर से ज्यादा जिंदा नहीं रहना था ।
उसकी हालत देखकर द्रवित हो गए फादर ने मन ही मन खुदा बाप से उसके लिए दुआ मांगी । फिर उसे दिलासा देते हुए डॉली के पिता के बारे में जानना चाहा ।
जूली ने अपनी नाकामयाब मुहब्बत की कहानी सुना दी ।
संक्षेप में, वह एक विख्यात कम्पनी में स्टेनो का काम किया करती थी । उसे बहुत ही धनी–मानी आदमी के इकलौते बेटे से प्यार हो गया । प्यार एकतरफ़ा नहीं था । धर्म और समाज के वर्गभेद से परे उसका प्रेमी भी उसे दिलोजान से चाहता था । दोनों को एक–दूसरे पर पूरा भरोसा था, जो वादे उन्होंने किए और जो कसमें खायी थीं, उससे कोई भी पीछे नहीं हटेगा ।
लेकिन हकीकतन ऐसा नहीं हो सका ।
प्रेमी का दौलतमंद बाप बड़ा ही सख्तमिजाज और पुराने तथा कट्टर विचारों वाला था । बेटा रोज सोचता मगर बाप के सामने, अपनी प्रेमिका को पत्नी के रूप में स्वीकार कराने की बात ज़ुबान पर लाने की जुर्रत नहीं कर पाता ।
वे दोनों बालिग थे । आसानी से कोर्ट मैरिज कर सकते थे । प्रेमी इसके लिए तैयार भी था । लेकिन जूली को यह मंज़ूर नहीं था । वह बचपन में ही अनाथ हो गई थी । दूर के रिश्ते के जिस चाचा–चाची ने उसकी परवरिश की थी । वे भी परलोक सिधार चुके थे । इस तरह उसकी ओर से इस मामले में दखल करने वाला तो कोई नहीं था । मगर वह एक खुद्दार औरत थी । प्रेमी के मां–बाप की मर्जी के खिलाफ शादी करके उन लोगों को यह कहने का मौका वह नहीं देना चाहती थी कि उसने दौलत की ख़ातिर उनके बेटे को फंसा लिया था ।
अनिश्चय की इसी स्थिति में समय गुजरता रहा ।
उनके प्यार के नतीजे के तौर पर जूली की कोख में डॉली भी पलने लगी ।
मगर हालात वैसे ही रहे । प्रेमी अपने बाप के सामने ज़ुबान खोलने का हौसला नहीं जुटा पाया । और जूली ने बिन ब्याही मां बनना तो मंज़ूर कर लिया लेकिन प्रेमी के मां–बाप की स्वीकृति के बिना शादी करने को तैयार नहीं हुई ।
वक्त आने पर उसने डॉली को जन्म दिया और दूसरी जगह नौकरी करके अपनी बेटी को पालने लगी ।
फिर वो समय भी आया जब, इस सबसे बेखबर, प्रेमी के मां–बाप ने बेटे पर शादी करने के लिए दबाव डाला । पहले तो वह टालता रहा । फिर जब दबाव ज्यादा ही बढ़ा तो एक रोज साहस करके उसने जूली और डॉली के बारे में बता दिया ।
इस पर, जैसी कि उम्मीद थी, घर भर में हंगामा मच गया । बेटे को जी भरके कोसने के बाद, बाप ने साफ इंकार कर दिया । एक गैर–मज़हबी, मामूली टाइपिस्ट और शादी से पहले ही मां बन चुकी औरत बहू तो क्या नौकरानी बनकर भी हरगिज उसके घर नहीं आएगी ।
उधर बेटे की ज़ुबान एक बार खुल गई तो उसमें भी हौसला जाग उठा । वह बाक़ायदा बाप से बगावत करने पर उतारू हो गया ।
लेकिन बाप न तो जूली को बहू बनाने के लिए तैयार था और न ही अपने इकलौते बेटे को हाथ से गँवाना चाहता था । स्थिति काबू से बाहर होती देख वह खुद जूली से मिला । उसने पहले तो जूली को, अपने बेटे की जिंदगी से हमेशा के लिए दूर चली जाने की एवज में, मोटी रकम का लालच दिया । फिर जान से मरवा देने की धमकी दी । लेकिन दोनों में से कोई तरीका कारगर साबित नहीं हुआ । जूली ने मानने से साफ इंकार कर दिया । आखिर में हारकर उसने अपने खानदान की इज़्ज़त और समाज में रुतबे की दुहाई देते हुए बाक़ायदा हाथ जोड़कर अपने बेटे की भीख मांगी ।
जूली ने निःस्वार्थ प्रेम किया था । बदले में कुछ पाने की इच्छा उसकी कभी नहीं रही । उसने प्रेमी की भलाई की ख़ातिर अपने प्यार को क़ुर्बान करने का फैसला कर लिया और उसके बाप को वचन दे दिया ।
इस बीच डॉली तीन साल की हो चुकी थी । जूली ने अखबारों में छपे विज्ञापनों के जरिए बम्बई में अपने लिए नौकरी का इंतजाम किया । और एक रात बिना किसी को कुछ बताए शहर छोड़ दिया ।
जूली ने न तो फादर को अपने प्रेमी के नाम पते के बारे में कुछ बताया । और न ही अपने अतीत के बारे में । वह अपने प्रेमी के बाप को दिए गए वचन को मरकर भी निभाना चाहती थी ।
इतना ही नहीं, उसने फादर से भी वादा ले लिया कि वह उसके अतीत अथवा उसके प्रेमी के बारे में पता लगाने की कोई कोशिश नहीं करेंगे ।
फिर उसने अपनी कुल जमापूंजी फादर को देकर डॉली की परवरिश की ज़िम्मेदारी भी उन्हें सौंप दी ।
बच्चों को भगवान का रूप समझने वाले नेकदिल फादर ने खुशी से ज़िम्मेदारी कबूल कर ली ।
जूली ने अपने गले से निकालकर क्रॉस भी फादर को दे दिया । सोने की चेन में लटकते सोने के ही बने उस क्रॉस पर अंग्रेजी के अक्षर 'जे' को दो बार इस ढंग से नक्श किया हुआ था कि वो एक खूबसूरत मोनोग्राम नजर आता था । उसकी ख़्वाहिश थी जवान होने पर उसकी बेटी उसे पहने ।
तीसरे दिन, अचानक जूली की तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई और उसने उसी हालत में दम तोड़ दिया ।
उसका अंतिम संस्कार कराने के बाद फादर ब्रिगेंजा चार वर्षीया मासूम डॉली को साथ लेकर वापस लौट आए ।
फादर ने पुन: उसका नामकरण किया और अपना सरनेम उसे दे दिया ।
इस तरह जूली की नाजायज बेटी फादर की बेटी के रूप में परवरिश पाने लगी ।
काल की धुरी पर समय का चक्र निर्विरोध घूमता रहा ।
फिर !
बीस साल बाद...!
* * * * * *
बीस साल बाद
रोजाना की भांति उस शाम भी आफिस से आकर नीना आराम कर रही थी ।
वह चार मंजिला इमारत के टॉप फ्लोर पर दो कमरों के एक फ्लैट में रहती थी । टेलीफोन समेत रोज़मर्रा के इस्तेमाल की तमाम जरूरी सहुलियात वहां मौजूद थीं । उस फ्लोर पर वो अकेला फ्लैट था और नीना को ठक्कर ब्रादर्स प्राइवेट लिमिटेड नामक कम्पनी की ओर से मिला हुआ था । प्लास्टिक के कीमती खिलौने बनाने वाली उस कम्पनी में नीना जनरल मैनेजर की सेक्रेटरी थी ।
चौबीस वर्षीया नीना का पूरा नाम नीना ब्रिगेन्जा था । औसत कद और सुडौल शरीर वाली वह एक सुंदर युवती थी । उसके चेहरे पर हर वक्त आत्मविश्वासपूर्ण भाव मौजूद रहा करते थे । सीरतन वह हाजिर जवाब और बेफिक्र थी । उसके अधिकांश सहकर्मी उससे ईर्ष्या करते थे ।
लेकिन उसकी कुलीग और हमउम्र अंतरंग सहेली सिम्मी डिसूजा के अलावा कोई नहीं जानता था कि नीना को कठिन संघर्ष के एक लम्बे दौर से गुजरना पड़ा था । हालात से जूझती हुई, अपनी मेहनत, लगन, सूझबूझ और आत्मविश्वास के बल पर लगातार आगे बढ़ती रहकर ही वह उस मुकाम पर पहुंची थी ।
नीना ने करवट बदली तो गले में पड़ा चेन में झूलता सोने का क्रॉस उसकी बांह पर आ गिरा ।
वह गहरी सांस लेकर रह गई ।
ठीक दो महीने पहले वो क्रॉस उसे मिला था और तभी पहली दफा पता चला था कि वास्तव में वह कौन थी ।
मृत्यु शैया पर पड़े फादर ब्रिगेन्जा ने, लम्बी बीमारी के बाद दम तोड़ने से पहले, क्रॉस सौंपते हुए नीना को उसकी मां के बारे में बताया था । दरअसल यह तो नीना को बहुत पहले पता लग चुका था कि वह फादर की बेटी नहीं थी । लेकिन जब–जब भी नीना ने उनसे अपने मां–बाप के बारे में पूछा वह टाल गए थे । मगर मरने से पहले वो राज उसे बता ही दिया । अपने अंतिम समय में झूठ बोलने का साहस वह नहीं कर पाए ।
नीना ने क्रॉस पहन लिया था । इसलिए नहीं कि वो उसकी मां की उसके लिए छोड़ी गई निशानी थी । बल्कि इसलिए कि फादर ने उसे पहनने के लिए उससे कहा था ।
वह बिन ब्याही मां की औलाद थी । यह जानकर किसी प्रकार का दु:ख या संताप नीना को नहीं हुआ । न मन में हीनभावना पनपी । न ही जिल्लत या शर्मिंदगी महसूस हुई । और न ही अपनी मां के प्रति कोई गलत बात उसके मन में आ सकी ।
ऐसा होने की बड़ी वजह उसकी यह मान्यता थी–'दुनिया मर्दों की है । इसमें औरत की हैसियत आमतौर पर किसी की मिल्कियत होने जैसी होती है ।'
उसके तज़ुर्बे ने यह भी सिखाया था कि मर्दों की हरकतों पर जवान औरत का हैरान होना बेमानी होता है । समझदार औरतें वही होती हैं जो उनकी किसी भी हरकत को अनपेक्षित नहीं समझतीं ।
सहसा डोरबैल की आवाज़ सुनकर वह चौंक गई । उसका विचार–प्रवाह छिन्न–भिन्न हो गया ।
कौन आया हो सकता है ? सोचती हुई वह बिस्तर से उत्तरी ।
तभी उसे अहसास हुआ अंधेरा अच्छी तरह फैल गया था । वह अपने ख्यालों में इस बुरी तरह खोयी रही थी कि इस तरफ उसका ध्यान ही नहीं जा सका ।
उसने बैडरूम की लाइट ऑन कर दी । फिर ड्राइंगरूमनुमा बाहरी कमरे की लाइट भी ऑन करके प्रवेश द्वार पर पहुंची ।
उसने दरवाज़ा खोला ।
बाहर दो नितांत अपरिचित आदमी मौजूद थे ।
इससे पहले कि नीना कुछ पूछ पाती, उसे पीछे धकेल–कर वे भीतर आ गए ।
उनमें एक छोटे कद का और इतना हल्का–फुल्का–सा था मानों हड्डियों के ढांचे पर चमड़ी मंढ दी गई थी । उसका चेहरा लम्बा था । छोटी–छोटी गोल आँखें पीली थीं । अगर कोई और मौका होता तो नीना ने निश्चित रूप से सींकिया पहलवान कहकर उसका मज़ाक उड़ाना था । मगर वो मजाक करने का वक्त नहीं था ।
उसने भीतर आते ही अपने कोट की जेब से, छोटी–सी साइलेंसर फिटेड, पिस्तौल निकालकर नीना पर तान दी ।
चुपचाप खड़ी रहना !
उसने धीमें लेकिन पैने स्वर में चेतावनी दी–अगर चीखने के लिए मुंह भी खोला तो हल्की–सी आवाज़ के साथ इससे गोली निकलेगी ।
उसने पिस्तौल हिलाई–और तुम्हारी खोपड़ी में जा घुसेगी । समझ गई ?
भयभीत और परेशान नीना ने सर हिलाकर सहमति दे दी । फिर उसने हौसला जुटाते हुए पूछा वे लोग कौन थे । उससे क्या चाहते थे ।
लेकिन उसे जवाब नहीं मिला ।
दूसरा आदमी ऊंचेकद और भारी बदन वाला था । उसके काले घने बाल माथे पर बिखरे हुए थे । सांवली रंगत वाले उस आदमी के होंठ मोटे थे जिन पर वह बार–बार जीभ फिराने लगता था ।
उसने प्रवेश–द्वार बंद करके ड्राइंगरूम का निरीक्षण किया । फिर बैडरूम में जाकर झाँका और फिर बाथरूम और टॉयलेट के बाद