अनोखी औरत
By प्रकाश भारती
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अजय के लॉक्ड फ्लैट में रोशनदान के जरिये जा घुसी टिनी खुद को तो बचाने में कामयाब हो गई । लेकिन अजय बखेड़ों में फँसता चला गया...शुरुआत हुई नीम अँधेरी सुनसान सड़क पर घात लगाए अज्ञात पहलवान टाइप हमलावर के साथ भारी मारामारी से...घर पहुंचा तो वहां मौजूद थी । पूरी तरह जवान मगर सवा तीन फुटी बौनी स्री वह टिनी स्मिथ थी - सर्कस में ट्रेपीज़ आर्टिस्ट रह चुकी प्रोफेशनल सिंगर । उसकी बातों से पता चला जगतार से बचकर वहां आ चुकी थी और अजय पर हमला करने वाला जगतार ही था ।
अगली सुबह अजय अपने दोस्त की कार लेकर प्राइवेट डॉक्स एरिया पहुंचा । जगतार वहां लंगर डाले खड़ी यॉट जलपरी पर काम करता था । यॉट के मालिक थे हरमेश मित्रा और उसकी बेटी रागिनी थे...वहां तक पहुंचने के लिए किश्तियाँ किराये पर देनेवाला अधेड़ घाघ किस्म का आदमी निकला...अजय एक किश्ती लेकर यॉट पर पहुंचा...डैक पर रागिनी की सहेली नीरा मेहता मिली...हरमेश मित्रा ने बताया जगतार की उसे भी तलाश है...दो रोज पहले वह उसका पैसा लेकर भाग गया और उसने जो पता बताया था वो फर्जी निकला...नीरा मेहता किश्ती में अजय के साथ ही लौटी । वह पास ही टूरिस्ट कॉटेजों में रहती थी...अजय ने उसे कार में लिफ्ट दे दी...।
सर्कस में टिनी के जोड़ीदार रहे टिंगू बौना की तलाश में अजय वोल्गा बार पहुंचा...टिंगू तो नहीं मिला लेकिन जगतार का पता चला वह शाम को करीमगंज में देशी ठेके पर मिलेगा ।
शाम को अजय उस ठेके पर पहुंचा...। पता चला जगतार आकर जा चुका था...वह बेहद गुस्से में था और किसी छटंकी को सबक सिखाने जाने की बात कर रहा था...अजय सब समझ गया...टिनी के घर से दूर ही कार पार्क करके वह उसके घर पहुंचा...टिनी द्वारा दी चाबी से ताला खोला । अंदर जाकर इंतजार करने लगा...। घंटे भर बाद जगतार वहां आया तो अजय ने मार मार कर उसका मुरकस निकाल दिया...टिनी से दूर रहने की कसमें खाता रहां...उसकी हालत बेहद खस्ता थी...अजय उसे वहीँ लॉक करके चला गया...।
अपने फ्लैट पर पहुंचा तो टिनी वहां नहीं थी । रात दस बजने के बाद उसका फ़ोन आया और बस इतना कहा-जगतार की खोपड़ी के टुकड़े टुकड़े करके तुमने ठीक नहीं किया...।
अगली सुबह...बौनी के घर में हत्या...बौनी फरार...। पढ़कर अजय ने टिनी को ढूंढ़ने का फैसला किया...। बारह साल की उम्र तक टिनी की परवरिश कीमतीलाल और उसकी पत्नी शांता ने की थी...लेकिन वहां से भी उसका कोई पता नहीं चला...।
अजय 'जलपरी' पर पहुंचा...। रागिनी मित्रा सैक्सी नजर आती बातूनी किस्म की शराबी युवती निकली । कोई कार आमद जानकारी उससे तो नहीं मिली लेकिन किश्तियों वाले अधेड़ ने सौ रुपये लेकर बताया...दस दिन पहले 'जलपरी' बम्बई से आयी थी । बाप बेटी के अलावा दो आदमी रहमान और उस्मान भी थे...वे आते जाते रहते हैं...नीरा मेहता और उसका पति मदन मेहता भी उसी रोज दिल्ली से यहाँ पहुंचे थे ।
उसी रात टिंगू बौना का भुलावा देकर रहमान और उस्मान ने अजय को फंसा लिया लेकिन वह उनके चंगुल से निकल भगा ।
अगली सुबह अजय टिंगू बौना से मिला... टिनी के बारे में तो वह कुछ नहीं बता सका लेकिन वादा किया रहमान और उस्मान अगर वोल्गा यॉट में आते होंगे तो उनके बारे में पता लगाकर बता देगा ।
'जलपरी' पर हरमेश मित्रा तो हर बात को टालता रहा...लेकिन खासी पिए मुंहफट रागिनी ने साफ़ बताया...रहमान और उस्मान बम्बई से निकलकर चुपचाप विराटनगर आना चाहते थे...मोटा पैसा दे रहे थे इसलिए इसे उन्हें ले आये...।
उसी रात टिंगू बौने ने फोन पर बताया...रहमान और उस्मान रंगमहल होटल के कमरा नंबर छियालीस में मिलेंगे...पूरी तैयारी के साथ अजय वहां पहुंचा । वे कमरे में नहीं थे...अजय की तलाशी में एक जैसी तीन अख़बारों की कट्टिंग्स मिली जिनमे महताब आलम नामक विधायक की हत्या का समाचार छपा था...। रहमान और उस्मान आ पहुंचे...गोलियां चली उस्मान मारा गया...रहमान भाग गया...अजय भी साफ बच निकला...।
वो रात अजय ने नीलम के फ्लैट में गुजारी...नीलम ने कट्टिंग्स की डिटेल्स पता कीं - महताब आलम खान नामी स्मगलर रह चूका था उसकी उसके विरोधियों ने ही कराई थी...उसकी बीवी जीनत खान इन दिनों यहीं पीली हवेली में है करोड़ों की हैसियत रखती है...।
अजय पीली हवेली जाकर बेगम जीनत महल से मिला...उस घाघ औरत ने सिर्फ इतना कबूल किया रहमान अली कई साल पहले उसके पति के लिए काम करता था...। उसी रोज़ दिल्ली में अपने सोर्स से पता चला...नीरा मेहता साइको है और मदन मेहता अचूक निशानेबाज और पेशेवर कातिल है...। डेढ़ बजे नीलम ने आकर बताया - टिंगू बौने की हत्या कर दी गई...।
इस सारे बखेड़े की जड़ टिनी तक आखिर अजय पहुँच ही गया...वह कीमतीलाल की बेटि
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अनोखी औरत - प्रकाश भारती
अनोखी औरत
प्रकाश भारती
* * * * * *
Aslan-Reads.pngअसलान रीड्स
के द्वारा प्रकाशन
असलान बिजनेस सॉल्यूशंस की एक इकाई
बोरिवली, मुंबई, महाराष्ट्र, इंडिया
ईमैल: hello@aslanbiz.com; वेबसाइट: www.aslanreads.com
कॉपीराइट © 1984 प्रकाश भारती द्वारा
ISBN
इस पुस्तक की कहानियाँ काल्पनिक है। इनका किसी के जीवन या किसी पात्र से कोई
संबंध नहीं है। यह केवल मनोरंजन मात्र के लिए लिखी गई है।
अत: लेखक एवं प्रकाशक इनके लिए जिम्मेदार नहीं है।
यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि प्रकाशक की
लिखित पूर्वानुमती के बिना इसे या इसके किसी भी हिस्से को न तो पुन: प्रकाशित
किया जा सकता है और न ही किसी भी अन्य तरीके से, किसी भी रूप में
इसका व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है।
यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
* * * * * *
अंतर्वस्तु
प्रकाश भारती - अनोखी औरत
अनोखी औरत
* * * * * *
प्रकाश भारती - अनोखी औरत
...पुलिस तुम्हें जगतार, उस्मान और टिंगू की हत्याओं के लिए जिम्मेदार समझ रही है ।
मेरे खिलाफ सिर्फ सरकमस्टांशियल एवीडेंसेज है ।
अजय बोला–महज इनके दम पर मुझे हरगिज भी हत्यारा साबित नहीं किया जा सकता ।
रविशंकर साफ–साफ कह गया है अगर तुमने आज शाम तक सम्पर्क नहीं किया तो वह तुम्हारे वारंट इशू करा देगा ।
नीलम चिंतित स्वर में बोली–अब तुम क्या करोगे ?
मैं साबित कर दिखाऊंगा ।
अजय दृढ़ स्वर में बोला–इन तीनों में से एक भी हत्या के लिए मैं कतई जिम्मेदार नहीं हूं ।
* * * * * *
अनोखी औरत
एक
अजय बस से उतरा और पार्क स्ट्रीट की उस सातमंजिला इमारत की ओर चल दिया जिसके चौथे खंड पर उसका फ्लैट था । बस स्टाप से वो इमारत कोई दो फर्लांग दूर थी । थकान और बोरीयत महसूस करते अजय को यह सोचकर और भी ज्यादा कोफ्त हो आई कि उसे इमारत के पिछले गेट से होकर अंदर जाना पड़ेगा और इसके लिए पूरा एक फर्लांग का फालतू चक्कर काटना पड़ेगा ।
दो दिन पहले हुई मूसलाधार बारिश में सीवर लाइन कहीं ब्लॉक हो गई थी । फलस्वरूप दो मेनहोल कवर अपनी जगह से हट गए थे और गंदा पानी दुर्गधयुक्त कीचड़ के रूप में सड़क पर लगभग इमारत के मेनगेट तक फैल गया था । बदबू इतनी ज्यादा थी कि उस तरफ से गुजरते वक्त उबकाई आने लगती थी । बार–बार कमप्लेंट करने के बावजूद भी कारपोरेशन के संबंधित अधिकारी ने उस तरफ ध्यान नहीं दिया था । पार्क स्ट्रीट के उस इलाके में रहने वालों को मजबूरन चक्कर काटकर आना–जाना पड़ रहा था ।
अजय ने स्ट्रीट लाइट की रोशनी में अपनी रिस्ट वाच पर । दृष्टिपात किया ।
पौने ग्यारह बज रहे थे ।
उसने मन–ही–मन हिसाब लगाया–छह बजे ऑफिस से निकलने के बाद से वह पूरे चार घंटे तक उस गैराज के मालिक से मगजपच्ची करता रहा था जिसमें उसने अपनी मोटर साइकिल ओवरहालिंग के लिए दी हुई थी । उस गैराज में काम तसल्लीबख्श होता था लेकिन मालिक की बद इंतजामी की वजह से हर ग्राहक को उससे वक्त पर काम न होने की बड़ी भारी शिकायत रहती थी । इसलिए अजय खुद वहां गया था और अपने सामने इंजिन खुलवाकर उन तमाम पुर्जों की लिस्ट बनवा ली थी जिन्हें बदला जाना था । गैराज से आते वक्त मालिक ने कसम खाकर उससे वादा किया था कि दो दिन बाद मोटरसाइकिल उसे सौंप दी जाएगी । लेकिन अजय अच्छी तरह जानता था जब तक वह खुद उसके सर पर जाकर नहीं चढ़ेगा तब तक मोटरसाइकिल का इंजिन उसी तरह खुला पड़ा रहेगा । और मोटरसाइकिल के बगैर वह स्वयं को अपाहिज महसूस कर रहा था ।
वह रुका, प्लेयरज गोल्ड लीफ का पैकट जेब से निकालकर एक सिगरेट सुलगाई और पुनः चल दिया ।
करीब पचास गज आगे बांयी ओर एक पतली–सी सड़क थी । जिसके दांयी तरफ उसी सातमंजिला इमारत की बाउंड्रीवाल थी जिसमें पिछला गेट था । बांयी ओर एक स्कूल की करीब छह फुट ऊंची चारदीवारी की एक दीवार सडक की पूरी लम्बाई तक चली गई थी । वो पतली छोटी–सी सड़क हालांकि दो सड़कों को परस्पर जोड़ती थी और शार्टकट के रूप में भी प्रयोग की जाती थी लेकिन रात में वहां आमदरफ्त नहीं के बराबर ही होती थी । शायद इसीलिए प्रकाश की समुचित व्यवस्था की जरूरत भी नहीं समझी गई थी ।
अजय ज्योंहि उस सड़क पर मुड़ा, स्कूल की दीवार के साथ चिपके हुए खड़े ऊँचे कद और भारी भरकम शरीर वाले एक आदमी का हाथ हवा में लहराया । फिर इससे पहले कि अजय कुछ समझ पाता या सम्हलता किसी नर्म लेकिन ठोस चीज का तगड़ा प्रहार उसने अपनी खोपड़ी पर महसूस किया । अगले ही क्षण उसकी आँखों के समक्ष असंख्य रंग–बिरंगे सितारे झिलमिला गए । उसे अपने घुटने मुड़ते से प्रतीत हुए । उसने स्वयं को गिरने से बचाने के लिए हवा में हाथ मारे और दीवार का ऊपरी सिरा मजबूती से पकड़ लिया । वह अपनी चेतना लुप्त न होने देने के लिए संघर्ष करने लगा ।
उसे हमलावर की तेज भारी सांसे सुनाई दी । फिर उसने अपनी हिप पॉकेट, जिसमें उसका पर्स था, थपथपाई जाती महसूस की । लेकिन पर्स नहीं निकाला गया ।
अजय की पैंट की दांयी जेब में सिगरेट का पैकेट और माचिस थे तथा बांयी जेब में रूमाल और फ्लैट की चाबियां । हमलावर ने बारी–बारी से उसकी दोनों जेबों पर हाथ मारा फिर उसने बांयी जेब में हाथ घुसेड़ना चाहा ।
अजय के सर पर हुए प्रहार का प्रभाव कम होना शुरू हो गया था और वह काफी हद तक स्वयं को संयत कर चुका था । उसने उसी तरह खड़े–खड़े दांये पैर की भरपूर ठोकर हमलावर की जांघों के जोड़ पर जमा दी ।
हमलावर कराहता हुआ पीछे हट गया और दांए हाथ में थमे ठोस रबर के कोड़े से पुनः अजय पर प्रहार कर दिया ।
अजय ने बचने की पूरी कोशिश की मगर कामयाब नहीं हो सका । अलबत्ता इस दफा उसने अपना सर जरूर बचा लिया । कोड़ा उसके बांए कंधे पर पड़ा और उसकी पूरी बांयी बाँह सुन्न हो गई ।
अब दोनों एक–दूसरे के आमने–सामने थे ।
अजय दीवार से पीठ लगाए खड़ा था ।
हमलावर दांए हाथ में रबर का कोड़ा थामे और बांए से अपनी जांघों का जोड़ दबाए खड़ा था । उसका चेहरा पीड़ा से विकृत था, होंठ गुर्राहटपूर्ण मुद्रा में खिंचे हुए थे और आंखों से चिंगारियां–सी निकल रही थीं । वह ग्रे पैंट और उसी रंग की टी शर्ट पहने था । उसके शरीर का गठन पहलवानों जैसा था ।
अजय अब पूर्णतया सतर्क था । वह नितांत अपरिचित को घूरता हुआ बोला–मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, खलीफा ? मुझसे क्यों खफा हो रहे हो ?
हमलावर ने जवाब में मोटी गाली दी और पुनः कोड़े से प्रहार किया । इस दफा पीछे हटकर खुद को बचाने की बजाय अजय ठीक उस वक्त जब कोड़ा हवा में ही था उसकी ओर झपटा । वह न सिर्फ कोड़े से बचा बल्कि इस प्रयास में उसका बांया कंधा हमलावर की छाती से जा टकराया और हमलावर दीवार से टकरा गया था ।
हमलावर ने पुनः मोटी गाली दी और बांए हाथ से अजय का गला दबोचकर उसके सर को ऐसी स्थिति में लाने की कोशिश की ताकि कोड़े का भरपूर प्रहार किया जा सके ।
अजय उसका आशय समझ गया और दांए हाथ का घूँसा चला दिया । घूँसा उसके मुंह पर पड़ा और उसका सर पीछे दीवार से भड़ाक से जा टकराया था । इस दोहरी मार ने पलभर के लिए हमलावर के होश उड़ा दिए फिर वह कोड़े से अंधाधुंध प्रहार करने लगा । उसका चेहरा गुस्से से तमतमा गया था । कंठ से रह–रहकर गुर्राहट निकल रही थी, और होठों से खून बह रहा था ।
अजय के जिस्म पर जगह–जगह कोड़े के प्रहार हो रहे थे । लेकिन वह जान–बूझकर उसके ज्यादा से ज्यादा नज़दीक रहने की कोशिश कर रहा था ताकि उसे सही ढंग से कोड़ा घुमाने का मौका नहीं मिल सके । मगर इस तरह वह खुद भी उस पर सही ढंग से वार नहीं कर पा रहा था । वैसे भी उसकी एक बाँह फिलहाल बेकार थी और सर पर हुए पहले प्रहार का कुछ असर अभी तक भी बाकी था ।
अगर वह पहलवान टाइप आदमी भी अजय की भांति चुस्त और फुर्तीला होता तो उसने निश्चित रूप से अजय की खोपड़ी फाड़ देनी थी ।
अचानक अजय इस ढंग से पीछे हटा मानों बेदम हो चला था । हमलावर ने मौके का फायदा उठाने की नीयत से कोड़े को सही ढंग से घुमाया और अजय के सर पर प्रहार कर दिया । अजय को उससे ऐसी हरकत की अपेक्षा थी । वह पूरी तरह तैयार था । उसने एक तरफ उछलकर खुद को बचाया, तत्क्षण पैंतरा बदला और अपने जिस्म की बची–खुची सारी ताकत दांए हाथ में समेटकर उसकी नाक पर घूँसा दे मारा ।
हमलावर के गले से घुटी–सी चीख निकली और उसकी नाक से खून बहने लगा । उसने एक पल के लिए अविश्वासपूर्वक अजय को घूरा फिर उसके पीड़ा से विकृत चेहरे पर आतंक झलकने लगा । वह लड़खड़ाता–सा आगे आया लेकिन दीवार से लगकर खड़े हांफते अजय पर प्रहार करने की बजाय उसकी बगल से गुजरा और मेनरोड पर पहुंचकर बांयी ओर मुड़ गया ।
खुद अजय की हालत भी इतनी खस्ता थी कि वह चाहकर भी उसका पीछा करने लायक ताकत और हौसला नहीं जुटा सका । वह बस दीवार का सहारा लिए खड़ा हांफता रहा ।
लगभग पांच मिनट बाद वह अपनी बांयी बाँह को सहलाता हुआ धीरे–धीरे इमारत के गेट की ओर बढ़ गया ।
गेट से गुजरकर वह लिफ्ट के सम्मुख पहुंचा ।
लिफ्टमैन स्टूल पर बैठा सिगरेट फूंक रहा था । अजय पर निगाह पड़ते ही वह बुरी तरह चौंका और उछलकर खड़ा हो गया ।
क्या हुआ, अजय बाबू ?
उसने आशंकित स्वर में पूछा ।
कुछ नहीं ।
अजय मुस्काने की कोशिश करता हुआ बोला–न जाने क्यों एक पहलवान टाइप आदमी को मुझ पर गुस्सा आ गया था ।
और लिफ्ट में दाखिल हो गया ।
लिफ्टमैन की आँखें सिकुड़ गईं ।
वह ग्रे पैंट और टी शर्ट पहने था ?
उसने पूछा ।
अजय चौंका ।
हां, लेकिन तुम्हें कैसे पता ?
वह करीब आधा घंटे पहले यहां आया था ।
लिफ्टमैन ने कहा–आपके फ्लैट का नम्बर पूछा और सीढ़ियों द्वारा ऊपर चला गया फ़िर...।
अचानक वह खामोश हो गया और अपराधी की तरह सर झुका लिया ।
फिर क्या हुआ ?
अजय ने कड़े स्वर में पूछा ।
वह दोबारा नीचे आया ।
लिफ्टमैन हिचकिचाता–सा बोला–"आपके बारे में पूछने लगा कि कब तक आओगे, किधर से आओगे, वगैरा...।
तुमने उसे सब कुछ बता दिया ?
अजय ने उसकी बात काटकर पूछा ।
लिफ्टमैन ने सिर हिलाकर हामी भर दी ।
अजय समझ गया कि लिफ्टमैन से जानकारी हासिल करने के बाद ही अपरिचित हमलावर पतली सड़क पर दीवार से सटा खड़ा उसके आने का इंतजार करता रहा था ।
इस बार तो मैं तुम्हें माफ कर देता हूं ।
वह बोला–लेकिन कान खोलकर सुन लो । आईंदा अगर किसी ऐरे–गैरे को मेरे बारे में कुछ भी बताया तो मैं तुम्हारी वो गत बनाऊंगा कि मरते दम तक याद रखोगे ।
लिफ्टमैन बुरी तरह सिटपिटा गया ।
मैं कभी आपको शिकायत का मौका नहीं दूँगा ।
वह याचनापूर्ण स्वर में बोला ।
ठीक है, मुझे ऊपर पहुंचाओ ।
लिफ्टमैन ने जंगला बंद करके चौथे खंड का बटन दबा दिया ।
लिफ्ट ऊपर जाने लगी ।
अजय चौथे खंड पर लिफ्ट से बाहर निकला ।
कारी डोर से गुजरकर अपने फ्लैट के सम्मुख पहुंचा ।
प्रवेश द्वार की बगल में रोशनदान के पास दीवार के साथ खड़ी सीढ़ी को देखकर भी वह अनदेखा कर गया । इमारत में सफेदी की जा रही थी । सफेदी करने वाले शाम को काम बंद करते वक्त अपनी चीजें ऐसे ही इधर–उधर छोड़ जाया करते थे ।
अजय ने जेब से फ्लैट की चाबियां निकाली । तभी उसे याद आया कि हमलावर उससे ये ही चाबियां हासिल करना चाहता था । कुछ देर पहले हुए हंगामे की जड़ ये चाबियां ही थीं । लेकिन क्यों ?
अजय समझ नहीं सका । उसके फ्लैट में ऐसी कोई चीज नहीं थी जिसे चुराने के लिए कोई चोर इस किस्म की मार–कुटाई करे ।
उसने की होल में चाबी फंसाकर घुमाई और दरवाज़ा खोलकर भीतर आ गया । ड्राइंगरूम की लाइट ऑन करके दरवाज़ा पुनः बंद कर दिया ।
ड्राइंगरूम में सरसरी निगाह दौड़ाने के बाद वह सीधा बाथरूम में पहुंचा । वाशबेसिन के ऊपर लगे शीशे में अपने चेहरे की हुलिया देखते ही झटका–सा खाकर रह गया । दोनों गालों पर जगह–जगह खरोंचे लगी थीं । बांयी आँख इस बुरी तरह सूजी हुई थी कि करीब–करीब बंद हो गई थी । निचला होंठ भी सूजा हुआ था । उसने अपने अस्त–व्यस्त बालों में हाथ फिराया । सर पर जहां कोड़े का प्रहार हुआ था उस जगह एक मोटी–सी लकीर उभर आई थी और वहां अभी तक भी दुखन शेष थी । बांय कंधे के अलावा पीठ, पसलियों और टांगों में भी कोड़े की मार की वजह से दर्द महसूस हो रहा था ।
अजय ने मैडीसन चैस्ट से एस्प्रीन की दो गोलियां निकालकर पानी के साथ निगल लीं । फिर ठंडे पानी से चेहरा और सर धोने लगा । पानी का स्पर्श होते ही चेहरे पर टीसें मचने लगी थीं ।
अंत में तौलिए से स्वयं को सुखाकर वह बाहर निकला । डाइनिंग रूम में आकर उसने फ्रिज खोला । व्हिस्की की बोतल निकालने के लिए हाथ बढ़ाते ही अचानक उसे यूं लगा मानों कमरे में कोई और भी मौजूद था । उसने गरदन घुमाकर पीछे देखा लेकिन कोई नजर नहीं आया ।
अजय ने विहस्की की बोतल निकालते हुए सोचा उसे वहम हुआ था । फ्लैट का ताला खुद उसने खोला और पुनः बंद किया था फिर भला वहां कोई कैसे मौजूद हो सकता था । मगर उसकी अन्त: चेतना बार–बार चेतावनी दे रही थी ।
अजय ने दोबारा कमरे में निगाहें दौड़ाईं लेकिन कोई भी दिखाई नहीं दिया ।
बोतल फ्रिज के ऊपर रखकर वह किचिन में गया । गिलास सहित पुनः वापस लौटा तो इस बुरी तरह चौंका कि गिलास हाथ से छूटता–छूटता बचा ।
डाइनिंग टेबल के पास एक जीवित गुड़िया खड़ी थी ।
अजय...।
वह बोली–चौंको मत ! मैं हूं–टिनी ।
अजय ने हैरानी से उसे घूरा । वह निहायत खूबसूरत थी । पतला–सुडौल जिस्म, गोरा रंग, स्याह काले बाब्ड हेअर, बड़ी–बड़ी काली चमकीली आँखें, गुलाबी रंगत वाले गाल और सुर्ख़ होंठ । इस हसीन गुड़िया को अजय अच्छी तरह जानता था । हमेशा की तरह इस वक्त भी उसे देखकर अजय को पहले तो सुखद अनुभूति हुई फिर उसने कसक सी महसूस की । क्योंकि चेहरे–मोहरे और रंग–रूप से बेइंतिहा खूबसूरत होने के बावजूद उसका कद मुश्किल से सवा तीन फुट था । पूर्ण यौवन प्राप्त वह एक बौनी स्त्री थी ।
टिनी अपना छोटा–सा गुलाबी हाथ उठाए आँखें फाड़–फाड़कर अजय को घूर रही थी ।
तुम किसी ट्रक से टकरा गए थे, अजय ?
वह बोली ।
अजय ने गहरी सांस ली ।
हां, दो हाथ–पैरों वाला वह एक ऐसा मजबूत ट्रक था जिसके दिमाग में खतरनाक इरादे भरे हुए थे ।
टिनी का चेहरा तनिक पीला पड़ गया । उसने अजय से आँखें चुरा ली । वह डाइनिंग टेबल के पास से हटी और छोटे–छोटे कदम उठाती हुई ड्राइंगरूम की ओर बढ़ी ।
एक स्माल ड्रिंक मुझे भी दोगे, अजय ?
उसने अजय की ओर से पीठ किए पूछा ।
टिनी की आवाज़ में हल्का–सा कम्पन था ।
श्योर ।
अजय बोला ।
थैंक्यू ।
टिनी ड्राइंग रूम में चली गई ।
अजय किचिन से दूसरा गिलास लाकर ड्रिंक बनाने लगा ।
उसने कुछ देर पहले खुद पर हुए हमले और बंद फ्लैट में टिनी की मौजूदगी के बारे में सोचा । जाहिर था कि दोनों बातें परस्पर जुड़ी हुई थीं । इसका सिर्फ एक ही मतलब था–टिनी किसी बखेड़े में फँसी थी ।
कुछ साल पहले तक टिनी सर्कस में ट्रेपीज आर्टिस्ट थी । अचानक एक दिन उस सर्कस में आग लग गई । मालिक को इतना जबरदस्त नुक्सान पहुंचा कि वह इस झटके को बरदाश्त नहीं कर सका और पागल हो गया । सर्कस में काम करने वाले तमाम व्यक्ति बेरोजगार हो गए । उनमें से कुछ ने दूसरे सर्कसों में नौकरी कर ली और कुछ ने अन्य व्यवसाय अपना लिए थे । उस सर्कस के कोई दो दर्जन भूतपूर्व कर्मचारी स्थायी रूप से विराट नगर में ही बस गए थे और विभिन्न धंधों में लगे हुए थे । टिनी भी उन्हीं में से एक थी लेकिन दूसरों के मुकाबले ज्यादा खुशकिस्मत रही । उसकी आवाज़ अच्छी थी । गाने के शौक को उसने पेशा बना लिया । वह प्रोफेशनल सिंगर बन गई । श्रोताओं ने उसे पसंद किया । शोहरत मिलने के साथ–साथ अच्छी–खासी कमाई भी उसे होने लगी । विभिन्न होटलों और रेस्तरांओं में गाने गाते–गाते उसकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि अखबार वाले उसका इंटरव्यू लेने के लिए चक्कर लगाने लगे । इस काम में सबसे पहले कामयाबी मिली अजय की कलीग 'थंडर' की सोसाइटी कालम रिपोर्टर नीलम कपूर को । जिस रोज अखबार में टिनी का इंटरव्यू छपा उसी दिन वह 'थंडर' के ऑफिस पहुंच गई । वह बहुत ज्यादा गुस्से में थी । उसका कहना था कि अखबार में छपे इंटरव्यू में उसे 'अनोखी औरत' बताकर