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मर्डर मिस्ट्री
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मर्डर मिस्ट्री

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मर्डर मिस्ट्री


जैसा कि पुस्तक के नाम से ही स्पष्ट है यह स्वयं में एक हत्या का रहस्य समेटे हुए है । ऐसा मर्डर जिसके कारण या उद्देश्य का कोई पता नहीं । क़ातिल कौन है, एक है या एक से अधिक सब कुछ अज्ञात है । अथक प्रयत्न करने पर भी स्थानीय पुलिस केस हल करने में नाकाम रहती है । ऐसी परिस्थिति में कैसे एक प्राइवेट जासूस अप्रत्याशित रूप से उस केस से जुड़ जाता है और फिर अपनी ही उत्सुकता शांत करने के लिये अपनी बुद्धिमत्ता तथा चतुराई से उस मर्डर मिस्ट्री को हल करता है इसी का इस सम्पूर्ण उपन्यास में ताना बाना बुना गया है । उपन्यास का कथानक अत्यंत रोचक है तथा अपने रहस्य को समय से पूर्व नहीं खुलने देता । यही तो होती है जासूसी उपन्यास के पाठक की सर्वप्रथम शर्त । प्रस्तुत पुस्तक आज के सस्ते उपन्यासों से सर्वथा भिन्न है । सम्पूर्ण उपन्यास की भाषा साहित्यिक झलक लिये हुए तथा मर्यादित है

Languageहिन्दी
PublisherPencil
Release dateJun 23, 2021
ISBN9789354582011
मर्डर मिस्ट्री

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    मर्डर मिस्ट्री - डॉ. रंजना वर्मा

    मर्डर मिस्ट्री

    BY

    डॉ. रंजना वर्मा


    pencil-logo

    ISBN 9789354582011

    © डॉ. रंजना वर्मा 2021

    Published in India 2021 by Pencil

    A brand of

    One Point Six Technologies Pvt. Ltd.

    123, Building J2, Shram Seva Premises,

    Wadala Truck Terminal, Wadala (E)

    Mumbai 400037, Maharashtra, INDIA

    E connect@thepencilapp.com

    W www.thepencilapp.com

    All rights reserved worldwide

    No part of this publication may be reproduced, stored in or introduced into a retrieval system, or transmitted, in any form, or by any means (electronic, mechanical, photocopying, recording or otherwise), without the prior written permission of the Publisher. Any person who commits an unauthorized act in relation to this publication can be liable to criminal prosecution and civil claims for damages.

    DISCLAIMER: This is a work of fiction. Names, characters, places, events and incidents are the products of the author's imagination. The opinions expressed in this book do not seek to reflect the views of the Publisher.

    Author biography

    नाम - 

    डॉ. रंजना वर्मा

    जन्म - 

    15 जनवरी 1952, जौनपुर (उ0 प्र0 ) में ।

    शिक्षा-  

    एम. ए. (संस्कृत, प्राचीन इतिहास ) पी0 एच0 डी0 (संस्कृत)

    लेखन एवम् प्रकाशन - 

    वर्ष 1967 से देश की लब्ध प्रतिष्ठ पत्र पत्रिकाओं में, हिंदी की लगभग सभी विधाओं में । कुछ रचनाएँ उर्दू में भी प्रकाशित ।

    प्रकाशित कृतियाँ - 

    साईं गाथा (महाकाव्य)। अश्रु - अवलि, सर्जना, समर्पिता, सावन, प्रवासी, कैकेयी का मनस्ताप, वैदेही व्यथा, संविधान निर्माता, द्रुपद - सुता, सुदामा (सभी खण्ड काव्य), चन्द्रमा की गोद में (बाल उपन्यास), समृद्धि का रहस्य, जादुई पहाड़, मङ्गला, पोंगा पण्डित,(सभी बाल कथा संग्रह), मुस्कान (बाल गीत संग्रह), फुलवारी (शिशु गीत संग्रह)। जज़्बात, ख्वाहिशें, एहसास, प्यास, रंगे उल्फ़त, गुंचा, रौशनी के दिए, खुशबू रातरानी की, ख़्वाब अनछुए , शाम सुहानी, यादों के दीप, मंदाकिनी, आस किरन, बूँद बूँद आँसू (सभी ग़ज़ल संग्रह)। गीतिका गुंजन, सरगम साँसों की, रजनीगन्धा, भावांजलि (गीतिका संग्रह), सत्यनारायण कथा (पद्यानुवाद)। मुक्तक मुक्ता, मुक्तकाञ्जलि, मन के मनके (सभी मुक्तक संग्रह)। दोहा सप्तशती । एक हवेली नौ अफ़साने, रास्ते प्यार के, अमला, पायल, अतीत के पृष्ठ (उपन्यास)। सूर्यास्त, सिंधु-सुता, परी है वो ( कहानी संग्रह )। साँझ सुरमयी, गीत गुंजन, गीत धारा , मीत के गीत, आ जा मेरे मीत,(सभी गीत संग्रह)। बसन्त के फूल (कुण्डलिया संग्रह)। चुटकी भर रंग, जुगनू (दोनों हाइकु संग्रह)। चंदन वन (तांका संग्रह), इंद्रधनुष (चोका संग्रह), मेहंदी के बूटे (सेदोका संग्रह), नयी डगर (वर्ण पिरामिड संग्रह)।

     'लौट आओ रुद्र' (उपन्यास का पूर्वार्द्ध) प्रेस में ।

    सम्पादन - 

    मन के मोती, मकरंद , सौरभ, मौन मुखरित हो गया (चारो कविता संग्रह ), अँजुरी भर गीत (गीत संग्रह), शेष अशेष (स्मृति ग्रन्थ), हास्य प्रवाह (हास्य व्यंग्य कविताओं का संग्रह, थूकने का रहस्य, करामाती सुपारी (दोनों हास्य व्यंग्य संग्रह)।

    प्रसारण - 

    गीत, वार्ता, तथा कहानियों का आकाशवाणी, फैज़ाबाद से समय समय पर प्रसारण ।

    सम्मान - 

    श्रीमती राजकिशोरी मिश्र  सम्मान, श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान स्मृति सम्मान, काव्यालंकार मानद उपाधि, छन्द श्री सम्मान, कुंडलिनी गौरव सम्मान,  ग़ज़ल सम्राट सम्मान, श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान, मुक्तक गौरव सम्मान,  दोहा शिरोमणि सम्मान, सिंहावलोकनी मुक्तक भूषण सम्मान,  दोहा मणि सम्मान।

    सम्प्रति - 

    सेवा निवृत्त प्रधानाचार्या( रा0 बा0 इ0 कालेज जलालपुर, जिला अम्बेडकरनगर उ0 प्र0) से।

    सम्पर्क सूत्र - ranjana.vermadr@gmail.com

    Contents

    मर्डर

    मर्डर मिस्ट्री

    मर्डर

    ठक ठक ठक'

     रचना चौंक कर उठ बैठी । उस समय रात के एक बज रहे थे । संयोग की बात,अमावस्या का घना अंधकार चारों ओर फैला हुआ था । सारा संसार निद्रा देवी की गोद में बेसुध पड़ा था । रचना भी अपने फ्लैट में निश्चिंत होकर सो रही थी कि अचानक ठक ठक की आवाज सुनकर चौंक पड़ी । उसकी नींद खुल गई थी । थोड़ी देर रुकने के बाद पुनः स्वर उभरा -

    'ठक ठक ठक' 

    रचना बुरी तरह कांप उठी । वैसे वह बहुत साहसी लड़की थी किंतु इस ध्वनि ने उसे बुरी तरह हिला दिया था ।  उसने द्वार की ओर देखा । वह उसी प्रकार बंद था जिस प्रकार रात उसने सोते समय बंद किया था ।

    कौन होगा इस समय ?

    रचना ने मन ही मन तर्क किया.. लेकिन दरवाजा भी तो नहीं खटखटाया गया था । निश्चय ही यह आवाज द्वार पर पड़ने वाली दस्तक से भिन्न थी । बिल्कुल ऐसा प्रतीत होता था जैसे किसी ने किसी को कुछ संकेत किया हो ।

     रचना का कमरा सड़क की ओर पढ़ता था । उसकी एक खिड़की बाहर सड़क की तरफ़ खुलती थी । खिड़की से लगा हुआ ही पानी का पाइप नीचे तक चला गया था । उसका कमरा दूसरी मंजिल पर था ।

     रचना कुछ देर तक पड़ी रही और आहट लेने का प्रयत्न करती रही । अभी अभी उसने एक डरावनी कहानी पढ़ी थी सोने से पहले । वह काफी देर तक उन लोमहर्षक घटनाओं के विषय में ही सोचती रही थी अतः इस समय हल्की से हल्की ध्वनि भी उसे डरा देने के लिए पर्याप्त थी ।

    कुछ देर तक जब पुनः कोई स्वर नहीं उभरा तो उसकी स्वाभाविक जिज्ञासा जग गई । इस जिज्ञासा ने उसके मन की दुर्बलता को दबा दिया । वह अपने अंदर साहस सँजो कर उठ उठ खड़ी हुई ।

    धीरे-धीरे दबे पांव वह द्वार की ओर बढ़ी । तभी उसने देखा - द्वार द्वार धीरे-धीरे खुल रहा था । रचना चौंक पड़ी । अंधकार में वह यह नहीं देख सकती थी कि अज्ञात आगंतुक ने द्वार की चटनी कैसे खोली जिसे वह सोते समय बंद करके सोई थी ।

    घबराहट उस पर बुरी तरह सवार हो गई । फुर्ती से वह द्वार की एक ओर दीवार से सट कर खड़ी हो गई ।

     कुछ देर बाद एक साया दबे पांव अंदर प्रविष्ट हुआ । उसने पलट कर द्वार बंद कर दिया । आगंतुक कौन था इसे रचना नहीं देख सकी किंतु उसका इस प्रकार आना और द्वार बंद कर के  निश्चिंत भाव से पलंग की ओर बढ़ना उसे आश्चर्यचकित कर देने के लिए काफी था । 

     वह चुपचाप खड़ी थी तभी प्रकाश का एक गोल दायरा पलंग पर पड़ा । पलंग खाली था । आगंतुक ने टार्च का प्रकाश कमरे में चारों ओर घुमाना आरंभ किया । एक क्षण के लिए रचना स्तब्ध सी हो गयी । प्रकाश का दायरा क्षण क्षण उसके समीप होता जा रहा था । अचानक उसे एक युक्ति सूझी । लपक कर उसने स्विच ऑन कर दिया ।

     सारा कमरा प्रकाश से नहा गया ।

    तुम ?

     वह आश्चर्य से चीखी ।

     उसके सामने अजीत खड़ा था । वह अजीत जो चार साल पहले ही एक मोटर दुर्घटना में मर चुका था ।  आश्चर्य से रचना की आंखें फटी पढ़ रही थीं । वह अविश्वास भरी आंखों से अजीत की ओर देख रही थी । उसकी आंखों के सामने एक-एक कर आज से कुछ वर्ष पूर्व की घटनाएं नाच रही थीं ।

     अजीत उसका प्रेमी था । रचना और अजीत के प्रेम की बड़ी बदनामी हुई थी और अजीत ने रचना से मद्रास छोड़ देने का प्रस्ताव किया था । अजीत एक अनाथालय में पला था । उसका कुल, वर्ण अज्ञात था । अद्भुत प्रतिभा तथा अत्यधिक लगन के कारण उसने उच्च शिक्षा प्राप्त कर ली थी और अब एक कुशल डॉक्टर बन चुका था ।

     मद्रास से उसे कोई विशेष मोह न था । उसे विश्वास था कि वह जहां भी जाएगा अपनी प्रैक्टिस जमा लेगा किंतु रचना इतनी स्वतंत्र न थी । 

    रचना के पिता मद्रास के जाने-माने सर्व प्रतिष्ठित व्यक्तियों में गिने जाते थे । रचना की एक बहन थी । बड़ी रचना थी और सर्जना उस से छोटी थी । अजीत से अत्यधिक प्रेम होने के कारण और उसके बहुत कहने पर भी वह उसके साथ कहीं भागने के लिए तैयार नहीं हुई थी । बहुत कहने पर उसने कह दिया था कि वह सर्जना का भविष्य नष्ट नहीं करेगी ।

     उसी दिन शाम को उसने अजीत के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर सुनी थी और प्रातः होते-होते अजीत की मृत्यु का समाचार सर्जना से उसे मिला था । अजीत की मृत्यु का समाचार सुनते ही उस पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा था । अपने दुख को भूलने के लिए और अजीत की स्मृतियां को भुला कर कुछ दिन सुख से बिताने के उद्देश्य से वह कानपुर चली आई थी । यहीं उसने सर्विस कर ली थी और अकेले एक प्रकार से एकांतवास कर रही थी ।

     रचना !

     रचना की विचार श्रृंखला टूट गई । उसने फिर सामने खड़े व्यक्ति को देखा । वही नाक नक्श । वही चेहरा । उलझे उलझे से बाल और गहरी खामोश आंखें । उसे पहचानने में भला वह भूल कैसे कर सकती थी जिसके वह इतने निकट रह चुकी थी ? किंतु फिर भी जैसे उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था । क्या मृत व्यक्ति भी जीवित हो सकता है ?

    रचना !

     गंभीर स्वर गूंजा ।

    तुम .... तुम अजीत हो न ?

    हां, मैं वही अजीत हूँ जिसे तुमने धन के लोभ में ठुकरा दिया था ।

    अजीत !

    रचना आहत हो गई ।

    हां रचना,क्या मैं झूठ कह रहा हूँ ? क्या तुमने ....

    अजीत ! तुम्हें गलतफ़हमी हुई है । तुम ही सोचो, अगर मैं तुम्हारे साथ कहीं चली जाती तो पिताजी की कितनी बदनामी होती । और फिर सर्जना का भविष्य ...

    सर्जना का भविष्य ?

     अजीत अट्टहास कर उठा ।  उसकी उस भयानक हँसी से जैसे दीवारें तक कांप गयीं । रचना को अपना लहू जमता हुआ सा प्रतीत हो रहा था ।

    कितना सुंदर बहाना सोचा है ... सर्जना का भविष्य .... हा - हा - हा -.. सर्जना के भविष्य की चिंता थी या अपनी रंगरेलियो की ?

     अजीत का स्वर कठोर था । अपने ऊपर लगाए इस झूठे आरोप को सुन कर रचना तिलमिला गई । 

    जबान संभाल कर बात करो । वरना ....

    "वरना ? 

    वरना ....

     रचना ने विवशता से अपने हाथ मले ।

    वरना मुझे गोली मार दोगी ... क्यों ?

     अजीत ने उसकी ओर देख कर फिर एक जोरदार ठहाका लगाया । वह पागलों की तरह हँसता चला जा रहा था । हँसते-हँसते एकाएक ही जैसे उसकी हँसी में ब्रेक लग गया । और फिर उसने अपने दाहिने हाथ का पंजा आगे फैलाया । 

    हाथ फैलाए हुए धीरे-धीरे सधे कदमों से वह रचना की ओर बढ़ रहा था । रचना का संपूर्ण शरीर थर थर कांप रहा था । पंजा बढ़ता आ रहा था । उसने घबरा कर उस शख्स के हाथ को देखा और अजीत के चेहरे पर दृष्टि जमा दी ।

     उसका चेहरा बहुत खूंखार और भयानक लग रहा था । उसकी आंखें सुर्ख हो गई थीं । चेहरा कठोर था ।  उसने रचना की गर्दन पर दोनों हाथ जमा दिए । जैसे जैसे दबाव बढ़ता जाता था रचना का चेहरा सफेद होता जाता था । उसकी आंखें उबली पड़ रही थीं ।

     रचना का शरीर एक बार जोर से तड़प कर निर्जीव हो उसकी बाहों में झूल गया । उसने उसे एक ओर डाल दिया । बढ़ कर बिजली का स्विच ऑफ किया । खिड़की खोली । दूसरे ही क्षण वह बाहर अंधकार में लुप्त हो गया ।

    ०००००

    जिस समय अजीत रचना का गला दबा रहा था उस समय एक साया द्वार की झिरी से उसे देख रहा था । वह अनूप था जो रचना के सौंदर्य पर मुग्ध था ।

    उस दिन रात को वह सेकंड शो मूवी देख कर घर लौट रहा था । पिक्चर लंबी थी अतः लौटने में देर हो गई थी । एक बज चुके थे । वह अपने विचारों में मग्न तेजी से घर की ओर लौट रहा था । जब वह रचना के मकान के नीचे से गुजर रहा था उसने रचना के कमरे में प्रकाश देखा और साथ ही जोर जोर से बातें करने की आवाजें भी सुनी ।

    इस समय रात को कौन हो सकता है वहाँ ? 

     वह कुछ निश्चय नहीं कर सका । रात के एक बजे के समय रचना का किसी पुरुष से इस प्रकार बातें करना उसकी उत्सुकता को जगा रहा था ।वह दबे पांव भीतर घुस गया और रचना के द्वार तक पहुंच गया किंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी । इससे पहले कि वह कुछ करे बिजली ऑफ हो गई और वह साया भी अंधकार में लुप्त हो चुका था । उसने चाहा कि एक बार रचना को देख ले किंतु विवेक ने उसे रोक दिया । मामला हत्या का था और संदेह के रूप में उसे भी गिरफ्तार किया जा सकता था । वह लौट पड़ा । 

    बाहर आकर अभी वह सड़क पर पहुंचा ही था कि उसने 1 साये को मकान के पाइप पर से हल्के से कूदते देखा । वह सतर्क साया तेजी से एक गली में घुस गया । अनूप ने देखा -  हत्यारा भागा जा रहा था । उसने भी उसका अनुकरण करना आरंभ कर दिया । आगे साया बहुत सतर्क होकर चल रहा था । बार-बार वह सतर्क दृष्टि से चारों ओर देख कर तब आगे बढ़ रहा था उसका पीछा करने में अनूप को भी बहुत सावधानी बरतनी पड़ रही थी । विभिन्न गलियों के बीच वह साया तेजी से आगे बढ़ता जा रहा था । अनूप भी उसके पीछे ही पीछे था ।  काफी देर तक गलियों का चक्कर काटने के बाद वह शहर से बाहर जाने वाली सड़क पर पहुंच गया ।

    चारों और भयानक सन्नाटा छाया हुआ था । हवा की सांय सांय के अतिरिक्त और कोई आवाज नहीं सुनाई दे रही थी । साया निश्चिंत होकर आगे बढ़ता जा रहा था । उसके पैरों में गति थी । वह जल्दी ही जैसे यह शहर छोड़ देना चाहता था । 

     सड़क के किनारे लगे वृक्षों के अंधेरे सायों का आश्रय लेकर अनूप भी उसके पीछे बढ़ता जा रहा था ।  अचानक अगला साया उसकी आंखों के सामने से गायब हो गया । अनूप ने आंखें फाड़ फाड़ कर चारों ओर देखा किंतु वह कहीं भी दिखाई न दिया ।अब अनूप बड़े संकट में था । उसकी बुद्धि काम नहीं कर रही थी । वह आगे बढ़े या लौट जाए इसका निश्चय वह नहीं कर पा रहा था ।

     इस समय वह शहर की सीमा से बाहर आ चुका था । यहां से लौटना भी कठिन था वह थक गया था । अनूप लौटने का विचार कर रहा था किंतु अचानक उसे रचना का स्मरण हो आया । उसका विकृत मुख अनूप की आंखों के सम्मुख घूम गया । हत्यारे को किसी भी कीमत पर पकड़ना ही होगा । उसने सोचा और आगे बढ़ चला ।

     अनूप आगे बढ़ रहा था परन्तु वह समझ ही नहीं पा रहा था कि अचानक वह व्यक्ति कहां गायब हो गया । उसे जमीन खा गई या फिर आसमान निगल गया । अभी अभी सामने जा रहा था और अचानक ऐसा गायब हुआ कि कहीं संकेत तक नहीं मिला । कुछ देर तक सोचता रहा फिर सतर्कता से चारों ओर देखता हुआ आगे बढ़ा । अभी वह कठिनाई से पच्चीस या तीस कदम ही चला होगा कि ऊपर वृक्ष की टहनियों में सरसराहट सी हुई । जब तक अनूप समय संभले एक मानव आकृति उसके ऊपर कूद पड़ी ।

    अनूप दुर्बल नहीं था । क्षण भर के लिए वह किंकर्तव्यविमूढ़ जरूर हुआ किंतु अगले ही क्षण विपक्षी को उसने जोर से झटका दिया जिससे वह कुछ दूर जा गिरा । उस ने तुरंत अनूप पर छलांग लगा दी । वह और कोई नहीं अजीत ही था जो रचना की हत्या कर चुका था । अनूप के द्वारा पीछा किए जाने पर उसने इस कांटे को भी अपने मार्ग से हटाने का निश्चय कर लिया था ।अनूप को थोड़ा सा लापरवाह होते देखकर वह बंदर की फुर्ती से समीप के वृक्ष पर चढ़ गया था और अनूप के आगे आने की प्रतीक्षा कर रहा था । 

     ज्यों ही अनूप उस पेड़ के नीचे से गुजरा उसने छलांग लगा दी । अनूप भी कम शक्तिशाली नहीं था । बचपन में वह कुश्ती भी सीखा करता था । दोनों ही एक-दूसरे की टक्कर के थे । जम कर दोनों आपस में भिड़ गए थे । युद्ध आरंभ हो गया । कभी अनूप भारी पड़ता है तो कभी अजीत । दोनों ही एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे थे । अनूप जानता था कि उसका विपक्षी एक हत्यारा है । उसकी प्रेमिका का हत्यारा । उसे वह किसी भी कीमत पर पकड़ लेना चाहता था ।  दूसरी ओर अजित अनूप   को अपनी राह का कांटा समझ रहा था । वह जानता था कि अनूप एक न एक दिन उसके गले में फांसी का फंदा डलवाने का कारण बनेगा इसलिए आवश्यक था कि वह उसे भी समाप्त कर दे ।

    निकट ही था कि अनूप अजीत को परास्त कर देता किंतु तभी दूर पर किसी जीप की हेडलाइट चमक उठी ।  अनूप जरा असावधान हुआ और उधर हत्यारे को अवसर मिल गया । दूसरे ही क्षण उसके हाथ अनूप की गर्दन पर थे । अनूप के मुँह से चीख निकल गई । वह उन लौह सदृश भुजाओं से छूटने के लिए तड़पा किंतु कुछ ही क्षणों में निर्जीव होकर उसके हाथों पर झूल गया । तब तक जीप निकट आ चुकी थी ।

    जीप एक झटके के साथ रुकी किंतु जब तक उसमें से निकल कर यात्री बाहर आया हत्यारा पास के जंगल में गायब हो चुका था और वन में उसे ढूंढना भूसे के ढेर में सुई ढूंढने के समान था ।

    ०००००

    अचानक ही जीप एक झटके से रुकी तो अंदर ऊंघता हुआ संजय चौंक पड़ा । उसने चौंक कर अपनी बगल में ड्राइविंग सीट पर बैठे प्राइवेट जासूस सुभाष की ओर देखा ।

    नीचे उतरो ।

    सुभाष जी बोले ।

    क्यों ? क्या यही जंगल में डेरा डालने का इरादा है ?

    संजय ने खीझ कर कहा ।

    वे लोग घूमने के विचार से आबो हवा बदलने के लिए यहां कानपुर में अपने मित्र सन्मत के यहां आ रहे थे  किंतु रास्ते में ही यह नई मुसीबत आ पड़ी थी । उसका खीझना स्वाभाविक ही था । अभी आगरे में नीलम के केस को समाप्त किए मुश्किल से एक सप्ताह ही बीता था और फिर .....।" उसकी तो समझ में अभी यही नहीं आया था कि इस तरह अचानक सूने रास्ते पर जीप रोकने का कौन सा दुख है ।

    मैं कहता हूँ नीचे उतरो ।

     सुभाष ने कठोर स्वर में कहा ।

    तो हुजूरे आला ! आपने कहा और मैंने सुन लिया । अब आप अपनी तशरीफ़ ले जा सकते हैं ।

    उठो, शायद वह मर गया ।

    सुभाष स्वयं नीचे उतरता हुआ बोला ।

    मर गया ? कौन मर गया ?

    संजय जैसे उछल पड़ा लेकिन तब तक सुभाष उतर कर बाहर जा चुका था । कुछ ही क्षणों में संजय भी उसके निकट जा पहुंचा । 

     सुभाष ने अपनी जेब से रबड़ के दस्ताने निकाल कर पहन लिए और अनूप को उलट पलट कर देखने लगा । 

     वह मर चुका है इसे दिल की धड़कन देख कर ही उसने जान लिया और फिर उस ओर दृष्टि डाली जिधर उसने एक मानवाकृति को लुप्त होते देखा था । चारों ओर अंधकार का ही साम्राज्य था । भयंकर जंगल  इस समय और भी भयानक लग रहा था । सुभाष ने अपने समीप खड़े संजय की ओर देखा । 

    कौन है यह ?

    उसने पूछा ।

    मुझे क्या पता ? तुम ही पूछो । शायद तुम्हें बता दे ।

     सुभाष मुस्कुराया ।

    लेकिन यह तो मर गया है ।

    तो क्या हुआ ? मरने के बाद सभी लोग तुम्हारी रिश्तेदारी में आ जाते हैं न !

     सुभाष हँस पड़ा । किसी भी वातावरण में वह गंभीर नहीं रह सकता था । हँसने के लिए उनकी जोड़ी मशहूर थी । अपनी जिंदादिली के कारण वे विख्यात थे और इसी के कारण डीएसपी तथा एसपी भी उन्हें पुत्रवत स्नेह करते थे ।

    तो क्या मैं आपको भूत नजर आता हूँ ?

    नजर नहीं आते तो क्या हुआ ? भूतों का क्या ठिकाना ? कब कौन सा वेश धारण कर ले कोई नहीं जानता ।

    अरे तो आपको क्यों जलन हो रही है ? मेरे राज्य में बड़ी सुंदर सुंदर अप्सराएं हैं । कहिए तो एक आध को आपके लिए भी रिजर्व करवा दूं मगर .....

    मगर क्या ?

    मगर डर लगता है आपसे ।

    मुझसे ? वह क्यों ?

    इसलिए कि आपके कथनानुसार मैं भूत हूँ । आप मेरे सरदार हैं यानी भूतों के प्रिंस के भी हेड । अब आप ही बताइए, कहीं वे बिचारी आपको देखते ही बेहोश हो गयीं तो फिर .. ... . अपनी तो बस शामत ही समझिए ।

    जब तुम अपने आपको भूतों का राजकुमार समझते हो तो फिर तुम्हारी शामत का क्या सवाल ?

     सुभाष घटनास्थल की जांच करता हुआ बोला । वह टार्च के प्रकाश में पैरों के निशानों को देखते हुए शहर की ओर धीरे-धीरे लौट रहा था ।अनूप ने अजीत का पीछा वृक्षों के नीचे कच्ची जमीन के सहारे किया था इसलिए उसके पैरों के निशान साफ नजर आ रहे थे ।

    अब नौकरशाही का जमाना गया जासूस महोदय ! अब तो चारों ओर प्रजातंत्र का बोलबाला है ।  सोशलिस्ट पार्टी...

    कहीं पार्टीबाजी के चक्कर में मत पड़ जाना ।

    सुभाष ने उसकी बात काटते हुए कहा । दोनों धीरे-धीरे बातें करते हुए काफी दूर आ गए थे । यहां से एक गली के मुहाने पर जाकर पद चिन्ह मिलने बंद हो गए थे । गली पक्की थी अतः आगे कोई सूत्र मिलना असंभव ही था ।

    दोनों फिर लौट पड़े ।

    क्या ख्याल है ?

    संजय ने पूछा ।

    किस बारे में ?

    सुभाष जैसे सोते से जगा । 

    इसी मर्डर के बारे में । 

    कुछ समझ में नहीं आया ।

    फिर भी ।

    क्या बताऊं ? मेरा अनुमान गलत भी हो सकता है ।

    कुछ बताइए भी । आपका अनुमान गलत हो तो कोई आश्चर्य की बात तो है नहीं । अगर ज्योतिषी होकर आप गलत अनुमान लगाते तो बात और थी ।

     संजय मुंह बना कर बोला ।

    ऐसा लगता है जैसे मरने वाला उस गली के रास्ते से होता हुआ सतर्कता पूर्वक पेड़ों के साए में छिपता हुआ कहीं जा रहा था । जब वह उस बरगद के पेड़ के नीचे से गुजरा तभी किसी ने अचानक पेड़ से कूद कर हमला कर दिया ।

     पेड़ से कूद कर ही हमला किया गया है यह आप कैसे कह सकते हैं ?

    संजय पूछ बैठा ।

    तुमने देखा नहीं घटनास्थल पर कुछ बरगद की पत्तियां और एक छोटी सी टहनी टूटी हुई पड़ी है । पेड़ इतना नीचा नहीं है कि नीचे से गुजरने वाले व्यक्ति का हाथ उस तक पहुंच सके इसलिए मरने वाले में स्वयं उन्हें तोड़ा होगा यह नहीं कहा जा सकता । टहनी ताजी टूटी हुई है ।

    और ?

    और क्या ? दोनों में जम कर संघर्ष हुआ है यह तो स्पष्ट ही है । मैंने जीत में से ही हत्यारे को भाग कर जंगल में अदृश्य होते देखा है । 

    लेकिन एक बात समझ में नहीं आई ।

    क्या ?

    यही कि मरने वाला इस समय रात के ढाई बजे इधर क्या करने आया था या फिर कहां जा रहा था ।

    यही तो प्रश्न है जो .....

    क्या यह संभव नहीं कि वह इधर से कहीं किसी गांव में जा रहा हो किसी से मिलना मिलने गांव में अभी हम लोग उधर से ही तो आ रहे हैं । इधर पड़ने वाला सबसे पास का गांव सहजनवा यहां से दस मील दूर है । अगर यह वहां जा रहा होता तो किसी भी सवारी से जा सकता था ।

    शायद इसके पास पैसे न हों । 

    "अजीब अहमक हो । अरे बुद्धू

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