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नानी कहे कहानी: कहानी संग्रह
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Ebook181 pages1 hour

नानी कहे कहानी: कहानी संग्रह

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About this ebook

About the book:
यह मात्र एक कहानी संग्रह ही नहीं है वरन इस पुस्तक के द्वारा लेखिका द्वारा समाज में लुप्त होती जा रही भारतीय सामाजिक तथा सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का प्रयास किया गया है । प्रस्तुत सङ्ग्रह की सभी कहानियों में विभिन्न व्रत पर्व पर कही सुनी जाने वाली कथाओं को उपजीव्य बनाकर उन्हें रोचक ढंग से लिखने का प्रयास किया गया है । कहानियाँ भिन्न भिन्न विषयों पर आधारित हैं । ये कहानियाँ जनमानस में प्रचलित परम्पराओं का पुनरूत्थान करने का एक प्रयास है । कहानियों को अत्यन्त रोचक ढंग से पाठकों की अभिरुचि को ध्यान में रख कर लिखा गया है ।

Languageहिन्दी
PublisherPencil
Release dateDec 6, 2021
ISBN9789355591326
नानी कहे कहानी: कहानी संग्रह

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    नानी कहे कहानी - डॉ. रंजना वर्मा

    नानी कहे कहानी

    कहानी संग्रह

    BY

    डॉ. रंजना वर्मा


    pencil-logo

    ISBN 9789355591326

    © Dr. Ranjana Verma 2021

    Published in India 2021 by Pencil

    A brand of

    One Point Six Technologies Pvt. Ltd.

    123, Building J2, Shram Seva Premises,

    Wadala Truck Terminal, Wadala (E)

    Mumbai 400037, Maharashtra, INDIA

    E connect@thepencilapp.com

    W www.thepencilapp.com

    All rights reserved worldwide

    No part of this publication may be reproduced, stored in or introduced into a retrieval system, or transmitted, in any form, or by any means (electronic, mechanical, photocopying, recording or otherwise), without the prior written permission of the Publisher. Any person who commits an unauthorized act in relation to this publication can be liable to criminal prosecution and civil claims for damages.

    DISCLAIMER: This is a work of fiction. Names, characters, places, events and incidents are the products of the author's imagination. The opinions expressed in this book do not seek to reflect the views of the Publisher.

    Author biography

    नाम - डॉ. रंजना वर्मा

    जन्म - 15 जनवरी 1952, शहर जौनपुर में ।

    शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत, प्राचीन इतिहास) पी.एच.डी.(संस्कृत)।

    लेखन एवम् प्रकाशन - 

    वर्ष 1967 से देश की लब्ध प्रतिष्ठ पत्र पत्रिकाओं में, हिंदी की लगभग सभी विधाओं में । कुछ रचनाएँ उर्दू में भी प्रकाशित ।

    प्रकाशित कृतियाँ - साईं गाथा (महाकाव्य)। अश्रु अवलि, सर्जना, समर्पिता, सावन, कैकेयी का मनस्ताप, वैदेही व्यथा, संविधान निर्माता, द्रुपद - सुता, सुदामा,(सभी खण्ड काव्य)। चन्द्रमा की गोद में (बाल उपन्यास), समृद्धि का रहस्य, जादुई पहाड़, मङ्गला, पोंगा पण्डित,(सभी बाल कथा संग्रह), मुस्कान (बाल गीत संग्रह), फुलवारी (शिशु गीत संग्रह)। जज़्बात, ख्वाहिशें, एहसास, प्यास, रंगे उल्फ़त, गुंचा, रौशनी के दिए, खुशबू रातरानी की, ख़्वाब अनछुए , शाम सुहानी, यादों के दीप, मंदाकिनी, आस किरन, बूँद बूँद आँसू (सभी ग़ज़ल संग्रह)। गीतिका गुंजन, सरगम साँसों की, रजनीगन्धा, भावांजलि (गीतिका संग्रह), सत्यनारायण कथा (पद्यानुवाद)। मुक्तक मुक्ता, मुक्तकाञ्जलि, मन के मनके (सभी मुक्तक संग्रह)। दोहा सप्तशती, दोहा मंजरी (दोहा संकलन)। एक हवेली नौ अफ़साने, रास्ते प्यार के, अमला, पायल, अतीत के पृष्ठ, अँजोरिया, मर्डर मिस्ट्री (उपन्यास)। सूर्यास्त, सिंधु-सुता, परी है वो ( कहानी संग्रह )। साँझ सुरमयी, गीत गुंजन, गीत धारा , मीत के गीत, आ जा मेरे मीत,(सभी गीत संग्रह)। बसन्त के फूल (कुण्डलिया संग्रह)। चुटकी भर रंग, जुगनू (दोनों हाइकु संग्रह)। चंदन वन (तांका संग्रह), इंद्रधनुष (चोका संग्रह), मेहंदी के बूटे (सेदोका संग्रह), नयी डगर (वर्ण पिरामिड संग्रह)।

     'लौट आओ रुद्र' (उपन्यास का पूर्वार्द्ध) प्रेस में ।

    सम्पादन - 

    मन के मोती, मकरंद , सौरभ, मौन मुखरित हो गया (चारो कविता संग्रह ), अँजुरी भर गीत (गीत संग्रह), शेष अशेष (स्मृति ग्रन्थ), हास्य प्रवाह (हास्य व्यंग्य कविताओं का संग्रह, थूकने का रहस्य, करामाती सुपारी (दोनों हास्य व्यंग्य संग्रह)।

    प्रसारण - 

    गीत, वार्ता, तथा कहानियों का आकाशवाणी, फैज़ाबाद से समय समय पर प्रसारण ।

    सम्मान - 

    श्रीमती राजकिशोरी मिश्र  सम्मान, श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान स्मृति सम्मान, काव्यालंकार मानद उपाधि, छन्द श्री सम्मान, कुंडलिनी गौरव सम्मान,  ग़ज़ल सम्राट सम्मान, श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान, मुक्तक गौरव सम्मान,  दोहा शिरोमणि सम्मान, सिंहावलोकनी मुक्तक भूषण सम्मान,  दोहा मणि सम्मान।

    सम्प्रति - 

    सेवा निवृत्त प्रधानाचार्या( रा0 बा0 इ0 कालेज जलालपुर, जिला अम्बेडकरनगर उ0 प्र0) से।

    सम्पर्क सूत्र - ranjana.vermadr@gmail.com 

    Contents

    दो शब्द

    छोटा सा केशो

    गणेश जी की खीर

    ओढर

    सुखिया दुखिया

    आओ लक्ष्मी

    तुलसी विवाह

    एकादशी

    मेरा भइया

    मणिधर की प्रेमिका

    ईर्ष्या

    राजा का तालाब

    प्रत्युपकार

    टूटी परम्परा

    झुलनप्यारा

    माँ का प्यार

    परीक्षा

    दो शब्द

    दो शब्द 

        प्रिय पाठकों ,

                     प्रस्तुत कहानी संग्रह आपके हाथों में सौंपते हुए अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है । यह मात्र कहानी संग्रह ही नहीं है वरन इस पुस्तक के द्वारा मैंने समाज में लुप्त होती जा रही अपनी सामाजिक तथा सांस्कृतिक धरोहर को सहेजना का प्रयास किया है । 

                   प्रस्तुत सङ्ग्रह की सभी कहानियों में विभिन्न व्रत पर्व पर कही सुनी जाने वाली कथाओं को उपजीव्य बनाकर उन्हें रोचक ढंग से लिखने का प्रयास किया गया है । जैसे सङ्ग्रह की कहानियां छोटा सा केशो , गणेश जी की खीर , ओढर तथा सुखिया दुखिया शीर्षक कहानियां गणेश चतुर्थी के अवसर पर कहि जाने वाली कथाओं पर आधारित हैं । आओ लक्ष्मी शीर्षक कहानी दीपावली पर्व की कथा पर आधारित है । तुलसी विवाह , एकादशी तथा ईर्ष्या कहानियों का उपजीव्य देवोत्थान एकादशी व्रत में कहि जाने वाली कथाएँ हैं । मेरा भइया और मणिधर की प्रेमिका कहानियां भाई दूज की कथाओं पर आधारित है तथा शेष राजा का तालाब , प्रत्युपकार ,टूटती परम्परा , झुलन प्यारा , माँ का प्यार और परीक्षा शीर्षक कहानियां हल षष्ठी व्रत के अवसर पर कही जाने वाली कथाओं पर आधारित कहानियाँ हैं । इनका उपजीव्य भलेभी हमारी लोक परम्परा है किंतु इन्हें कहानी का सुष्ठु कलेवर फनायबग्य है जो पाठकों को अवश्य पसन्द आएगा ।

                 मुझे विश्वास है कि मेरे पिछले कहानी संग्रह ‘सूर्यास्त’ जिसमें मेरी विभिन्न विषयक इक्यावन कहानियां संग्रहीत हैं को जिस स्नेह से आप लोगों ने अपनाया वैसा ही स्नेह मेरी इस नवीन पुस्तक को भी आप अपना अमूल्य प्यार देंगे ।

                  इति शुभमस्तु सर्वेभ्यः ।

                                                  - डॉ. रंजना वर्मा

    छोटा सा केशो

    एक बुढ़िया थी । उसके एक बेटा था और बहू थी । घर में कोई संतान न थी और चारो ओर गरीबी का बोलबाला था । बहू सन्तान न होने के कारण लोगों की उठती उंगलियों से त्रस्त थी । निर्धनता इतनी कि बस किसी प्रकार दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो जाता था ।

     बुढ़िया गणेश जी की परम भक्त थी । प्रतिदिन सुबह नदी नहाने जाती और ॐ गणेशाय नमः का जप करती रास्ते मे पड़ने वाले गणेश मन्दिर पर सिर नवा कर घर आती । जो भी रूखी सूखी मिल जाती उसे गणेश जी की कृपा मानकर खा लेती । घर की निर्धनता के कारण इच्छा होते हुए भी कभी गणेश जी को ढंग से भोग नहीं लगा पाती थी ।

     गणेश चतुर्थी का त्यौहार निकट था । नदी के किनारे स्नान करती महिलाएँ उसी की चर्चा कर रही थीं । कोई गणेश जी की मूर्ति स्थापित करने की बात कर रही थी तो कोई ब्राह्मण भोज की । किसी ने एक दिन के लिये गणेश स्थापना का संकल्प लिया तो किसी ने दो , पांच , सात या दस दिन के लिये । बुढ़िया चुपचाप सबकी बात सुन रही थी । 

    कुछ लोग जो मूर्ति स्थापना नहीं कर पा रही थीं वो ब्राह्मण भोज का संकल्प ले रही थीं । पांच , सात , ग्यारह ब्राह्मणों को भोजन कराने की बात हो रही थी । बुढ़िया को चुप देखकर एक स्त्री ने पूछा -

    माता जी , आप तो गणेशजी की इतनी पूजा करती हैं। आप भी ब्राह्मण भोज करा दीजिये । गणेश जी की कृपा से आपके घर मे भी किलकारी गूंजेगी ।

    लोगों के उत्साहित करने पर उसने भी एक व्राह्मण को भोजन कराने का संकल्प ले लिया ।

    घर लौट कर उसने डरते डरते बहू से बताया तो वह झल्ला उठी -

    देखती तो हो कि घर मे दोनों जून की रोटी मुश्किल से मिल पाती है और आप हो कि ब्राह्मण भोज का संकल्प कर आई । कहते हैं कि - अहिर का पेट गहिर और बाभन का पेट मंड़ार । कहाँ से खिलायेंगे ? उन्हें अपनी रूखी सूखी तो नहीं परोस सकते न ?

    अब तो मैंने संकल्प ले ही लिया है । पूरा करना ही पड़ेगा । गणेश जी बहुत दयालु हैं । क्या पता प्रसन्न हों तो हमारे तांगन में भी बच्चों की हँसी गूँजे ।

               बुढ़िया बोली ।

    अब बोल आयी हो तो कुछ तो करना ही होगा । चलो, आज से दाल सब्जी बन्द । एक ही चीज बनेगी । कुछ पैसे बच जायेंगे तो बाभन देवता के लिये ढंग का खाना बन जायेगा । बहू ने कहा ।

     ब्राह्मण भोज के दिन बहू ने पूरी तरकारी की व्यवस्था की । साथ मे थोड़े से मोदक । फिर सास से बोली - 

    अम्मा , जाओ । कोई छोटा सा बालक बुला लाना ।

    अच्छा। कह कर बुढ़िया ब्राह्मण बालक की खोज में चल दी । बहुत ढूंढने पर भी उसे कोई छोटा बालक नहीं मिला तो गांव के बाहर बरगद के नीचे बैठ कर विचार करने लगी कि कहाँ ढूँढूँ ब्राह्मण बालक ।

    उसी समय गणेश जी स्वयं एक छोटे बालक के वेश में उसके सामने से होकर जाने लगे । उन्हें देखते ही बुढ़िया नर पुकारा - 

    ए बेटा , जरा मेरी बात तो सुनो ।

    क्या बात है अम्मा ? गणेश जी ने पास जाकर पूछा ।

    तुम किसके लड़के हो ?

    शंकर मिश्रा के । काहे ?

    "बच्चा

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