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कुसुमदी: कुसुमदी-ग्यारह कहाँनियों का संग्रह ।
कुसुमदी: कुसुमदी-ग्यारह कहाँनियों का संग्रह ।
कुसुमदी: कुसुमदी-ग्यारह कहाँनियों का संग्रह ।
Ebook163 pages1 hour

कुसुमदी: कुसुमदी-ग्यारह कहाँनियों का संग्रह ।

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About this ebook

About the book:
यह पुस्तक आधारित है ग्यारह कहानियों पर जो अलग विषय पर आधारित है एक ओर जहां कुसुमदी एक ओर महिलाओं के सरल हृदय व करुणामयी रूप को दिखाता है वही।समाज में व्याप्त बुराईयों से लड़नें वाली विरागंना रूप को भी दर्शाता है । वहीं दूसरी ओर मेरी दूसरी कहानियों के माध्यम से कुछ ना कुछ संदेश समाज पर जा छोटी दीदी ,जीजाजी, सके ऐसा मेरा प्रयास रहा है। मेरे इस प्रयास में मेरे परिवार के प्रत्येक सदस्य का कुछ ना कुछ महत्वपूर्ण सहयोग अवश्य ही रहा है। प्रिय पाठकों आपका आशीर्वाद तो खैर मेरे लिए अनमोल हैं ही है,जिसके बिना तो मैं अपनी लेखनी चला ही सकता हूँ । ऐसा ही स्नेह व आशीर्वाद बना रहेगा धन्यवाद हिमांशु पाठक ।

Languageहिन्दी
PublisherPencil
Release dateDec 30, 2021
ISBN9789355590367
कुसुमदी: कुसुमदी-ग्यारह कहाँनियों का संग्रह ।

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    कुसुमदी - हिमांशु पाठक

    कुसुमदी

    कुसुमदी-ग्यारह कहाँनियों का संग्रह ।

    BY

    हिमांशु पाठक


    pencil-logo

    ISBN 9789355590367

    © Himanshu Pathak 2021

    Published in India 2021 by Pencil

    A brand of

    One Point Six Technologies Pvt. Ltd.

    123, Building J2, Shram Seva Premises,

    Wadala Truck Terminal, Wadala (E)

    Mumbai 400037, Maharashtra, INDIA

    E connect@thepencilapp.com

    W www.thepencilapp.com

    All rights reserved worldwide

    No part of this publication may be reproduced, stored in or introduced into a retrieval system, or transmitted, in any form, or by any means (electronic, mechanical, photocopying, recording or otherwise), without the prior written permission of the Publisher. Any person who commits an unauthorized act in relation to this publication can be liable to criminal prosecution and civil claims for damages.

    DISCLAIMER: The opinions expressed in this book are those of the authors and do not purport to reflect the views of the Publisher.

    Author biography

    आप श्रीमान हिमाँशु पाठक मूल रूप से उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र में स्थित पिथौरागढ़ जिले, में गंगोली हाट स्थित पठक्यूड़ा गाँव से हैं। आप का जन्म अल्मोड़ा में एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में 14 जुलाई 1970 को हुआ था आपकी सम्पूर्ण शिक्षा उत्तराखण्ड में हुई । आपके पिता श्रीमान हेम चन्द्र पाठक जी,संस्कृत भाषा के व ज्योतिषशास्त्र के प्रकाण्ड विद्विन थे व माता श्रीमती गोविन्दी पिठक एक सरल स्वभाव की साधारण गृहस्थी को सँभालने वाली महिला थी। पाँच भाई-बहिनों में आप सबसे छोटे थे व सबके लाडले रहे हैं। वर्तमान में आप शिक्षण कार्य करते हैं। आप की रूचि बचपन से ही लेखन,गायन अध्धयन व रंगमंच में रही है। आपकी प्रमुख रचनाऐं-: गद्य रचनाऐं-: मैं प्रकृति हूँ,आँखें,जडों से दूर,कुसुमदी, सूर्योदय उत्तराखंड का,ढलता हुआ सूरज,माँ गंगा ने बुलाया है, बचपन आँगन वाला,बचपन डिजिटल दुनिया से पहले,व्यक्ति का निर्माण या व्यक्तिव का निर्माण,काफल का पेड़, एक पुरोधा का अंत,एक मोड़ पर,भोर का तारा,उस मोड़ पर,मधु,वो लड़की,एक था बचपन,दीदी की जुबानी-कुमाऊं की कहानी,वो कौन थी,पाती प्रेम की,आदि। पद्य रचनाऐं-: ढलता हुआ सूरज,वो गरीब की बेटी,एक ही स्थल,दो छोर,युग आयेंगे,गांधारी,एक पुरोधा का अंत,चाय की चुस्की,तेरी यादों के साये में,पथिक,कोई रोता है,जिन्दगी,प्रतीक्षा,बैचैनी,सप्त-शर्त,पथिक,चिट्ठी,दीवार,कृष्ण बने द्वारिकाधीश ,मौन अधरों का,प्रिये तुम्हें में कैसे भूला दूँ,बाजीगरी, डर लगता है,मौन धरों ना,प्रेम के गीत,आज अगर आजाद,भगतसिंह, कोई रोता है,आपकी अदा, चाय पर चर्चा, उम्र अपने निशान छोड़ चली, यादें, अधुरी ख्वाहिश, गाय व गदहा,तू कैसे भूल गया,याद आती हो,यादों की महफिल, फुरसत के क्षण,प्रीत की रीत, काश,हम कब जीते हैं,आग्रह,एक पिता का, मधु-मिलन,सफर यादों का,वेदना, 

    Contents

    कुसुम दी ।

    सीप का मोती ।

    वो भी क्या दिन थे!

    अतीत के पथ पर ।

    प्रेम-पथ ।

    खुशबू ।

    वैद्यराज नमस्तुभ्यं !

    मधु ।

    वो कौन थी !

    एक पुरोधा का अंत ।

    तेरहवीं ।

    पाती प्रेम की ।

    कुसुम दी ।

    सुबह के समय बरसात के मौसम में,मैं ,अपने बरामदें में बैठकर, सुबह समाचार-पत्र में खोया हुआ था। बाहर बारिश हो रही थी,मैं साथ में चाय की चुस्की का आन्नद ले रहा था।

    तभी अचानक फोन की घंटी घनघनाने लगी।फोन मैंने ही उठाया

    हैलो!तभी दूसरी ओर से आवाज आई।

    हैलो! मैं राजुराजु!दुबारा वही आवाज मेरे कानों में दुबारा सुनाई दी।

    कौन राजु! मैंने अचानक चौंकते हुए पुछा।

    अरे दाज्यू मैं राजु बुलांण लाग रयू राजेन्द्र अल्माड़ बटी।"(अरे बड़े भैया, मैं राजू बोल रहा हूँ  अल्मोड़ा से) फिर वही आवाज  कानों में गुँजी।

    अरे राजु तू छै,(अरे!राजू तू है।) मैंने  कहा।

    और सुना सब भाल हरैनी या?(और सुना!सब ठीक है यहाँ  पर) मैंने दुबारा से पूछा ।

    अरे दाज्यू ऊ कुसुमीदी छी ना(अरे बड़े भैय्या वो कुसुम दी थी ना) दुबारा से फिर राजु कहने लगा )

    हो होकै हाल छन उनर"?(हाँ हाँ क्या हाल हैं  उनके), मैंने पूछा।

    ऊ गुजर गई।(वो गुजर गयीं हैं) फिर से राजु कहने लगा।

    कै कुणों छै तू!(ये तू क्या कह रहा है) मैं दुःखी हो कहने लगा।

    बइ तो बात हरैछी कौ उन दगढ़।(मैं लगातार बोले जा रहा था कि कल ही कि तो बात थी जब उनसे दूरभाष में बात करी थी और आज,मैं दुःखी हो बोले  जा रहा था; ( कैसे हुआ ये सब,  क्या हुुुुआ था उनको।)रुंधे हुए गले से मैं बोलेे ही जा रहा था)कैसी भो यो सब? कै भो उननको"?

    बस दाज्यू जैस ईश्वर क मर्जी। बस बड़े भैय्या ईश्वर की शायद यही इच्छा  रही होगी ये कह कर फोन कट गया)और सामने से फोन कट गया। मैं चले गया यादों में,अतीत के पथ पर ।

    उस वर्ष मेरा बारहवी का रिजल्ट आया था।आगे की पढ़ाई की सुविधा गाँव में ना होने के कारण मुझे आगे की शिक्षा के लिये अल्मोड़ा जाना पड़ा।

    अल्मोड़ा आये हुए,मुझे करीब दो महीने हो गये थे। अकेले अल्मोड़ा में रहते हुऐ अक्सर मुझे घर की याद सताती थी तब मैं कमरे की उबन से बचने के लिये  बाजार की तरफ चल देता।

    एक दिन ऐसे ही लाला बाजार के किनारे खड़ा हुआ मैं सामने का मनोरम दृश्य देख रहा था तभी ऐसा लगा मानों मुझे कोई पुकार रहा है।

    मैंने समझा कि ये मेरा भ्रम है, तभी दुबारा फिर मेरे कानों में वही आवाज गूँजी बाँबी !

    मैंने चौंक कर पीछे मुड़कर देखा ।

    एक महिला कब से मुझे पुकारे जा रही थी; बड़ा ही आर्कषक था उनका व्यक्तित्व सामान्य कद, गेहुँवा रंग करीने से बंधी हुई मैरून रंग की साड़ी,चेहरे में अनोखा तेज,होंठों में ममतामयी मुस्कान,आँखों में करूँणा,बातों में अपनत्व ,सर में गोल जूड़ा ।

    मैंने उनको पैलाग करते हुए कहा, अरे! कुसुमीदी आपु याँ (अरे! कुसुमदी आप यहाँँ )ये कुसुमीदी थी।

    तू याँ कसी?,कै करणों छैं याँ?"( तू यहाँ  कैसे! यहाँ क्या  कर रहा  है, कुुुुसुुमदी ने  मानो प्रश्न्नों की झड़़ी लगा दी।

    कुसुमीदी याँ मैंल डिग्री काँलेज में एडमिशन ली रक्खो बीए में"।

    अच्छा!

    कब बटी छै तू याँ?

    द्यू महिण ह गइन याँ।

    या कारेछे तू?

    कम्र्र ली रखों या

    अब कुसुमी की बारी थी पहले तो मुझे जी भर के डाँट लगाई कि मैं क्यों यहाँ पर अलग कमरा ले कर रह रहा था, फिर मेरे साथ मैरे कमरे में गयी मेरा सामान व मुझे कमरे से निकाल ले गयी मूझे अपने घर।

    हालाँकि कुसुमी दी मेरे ही गाँव में रहती थी, यहाँ अल्मोड़ा में अपने भरे-पूरे परिवार के साथ रहती थी, कुसुमीदी अविवाहित थी, सात भाई-बहिनों में छोटी, उनसे छोटा एक भाई था, जिसे घर के लोग प्यार से नानू कहते थे; हालाँकि उन का नाम कुछ और था।

    कुसुमीदी अपनें घर में सबसे छोटे होते हुए भी सबसे समझदार थी। सबको साथ लेकर चलने वाली थी और घर के सभी सदस्य उनको प्यार भी करते थे और सम्मान भी,चाहे वह घर का बड़ा सदस्य हो या छोटा।

    कुसुमी दी के साथ अब मैं उनके घर में था। एक सकुचाहट थी मेरे अंदर,कुसुमीदी ने घर के सभी सदस्यों को पुकारा और पलभर में ही सभी सदस्य मेरे सामने थें कुसुमीदी ने पूरी बात घरवालों को बताई और सभी मुझसे नाराजगी प्रकट करने लगे और मुझे सख्त हिदायत दी गयी कि आगे की पढ़ाई अब में उनके घर में रहकर ही पूरी करूँ।

    कुसुमीदी को तो मानो ईश्वर ने धरती पर भेजा ही था मानवीय गुणों से परिपूर्ण कर ,ताकि जरूरतमंदो की सहायता, ईश्वर उनके माध्यम, से कर सके। कुसुमीदी का व्यक्तित्व कुछ ऐसा था कि हर कोई पहली बार में ही उनके व्यक्तितव सेप्रभावित होजाता था। उनका घर मन्दिर और कुसुमीदी साक्षात अन्नपूर्णा । ना उनके घर में कभी अन्न की कमी रहती ना स्नेह की,मेरे साथ ना जाने कितनों के भविष्य को सवाँरने का दायित्व कुसुमीदी ने अपने कँधे पर ले रखी थी। मैंने कितनों से कुसुमीदी की तारिफ सुन रखी थी,जिनके भविष्य को सवाँरने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था; इसके अलावा भी उनके मन्दिर में अतिथियों का आवागमन सुबह-शाम,रात-दिन बना रहता था; पर कुसुमीदी के चेहरे में कभी शिकन कभी नही दिखती। ऐसी थी मेरी कुसमीदी।

    कुसुमीदी के ही पड़ोस में एक परिवार रहता था मध्यमवर्गीय,पुराने ख्यालात से ग्रसित।एक दिन

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