Murgasan (Hasya Vayangya) : मुर्गासन (हास्य व्यंग्य)
By Bagi Chacha
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Murgasan (Hasya Vayangya) - Bagi Chacha
चिड़ियाघर
सैकड़ों जानवर
रोक लो यहाँ मगर,
फिर भी इसका चिड़ियाघर
नाम तो बताओ ना।
ये स्कूली टोलियाँ,
सुनने को कुछ बोलियाँ,
फेंकती है गोलियाँ।
बेकसूर पक्षियों को
इस तरह सताओ ना।
नाल की नोक पर
शेर-चीते रोक कर,
पीठ अपनी ठोककर
बहादुरी दिखाओ ना।
पूँछ कट गई तो क्या!
गाल पट गए तो क्या!
वस्त्र डट गए तो क्या!
पूर्वजों को इस तरह
पिंजरे में बिठाओ ना।
यदि चिड़ियाघर में आज
देखने लायक है बाज,
फिर मनुष्य का समाज
बाहर तो बसाओ ना।
फास्ट फूड
कैसा आज जमाना आया
फास्ट फूड का फैशन छाया।
बच्चे बड़े चाव से खाते
युवा लार इस पर टपकाते।
दादा जी ने इसको खाया
खाकर हम सबको समझाया।
फास्ट फूड तुमको भाता है
खाने को मन ललचाता है।
अक्सर इसमें होता मैदा
बदहजमी जो करता पैदा।
कई रसायन इसमें आवश्यक
होते हैं अति हानिकारक।
होता ये जल्दी तैयार
लेकिन करता है बीमार।
प्रतिदिन फास्ट फूड जो खाते
अस्पताल वे निश्चित जाते।
बर्गर, पीजा कभी न खाओ
चाऊमीन को दूर भगाओ।
पेप्सी, कोला कभी न पीओ
देसी शरबत के संग जीओ।
छोड़ विदेशी भोजन को
देसी पर तुम ध्यान धरो।
सब्जी, चावल, रोटी खाओ
आसानी से रोज पचाओ।
भारतीय भोजन ही अच्छा
स्वस्थय रहेगा बच्चा-बच्चा।
करके इरादा अपना पक्का
फास्ट फूड को मारो धक्का।
दोहे
राजनीति में हाट के, भेद और मत खोल
जितने थोथे हैं चने, उतने ऊँचे मोल।
तन्त्र-मन्त्र का लोक ही, लोकतन्त्र कहलाय
स्वप्न पिटारा देखकर भीड़ रही भरमाय।
‘बाग़ी’ अपनी चीख पर, व्यर्थ करे अभिमान
साँप और सरकार के, होते हैं कब कान।
लोकतन्त्र की तो यहाँ, ऐसी बिगड़ी चाल
नेता थप्पड़ हो गये, जनता है अब गाल।
क्षितिज
क्षितिज क्या है? सृष्टि का अद्भुत मिलन,
जीवन में है जैसे प्राणों का चलन।
यह मिलन है धरा और आकाश का,
यह मिलन है तृप्ति के संग प्यास का।
रूप का ज्यों रंगमय आधार है,
लय का ज्यों स्वर संग विस्तार है।
इस मिलन को और भी विस्तार दें,
इस जगत को पूर्ण भर दें प्यार से।
आओए हलवा खा लो
मित्रों!
जब से जुड़ा है
मेरा कविता से नाता,
मेरे घर
कोई पड़ोसी नहीं आता,
न ही
मुझे अपने घर बुलाता।
बहुत अर्से बाद एक आया,
तो मेरा मन हर्षाया।
ठण्डा पड़ा कलेजा,
इमरती और समोसे लाने
एक बच्चे को बाजार भेजा।
पड़ोसी भाई को मैंने
अपनी कविता की
पहली पंक्ति सुनाई।
इतने से ही
वो उखड़ गया
उठकर चलने लगा।
लाख मिन्नत की
फिर भी
मेरे घर से निकल गया।
और मित्रो!
जैसे ही समोसे के साथ
इमरती आई,
समोसे और इमरती से भरकर
एक बड़ी प्लेट
मैंने उस पड़ोसी के घर भिजवाई,
और पीछे-पीछे
मैं खुद भी पहुँच गया।
पड़ोसी निकला ऐसा पाजी,
भरी प्लेट
मुझे वापस थमा दी।
बोला-
‘अब तो ये सब
आपको ही खाना है,
रिश्ते की मेरी मौसी मर गई
मुझे तुरन्त जाना है।’
मैंने दूसरे पड़ोसी के
घर की ओर प्रस्थान किया।
मुझे निकट आता देख
उसने तुरन्त
दरवाजा बन्द किया।
इस प्रकार प्लेट पकड़े
मैंने कई घरों की
घंटियाँ बजाई,
आवाज लगाई।
पर किसी का
मन नहीं डोला,
किसी ने भी
अपना दरवाजा नहीं खोला।
तभी मेरी नजर
उधर को पड़ी
जहाँ एक खिड़की थी खुली।
मैंने खिड़की से ही
सम्पर्क साधा,
अन्दर सरका दिया
प्लेट का माल आधा।
फिर भी कम्बख्त ने
दरवाजा नहीं खोला,
तो मैं बोला-
‘अन्दर आऊँ,
या खिड़की से ही सुनाऊँ।’
इतना सुनते ही उसने
खिड़की बंद कर ली,
प्लेट की आधी सामग्री
मुफ्त में ही गई।
वापस घर लौटने लगा
तो सचमुच आश्चर्य हुआ।
देखा, एक घर का
दरवाजा था खुला,
मैं सीधा अन्दर घुसा।
पड़ोसी था नया-नया,
मुलाकात का पहला वाकया।
उसने मुझे
इशारे से बिठाया,
नहीं रहा मेरी
खुशी का ठिकाना।
मैंने जैसे ही
प्लेट उसके सामने रखी,
उसने इमरती चखी।
वो खाता गया
और मैं
कविताएँ सुनाता गया।