Deenu Ki Pukaar (Hasya Vayangya) : दीनू की पुकार (हास्य व्यंग्य)
By Bagi Chacha
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Deenu Ki Pukaar (Hasya Vayangya) - Bagi Chacha
बस कंडक्टर
एक बस कंडक्टर को
न जाने
किस बात का
फल मिलता था,
बेचारा रोजाना
लेडीज स्पेशल में चलता था।
ये महिला संपर्क
अब
अपना रहस्य खोलने लगा है,
कंडक्टर
हर समय ही
बहुत बोलने लगा है।
दूसरे की
बिल्कुल नहीं सुनता है,
टिकट बेचने के साथ ही
स्वेटर भी बुनता है।
दूसरे मर्दो को देखकर
जलता है,
मटक-मटक कर चलता है।
जवान है।
इसलिए
अपने आप को
खास समझता है,
बुजुर्ग ड्राइवर को
अपनी सास समझता है।
वैलेंटाइन
जिन दिनों हमने
जवानी में प्रवेश किया,
उन दिनों
वैलेंटाइन डे नहीं होता था।
उन दिनों
प्यार करने के तरीके
फिल्मों में होते थे।
एक फिल्मी अन्दाज को
अपनाने के चक्कर में
हमारे दो दांत टूटे थे।
उन दिनों
ना टेलीफोन था, ना मोबाईल
आँखों-आँखों से प्यार के तार
जुड़ जाते थे,
एक दूजे को देख मुस्कराते थे।
इसी मुस्कराने-मुस्कराने में
लड़की की शादी हो जाती,
यानि हमारी
बर्बादी हो जाती।
और कहर तो तब टूटता
जब वो
अपने बच्चों के साथ आती।
बच्चों को देख
हम ऊपर से मुस्कराते,
लेकिन अन्दर से खिसियाते।
हमारे अन्दर घाव हो जाते,
बच्चे हमारे घावों पर
नमक छिड़कते,
जब ये प्यारे-प्यारे
लेकिन हत्यारे बच्चे
हमें मामा कह कर बुलाते।
अब जब कि हम
मामा से नाना बनने को
आगे बढ़ रहे हैं।
ये वैलेंटाइन आ गया,
बुझते हुए अंगार को
चिंगारी दिखा गया।
हम भी चाहते हैं
इस वैलेंटाइन डे पर
हमारी मन रूपी बगिया में
नए फूल खिलें
इस बदरंग-सी जिं़दगानी में
हम नया रंग भरें।
कोई आए,
एक दूजे को देख
हम मुस्कराएं,
हाथ में हाथ डाल
पार्क के
एक कोने तक जाएं।
वहां बैठें, सुस्ताएं,
फिर एक फूल
हम उनकी जुल्फों में लगाएं।
वो शर्माए,
चेहरा झुका ले,
पल्लू में छिपा ले।
हे परमात्मा!
अब तो बस
तुम्हीं से आस है,
ये जो हमारी
प्यार की प्यास है।
तू ही इसे बुझा दे
इस ठूंठ-सी ज़िंदगानी में
हरियाली ला दे,
आने वाले वैलेंटाइन डे पर
किसी हम उम्र
महिला के मुख से
‘आई लव यू’
कहलवा दे।
ताकि ये जीवन
और वैलेंटाइन
हो जाए फाइन
सुपर फाइन
सुपर-डुपर फाइन।
हास्य रसी-वीर रसी
दो पड़ोसी भाई
एक वीर रस में
दूसरा हास्य में
करता था कविताई।
एक तो रस भेद
दूसरे-एक गली में दो
ताल नहीं बैठ पाई,
एक दिन हो गई
जमकर लड़ाई।
दोनों ने
उठा लिए हथियार।
वीर रस का कवि
हाथ में लिए खड़ा था अखबार।
चोरी, डाके, बलात्कार
के पढ़कर समाचार
जगा रहा था अपने अन्दर
वीर रस का खुमार।
उसने
अखबार को गोल-गोल घुमाया।
उसका डंडा बनाया,
हास्य रसी को मारने के लिए
लाठी की तरह ऊपर उठाया।
हास्य रसी ने
उसका मजाक उड़ाया-
‘जैसी तेरे लट्ठ में जान है
वैसा ही तू पहलवान है।’
ये कहते हुए हास्य रसी ने
इंक पेन को
पिस्तौल की तरह उठाया।
ऐसे चलाया
दुश्मन पर इंक के छींटे पड़ गए,
वीर रसी को ये छींटे
गोली की तरह गड़ गए।
जब
कोई हथियार काम नहीं आया,
तो शब्दबाण चलाया -
‘जान से मार दूंगा,
तेरे हास्य को
करूणा में उतार दूंगा।
उल्लू की दुम,
कर दूंगा होश गुम।’
ये सुनकर
हास्य रसी ऐसे भड़का
जैसे पटाखा बम।
बोला - ‘बच्चू!
पांच किलो वजन क्या बढ़ गया,
वीर रस का दौरा पड़ गया।
ये जो
तेरे लहजे में तैश है,
सब जानते है
तेरे पेट में गैस है।
वीर रसी ने उल्टा वार किया।
बोला - ‘रै चुटकुले बाज!
व्यंग्य के नाम पर निकालता है
अपने मन की खाज।
सब पता है
कविता में तेरा क्या स्तर है,
जिसे तू अतिशयोक्ति कहता है
वो तेरा हाई ब्लड प्रेशर है।’
इन दोनों की बातें सुनकर
मोहल्ले वालों का
ब्लड-प्रेशर हाई हो गया।
दोनों को पकड़कर
डॉक्टर के पास ले गए और
कहा -
‘हास्य कवि का तो
ब्लड प्रेशर नीचे उतार दो,
और
वीर रसी की गैस निकाल दो।’
डॉक्टर ने
पाइप डाल दी,
वीर रसी की गैस निकाल दी।
अब आई
हास्य रसी की बारी,
डॉक्टर ने जांच करके सारी
बताया -
क्या कहते थे, ब्लड प्रेशर!
इसमें ब्लड ही नहीं
तो प्रेशर कहां से आएगा,
और जब तक ब्लड नहीं बनेगा
ये