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Fifty-Fifty (Vyang-Kavitayen) फिफ्टी-फिफ्टी (व्यंग-कविताएं)
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Fifty-Fifty (Vyang-Kavitayen) फिफ्टी-फिफ्टी (व्यंग-कविताएं)
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Fifty-Fifty (Vyang-Kavitayen) फिफ्टी-फिफ्टी (व्यंग-कविताएं)

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हास्य विद्रूपताओंसे और व्यंग्य विसंगतियों से जन्मता है। मेरी दृष्टि में अच्छा और सार्थक व्यंग्य वही होता है जो किसी व्यक्ति पर नहीं बल्कि नकारात्मक प्रवृत्ति पर किया गया हो। अच्छा व्यंग्य विसंगतियों, विकृतियों और नकारात्मक प्रवृत्तियों पर प्रहार करते हुए उनके समाधान भी सझाता है। कवि श्री मंजीत सिंह के व्यंग्य संग्रह ' फिफ्टी फिफ्टी ' को पढ़ते हुए इस सत्य की पूरी ताकीद होती है कि पसु्तक के व्यंग्य अपनी पूरी शक्ति के साथ विसंगतियों पर प्रहार करते हुए सच की स्थापना करते हैं।
एक सार्थक व्यंग्य रचना किसी व्यक्ति या व्यवस्था का उपहास नहीं करती बल्कि समाज सुधारक की भूमिका भी निभाती है। व्यंग्य की भाषा पाठक के मन में चभन तो पैदा करती ही है, नकारात्मकता के विरुद्ध वितृष्णा भी उत्पन्न करने के साथ आनंद की भी अनुभूति कराती है।
श्री मंजीत सिंह हास्य व्यंग्य के शानदार धारदार कवि हैं। उनके पास देश विदेश के अनभुवों का अकूत खज़ाना है। धारदार भाषा का अप्रतिम भंडार है। हास्य बोध होने के कारण उनकी व्यंग्य रचनाओंमें हास्य के सहज पुट उसी तरह से मिल जाते हैं जैसे कड़वी औषधियां मीठी चाशनी के लेप के साथ लोगों को खिलाई जाती हैं। 'इक लैला के पांच हैं मजनू', 'लोहे का पुल', 'सरकारी ट्यूबलाइट', 'और चिपको टीवी से', 'कम उम्र के नसु्खे', 'वोटर की जेब', 'कुंभकरण और नेता', 'लेडीज सीट', शीर्षक रचनाएं ऐसी सहज अनुभूतियों को सहेजने में पूरी तरह से समर्थ हैं।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateJun 3, 2022
ISBN9789355991270
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    Fifty-Fifty (Vyang-Kavitayen) फिफ्टी-फिफ्टी (व्यंग-कविताएं) - Manjeet Sardar Singh

    लोहे का पुल

    ठेकेदार ने

    पुल

    नहर की बजाय

    कागज पर बनाया

    सीमेंट इंजीनियर पी गया

    लोहा ठेकदार ने निगल लिया

    शेष विभाग वालों ने पचाया।

    पांच साल बाद

    रंग रोगन करने वाला

    ठेकेदार

    हो गया परेशान

    उसे न तो पुल मिला

    न ही उसका कोई निशान।

    पता करते-करते वो

    पुल बनाने वाले ठेकेदार के घर आया

    वो बेहोश होते-होते बचा

    जब उसे पता लगा कि

    ठेकेदार ने

    तो नहर पर

    पुल ही नहीं बनाया।

    पुल वाला ठेकेदार

    पेंट वाले से बोला

    तुम ठेकेदार अभी कच्चे हो

    इस फील्ड में बिल्कुल बच्चे हो

    राष्ट्र के निर्माण में

    तुम भी

    अपना हाथ बंटाओ

    लोहे का पुल

    हमने खा लिया है

    पेंट तुम पी जाओ।

    सरकारी टयूबलाइट

    बिजली के

    खम्भे पर लगी

    ट्यूबलाइट की फट्टी

    अंधेरी सड़क का

    मुंह चिढ़ा रही है

    और

    नगरपालिका की फाइलों में

    फूट चुकी टयूबलाइट

    कर्मचारी के घर के

    शौचालय में

    जगमगा रही है।

    इक लैला के पांच हैं मजनूं

    छुटभैये पॉकेटमारों की पहली मंजिल थाना है,

    चाहे जितना माल उड़ा लें फिर तो जेल में जाना है।

    चूल्हा तवा नहीं है फिर भी गांव दिया है पूरा न्यौत,

    नेता जी ने आश्वासन का ऐसा आटा साना है।

    इक लैला के पांच हैं मजनूं, रांझे की छत्तीस हीरें,

    डेटिंग करते बदल-बदल के, आया नया ज़माना है।

    टाट और पट्टी नहीं स्कूल में, फर्श पे बच्चे बैठे हैं,

    टीवी पर साइंस का चैप्टर टीचर ने दिखलाना है।

    नाम परिवर्तन

    कई दिनों बाद

    अपने मित्र

    रामलाल के घर पहुंचा

    तो उसकी नेमप्लेट देखकर

    हो गया हैरान

    उसने अपना

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