Bharat Ratna Lata Mangeshkar (भारत रत्न लता मंगेशकर)
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जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे
संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे
ऊपर लिखे हजरत जयपुरी के शब्दों को लता मंगेशकर जी ने अमर कर दिया। ऐसे ही हजारों गाने हैं जिनको अपनी आवाज देकर उन्होंने जिंदा किया है। इनकी जीवनी आपको संगीतमय दुनिया के पीछे की दास्ताँ बताएगी जिन्हें सर्वाधिक गाने के लिए 'गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड' भी दिया गया है। 2001 में इन्हें 'भारत रत्न' से भी अलंकृत किया गया। लता जी के जीवन को समीप से देखना हो तो सुदर्शन भाटिया द्वारा लिखित यह जीवनी आपको पसंद आयेगी। यह पुस्तक आपको किस्से-कहानियों की तरह गुनगुनाती चली जाएगी, यह आपको पता भी नहीं चलने देती कि आप पुस्तक पढ़ रहे हैं, ऐसा लगेगा मानो आप किस्से सुन रहे हैं। लता जी के बारे में सुनना और पढ़ना हर पाठकगण के लिए सुखदाई हो सकता है क्योंकि इतनी महान हस्ती के बारे में जानना और समझना अपने आपको और समृद्ध करने जैसा है। इसी आशा के साथ इस पुस्तक को पाठकगण को सौंपते हैं।
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Bharat Ratna Lata Mangeshkar (भारत रत्न लता मंगेशकर) - Sudarshan Bhatia
हर दम महका करती हैं लता क्योंकि वह जिंदा हैं
भगवान श्री राम को जब अपनी लीला त्यागने का समय आया तो वह अयोध्या से सरयू नदी जा पहुँचे और जल समाधि ले ली, वह भगवान विष्णु के श्री चरणों में पहुँच गए, जिनके वह अवतार थे। उन्होंने शरीर त्यागने का वही तरीका अपनाया जो उनके अनुज श्री लक्ष्मण ने अपनाया था।
श्री कृष्ण एक खूबसूरत बगिया में एक पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे। दूर से एक शिकारी ने उनके पाँव में चमकती मणी को किसी जंगली जानवर की आँख समझकर विष से सना बाण मारा और... शीघ्र ही रोता हुआ अपना सिर पीटता हुआ वह जब भगवान के सम्मुख पहुँचा तो उन्होंने थोड़ी सी आँखें खोली और कहा कि वह अविलम्ब भाग कर अपनी जान बचा ले। मैं तुम्हें क्षमा करता हूँ। भगवान श्री कृष्ण अपना पार्थिव शरीर त्याग कर ईश्वर धाम पहुँच गए।
स्वामी दयानन्द सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक को उनके रसोइये ने शीशा पीस कर उनके दूध में मिला दिया और उन्हें पिला दिया। उनके सारे शरीर में घाव हो गये और बहुत पीड़ा झेलनी पड़ी। उन्होंने भी अपने तकिए के नीचे से कुछ रुपये रसोइए को दिए और कहा कि वह भाग कर अपनी जान बचा ले, मैं तुम्हें क्षमा करता हूँ।
स्वामी विवेकानन्द अंतिम कुछ समय अनेक बिमारियों से घिर जाने पर भी सबका मार्गदर्शन करते-करते राम को प्यारे हो गए। छोटी आयु में ही चल बसे। अनेक ऐसे उदाहरण हैं कि अवतारी पुरूष, बड़े-बड़े तपस्वी ऋषि, मुनि अपना कार्य पूरा कर इस दुनिया से चलते बने। उन्होंने अपनी कम या अधिक आयु का जरा भी ध्यान नहीं किया। प्रभु से मिला कार्य और प्राप्त स्वासों के पूरा होते ही चल बसे। उनके अनेक नेक कार्यों के लिए सदैव याद किया जाएगा। स्वर्गीय होकर भी आगामी पीढ़ियों के हित में जन कल्याण कर रहे हैं।
अवतारों ने माँ सरस्वती का अंतिम पूजन कर, सांसारिक लीला खत्म कर दी और जा पहुँची प्रभु के चरणों में।
जिस प्रकार त्रेता युग में हुए श्री राम, द्वापर युग में हुए श्री कृष्ण कलियुग में हुए महर्षि दयानन्द सरस्वती तथा स्वामी विवेकानन्द अपने पार्थिव शरीर को त्याग कर चल गए। किन्तु कोई भी सामान्य सा व्यक्ति भी नहीं मान सकता कि वे इस दुनिया में सर्वत्र उपस्थित नहीं हैं। उनके कार्य, उनकी कृपाएं तथा चमत्कार ही उन्हें जीवित रखे हैं। युग बीतते रहे मगर उनकी उपस्थिति को कभी किसी ने नकारा नहीं। उनकी पूजा, अर्चना, उनके नाम का सुमिरन, उपस्थिति का सच्चा अहसास सभी को इन्हें सिद्ध हैं। ठीक इसी तरह माँ सरस्वती के अवतार लता मंगेशकर का जीवन पूर्ववत विद्यमान देखा जा रहा है। वे अपने नेक कार्य, अपनी सदाबहार आवाज़ और अपने अविस्मरणीय आशीर्वाद से लोंगों के कार्य साधने वाली लता दीदी को हर कोई ज़िदा मान कर चल रहा है। उनका यह विश्वास इसलिए भी सरल हैं क्योंकि अपने 92 वर्ष के सांसारिक जीवन काल में लता जी ने एक से अधिक बार अपने अमर होने के संकेत किए। उनके इस संकेत पर अनेक विद्वानों ने अपनी मोहर लगा कर इन्हें अमर होने की बातें कहीं। उनकी आवाज़ आज भारत ही नहीं अनेक देशों में हर दिन, हर पल सुनी जाती हैं। संगीत प्रेमी सोने से पूर्व तथा प्रातः उठते ही उनकी धीमी-धीमी मधुर आवाज़ सुने बिना नहीं रह सकता।
माँ सरस्वती का अवतार मानी जाने वाली लता मंगेशकर भी उसी प्रकार जिंदा हैं तथा जिंदा रहेंगी जिस प्रकार भगवान विष्णु के अवतार आदि।
आप भी सहमत होंगे
हमारी इस बात से आप भी जरूर सहमत होंगे कि किसी भी प्राणी को ज़िंदा रखते हैं उसके किए गए काम, समाज के प्रति दिया गया योगदान तथा अच्छे कर्मों के बल पर वह सदा-सदा जीवित रहते हैं। लोग उसके कर्मों को नहीं भूलते। उसके लिए अच्छे तथा अनुकरणीय काम ही उसे अमर कर देते हैं। लता की पिता मात्र 13 वर्ष की आयु में चल बसे और इस भोली-भाली बच्ची ने अपनी विधवा माँ तथा अन्य तीन बहनों तथा एक भाई की पूरी ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर लेकर उनका लालन-पालन बहुत अच्छी शिक्षा तथा वृद्ध माता के दवा-दारू के लिए जिस प्रकार पैसे जुटाए और परिवार जनों को किसी के आगे हाथ फैलाने का मौका नहीं दिया और वह संघर्ष कर आगे बढ़ती रहीं।
कमजोर आर्थिक स्थिति... बेचे माता के गहने
इन्हें अपने काम से, अभिनय से, गीतों से अभी पैसा नहीं आ रहा था। उन्हें पहला मेहनताना मात्र 25 रुपये मिला था। घर में दो वक्त की रोटी के लिए कभी चूल्हा जलता तो कभी नहीं। किन्तु इस एक अकेली लड़की ने हिम्मत नहीं हारी। अपनी माता के आभूषण भी बेचने लगीं क्योंकि किसी से कुछ मांगना उसे बिल्कुल पसंद नहीं था।
पिता ने जब अपने प्राण त्यागे तब इस बालिका की आयु केवल 13 वर्ष थी। घर में पिता की कोई संचित राशि नहीं थी। पिता ने भी अपनी पत्नी के कुछ आभूषण अपने समय में बेच दिये थे। बहुत कठिन समय से गुजर रहा था यह परिवार।
लौटाए जेवर माता को
लता मंगेशकर ने जब माता के जेवर बेचे, यह प्रण किया कि वह इन्हें उनके लिए नए आभूषण बनवा कर देगी। जब उनके गीतों तथा अभिनय से पैसे आने लगे और घर चल निकला तो लता जी ने माता के लिए नए जेवर बनवा कर उन्हें दिए। भले ही लम्बा समय बीत चुका था।
अविवाहित रहीं जीवन भर
अपनी 3 छोटी बहन, एक भाई और वृद्ध माता की उन्हें बहुत चिंता थी। उन्हीं के लिए अपना सर्वस्व लगा कर आगे बढ़ रही थी। उनके भोजन, दवा का लाना, यह सब लता ने किया। अपने बहन तथा भाई को पाँवों पर खड़ा किया। उनके विवाह किए। उन्हें समाज में सिर उठाकर चलने योग्य बनाया। किन्तु जब भी लता के लिए रिश्ता आता वह साफ मना कर देतीं। कहतीं कि यदि मेरी बहनों और भाई के विवाह सम्पन्न हो जाएं तो यही बहुत हैं उनके लिए। रिश्ता लाने वालों को कह भी देती कि मैं तो कभी भी शादी नहीं करूँगी, मगर यदि आप मेरी किसी बहन को उपयुक्त समझते हैं तो इसकी बात उसी से करें।
बहुत सम्मानजनक हो चुका था यह परिवार
यहाँ बता दें कि लता जी का अनाथ परिवार किसी से कुछ भी नहीं मांगता। नमक और पानी से अपनी रूखी-सूखी रोटी खाकर भी संतुष्ट था। सभी बहनों तथा भाई ने उनका साथ देकर अच्छी शिक्षा ग्रहण कर कुछ न कुछ अर्जित करना शुरू दिया। लता जी के अंतिम दिनों में यह बात सामने आई कि उसकी बहनें तथा भाई सभी पूरी तरह सैटल हो चुके थे। गरीबी के दिन लता जी तथा बाकियों के प्रयत्नों से पहले ही लद चुके थे। लता जी की अपनी सम्पत्ति भी 370 करोड़ रु. आंकी जा चुकी हैं। बहुत ही सम्मान जनक परिवार था यह इसके लिए लता जी का संघर्ष, उन का त्याग, उनकी मेहनत ही जिम्मेवार हैं। ऐसी अनाथ परिवार की मुखिया को बार-बार नमन करने को करता है जिसे देश ही नहीं अनेक अन्य देश तथा वहाँ के बाशिंदे सराहते नहीं थकते। लता जी की आवाज व त्याग ने उनका स्तर बहुत ऊँचा कर दिया।
कुछ लोग जिंदा भी मुर्दा समान
कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने जीवित रह कर भी ऐसा कोई काम नहीं किया जिसके लिए उन्हें उनके जीवन काल में तथा मृत हो जाने पर भी न कोई चाहता है, न पूछता है तथा उनके विचार भी निन्दनीय ही होते हैं। उन का जीवित रहना और मर जाना - दोनों एक समान हैं। समाज के लिए वे लोग क्या पाएँगे जो कि अपने परिवार तथा अपने पर आश्रित लोंगो के प्रति भी आँखे मूँद लेते हैं। पिता है तो सन्तान की कोई चिन्ता नहीं। पत्नी है तो उसे मारते तथा रूलाते रहते हैं। बाज़ार से कुछ भी उधार लेकर, फिर उस ओर जाना ही छोड़ देते हैं। स्वयं कितना पढ़े लिखे हैं, इसे तो छोड़िए, अपने बच्चों को शिक्षित कर अपने पाँवों पर खड़ा करने तक की कभी नहीं सोची। वे भी पिता से कुछ सीख नहीं पाते, बल्कि जितना सीखते हैं वह सब उनकी राहों में रोड़ा बन जाता है। वे नहीं सोचते कि उनके कर्त्तव्य, दायित्व क्या हैं? और क्या उन्हें पूरा भी करना हैं या नहीं।
ऐसे लोग जब जिंदा हैं तो भी मर हुए समझें। उन्हें उनके जीवन के काल में भी कोई नहीं पूछता, फिर मर जाने पर तो कहेंगे कि चलो धरती पर से बोझ गया। वे कभी समाज का हिस्सा थे कोई नहीं जान पाता।
वर्ल्ड कप जीता
जहाँ तक लता जी की बात है, उनके क्या कहने। उन्होंने केवल अपने परिवार को इज्ज़त दी बल्कि समाज के कई वर्गों का बहुत उपकार किया। जहाँ राशन, पानी, कपड़ा चाहिए वह दिया, जहाँ आर्थिक मद्द चाहिए वहाँ वह दी। क्रिकेट प्लेयर का 1983 में कपिल देव के प्रयासो से वर्ल्ड कप जीत पाना कोई छोटी सी घटना नहीं। आप इस महान, विश्व प्रसिद्ध गायिका का लगाव देखिए। जहाँ कहीं भी इन्टरनेशल मैच होते, वहाँ पर लता जी के लिए दो टिकटें - दो सीटें रिजर्व रहतीं।
लता की अमरता
यह जो 1983 में भारतीय टीम ने विश्व कप जीता इसके लिए लता जी ने निर्जल व्रत रखा था। वेस्ट इंडिज़ की हार तथा भारत की जीत हो, ऐसी कामना की थी। जितनी देर मैच चला वह बैठी - बैठी मंत्रों का उच्चारण भी करती रहीं। हर स्वास के साथ जीत की कामना करती।
मैच जीत जाने की जितनी खुशी टीम को हुई या भारत वर्ष को हुई, उससे भी अधिक खुशी लता जी को हुई। उन्होंने जीत जाने पर इसे पर्व की तरह मानने के लिए ऐसा कदम उठाया कि टीम के हर सदस्य को एक-एक लाख इनाम में मिल पाया। लता जी की ग्रेटनैस के अनेक किस्से सुने जाते हैं। भले ही दुनिया की नज़रों में उनका पार्थिव शरीर पवित्र अग्नि को सुपुर्द हो गया मगर उनका हर काम, उनकी आवाज़, उनके विचार, उनका जूनियर कलाकारों को भी उत्साहित कर आगे बढ़ते रहने का उपदेश व आर्शीवाद उन्हें अमर किए रहेंगे। लता जी की आवाज़ आने वाली पीढ़ियों के लिए हर दिन, हर घड़ी हर पल सुनने को उपलब्ध रहेगी इन सब बातों ने लता जी को सच में अमर कर दिया है। अमर का सीधा अर्थ है - सदैव विद्यमान। कभी भी खत्म न होने वाला। अतः यह कहना बिल्कुल जस्टीफाईड हो गया कि लता जी अपने कार्यों, अपनी दरिया दिली तथा आवाज़ के कारण अमर हैं - मतलब ज़िंदा हैं। ऐसा कहते हुए हमें गर्व हो रहा है।
अमर हो जाने का संकेत दिया था स्वयं लता जी ने कभी
लता जी का ईश्वर की सत्ता में अटूट विश्वास था। वह तो कहा करतीं कि आप मेहनत करो यदि इसके साथ आप पर प्रभू की कृपा हो जाए तो समझ लें, आप ने बुलंदियां छू लेने की क्षमता पा ली। उन्होंने ईश्वर को अपने गीत-स्वर बार- बार सौंपे। वह जब भी किसी मंच पर गीत गाने को जातीं उनके पांव नंगे होते। वह जहाँ भी होती वहीं अपनी चप्पल उतार कर सर्वशक्तिमान ईश्वर से अच्छा गा सकने की कृपा मांगती। कहने का अभिप्राय यह है कि उनके हर स्वास में ईश्वर का नाम हुआ करता। उनकी दया दृष्टि रहती लता जी पर। भला ऐसी विलक्षण बुद्धि तथा भगवान की सच्ची भक्त पर क्या कोई जिन या भूत हाथ डाल सकता है नहीं... नहीं...।
मेरी आवाज़ ही मेरी पहचान है... याद रहे
उनके शरीर के कण-कण में ईश्वर वास करते थे, करते हैं, करते रहेंगे। उन्होंने अपने लिए कुछ खास नहीं कहा। अपनी मधुर आवाज़ को ही पूरा श्रेय दिया। उनका कहने का अभिप्राय था कि उनकी आवाज़ जहाँ जहाँ सुनी जाएगी, वायुमंडल में गूँजेगी। वह वहाँ जरूर उपस्थित रहेंगी। अब तो आप को भी मानना होगा कि जहाँ कहीं भी, शहरों, गाँवों, बाजार, घरों तथा घरानों में उनकी सुरीली आवाज़ सुनाई देगी, आप समझ लें कि स्वयं लता जी वहाँ पूरी तरह मौजूद हैं।
रहें न रहें, महका करेंगे....
लता जी ने ऐसा भी कहा था कि वह रहें या न रहें, महका करेंगे। अब जब सर्वत्र उनकी हम सुगमता से महसूस कर रहें है तो यह भी कहना होगा कि वह हर व्यक्ति, हर जगह अपनी स्वर के बल पर उपस्थित रहती हैं। जब उन्होंने कह ही दिया कि उनकी आवाज़ ही पहचान है तो जब भी जहां भी आप उनकी आवाज़ सुनते हैं समझ लीजिए कि यह आवाज़ तो है किन्तु यह लता जी ही मौजूद है।
सुर की लता अनंत हैं
किसी ने ठीक ही तो कहा है कि लता जी से जुड़ा सुरों का यह हिमालय पिघलकर नदियों से बहकर सागर में मिलेगा और बादलों का रूप लेकर बरसता रहेगा अनंत काल तक। देश में भी दुनिया भर में भी। सुर की लता अनंत है अच्छे दिन आ जाएंगे तो वह अपनी कमाई से अपनी माता के लिए उतने ही गहने बनवा देंगी जितने बेचने पड़े थे। समय आया और लता जी अपने वचन को पूरा करते हुए माँ को उनके सभी गहने बनवाकर दिऐ थे। इस बात की सबने लता को शाबाशी दी थी।
फ़िल्मों में छोटी भूमिकाएँ
घर की ज़रूरतें पूरी करने के लिए लता जी ने मराठी तथा हिन्दी फिल्मों में छोटी-छोटी भूमिकाएँ करना शुरू कर दिया। इससे उसे जो भी मेहनताना मिलता वह छोटे भाई तथा बहनों के काम लगा। किन्तु यह बहुत कम होता, इसलिए माँ के गहने बेचने पड़े थे।
लता जी ने एक साक्षात्कार में स्वयं कहा था कि फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करने के लिए वह पैदा नहीं हुई। उसका लक्ष्य संगीत था - इसलिए फिल्मों में काम करना बन्द कर दिया।
अभिनय छोड़ने पर उसे और अधिक आर्थिक कष्ट आर्थिक कठिनाईयाँ झेलनी पड़ीं।
लता की शादी हेतु आया रिश्ता
देखने में स्वस्थ, सुन्दर युवावस्था की ओर बढ़ रही लता की शादी के लिए रिश्ते आने शुरू हो गये थे। उन दिनों 12-13 वर्ष की आयु में लड़कियों के रिश्ते हो जाते थे किन्तु लता ने शादी करने से इनकार कर दिया। वह कहती थी कि मैं तो दुल्हन बनकर दूसरे घर चली जाऊंगी। पीछे मेरी माता तथा चार छोटी बहन- भाई का निर्वाह नहीं हो सकेगा। अतः मैं अविवाहित रह कर इन बच्चों के लालन-पालन का ठीक प्रबन्ध कर ही लिया करूंगी। अतः नो मैरिज! मैं अपने ज़िम्मेदारियों से कभी मुँह नहीं मोडूंगी अब तो आप सहर्ष मान लीजिए कि यदि लता जी