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21 Shreshth Lok Kathayein : Haryana (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : हरियाणा)
21 Shreshth Lok Kathayein : Haryana (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : हरियाणा)
21 Shreshth Lok Kathayein : Haryana (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : हरियाणा)
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21 Shreshth Lok Kathayein : Haryana (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : हरियाणा)

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भारत एक विशाल देश है, जिसमें अनेकों सभ्यताओं, परंपराओं का समावेश है। विभिन्न राज्यों के पर्व-त्योहार, रहन-सहन का ढंग, शैक्षिक अवस्था, वर्तमान और भविष्य का चिंतन, भोजन की विधियां, सांस्कृतिक विकास, मुहावरे, पोशाक और उत्सव इत्यादि की जानकारी कथा-कहानी के माध्यम से भी मिलती है। भारत के सभी प्रदेशों के निवासी साहित्य के माध्यम से एक-दूसरे को जानें, समझें और प्रभावित हो सके, ऐसा साहित्य उपलब्ध करवाना हमारा प्रमुख उद्देश्य है। भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव ) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा 'भारत कथा माला' का अद्भुत प्रकाशन।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateJun 3, 2022
ISBN9789391821548
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    21 Shreshth Lok Kathayein - Shyam Sakha 'Shyam'

    1

    गीदड़ और मोर

    एक जंगल में एक मोर और गीदड़ रहते थे। दोनों में बिन बात बेमेल दोस्ती हो गई। मोर को उसके माँ-बाप ने कहा कि यह बेमेल दोस्ती निभेगी नहीं। यह भी बताया कि कहावत है कि ‘नादां की दोस्ती जी का जंजाल। लेकिन जैसे चीकले आजकल माँ-बाप की नहीं सुनते, मोर ने भी नहीं सुनी। एक दिन मोर को कहीं पडा ‘बडबेरी का काकडा’ [बेर की गठली] मिल गया। उसने गीदड़ को दिखलाकर कहा, ‘मैं इसे मिट्टी में बो रहा हूं। इस पर मीठे बेर लगेंगे खाया करूंगा। मोर को बेर बोते देख गीदड़ एक हड्डी का टकडा उठा लाया। उसने भी वहीं पास में हड़ी को मिट्टी में दबा दिया। मोर नदी से चोंच भर पानी लाता और बोये बीज पर डाल देता। गीदड़ था आलसी। वह हड्डी पर मूत्र कर देता और कहता यह पानी व खाद दोनों का काम करेगा। बहुत दिन हो गए, न तो बेर उगा, खैर हड्डी को तो क्या उगना था। एक दिन मोर ने पानी देते हुए कहा, ‘काकड़े सुन, अगर कल अंकुर नहीं फूटा तो मैं पानी देना बंद कर दूंगा। अगले दिन दोनों ने देखा कि जमीन से अंकुर बाहर फूट निकला है। अब गीदड़ ने कहा, ‘हड्डी सुन, कल अंकुर नहीं निकला तो .....। अब हड्डी से अंकुर नहीं निकलना था, सो नहीं निकला। कुछ दिन बाद मोर ने कहा, सुन पौधे, जल्दी बढ़ नहीं तो तुझे उखाड़ फेंकूँगा। बेर जल्दी-जल्दी बढ़ने लगा। कहा तो गीदड़ ने भी मगर हड्डी न फूटी, बढ़ती भला क्या? कुछ दिन बाद मोर ने फिर धमकी दी, ‘बेर सुन, एक सप्ताह में तुझे बेर नहीं लगे तो मैं तुझे जड़ से उखाड़ दूंगा।" होनी की करनी, बेर लगने का मौसम आ गया था। बेर लगने ही थे, लग गए। बड़े-बड़े, लाल, रसीले और मीठे बेर लगे थे। मोर खाता, गीदड़ मांगता तो वह उसे चिड़ाने को कांकड़े [गुठली] फेंक मारता। एक दिन गीदड़ को बहुत गुस्सा आया। उसने टक्कर मार कर बेरी गिरा दी। मोर भी नीचे गिर गया। गीदड़ पहले मोर को खा गया, फिर बेर खाये। वह इतने गुस्से में था कि बेरी के पत्ते तक झरुड़ कर खा गया। खा-पीकर उसे प्यास लगी, तो वह पानी की तलाश में चल पड़ा। वह मस्ती में गाता जा रहा था,

    "मोर खाया, मोर की बड़बेरी खाई,

    पत्ते भी झरुड़ खाये, तन्ने भी के छोडूंगा।"

    चलते-चलते उसे राह में हल चलाता एक किसान मिला। किसान उसे छेड़ते हुए बोला, क्या बक रहा है? मुझे मोर समझ रखा है क्या? मारूंगा सांटा [बैल हांकने का चाबुक], जान निकल जाएगी तेरी।

    गीदड़ बोला,

    "मोर खाया,

    मोर की बड़बेरी खाई,

    पत्ते भी झरुड़ खाये,

    तन्ने भी के छोडूंगा।"

    और वह उस किसान को खा गया। किसान खाकर वह गाता चला,

    "मोर खाया,

    मोर की बड़बेरी खाई,

    पत्ते भी झरुड़ खाये,

    हल चलाता हाली खाया,

    तन्ने भी के छोडूंगा।"

    [हाली = हल चलाता किसान] रास्ते में एक बुढ़िया आरणे चुगती हुई मिली।

    गीदड़ उसके सामने जा खड़ा हुआ और गाने लगा,

    "मोर खाया,

    मोर की बड़बेरी खाई,

    पत्ते भी झरुड़ खाये,

    हल चलाता हाली खाया,

    तन्ने भी के छोडूंगा।"

    बुढ़िया बोली, मारूंगी डंडा, मर जाएगा, भाग यहां से।

    गीदड़ ने झपटा मार कर उसे गिरा दिया और खा गया। अब तो उसे और मस्ती चढ़ गई। गाने में भी एक पंक्ति जोड़ ली।

    "मोर खाया, मोर की बड़बेरी खाई,

    पत्ते भी झरुड़ खाये,

    हल चलाता हाली खाया,

    आरणे चुगती बुढ़िया

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