21 Shreshth Naariman ki Kahaniyan : Chhattisgarh (21 श्रेष्ठ नारीमन की कहानियां : छत्तीसगढ़)
()
About this ebook
Related to 21 Shreshth Naariman ki Kahaniyan
Related ebooks
21 Shreshth Naariman ki Kahaniyan : Chandigarh (21 श्रेष्ठ नारीमन की कहानियां : चंडीगढ़) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Naariman ki Kahaniyan : Gujarat (21 श्रेष्ठ नारीमन की कहानियां : गुजरात) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Lok Kathayein : Uttarakhand (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : उत्तराखंड) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Naariman ki Kahaniyan : Uttar Pradesh (21 श्रेष्ठ नारीमन की कहानियां : उत्तर प्रदेश) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsHindi Ki 11 kaaljayi Kahaniyan (हिंदी की 11 कालज़यी कहानियां) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Lok Kathayein : Madhya Pradesh (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : मध्य प्रदेश) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Balman ki Kahaniyan : Himachal Pradesh (21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां : हिमाचल प्रदेश) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21st Sadi ki 21 Shreshtha Dalit Kahaniyan (21वीं सदी की 21 श्रेष्ठ दलित कहानियां) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Balman ki Kahaniyan : Odisha (21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां : उड़ीसा) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Lok Kathayein : Haryana (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : हरियाणा) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsHindi Ki 21 Sarvashreshtha Kahaniyan (हिन्दी की 21 सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Nariman ki Kahaniyan : Haryana (21 श्रेष्ठ नारीमन की कहानियां : हरियाणा) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Lok Kathayein : Assam (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : असम) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Lok Kathayein : Karnataka (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : कर्नाटक) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसमय और वेदना की रेत पर (काव्य संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Balman ki Kahaniyan : Haryana (21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां : हरियाणा) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsBharat Ke 1235 Varshiya Swatantra Sangram Ka Itihas : Shiva Bairagi ka Pratap Bana Muglon ka Santap Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshtha Balman ki Kahaniyan: Australia (21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियाँ: ऑस्ट्रेलिया) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Yuvaman ki Kahaniyan : Maharashtra (21 श्रेष्ठ युवामन की कहानियां : महाराष्ट्र) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsBharat ke 1235 varshiya sawantra sangram ka itihas : bhag-3 - ghode par ghode tut pade talwar ladi talwaro se Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsGurjar Vansh Ka Gauravshali Itihaas - (गुर्जर वंश का गौरवशाली इतिहास) Rating: 5 out of 5 stars5/521 Shreshth Bundeli Lok Kathayein : Madhya Pradesh (21 श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएं : मध्य प्रदेश) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Yuvaman ki Kahaniyan : Uttar Pradesh (21 श्रेष्ठ युवामन की कहानियां : उत्तर प्रदेश) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsTujhe Bhul Na Jaaun : Kahani Sangrah (तुझे भुल न जाऊँ : कहानी संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Naariman ki Kahaniyan : Tamil Nadu (21 श्रेष्ठ नारीमन की कहानियां : तमिलनाडु) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsभारत एक विश्वगुरु: 1, #1 Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsBharat Ke 1235 Varshiya Swatantrata Sangram Ka Itihas Part-4 Rating: 1 out of 5 stars1/5Bharat Ke 1235 Varshiya Swatantra Sangram Ka Itihas: Bhag-1 Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsManhua Hua Kabir Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsBharat Ke 1235 Varshiya Swatantra Sangram Ka Itihas - Weh Ruke Nahin Hum Jhuke Nahin : Bhag - 2 Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Reviews for 21 Shreshth Naariman ki Kahaniyan
0 ratings0 reviews
Book preview
21 Shreshth Naariman ki Kahaniyan - Snehlata Pathak
श्रीमती शकुंतला तरार
(कवियित्री, लेखिका एवं स्वतंत्र पत्रकार)
जन्म स्थान : तहसील पारा, जिला कोंडागांव बस्तर
(छ.ग.)
शिक्षा : एम. ए. (राजनीति शास्त्र), एल. एल. बी., एम. ए. (हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत), लोक संगीत में डिप्लोमा, पत्रकारिता में डिप्लोमा, उर्दू में डिप्लोमा।
प्रकाशित पुस्तकें-
: बन कैना छत्तीसगढ़ी गीत संग्रह, 2000
: बस्तर का क्रांतिवीर गुन्डाधुर, हिंदी छंद ,
: बस्तर की लोक कथाएं (नवसाक्षर साहित्य),
: बेटियाँ छत्तीसगढ़ की (नवसाक्षर साहित्य),
: हाइकु संग्रह टेपारी(हल्बी),
: चूरी छत्तीसगढ़ी नाटक,
: घरगंदिया छत्तीसगढी कविता संग्रह,
: मेरा अपना बस्तर हिंदी कविता संग्रह
बस्तर चो सुन्दर माटी (बाल साहित्य)
बस्तर चो फुलबाड़ी (बाल साहित्य)
: राँडी माय लेका पोरटा हल्बी गीति कथा-छत्तीसगढ़ी एवं हिंदी अनुवाद सहित -प्रकाशक-साहित्य अकादमी दिल्ली
अक्षर की हो गई सोमारी
बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें, भरा-भरा गोल चेहरा, कानों में कोंडा गांव के बाजार से खरीदा हुआ खिलवां, बालों को तरतीब से कोर कर बाजार से खरीदा हुआ झब्बा मिलाकर बनाया गया बड़ा सा खोपा -----------तथा खोपा के एक ओर पिसवाँ चाँदी के किलिप ------------। रंग-बिरंगे गुंथे हुए फीतों (रिबन) का गजरा,--------- उसकी सुन्दरता को द्विगुणित करने वाले माथे पर मोतियों की माला------ इन सबके ऊपर जो है वह है अद्वितीय सुन्दरता का प्रतीक ठोड़ी के बीचों-बीच बड़ा सा गुदना------------गले में रुपयों की माला---------- तो यह था उसका रूप लावण्य जिसे देख कर बरबस ही लोगों का ध्यान उसकी ओर आकृष्ट हो जाता था यदि कोई घोटुल का गीत गाती, गुनगुनाती तो राह चलते लोगों के कदम उसकी आवाज सुनकर बरबस थम जाते कंठ इतना मधुर था। कोंडा गांव के निकट ही नदी किनारे के एक गाँव में बसने वाली इस वन सुंदरी का नाम था सोमारी बाई। बस्तर बाला होने के नाते खुले वातावरण में पली-बढ़ी हिरनी-सी कुलांचे भरती फिरती थी वह जंगलों में। ऐसा लगता मानो ईश्वर ने सारा सौन्दर्य एक ही इंसान के अन्दर भर दिया हो। इसके अलावा उसकी लगन, मेहनत, जीवन में कुछ करने का जज्बा जुनून देखते ही बनता था।
बात उन दिनों की है जब लोगों के घरों में टेलीफोन भी नहीं हुआ करते थे मोबाईल तो दूर की बात थी वह आँगन बाड़ी की बहनजी के यहाँ चपरासी का काम करती थी। जिसमें बच्चों को नहलाना-धुलाना, साफ-सफाई का काम तथा दलिया बनाकर बच्चों को खिलाना, थोडा व्यायाम फिसलपट्टी में फिसलते बच्चों की देखभाल, समय होने के बाद उन्हें वापस घर तक पहुंचाना यह सब काम था उसका --------सब काम करे हुए भी --- जब बच्चे अनार के अ सीखते तो वह भी मन लगाकर उनके साथ ही ध्यान से सीखने का प्रयास करती। इसी के फलस्वरूप वह कब वर्णमाला सीख गई उसे खुद ही पता नहीं चला। बहनजी ने जब उसकी ललक को देखा तो वे भी उसे बच्चों के साथ-साथ ही सिखाने लगी।
जब वह आँगनबाड़ी के बहनजी को देखती तो सोचती की काश वह भी पढ़ी-लिखी होती तो बहन जी की ही तरह बच्चों को पढ़ाती---- खेलकूद सिखाती, कविता कहानियां सुनाती -----परन्तु उसका यह सपना तो सपना ही है क्योंकि वह पढ़ी-लिखी नहीं है और अब तो वह बड़ी हो चुकी है --- तो भला हो बहनजी का जिसके कारण थोड़ा बहुत लिखना-पढ़ना, बच्चों द्वारा गाए जाने वाली कविताएँ----कहानी सब कुछ सीख चुकी है।
आज जब वह बडी हो चकी है तो भी उसे स्कली बच्चों के साथ रहना,----- उनकी मीठी-मीठी बातें,----- उनका रोना----हंसना सब बहुत भाता। किन्तु सबके नसीब में यह सब कहाँ अब तो वह बड़ी हो चुकी है। आज उसके गाँव में प्रायमरी स्कूल है पांचवीं तक की पढ़ाई होती है। अगर यही स्कूल उसके बचपन में खुला होता तो शायद वह भी कम से कम प्रायमरी तक तो पढ़ लिख लेती। फिर खुद ही से कहती खैर कोई बात नहीं मुझे बहनजी ने अक्षर का ज्ञान तो करा ही दिया है अब मैं अपना नाम भी बिना किसी की सहायता के लिख लेती हूँ फिर मुझे किस बात की चिंता। इसी तरह वह अपने आप को सांत्वना देती।
शाम को जब वह घोटुल गुड़ी जाती तो अपने साथियों को अपनी शिक्षा के बारे में बताती। अपनी सखियों को वहीं गोबर लिपे जमीन में बहनजी से मांग कर लाये हुए चाक के टुकड़ों से अ आ लिखना पढ़ना सिखाती। उसकी सखियाँ भी उसके साथ ही साथ अक्षर ज्ञान सीख रही थीं।
तभी उसके जीवन में कुछ परिवर्तन होने लगा। कहाँ गाँव की अल्हड बाला, जहां घोटुल गुड़ी में ही उनके रिश्ते तय होते हैं। पसंद नापसंद तय होता है उसके जीवन ने करवट बदल ली थी मन के कोने में किसी और के पदचाप की आहट आने लगी थी और यह भी कि वह धीरे-धीरे उसकी ओर खिंची चली जा रही है। दरअसल हुआ यूँ कि शहर से एक नया शिक्षक आया था उनके गाँव में। गाँव आकर उसने बहनजी के पति से अपना मेलजोल बढाया क्योंकि गाँव में कुछ लोग ही पढ़े-लिखे दीखते थे और हर कोई अपने बराबर का आदमी चाहता है बातचीत करने के लिए। बहनजी के पति भी दूसरे गाँव में स्कूल में मास्टर थे रोज साइकिल से स्कूल आना-जाना करते थे वहीं बहनजी के घर पर ही उसकी मुलाकात नए गुरुजी से हुई थी। गुरुजी भी उसे देखकर अवाक् रह गया था। उसकी सुंदरता पर मोहित हो गया था।
देखते ही देखते जान पहचान बढ़ी, यह भी कि वो भी उसे पसंद करने लगा था। दोनों ओर से जब प्यार के अंकुर फूटने लगे तो कल्पनाएँ पगडंडियों में दौड़ने लगीं,---------खेतों में उड़ान भरने लगीं,----------हवा से बातें करने लगीं, ख्वाबों के उड़न खटोले में वह उसे झुलाने लगा। उसे भी ख्वाब देखने में आनंद आने लगा था-------। कहते हैं कि प्यार छुपाने से छुपता नहीं, सच ही था। बहनजी ने भी परख लिया था दोनों के बीच के आकर्षण को। उसने मना करने की कोशिश भी की मगर सोमारी भला कहाँ समझती उसकी आँखों में प्यार का नशा जो छाया था।
गाँव की अल्हड़ वन बाला का ख्वाब तो तब टूटा जब गर्मियों की छुट्टी खतम होने के बाद जुलाई के महीने में स्कूल के खुलते ही गुरुजी सपत्नी गाँव पधारे। दो महीने का इंतजार दु:ख में बदल गया निश्छल हंसी, अल्हड़पन, भोलापन का स्थान मायूसी और मौन ने ले लिया।
एक दिन उसने मौका मिलते ही गुरुजी से छलावे के बारे में पूछ ही लिया। तब उसने भी बड़ी ही चतुराई और उपेक्षा के भाव से कहा ---तुम ठहरी गाँव की अनपढ़-गंवार लड़की न बातचीत का सलीका और ना ही ढंग से कपड़े पहनना, न भोजन बनाने का सलीका। सुनकर अवाक रह गई वह ---जो व्यक्ति हर वक्त उसके रूप-लावण्य की तारीफ करते नहीं अघाता था, उसकी वेशभूषा, उसका श्रृंगार, उसका अटक-अटक कर हिंदी बोलना बस तारीफ, तारीफ और तारीफ----और आज कह रहा है वह अनपढ़-गंवार है ---।
इधर कुछ दिनों से बहनजी देख रही थी कि जब से गर्मियों की छुट्टियाँ समाप्त कर गुरुजी वापस आया है सोमारी हर वक्त गुमसुम-गुमसुम सी रहने लगी है उसकी खिलखिलाहट, उसकी मासूम सी मुस्कराहट न जाने कहाँ खो गई है, जंगल की ना जो हर वक्त अपने मधुर स्वर से जंगल के वातावरण को गुंजायमान करते रहती थी अब खामोश हो गई है। गुमसुम-गुमसुम सी अपने आप में ही खोने लगी है---काम में भी इसका मन नहीं लगता ---तब बहनजी ने कुछ निर्णय लिया और एक दिन उसे अपने पास बिठाकर प्यार से उसका मन टटोला तो वह रोने लगी और सब हाल विस्तार से बताया ---बहनजी ने उसे रोने दिया टोका नहीं ताकि उसका मन हल्का हो जाए ---।
❖ फिर धीरे से पूछा बहनजी ने ----अब! अब क्या करोगी तुम सोमारी।
❖ तब सोमारी ने कहा- ---- क्या करूँगी, जैसा जीवन चल रहा था पहले वैसा ही चलाऊँगी।
❖ बहनजी----और शादी?
❖ सोमारी -----न बाबा ना अभी तो इतना बडा जबरदस्त झटका मिला है और फिर से वही -----नहीं नहीं अब यह सब मुझसे नहीं होगा।
❖ बहनजी ----तो फिर मेरी बातों को गौर से सुनो जो मैं कह रही हूँ उसे ध्यान से सुनो सोमारी।
❖ सोमारी------हाँ बहनजी बताइये न ---।
❖ बहनजी------ देखो तुम मेरे यहाँ काम करते-करते बहुत कुछ अक्षर ज्ञान सीख गई हो तो सरकार ने तुम जैसे बड़े उम्र के लोगों के लिए जो पढ़े लिखे नहीं हैं, प्रौढ़ कक्षा शुरू किया है तुम उस क्लास में जाना शुरू करो और बाद में परीक्षा भी दे देना।
सोमारी ---हकलाने लगी और बोली अभी इस उम्र में पढने जाऊँगी लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे मेरी हंसी नहीं उड़ायेंगे।
बहनजी ---क्यों? क्यों हंसी उड़ायेंगे। तुम्हारे जैसे बड़ी उम्र के लोगों के लिए ही तो यह कक्षा शुरू किया गया है बल्कि तुमको तो खुद जाना चाहिए और अपनी सखियों को भी लेकर जाना चाहिए।
बहनजी के बार-बार समझाने पर वह पढने के लिए राजी हो गई। पहले प्रौढ़ क्लास जाती फिर घोटुल गुड़ी जाकर उसी पढ़े हुए को दुहराती इस तरह वह बहुत जल्दी सीखने लगी। अक्षर ज्ञान तो उसे पहले से था ही,तब बहनजी के प्रयास से वह पांचवी की परीक्षा में बैठी और पास भी हो गई इस बीच उसके घरवालों ने उस पर शादी का दबाव डाला तो उसने किसी तरह बहनजी के माध्यम से ही उन्हें मनाया और देखते-देखते वह कुछ सालों में आठवीं की परीक्षा भी पास हो गई शिक्षित होने की इच्छा शक्ति ने, चाह ने उसे आत्मविश्वास से भर दिया था। गांवों ने विस्तार किया कस्बा नगर का रूप लेने लगे, ----इस बीच गाँव-गाँव में आँगन बाड़ी खोलने के लिए आदेश आया तो बहनजी ने कागजी कारवाई की और उसकी नियुक्ति हो गई फिर क्या कहना था उस दिन वह पहली बार पुरानी वाली सोमारी हो गई थी वह चहकने लगी थी।
इस तरह वह अपनी दृढ इच्छा शक्ति, लगन, परिश्रम से आसपास के लोगों के प्रोत्साहन से, आंगनबाड़ी की आया बाई से आंगनबाड़ी की बहनजी हो गई थी। आज वह अनपढ़ नहीं है अब वह भी छोटे-छोटे बच्चों को शिक्षित करेगी।
वह आज एहसान मानने लगी थी गुरुजी का, जिसकी उपेक्षा से जिसके द्वारा ठुकराए जाने की वजह से वह इस मुकाम पर पहुंची है अन्यथा आज भी वह आया बाई ही बनी रहती। अब वह अपनी शिक्षा से, अपने अक्षर ज्ञान से और सगी बहन से भी ज्यादा अपनों की तरह साथ देने वाली बहनजी के सद्प्रयास से अपने पैरों पे खड़ी थी उसने खुद को अक्षर के लिए समर्पित कर दिया था और उस जैसी गाँव की अन्य बालिकाओं को भी प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से उज्जवल और सुखद भविष्य के लिए ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करने लगी थी। सोमारी अब अक्षर की हो गई थी। उसका चेहरा एक नई आभा से प्रकाशवान हो दमकने लगा था।
शकुंतला तरार
प्लाट नंबर-32, सेक्टर-2, एकता नगर,
गुढ़ियारी, रायपुर (छत्तीसगढ़)-492009
E-mail: shakuntalatarar7@gmail.com
मो.: 9425525681
मीता दास
जन्म स्थान : 12 जुलाई सन 1961, जबलपुर (म. प्र.)।
शिक्षा : बी. एस. सी.।
लेख : हिंदी व बांग्ला भाषा में कविता, कहानी, लेख, अनुवाद और संपादन।
प्रकाशित ग्रन्थ : अंतर मम
काव्य ग्रन्थ, बांग्ला भाषा। नवारुण भट्टाचार्य की कविताओं के अनुवाद, भारतीय भाषार ओंगोने
(अनुवाद हिंदी कवियों का बांग्ला भाषा मे अनुवाद), संग्रहालोये काटा पा
(अग्निशिखर की अनुदित कवितायें), पाथुरे मेये
(बांग्ला काव्य संकलन), काठेर स्वप्न
हिंदी की प्रतिनिधि कहानियों का बांग्ला अनुवाद, जोगेन चौधुरी की दो संस्मरण पुस्तिकाओं का हिंदी अनुवाद, नवारुण भट्टाचार्य, सुकान्त भट्टाचार्य की कविताओं के अनुवाद प्रकाशन की ओर। जोगेन चौधुरी की कविताओं का हिंदी अनुवाद ।
दूरदर्शन और आकाशवाणी रायपुर से प्रसारण ।
हिंदी एवं बांग्ला कहानी एवं कविताओं का लगारत लेखन, एवं रेखांकन का प्रकाशन और संपादन।
कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में लेखन।
सम्मान : खूबचंद बघेल सम्मान, राष्ट्रभाषा प्रचार प्रसार समिति से महात्मा गांधी सम्मान, बांग्ला में- कवि रवींद्र सूर सम्मान। प्रेमचंद अगासदिया सम्मान।
एक और रति विलाप
मधुरा थरथर काँप रही थी भूकंप से कांपती धरती की तरह थरथरा रही थी, लावा भटकता छाती छेद कर निकलने को विकल दिख पड़ता था, झर-झर झरते, कंप-कंपाते, चूर-चूर होते क्षण झर रहे थे। थामे तो कोई क्या थामे --- टूटे क्षण, क्षत-विक्षत कण, धरा से बिछुड़ी धुल की तरह वह सतह पर जम जाना चाहती थी। जिस पर उँगलियों से उकेरी जा सके दोबारा इक नया चेहरा, सौपना चाहती है वह अपनी उंगलियाँ, उन सिद्धहस्त हाथों में जो इसका उपयोग भरपूर कर सके। दो बरस .....पूरे दो बरस ... एक लम्बा समय .... विवाह के बाद आज तक का समय, मुट्टियों से दरकते-दरकते फिसल गए। रीत गई अंजुरी। भटका कोई नहीं बस टक्करे मारते रहे अपनी-अपनी चुनी हुई दीवारों से और लहूलुहान होते रहे। नोचते रहे अपने ही क्षणों के अणु-परमाणु और एक-एक भारी पल लिए घिसटते रहे।
मधुरा कांप रही थी डर से नहीं क्रोध से नहीं वह कांप रही थी क्षोभ से, नहीं कहना चाहिए था, आज जाने कैसे वह मुखर हो उठी थी, वह प्रखर की पीड़ा विगलित दृष्टि अपनी देह पर सह नहीं पाई और शायद तडप उठी और मुखर हो गई थी। कुछ भी कहो दो वर्षों का लम्बा समय ....... प्रखर ने भरपूर साथ दिया, कितनों ने सलाह दी की किसी अच्छे मनोचिकित्सक को दिखाओ, भूत-प्रेत, जिन-जिन्नात, तंत्र-मन्त्र से या झाड़-फूंक करवाकर या किसी पीर-फकीर से गंडा-ताबीज बंधाओ, पर प्रखर को इन बातों से कोई मतलब नहीं था, वह हंसी में उड़ा देता कहता सब बकवास है।
वह सारे दिन मधुरा के स्नेह-मनुहार से तृप्त रहता उसे मधुरा का सुबहसुबह नहा धोकर गीले बालों का पीठ पर खुला छोड़ मांग में चौड़ी सिंदूरी रेखा और कपाल पर लाल सिंदूरी टीका बड़ा भाता। जब मधुरा चाय का प्याला लिए उसके सिरहाने खड़ी होती, उसे हौले से हिलाकर जगाती चाय ठंडी हो जाएगी फिर न कहना मधुरा एक भी काम मेरे मन का नहीं करती, एई ......उठो न ..... माँ कब की जाग चुकी है। प्र ....ख ....र ..
वह कानो के पास आ फुसफुसाती,
फिर से कहो
आँखें बंद किये हुए ही वह भरपूर निगल रहा होता ।
न ऽऽऽ ही
ठीक है होने दो चाय ठंडी
अच्छा ....प्रखर ....बाबू
नहीं
प्र ....ख ......र ........
वह भरपूर ताकत से मधुरा को अपने वक्ष पर खींच लेता, और मधुरा सुधबुध भुला बैठती इसी अदा पर प्रखर सौ-सौ जनम कुर्बान करने को तैयार रहता। वह भूल ही जाता रात का अंधकार जो उसे फिर उसी दलदल में घसीटकर गले तक डुबो देगा।
वह सोचता यह कैसी रातें हैं जो शबनम से नहाकर भी ठंडाती नहीं, वह चाहता मधुरा ठण्ड से सिहरकर उसकी बाँहों में आ सिमटे और वह भरपूर घने काल बैसाखी की आंधी की तरह उस पर बरस पड़े और प्रेम का बीज रोप दे। नर्म जमीन मौजूद है पर जहाँ अंकुरण की संभावना भी भरपूर है, पर क्या यह सम्भव है? पशोपेश में दिन गुजर जाता पर रात की कालिमा न जाने कहाँ से अंधड़ लेकर आती और ज्वार-भाटे की तरह समुद्र की अतल गहराई में जा छिपती। उसका जी अचानक ही बुक्का फाड़कर रोने को हो आता पर आंसू क्या मर्द की आँखों में शोभा देता है, वह अपने बादल आप समेटे छाती से बांध करवट बदल सोया रहता। दिन महीने साल बीते, सब्र का बाँध टूटने को है, ताने भी मिले उसे भरपूर उसने सारे के सारे अपनी ही छाती पर झेले और झेलते-झेलते एक दिन छलनी हो गया।
मर्द भी है या ...............
नहीं ......नहीं .....कोई भी नुक्स नहीं .......
नहीं जी ........कुछ मुडियल है .........
ना ...जी ......ना ....पूरी सनकी, मैंने उस रात उन्हें चीखते-चिल्लाते सुना
क्या कहता है शाहबुद्दीन?
हाँ जी हाँ ,,,, मैं सेंट परसेंट सहीच बोल रहा हूँ
पर साहब जी तो जान न्यूछावर करे फिरे हैं
वो सब ढके-ढकाने की बात रही
नहीं साहब जी तो पूरा मरद ठहरा
इतना तुझे साहब पर कैसे बिसवास ठहरा
ऊऽऽऽ .....से,
ऊ दिन माघ का महिना पड़ा रहा, सुबा के बखत में कोई साधू-संत जनेऊ धर पीला वस्त्र धारण किये जीप से उतर के सीधे बंगले में परवेश करा रहा फिर हमी से साहब बोले रामदीन जरा फूल चन्दन घिसवा लाओ मेम साहब के हाथों से, कहना गुरुदेव आये हैं, हम ठहरे पंडित, जनेऊ धारी घर के महाराज, सारा रसोई हम ही न सम्हालते हैं। अम्मा जी हमार हाथ से ही भोजन करें पर कभी कोई हील-हुज्जत नहीं की उन्होंने। जब मेम साहब चन्दन और फूल ले गुरुदेव जी महाराज जी के सामने पधारी .....गुरुदेव जी ने न जाने क्या मंतर पढ़ा बीबी जी बेहोस ......." अपनी बात कह कर वह चुप हुआ ......फिर एक गहन चुप्पी ...............
फिर साहेब बोले पानी लाओ और हम पानी लेने रसोईघर की और दौड़े। गिलास का पानी धर जब हम कमरे में परवेश किया तो देखत हैं की! मेम साहेब की आँखें लाल-लाल सी हो रही थी, हमे डर लगा रहा इसी से हम निकल आये बाहर क्यूँ की नौकर जात ठहरे .....साहेब का न जाने कैसन मूड ठहरे।
तो स्साले ......इतने दिन चुप काहे रहा!
न ...जी ...न ...., घर की बात जो ठहरी, मालिक अन्नदाता होवे हैं , अपना जनम काहे को खराब करूँ, बाल बच्चेदार जो ठहरा ......
रामदीन दबी आवाज में बकझक कर रहा था। और अपने दोनों हाथों से अपने दोनों कान मरोड़ रहा था।
तुझे क्या सचमुच मेम साहेब पर भूत-परेत का साया दिखे है।
न ऽऽऽ ही ..........हम ऐसन नही न बोले हैं जी पर हम उ बात बता रहे जो हमरे संग घटा रहा।
"चल ...अच्छा मान लिए साहेब पूरा मरद ठहरा