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21 Shreshth Bundeli Lok Kathayein : Madhya Pradesh (21 श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएं : मध्य प्रदेश)
21 Shreshth Bundeli Lok Kathayein : Madhya Pradesh (21 श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएं : मध्य प्रदेश)
21 Shreshth Bundeli Lok Kathayein : Madhya Pradesh (21 श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएं : मध्य प्रदेश)
Ebook135 pages1 hour

21 Shreshth Bundeli Lok Kathayein : Madhya Pradesh (21 श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएं : मध्य प्रदेश)

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भारत एक विशाल देश है, जिसमें अनेकों सभ्यताओं, परंपराओं का समावेश है। विभिन्न राज्यों के पर्व-त्योहार, रहन-सहन का ढंग, शैक्षिक अवस्था, वर्तमान और भविष्य का चिंतन, भोजन की विधियां, सांस्कृतिक विकास, मुहावरे, पोशाक और उत्सव इत्यादि की जानकारी कथा-कहानी के माध्यम से भी मिलती है। भारत के सभी प्रदेशों के निवासी साहित्य के माध्यम से एक-दूसरे को जानें, समझें और प्रभावित हो सके, ऐसा साहित्य उपलब्ध करवाना हमारा प्रमुख उद्देश्य है। भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा 'भारत कथा माला' का अद्भुत प्रकाशन।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateSep 15, 2022
ISBN9789390730384
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    21 Shreshth Bundeli Lok Kathayein - Acharya Sanjeev Varma 'Salil'

    1

    जैसी करनी वैसी भरनी

    बहुत पुरानी बात है। सृष्टि में जीव-जंतुओं का निरंतर विस्तार होता जा रहा था। सृष्टि में जीव-जंतुओं की विभिन्न योनियों की संख्या बढ़ते-बढ़ते चौरासी लाख तक पहुँच गई। जीवों की जनसंख्या बढ़ने साथ-साथ उनके कर्म और कर्मों के परिणामों का सम्यक लेखा-जोखा रखकर उन्हें पुण्य-पाप कर्मानुसार पुरस्कार या दंड देना दिन-ब-दिन ब्रह्मा जी के लिए कठिन होता जा रहा था। कभी-कभी ब्रह्मा जी के गणों से भूल-चूक भी होने लगी थी। अव्यवस्था से संत्रस्त होकर ब्रह्मा जी ने परात्पर परब्रह्म से समाधान हेतु क्षिप्रा नदी के तट पर अवंतिकापुरी (उज्जैन) के अंकपात क्षेत्र में ध्यान मग्न होकर अपनी समस्या का समाधान चाहा। ब्रह्मा जी परात्पर परमब्रह्म के ध्यान में ऐसे लीन हुए कि उनके मुख पर दाढ़ी जम गई। उनके ऊपर जीव-जंतु चढ़ते-उतरते पर उनका ध्यान न टूटता। कभी मेघ गरजते-बरसते, कभी शेर दहाड़ता, कभी नाग फुफकारता, कभी कोई रूपसी खिलखिलाती-नाचती पर ब्रह्मा का तप भंग न होता। ग्यारह हजार वर्ष तक ब्रह्मा जी तपस्या करते रहे तब परमब्रह्म प्रसन्न हुए और ब्रह्मा जी को ध्यान में दर्शन देकर पूछा कि वे क्या चाहते हैं?

    ब्रह्मा जी ने अपनी समस्या बताई और उसका समाधान चाहा। परमब्रह्म ने कहा कि उनकी समस्या का निदान करने वाला पुरुष उन्हें शीघ्र ही मिलेगा। ब्रह्मा जी ने नेत्र खोलकर देखा तो उन्हें अपने सामने एक नीलाभायुक्त कमल नयन श्याम पुरुष दिखाई दिया। उस दिव्य पुरुष के अधरों की मुस्कराहट से ब्रह्मा ने शांति अनुभव करते हुए जानना चाहा। हे तात! आप कौन हैं?

    उस दिव्य विभूति ने उत्तर दिया कि वह सूक्ष्म रूप में हर प्राणी की काया में रहने वाला ‘आत्म तत्व’ है, उसके निकल जाने के बाद काया को ‘काया’ न कहकर ‘मिट्टी’ कहा जाता है और वह काया जिन पंचतत्वों से निर्मित होती है, उन्हीं में मिल जाती है या मिला दी जाती है।

    ब्रह्मा ने फिर पूछा कि उन्हें किस नाम से पुकारा जाए?

    तब उस परमशक्ति ने कहा कि उन्हें हर प्राणी की काया में सूक्ष्म रूप से स्थित होने पर ‘कायस्थ’ कहा जाता है। उनका अपना कोई एक चित्र या आकार नहीं है। हर जीव का चित्र या आकार उनका अपना है। इसलिए सृष्टि रहस्य को जानने वाले उनका चित्र ज्ञात न होने या अज्ञात (गुप्त) होने के कारण उन्हें ‘चित्रगुप्त’ संबोधन देते हैं।

    तब ब्रह्मा ने उन्हें साष्टांग प्रणाम करते हुए पूछा कि आपका कार्य क्या है?

    चित्रगुप्त जी ने ब्रह्मा को शुभाशीष देते हुए कहा कि वे सूक्ष्म जीवन शक्ति हैं। अपनी आधिदैविक और लौकिक शक्तियों से प्राणी द्वारा किये गए कर्मों का निष्पक्षतापूर्वक मूल्यांकन कर उसे उसकी करनी का परिणाम देते हैं।

    ब्रह्मा ने जिज्ञासा की कि चित्रगुप्त जी की कृपादृष्टि पाने के लिए क्या करना चाहिए?

    चित्रगुप्त जी ने ब्रह्मा के प्रश्न का समाधान करते हुए कहा कि प्राणी को सदा सत्कर्म करना चाहिए, दुष्कर्मों से दूर रहना चाहिए, तभी वह मेरी कृपा पा सकता

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