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स्वर्गविभा ऑनलाइन त्रैमासिक हिंदी पत्रिका दिसंबर २०२२: स्वर्गविभा त्रैमासिक हिंदी पत्रिका, #20
स्वर्गविभा ऑनलाइन त्रैमासिक हिंदी पत्रिका दिसंबर २०२२: स्वर्गविभा त्रैमासिक हिंदी पत्रिका, #20
स्वर्गविभा ऑनलाइन त्रैमासिक हिंदी पत्रिका दिसंबर २०२२: स्वर्गविभा त्रैमासिक हिंदी पत्रिका, #20
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स्वर्गविभा ऑनलाइन त्रैमासिक हिंदी पत्रिका दिसंबर २०२२: स्वर्गविभा त्रैमासिक हिंदी पत्रिका, #20

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स्वर्गविभा वेबसाईट पत्रिका पिछले अठारह सालों से, हिंदी जगत के सम्मुख, विनयावत भाव से समुपस्थित है| पत्रिका के दिसंबर 2022 के लिए संदेश देते हुए, मुझे अत्यंत प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है| हमेशा की तरह पत्रिका का यह अंक भी विश्व के विभिन्न देशों के हिंदी प्रेमियों, प्राध्यापकों, अनुसन्धानकर्त्ताओं एवं विद्वानों को अपने विभिन्न सोच के जरिये उनका मार्ग प्रशस्त करेगी| देश-विदेश के साहित्यकारों, ग़ज़लकारों और रचनाकारों की रचनाओं को, एक जगह एकत्रित कर, उन्हें अंतिम रूप देकर, पत्रिका में बाँधकर प्रकाशित करना, बड़ा कठिन और महत्वपूर्ण कार्य है, जिसे स्वर्गविभा पत्रिका करती आ रही है|

विगत दो साल कोरोना महामारी के कारण, यह कार्य अपेक्षाकृत बड़ा चुनौतीपूर्ण रहा, बावजूद यह पत्रिका, निर्विघ्न आप तक पहुँचती रही| कारण, स्वर्गविभा की यह कोशिश रही है कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्रसंघ की सातवीं आधिकारिक भाषा का दर्जा मिले| यह तभी संभव है, जब सभी हिंदी भाषा, भाषाई अनवरत चेष्टा करते रहें| कभी रुकें नहीं, क्योंकि रुकना, ही थक जाना होता है, और, एक थका आदमी, अपनी भलाई की बात नहीं सोच सकता| वह हिंदी की बात कैसे सोच सकता है, जिससे कि हिंदी को गति और प्रवाह मिलती रहे, हिंदी जगत और शेष विश्व के बीच एक सेतु का काम करती रहे|

मैं इस पत्रिका के प्रकाशन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से योगदान करने वालों का आभार प्रकट करता हूँ, और आगे भी इस सहयोग की आशा रखता हूँ| नए साल की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ|

Languageहिन्दी
Release dateDec 16, 2022
ISBN9788195609543
स्वर्गविभा ऑनलाइन त्रैमासिक हिंदी पत्रिका दिसंबर २०२२: स्वर्गविभा त्रैमासिक हिंदी पत्रिका, #20

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    स्वर्गविभा ऑनलाइन त्रैमासिक हिंदी पत्रिका दिसंबर २०२२ - डॉ. तारा सिंह

    प्रधान संपादक

    डॉ. तारा सिंह, साहित्यकार

    संपादक

    चीफ़ ई. (मे.) राजीव  कुमार  सिंह

    सह-संपादक

    आयुष कुमार सिंह

    परामर्श मंडल

    डॉ. तेज नारायण कुशवाहा

    उपकुलपति, बिक्रमशिला विद्यापीठ, भागलपुर

    ––––––––

    स्वर्गीय नृपेन्द्र नाथ गुप्त

    अध्यक्ष, भारतीय भाषा साहित्य समागम, पटना

    डॉ. बी. पी. सिंह

    भूतपूर्व प्राचार्य, आचार्य जे.सी.बोस कोलेज, कोलकाता

    वेब साईट swargvibha.com

    मो. न. 09322991198; 07980853274

    निवेदन:-

    स्वर्गविभा वेबसाईट पत्रिका में प्रकाशित लेखों के विचार, लेखकों के अपने हैं|

    स्वर्गविभा टीम और संपादक मंडल का उनके विचारों से सहमत होना आवश्यक नहीं है|

    संदेश

    स्वर्गविभा वेबसाईट पत्रिका पिछले अठारह सालों से, हिंदी जगत के सम्मुख, विनयावत भाव से समुपस्थित है| पत्रिका के दिसंबर 2022 के लिए संदेश देते हुए, मुझे अत्यंत प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है| हमेशा की तरह पत्रिका का यह अंक भी विश्व के विभिन्न देशों के हिंदी प्रेमियों, प्राध्यापकों, अनुसन्धानकर्त्ताओं एवं विद्वानों को अपने विभिन्न सोच के जरिये उनका मार्ग प्रशस्त करेगी| देश-विदेश के साहित्यकारों, ग़ज़लकारों और रचनाकारों की रचनाओं को, एक जगह एकत्रित कर, उन्हें अंतिम रूप देकर, पत्रिका में बाँधकर प्रकाशित करना, बड़ा कठिन और महत्वपूर्ण कार्य है, जिसे स्वर्गविभा पत्रिका करती आ रही है|

    विगत दो साल कोरोना महामारी के कारण, यह कार्य अपेक्षाकृत बड़ा चुनौतीपूर्ण रहा, बावजूद यह पत्रिका, निर्विघ्न आप तक पहुँचती रही| कारण, स्वर्गविभा की यह कोशिश रही है कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्रसंघ की सातवीं आधिकारिक भाषा का दर्जा मिले| यह तभी संभव है, जब सभी हिंदी भाषा, भाषाई अनवरत चेष्टा करते रहें| कभी रुकें नहीं, क्योंकि रुकना, ही थक जाना होता है, और, एक थका आदमी, अपनी भलाई की बात नहीं सोच सकता| वह हिंदी की बात कैसे सोच सकता है, जिससे कि हिंदी को गति और प्रवाह मिलती रहे, हिंदी जगत और शेष विश्व के बीच एक सेतु का काम करती रहे|

    मैं इस पत्रिका के प्रकाशन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से योगदान करने वालों का आभार प्रकट करता हूँ, और आगे भी इस सहयोग की आशा रखता हूँ| नए साल की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ|

    -आयुष कुमार सिंह

    प्रधान सम्पादकीय

    ––––––––

    स्वर्गविभा वेबसाईट पत्रिका, पिछले 18 सालों से हिंदी को अपनी वैश्विक धमक कायम रखने में, अग्रगामी भूमिका निभाती आ रही है| हमें मालूम है कि हिंदी के प्रति हमारी उदासीनता, हिंदी को पीछे की ओर धकेल रही है| हिंदी समुदाय में, हिंदी के प्रति भावों की

    विविधता के कारण, हिंदी कभी प्रगति-पथ पर अग्रसर होती दिखाई देती है, तो कभी लगता है कि उसके विकास की गति मंद पड़ गई है| हिंदी प्रेमी को चाहिए, अपने इस भाव को इतना विस्तार दे कि हिंदी से विमुख रह रही मानसिकता के आघात से भी हिंदी को बेहतर सुरक्षा मिलने लगे| किसी व्यक्ति की सोच को बदलना मुश्किल तो है, पर असंभव नहीं है|

    हिंदी को, पुष्पित और पल्लवित करने के लिए, हमें

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