Jihad (Novel) : जिहाद (उपन्यास)
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देवबंद के मदरसों में पढ़ाया जाता है कि 'शरीयत में जिहाद दीने-हक की ओर बुलाने और जो उसे कबूल न करे उससे जंग करने को कहते हैं।' जो कि कुरान के कई विद्वानों के मतानुसार गलत है। इसी तरह कुरान की अनेक आयतों की अपने-अपने अनुसार व्याख्या करके कई संगठन भिन्न-भिन्न ढंग से पूरे विश्व में जिहाद चला रहे हैं।
एक विदेशी पत्र में छपे लेख के अनुसार इस समय विश्व में जिहाद तीन रूपों में चल रहा है- पहला हिंसक जिहाद जो कि आतंकवादी समूह चलाते हैं, दूसरा अहिंसक जिहाद, जिसे जाकिर नाइक जैसे धर्म-प्रवर्तक लोग चलाते हैं और तीसरा लव जिहाद जो कि दूसरे का ही एक हिस्सा है। इस उपन्यास में इन्हीं विषयों को कथानक में पिरोया गया है।
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Jihad (Novel) - Pratap Narayan Singh
जबह
( 1 )
शाब्बाश! आखिर यह हत्थे चढ़ ही गया।
तनवर हुसैन की आँखों में अपने शिकार पर झपटते लकड़बग्घे जैसी चमक थी, ले आ, ले आ...आज इसका किस्सा भी निपटा ही देते हैं। बहुत दिनों से परेशान कर रहा था।
अजीत शर्मा के सिर से रक्त बह रहा था। मोटरसाइकिल से उतारकर लड़के उसे घसीटते हुए मदरसे के अंदर उस ओर बढ़े, जिधर तनवर हुसैन अपने दस-बारह लोगों को दंगे की आगे की कार्यवाही के लिए निर्देशित कर रहा था। लड़कों ने अजीत को लाकर तनवर के सामने किसी गट्ठर की भाँति पटक दिया।
जाफराबाद में मुसलमानों की सघन बस्ती के बीच यह मदरसा तनवर हुसैन ने ही तीन साल पहले बनवाया था। अंदर एक अहाता था, जहाँ वे लोग एकत्रित हुए थे। मदरसे की चारदीवारी की ऊँचाई लगभग आठ फुट रही होगी। गली में आते-जाते लोग अंदर नहीं देख सकते थे। सामने बिना खिड़कियों वाला एक ऊँचा मकान था। दाएँ और बाएँ दोनों ओर चारदीवारी से लगभग सटे हुए कई ऊँचे-ऊँचे पेड़ थे।
कैसे पकड़ में आया रे?
तनवर ने पूछा।
खजूरी पुलिया के पास मिल गया था पार्षद जी। हम लोग लौट रहे थे तो अचानक नजर पड़ गई...
मजहर ने ऐसे बताना आरंभ किया जैसे किसी प्रतियोगिता में विजयी होकर लौटा हो, यह तो भाग ही जाता, लेकिन तुफैल ने ऐसा पत्थर मारा कि अल्लाह के फजल से इसकी खोपड़ी ही खुल गई और वहीं चकराकर गिर पड़ा साला।
उसके मुख पर विजयी मुस्कान थी, जब तक दोबारा उठकर भाग पाता तब तक तो इसे हमने चूहे की तरह दबोच लिया।
इसके साथ कोई और भी था?
हाँ, एक आदमी था...लेकिन इसे पत्थर लगते ही वह भाग गया। हमें नहीं पहचान सकता है। हमने मुँह पर कपड़ा बाँधा हुआ था।
चल, कोई बात नहीं...
कहते हुए अजीत के पास तनवर उकड़ूँ बैठ गया, क्यों बे सरकारी कुत्ते! तेरी जाँच पूरी हो गई?
उसने अजीत के बालों को पकड़कर झकझोरा।
देखिए, आप यह ठीक नहीं कर...
अजीत के वाक्य पूरा करने से पहले ही तनवर का एक जोरदार थप्पड़ उसकी गाल पर पड़ा। तड़ाक की आवाज गूँज उठी।
देखो इस हरामजादे को...
उसने अपने साथियों की ओर एक दृष्टि फेरते हुए कहा, अभी भी सरकारी भाषा बोल रहा है।
फिर वह खड़ा हो गया और दाँत पीसते हुए आगे बोला, स्साले! तू और तेरी सरकार मुझे रोकेगी...!
कहते हुए उसने अजीत की पेट में जोर से एक लात मारा। वह पीड़ा से बिलबिला उठा।
दो पल बाद तनवर उसकी ओर झुका। फिर से बालों को पकड़कर उसका मुँह ऊपर की ओर उठाया, ...तू यही जाँच कर रहा था न कि मेरा सम्बंध बांग्लादेशी जिहादियों से है कि नहीं...चल आज तुझे बता ही देता हूँ...हाँ, है मेरा सम्बंध...क्या कर लेगा तू...और क्या कर लेगी तेरी कमीनी सरकार...
कहते हुए उसने अजीत के सिर को जोर से झकझोरा और फिर एक ओर झटका देकर छोड़ दिया। वह भूमि पर लुढ़क गया।
अब तो बेटा हमें कोई ताकत नहीं रोक सकती है...न पुलिस, न प्रशासन, न सरकार। तेरी हिजड़ा कौम में तो दम है नहीं...तुम लोग तो सालों सदियों तक हमारे गुलाम रहे। जब हम लोग मुट्ठी भर थे तब तुम लोग कुछ नहीं बिगाड़ पाए, फिर आज तो अल्हम्दुलिल्लाह हम तीस-पैंतीस करोड़ हो गए हैं।
तभी एक युवक दौड़ता हुआ आया और बोला, पार्षद जी! जाफराबाद और मौजपुर में पुलिस घर-घर तलाशी ले रही है।
कोई बात नहीं, लेने दे। बाहरी लड़के तो सब भाग गए हैं न?
हाँ, सब सुबह ही निकल गए थे।
और जो बंगाली औरतें बुलाई गई थीं वे?
वे सब शाहीन बाग के धरने में शामिल हो गई हैं।
फिर क्या चिंता है!
खबर मिली है कि पुलिस आपके घर पर भी जाने वाली है।
इस बात से तनवर थोड़ा परेशान हो उठा। उसने किसी को फोन लगाया, अस्सलामु अलैकुम!
सलाम...
मुझे पता चला है कि मेरे घर पर पुलिस जाने वाली है।
हाँ, आप घर से दूर ही रहिए...बल्कि कुछ दिनों के लिए कहीं चले जाइए।
आप पुलिस को रुकवा नहीं सकते?
नहीं, मामला बहुत बिगड़ चुका है।
उधर से आवाज आने के साथ ही फोन कट गया।
हरामजादा...
क्रोध से दाँत पीसते हुए उसने पास में पड़े अजीत को फिर से एक लात लगाई। इस नई सूचना से उसका क्रोध और अधिक बढ़ गया था। साथ ही चिंता भी। फिर वह सबसे बोला, यहाँ अब बहुत देर तक रुकना ठीक नहीं होगा। घंटे-दो घंटे में सब लोग यहाँ से निकल चलो।
इसका क्या करें?
मजहर ने पूछा।
आस्तीन उलट और जबह कर दे साले को...
वह झल्लाते हुए बोला। उसके बाद सभी पंद्रह-सोलह लोग अजीत के चारों ओर खड़े हो गए। अजीत पीड़ा में था, फिर भी अपनी शक्ति एकत्रित करके बोला, मैंने तो वही किया जो सरकार ने कहा। मेरी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है। मैं तो बस अपनी नौकरी कर रहा था।
उसका मुख भय से श्वेत हो चुका था।
हम भी वही करने जा रहे हैं...
मजहर एक बड़ा सा छुरा अपने पैंट से निकालते हुए नाटकीय ढंग से बोला, जो हमारे रसूल ने फरमाया है बस उसी को पूरा करेंगे। हमारी भी तुमसे कोई दुश्मनी नहीं है।
हलाल करेंगे तो यह पाँच मिनट में ही मर जाएगा...
उस्मान बोला, पिछली बार हवालात में इसकी सरकारी पुलिस ने मेरे शरीर पर बहुत डंडे तोड़े थे, उसका बदला कौन चुकाएगा!
देखो, तुम लोगों को जो कुछ भी करना है एक घंटे के अंदर कर लो।
तनवर कुर्सी पर बैठते हुए बोला।
छुरा इसकी गर्दन पर नहीं, जिस्म पर चलाते हैं, थोड़ा-थोड़ा काटते हैं। जब अंतड़ियाँ बाहर आएँगी तो मजा आएगा।
शौकत ने कहा।
ये बिलकुल ठीक कहा तुमने।
लुकमान चहका, उसके लिए पहले इसके कपड़े उतार दो। छुरा कहाँ घुसता है दिखना चाहिए। गरम-गरम खून देखने का अपना ही मजा होता है।
वो भी एक काफिर का हो तो क्या ही बात है!
दो तीन लड़के अजीत का शर्ट उतारने के लिए नीचे झुके।
वह हाथ जोड़ते हुए गिड़गिड़ाया, तुम्हारे खुदा का वास्ता, मुझ पर रहम करो। मेरे दो छोटे-छोटे बच्चे हैं।
कहते हुए उसकी आँखों से आँसू झरने लगे।
तू उनकी चिंता मत कर, हम सबको सँभाल लेंगे। वैसे वे भी तो काफिर ही हैं न...जीकर क्या करेंगे!
कहते हुए उस्मान ने अजीत का बनियान उसके मुँह में ठूँस दिया और शर्ट से मुँह को बाँध दिया, जिससे कि उसकी आवाज दूर तक न जा सके। फिर उसका पैंट भी उतार दिया। उसके बाद उसे घसीटकर चारदीवारी के पास ले गए और वहाँ खड़ा करके एक हाथ पेड़ से और दूसरा नल से बाँध दिया।
बिस्मिल्लाह कौन करेगा?
मजहर ने पूछा।
सबसे छोटा अतीक है। बिस्मिल्लाह उसे करने दो।
तनवर कुर्सी पर बैठा इस पैशाचिक खेल का आनंद ले रहा था।
मजहर ने छुरा अतीक को पकड़ा दिया। अतीक छुरा लेकर नग्न बँधे हुए अजीत के पास पहुँच गया। अजीत का शरीर भय से काँप रहा था। आँखें पूरी फैली हुई थीं और मुँह से ऊँ ऊँ की आवाज निकल रही थी।
"बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम¹... कहते हुए अतीक ने छुरे को पूरी शक्ति से अजीत के पेट के निचले हिस्से में वार किया। साथ ही कुरान की आयत भी पढ़ी,
इन्नल काफिरीना कानू लकुम अदुव्वम मुबीना²..."
छुरे का फल आधे से अधिक अंदर घुस गया। अजीत का पूरा शरीर पीड़ा के आधिक्य से बिलबिला उठा और वह शक्तिहीन होकर बँधे हाथों के सहारे झूल गया। बँधे हुए मुँह से जोर से ऊँ...ऊँ की आवाज निकली, किंतु चीख गले में घुटकर रह गई। जब अतीक ने छुरा बाहर खींचा तो उसके साथ रक्त का फव्वारा सा फूट पड़ा। अतीक का हाथ रक्त से सन गया। उसने छुरा उस्मान को पकड़ा दिया।
"या ऐयुहल लज़ीन आमनू इन्नमल मुश्रिकूना नजसुन फला यक़्रबुल³..." कुरान की एक अन्य आयत पढ़ते हुए उस्मान ने अजीत के पेट में छुरा पूरा घुसेड़ दिया। जब खींचा तो साथ में अंतड़ियाँ बाहर लटक गईं।
वाह उस्मान, तुझे भी आयतें याद हैं क्या?
मजहर ने हँसते हुए कहा, तुझे तो याद होती ही नहीं थीं। उसके लिए मौलवी साहब की छड़ी खूब खाई है तूने।
ऐसी वाली याद हैं।
उस्मान ने अजीत के पैंट से, जिससे उसका बाँया हाथ बाँधा गया था, छुरे और हाथ को पोंछते हुए गर्व से कहा। फिर उसने छुरा रफीक को दे दिया।
"मल’ ऊनीन ऐनमा सुक़िफू उखिज़ू व क़ुत्तिलू तक़्तीला⁴..." तीसरा वार हुआ।
"ईन्नकुम व मा त’बुदून मिन दूनिल लाही हसबु जहन्नम अंतुम लहा वारिदून⁵" चौथा वार हुआ।
इसी तरह पवित्र कुरान की आयतें पढ़ी जाती रहीं और छुरे को अजीत के शरीर में घोंपा जाता रहा। अंतह में फैले हुए घृणा और द्वेष के कारण एक बार में उन लोगों का मन नहीं भरा तो मृत शरीर में दोबारा-तिबारा छुरा मारते रहे।
कुल पचास-साठ बार छुरे का वार किया गया। आँत, फेफड़ा, यकृत इत्यादि समस्त भीतरी अंग शरीर के बाहर झूलने लगे। अजीत का शरीर ठीक वैसा ही दिखने लगा जैसा कि कसाई के द्वारा हलाल किए जाने के बाद कोई बकरा हुक पर टँगा हुआ दिखता देता है। नीचे रक्त की धार बहकर नाली में जा रही थी।
यह क्रोध आकस्मिक नहीं उपजा था बल्कि सदियों से मन, वचन और कर्म के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होता चला आया था। पंद्रह सौ वर्ष पहले एक ऐसा तेग चमका था जिसके समक्ष बहुतों ने घुटने टेक दिए थे और फिर उस तेगधारी की हर बात को आकाशीय आदेश मानकर उसका पालन करने लगे थे। साथ ही जो उनसे सहमति न रखे उसके जीवन की उपयोगिता और उसके प्रति किए जाने वाले व्यवहार को उन्होंने अपने अनुसार परिभाषित कर लिया था।
( 2 )
आप यहाँ क्यों आ गए?
तनवर को अपने बंगले पर देखकर विधायक सैफुद्दीन थोड़ा परेशान हो उठे, मैंने फोन पर कहा था न कि कहीं और चले जाइए।
अजीत शर्मा के शव को एक नाले में डलवाने के बाद मजहर, तुफैल, उस्मान और अतीक के साथ तनवर हुसैन सैफुद्दीन के यहाँ आ गया था। सैफुद्दीन राज्य सरकार में खाद्य और आपूर्ति मंत्री थे। वे इस्लाम की सेवा तो करना चाहते थे लेकिन तनवर की तरह नहीं। रक्तपात से उन्हें परहेज था, इसलिए तनवर को बहुत पसंद नहीं करते थे। लेकिन प्रत्यक्ष रूप से विरोध भी नहीं कर पाते थे। क्योंकि तनवर का बड़े इमाम से सीधा संपर्क था।
"मंत्री जी! आप लोग ही मेरे लिए कुछ नहीं करेंगे तो कौन करेगा?...और मैंने जो कुछ भी किया, अपने लिए तो किया नहीं...दीन⁶ के लिए किया, अपनी कौम के लिए किया। आप सबकी उसमें सहमति थी।"
मैं यह नहीं कह रहा कि आपने कुछ गलत किया। हमें आप पर गर्व है और जहाँ तक होगा मैं आपकी सहायता करूँगा। लेकिन पहले आपका सुरक्षित रहना जरूरी है।
आप ही बताइए कि मैं क्या करूँ?
वारंट निकलने से पहले आप राजधानी की सीमा पार कर जाइए। किसी भी राज्य में जहाँ आपको सुरक्षित लगे, चले जाइए। आपके जानने वाले तो होंगे ही न?
हाँ, जानने वालों की कमी नहीं है, लेकिन इस तरह से मेरा भाग जाना क्या उचित होगा? मैं एक निगम पार्षद हूँ और मेरे विरुद्ध किसी गलत काम का सबूत भी नहीं है। आप पुलिस की कार्यवाही को ढीला नहीं करवा सकते हैं?
आप पार्षद तो हैं लेकिन इस समय निलंबित हैं। जहाँ तक सबूत की बात है तो पुलिस को आपके घर की छत से शराब और कोल्ड ड्रिंक की खाली बोतलें तथा ईंट-पत्थरों का ढेर मिला है...साथ में तेजाब, पेट्रोल और डीजल भी।
सैफुद्दीन ने समझाते हुए कहा, देखिए पुलिस अगर राज्य सरकार की होती तो मैं आपको राजधानी से बाहर जाने को नहीं कहता। लेकिन आपको पता ही है कि केंद्र सरकार की पुलिस पर राज्य सरकार के मंत्रियों का बहुत असर नहीं पड़ता है। ऊपर से पुलिस के बड़े अधिकारियों को चोटें आयी हैं... एक इंस्पेक्टर और सिपाही भी मारा गया है। मीडिया इस बात को बहुत तूल दे रही है। इसलिए जब तक यह मामला ठंडा नहीं हो जाता आपका राजधानी से दूर रहना ही उचित होगा।
मेरे खिलाफ कोई वारंट तो निकला नहीं है।
हाँ, अभी तक नहीं निकला है, लेकिन जल्दी ही सबूत मजिस्ट्रेट के सामने पेश करके पुलिस वारंट निकलवा लेगी।
हूँ...यानी कि मुझे भगोड़ा बनकर रहना पड़ेगा।
इसमें आपको आपत्ति नहीं होनी चाहिए। दीन के काम के लिए आपका सुरक्षित रहना जरूरी है।
ठीक है...चलता हूँ...खुदा हाफिज।
फिर तनवर ने अपने लड़कों से कहा, चल भाई यहाँ से।
खुदा हाफिज!
सैफुद्दीन ने उसे विदा किया, अल्लाह ने चाहा तो बहुत जल्दी ही आपकी वापसी होगी। काफिरों को सबक सिखाकर कौम के लिए आपने बहुत अच्छा काम किया है। मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूँगा।
मजहर, तुफैल, उस्मान और अतीक के साथ तनवर अपनी गाड़ी में जाकर बैठ गया। गाड़ी पूर्व की ओर चल पड़ी।
उपद्रव कल दोपहर से ही आरंभ हो गया था और रात भर चलता रहा। दूसरे समुदाय के लोगों के साथ-साथ तनवर हुसैन के नेतृत्व में मुसलमान उपद्रवियों ने पुलिस के ऊपर भी प्रहार किया। ईंट, पत्थर, बोतलें, पेट्रोल बम इत्यादि सब फेंके गए। स्त्री-पुरुष दोनों ही सम्मिलित थे। पुरुष सड़कों और गलियों में लाठी, बन्दूक, तलवार तथा अन्य हथियार लेकर डटे हुए थे, तो स्त्रियाँ छतों से पत्थर और बोतलों में तेजाब भरकर फेंक रही थीं। किशोर लड़के-लड़कियाँ बोतलों में पेट्रोल बम बनाकर मार रहे थे।
आज दोपहर के बाद से पुलिस ने जाफराबाद, मौजपुर, सीलमपुर इत्यादि क्षेत्रों की गहन छानबीन आरंभ कर दी थी। जहाँ-जहाँ उपद्रवियों के मिलने की संभावना थी, घर-घर तलाशी ली जा रही थी। पुलिस को बाहरी लोगों के आने की भी आशंका थी ।
तनवर हुसैन के घर भी पुलिस पहुँच गई। उसकी छत पर शराब, शीतल पेय तथा अन्य पदार्थों की खाली बोतलों और ईंट-पत्थरों का ढेर मिला। सबूत मिलने के बाद पुलिस जब तक उसे पकड़ने के लिए वारंट निकलवा पाती, वह राजधानी से बाहर जा चुका था।
( 3 )
विधायक जी! एक बुरी खबर है।
फोन पर दूसरी ओर से आवाज उभरी।
क्या हुआ?
घोंडा के विधायक अखिल मिश्र ने पूछा।
शाहदरा विधान सभा क्षेत्र में जाफराबाद, मौजपुर और सीलमपुर मोहल्ले आते हैं, जो कि मुस्लिम-बहुल है। तनवर सीलमपुर का निगम पार्षद था और जाफराबाद मोहल्ले में रहता था। शाहदरा से सटा हुआ दूसरा विधानसभा क्षेत्र घोंडा है, जो कि हिंदू-बहुल है। घोंडा की सीमा जाफराबाद से सटी हुई है। दोनों क्षेत्रों के बीच प्रायः सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हो जाता था, जिसके अनेक कारण थे।
जाँच विभाग के अधिकारी अजीत शर्मा की लाश चाँद बाग के पास एक नाले में मिली है।
ओह! अभी क्या हो रहा है वहाँ पर?
शव का पंचनामा करके पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है।
मीडिया...?
वे पहुँच गए हैं।
ठीक है मुझे खबर देते रहना।
फोन रखने के बाद अखिल मिश्र ने नौकर को टेलीविजन चलाने के लिए कहा।
…अभी-अभी शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया...आपको बता दें कि अजीत शर्मा जाँच विभाग के इंस्पेक्टर थे...उनका शव नाले में पाया गया। संभावना व्यक्त की जा रही है कि दंगाइयों ने कल रात उन्हें मारकर नाले में फेंक दिया था। बहुत बड़ी खबर है यह...आपको यह भी बताना चाहूँगा...
टेलीविजन का संवाददाता पूरे उत्साह से सम्पूर्ण घटना के ताने-बाने को प्राप्त जानकारी और अपने अनुमान के आधार पर गढ़ते हुए नाटकीय ढंग से, आरोह और अवरोह-युक्त स्वरों में ढालकर दर्शकों को सुना रहा था। कैमरा पड़ने के बाद वह स्वयं को संवाददाता कम, सिनेमा का अभिनेता अधिक समझ रहा था।
अखिल मिश्र टेलीविजन देखते रहे और साथ में फोन भी करते रहे। आधे घंटे में उनके घर के बाहर चार-पाँच गाड़ियाँ आकर रुकीं। सात-आठ लोग इकट्ठे हो गए। अखिल मिश्र घर से निकले और उनके साथ चल पड़े।
पाँचों गाड़ियाँ एक बंगले के बाहर जाकर रुकीं। बाहर नाम पट्टिका लगी हुई थी - विमलेश त्रिपाठी, सांसद।
मुख्य द्वार पर तैनात सिपाही ने इंटरकॉम से अंदर सूचना दी। शीघ्र ही फाटक खोल दिया गया और सभी लोगों को ले जाकर एक शानदार विशाल कक्ष में बिठा दिया गया। दीवारों पर गाँधी, सुभाष, तिलक इत्यादि कई महापुरुषों के चित्र टँगे हुए थे। बैठने के कुछ क्षणों के बाद ही जलपान प्रस्तुत किया गया। लोग जलपान के साथ बातों के भी चटकारे लेते हुए सांसद महोदय की प्रतीक्षा करने लगे।
पंद्रह मिनट बाद विमलेश त्रिपाठी बैठक में आए। आते ही बोले, क्षमा करिएगा, बात थोड़ी लम्बी चल गई।
सबने खड़े होकर उनका अभिवादन किया।
"पंडित जी, आईबी⁷अफसर अजीत शर्मा का समाचार तो आप तक भी पहुँच ही गया होगा।" अखिल मिश्र ने कहा ।
हाँ, बहुत दुःखद हुआ। अभी तीस-बत्तीस साल का एकदम जवान लड़का था।
कहते हुए सांसद के मुख पर गहन शोक छा गया।
समझ में नहीं आता कि इन लोगों का क्या किया जाए। अभी तो यहाँ दस-बारह प्रतिशत ही हैं तो यह हाल है। कल और बढ़ेंगे तो जीना ही मुश्किल कर देंगे।
क्या कर सकते हैं...
विमलेश त्रिपाठी बोले, पुलिस अपना काम कर रही है। कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
लेकिन, यह तो हर बार ही होता है, इससे उनको कोई फर्क तो पड़ता नहीं है।
अखिल मिश्र के साथ आए एक व्यक्ति ने कहा।
इससे अधिक और क्या किया जा सकता है?
विमलेश त्रिपाठी बोले, आप सबको पता है कि वे प्रदेश के सत्तारूढ़ दल के वोट बैंक हैं। अधिक कड़ाई हुई तो प्रदेश सरकार के विधायक धरना-प्रदर्शन करने लगेंगे। बीच में मानवाधिकार भी आ जाएगा। समस्या यह है कि पूरे समुदाय के प्रति तो कुछ किया नहीं जा सकता है। सब लोग तो सक्रिय रूप से हिंसा में भाग नहीं लेते हैं न।
लेकिन समर्थन तो सभी करते हैं।
अखिल मिश्र ने कहा।
हाँ, बिना सबके समर्थन के इतने बड़े कांड नहीं किए जा सकते हैं।
विमलेश त्रिपाठी बोले, आतंकवाद पनपने के पीछे भी सबसे बड़ा कारण यही है कि मुसलमान उसका विरोध नहीं करते हैं। वे यह तो कहते हैं कि आतंक को किसी धर्म से न जोड़ा जाए लेकिन जैसे वे आज सीएए और एनआरसी के विरोध में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं, इस तरह से यदि आतंकवाद का विरोध करते तो आतंकवादियों को सीधा संदेश जाता कि उनका धर्म-दर्शन कोई स्वीकार करने वाला नहीं है। किसी भी विचारधारा से उपजे विध्वंसकारी कृत्यों को रोकने के लिए नैतिक विरोध बहुत आवश्यक होता है।
ये लोग क्या विरोध करेंगे, मुझे तो लगता है कि दुनिया में सबसे अधिक कट्टर मुसलमान यहीं हैं। उधर सउदी अरब मक्का में सिनेमाघर बना रहा है और उसका विरोध यहाँ भारतीय मुसलमानों के द्वारा किया जा रहा है।
अखिल मिश्र बोले।
हाँ, सही कह रहे हैं। तीन तलाक वाला विषय भी यही दर्शाता है। दुनिया के किसी भी इस्लामी देश में वह व्यवस्था नहीं है, जो यहाँ थी। फिर भी उस कानून का यहाँ के मौलानाओं ने कितना विरोध किया! केवल मौलाना ही नहीं बल्कि कई नेता और पढ़े-लिखे लोग भी उस कानून के विरुद्ध थे।
एक बात तो पक्की है कि जो भी कल-परसों हुआ, वह अचानक नहीं बल्कि योजनाबद्ध ढंग से किया गया था।
अखिल मिश्र के साथ आए पार्षद विश्वंभर ने रोषपूर्ण स्वर में कहा।
ठीक कह रहे हैं आप। पता चला है कि इसमें तनवर हुसैन का बड़ा हाथ है। इसके अलावा वाहिद आलम और शब्बीर मलिक भी सम्मिलित हैं। इतना ही नहीं इस घटना को पैगामे-इस्लाम, अखिल भारतीय मुस्लिम संघ, मुस्लिम छात्र-दल, इस्लामी छात्र आंदोलन संघ, लोकप्रिय मोर्चा, जामिया संयोजक समीति, मुत्तहिद मुसलमान इत्यादि ने मिलकर प्रायोजित किया था। साथ ही इन्हें कई राजनीतिक व्यक्तियों, वकीलों तथा अन्य मुस्लिम संगठनों का सहयोग प्राप्त था।
इसमें आधे से अधिक संगठन तो बड़े इमाम के ही हैं।
ये सारे के सारे आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
यह दंगा जानबूझकर इसी समय किया गया क्योंकि इतने बड़े देश का राष्ट्रपति हमारे यहाँ आया हुआ है।
अखिल मिश्र ने कहा, वे चाहते हैं कि उनके आंदोलन की ओर पूरी दुनिया ध्यान दे। दो महीने से शाहीन बाग में दिन-रात पड़े हुए हैं, लेकिन अभी तक सरकार ने उनसे बातचीत नहीं की।
क्या बातचीत करें, सरकार की ओर से इतनी बार तो स्पष्ट किया जा चुका है। उनकी माँग ही निराधार है।
विश्वंभर ने कहा।
वह तो हमारी दृष्टिकोण से न...उनके लिए तो वे ही सही हैं।
विमलेश त्रिपाठी ने बोले।
इस्लामी छात्र आंदोलन संघ को तो मुंबई बम विस्फोटों के बाद प्रतिबंधित कर दिया गया था। लेकिन फिर से वे सक्रिय हो गए।
अखिल मिश्र ने कहा।
हाँ, पिछली बार हमारी सरकार के जाने के बाद अनुकूल परिस्थितियाँ बनते ही इस्लामी छात्र आंदोलन संघ तेजी से पनपने लगा। उन्होंने पिछली सरकार के दस वर्ष के शासनकाल में देश भर में बत्तीस से अधिक विस्फोट किए। यह तो पिछले छह सालों से हमारी सरकार ने उनकी गतिविधियों पर रोक लगा रखी है, जिससे कि वे एक भी बम विस्फोट नहीं कर पाए।
विमलेश त्रिपाठी ने कहा।
विश्वंभर बोले, पंडित जी! पिछली सरकार के कार्यकाल में ये केवल स्वयं ही नहीं पनपे बल्कि कितने ही नए संगठनों को भी जन्म दिया। स्थापना के समय से ही इनके संगठन का मुख्य उद्देश्य भारत में प्राचीन सांस्कृतिक प्रभाव को समाप्त कर इसे एक इस्लामी राज्य में रूपांतरित करना रहा है।
हाँ, सन् उन्नीस सौ सतहत्तर में अपने गठन के समय ही इस्लामी छात्र आंदोलन संघ ने भारत में जिहाद की घोषणा कर दी थी। भारत में किसी भी तरह से दारुल इस्लाम की स्थापना करना ही उसका लक्ष्य है।
विमलेश त्रिपाठी एक लम्बी साँस छोड़ते हुए बोले, जिहाद और जन्नत की भी बड़ी विचित्र मानसिकता है।
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1. शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा दयालु और कृपालु है।
2. निःसंदेह ‘काफिर’ तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।
3. हे ईमान वालों! मुश्रिक (मूर्ति पूजक) नापाक (अपवित्र) हैं।
4. मुनाफिक जहाँ कहीं पाए जाएँगे, पकड़े जाएँगे और बुरी तरह कत्ल किए जाएँगे।
5. निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते थे ‘जहन्नम’ का ईधन हो। तुम अवश्य उसके घाट उतरोगे।
6. सामान्यतया धर्म, मजहब। न्याय, परंपरा और धर्म तीनों के लिए एक अरबी शब्द।
7. आईबी- इंटेलिजेंस ब्यूरो- भारत का आन्तरिक खुफिया विभाग
कटिबद्धता
( 1 )
चार वर्ष पूर्व...
ताबूत में बंद शव के आते ही पूरा घोंडा उसके घर की ओर उमड़ पड़ा।
वर्षों से प्रतीक्षा करती माँ-बाप की बूढ़ी आँखों में तब तक आशा की किरण विद्यमान थी जब तक कि सरकार की ओर से मृत्यु की पुष्टि नहीं कर दी गई थी। पुष्टि न ही हो पाती तो अच्छा होता। कम से कम इस झूठी आशा के सहारे जीना थोड़ा आसान होता कि उनका पुत्र दुनिया के किसी कोने में जीवित होगा और एक दिन लौटेगा।
लॉरी से जब ताबूत नीचे उतारा गया तो उसे देखते ही वर्षों से जमा आँसुओं का बाँध टूट गया और परिजनों की हृदयविदारक चीखें समुद्री ज्वार सी उठने लगीं। माँ अचेत होकर ताबूत के ऊपर गिर पड़ीं। बहन की गर्दन और चेहरे की सभी नसें तन गईं और आवाज गले में घुटने लगी। पिता की आँखों से गंगा-जमुना बह निकली। आकाश की ओर उठी हुई भाई की डबडबाई आँखें ईश्वर को उलाहना दे रही थीं।
ताबूत लाने वाले सरकारी व्यक्ति ने वहाँ से लौटते समय भाई अविनाश से कहा- कृपया ताबूत खोलकर अर्थी न सजाएँ, क्योंकि इसके अंदर महेंद्र का शरीर नहीं बल्कि उसके सड़े-गले कुछ हिस्से ही रह गए हैं।
लेकिन अपने पुत्र को अंतिम बार देखने की लालसा को दबा पाना माँ-बाप के लिए संभव नहीं था। पिता हठ करने लगे तो विवश होकर ताबूत खोलना पड़ा।
ताबूत के भीतर से निकला धूल-धूसरित एक मानव कंकाल। एक पैर, एक बाँह और खोपड़ी ही शेष रह गई थी। देखते ही सबने आँखें दूसरी ओर फेर ली। इतने वीभत्स शव की किसी ने कल्पना नहीं की थी।
कंकाल के साथ एक काला प्लास्टिक का बैग भी रखा हुआ था, जिसमें खून से सने काले पड़ चुके जूते, बुशर्ट, पैंट और कड़ा था। रोती-बिलखती बहन ने उसे खींचकर कलेजे से लगा लिया। उसके बाद ताबूत को फिर बंद कर दिया गया।
यह पीड़ा केवल महेंद्र और उसके परिजनों के हिस्से में ही नहीं आई थी, बल्कि अपने घर की माली हालत सुधारने के लिए देश के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से खाड़ी देशों में पैसा कमाने गए उन्तालीस भारतीय युवकों की यही कहानी थी, जिनकी आतंकवादी संगठन आईएसआईएस द्वारा ईराक में नृशंसता से हत्या कर दी गई थी। जिनके परिजन उनकी वर्षों तक प्रतीक्षा