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तमिलवाली हिंदी
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Ebook178 pages1 hour

तमिलवाली हिंदी

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तमिलवाली हिंदी / Tamilwali Hindi by Dr. K Padmini is a collection of Hindi poems

Languageहिन्दी
Publisher16Leaves
Release dateMay 8, 2023
ISBN9788119221004
तमिलवाली हिंदी
Author

Padmini K

Author Dr. K. Padmini was born in Sivakasi to Karuppaiah and K. Unnamulaitai on 26 April 1953. She and her husband Tirumangalam Kumar and have two sons and a daughter. She has done her MPhil and PhD under the guidance of Dr.Nirmala Maurya from Chennai’s Dakshin Bharath Hindi Prachar Sabha. She has participated in the Amrit Mahotsav that was hosted in Kathmandu . She has been running the KP Academy successfully for ten years. She is one of the popular Hindi poetess of Tamil Nadu.

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    तमिलवाली हिंदी - Padmini K

    तमिलवाली हिंदी

    तमिलवाली हिंदी

    डॉ. के. पद्मिनी

    पहला संस्करण, 2023

    © डॉ. के. पद्मिनी, 2023

    इस प्रकाशन का कोई भी भाग लेखक की पूर्व अनुमति के बिना (संक्षिप्त उद्धरण के मामले को छोड़कर) पुनः प्रस्तुत, फ़ोटोकॉपी सहित किसी भी रूप में या किसी भी माध्यम से वितरित, या प्रसारित, रिकॉर्डिंग, या अन्य इलेक्ट्रॉनिक या यांत्रिक़ तरीके से नहीं किया जा सकता है। आलोचनात्मक समीक्षाओं और कुछ अन्य गैर वाणिज्यिक प्रयगों की कॉपीराइट कानून द्वारा अनुमति है। अनुमति के अनुरोध के लिए प्रकाशक को नीचे दिए गए पते पर लिखें।

    यह पुस्तक भारत से केवल प्रकाशकों या अधिकृत आपूर्तिकर्ता द्वारा निर्यात की जा सकती है। यदि इस शर्त का उल्लंघन हुआ तो वह सिविल और आपराधिक अभियोजन के अंतर्गत आएगा ।

    पेपरबैक आई एस बी एन: 978-81-19221-08-0

    ईबुक आई एस बी एन: 978-81-19221-00-4

    वेब पीडीऍफ़ आई एस बी एन: 978-81-19221-16-5

    नोट: पुस्तक का संपादन और मुद्रण करते समय उचित सावधानी बरती गई है। अनजाने में हुई गलती की ज़िम्मेदारी न लेखक और न ही प्रकाशक की होगी।

    पुस्तक के उपयोग से होने वाली किसी भी प्रत्यक्ष परिणामी या आकस्मिक नुकसान के लिए प्रकाशक उत्तरदायी नहीं होंगे। बाध्यकारी त्रुटि, ग़लत प्रिंट, गुम पृष्ठ, आदि की सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी प्रकाशक की होगी। ख़रीद की एक महीने के भीतर ही पुस्तक का (वही संस्करण/ पुनः मुद्रण) प्रतिस्थापन हो सकेगा।

    भारत में मुद्रित और बाध्य

    16Leaves

    2/579, सिंगरवेलन स्ट्रीट

    चिन्ना नीलांकारई

    चेन्नई - 600 041

    भारत

    info@16leaves.com

    www.16Leaves.com

    कॉल करें: 91-9940638999

    सामग्री तालिका

    1.कविताएं

    2.कहानियां

    3.ग्रीष्म ऋतु में

    4.हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं-नया आयाम

    5.उच्च मध्य वर्ग

    6.अनूदित साहित्य

    7.मेरी आदर्श लेखिका

    8.राष्ट्रीय एकता के लिए त्रिभाषा सूत्र के नए स्वरूप की उपादेयता

    9.रामायण - भारतीय संस्कृति और इतिहास

    10.पर्यावरण का महत्व और संतुलित जीवनशैली

    समीक्षकों की लेखनी से...

    अपना फुलझड़ियों-सा बचपन चुपके से सहेज कर वहीं रख आईं डॉ.के. पद्मिनी का पटाखों के शहर शिवकाशी से चेन्नई आना कोई सामान्य घटना नहीं है।यह घटना इनके जीवन में भी उसी तरह घटी जैसे हर लड़की के जीवन में घटती है।

    यह स्त्री जीवन की सर्व ज्ञात नियति है।वह स्त्री ही है जो यह नियति हँसी-खुशी सह सकती है। मैंने स्त्री के इसी जीवन से संवेदित होते हुए,सही कहें तो उस सृजन काल में उस सच को जीते हुए स्त्री के उस बहुत बड़े दर्द के बरक्स भले एक निहायत बौनी-सी कविता लिखी थी पर वह यहाँ अनायास याद रही है और प्रासंगिक भी लग रही है ।

    स्त्री प्रेम में पड़ना जानती है छलना नहीं।इसके बावज़ूद वह छली जाती रही है कभी इंद्र के द्वारा तो कभी गौतम के।कोई राम आए तो ठीक नहीं नही तो शिला बनी पड़ी रहीं युग-युग तक।

    प्रेम में पड़ी स्त्री की पहचान (अँगूठी)ही खो सकती है।उसे उसी जाति से हुए भी कोई स्त्री (मछली) निगल सकती है।मिल जाने पर भी पहचानने मुकर सकता है,उसका अपना ही दुष्यंत।

    स्त्री आज भी उस प्रेम की प्रतीक्षा में है जिसे वह कभी लिख न पाई और अगर प्रेम के तिनके- तिनके को जोड़कर कुछ अक्षर लिख भी लिए तो वह उन्हें भेज नहीं पाई।

    एक स्त्री ही है जो किसी अव्यक्त और अप्रेषित प्रेम पत्र को गुलाब की महकती पंखुड़ियों के साथ अपने दिल की किताब के पन्नों के बीच एक थाती कीतरह जीवन भर छिपाए रख सकती है – अपने प्रेम पत्र में।

    अपनी उच्च शिक्षा के बाद डॉ. के . पद्मिनी का प्राध्यापक बनीं।उस प्राध्यापकी काल में आपने अपने विद्यार्थियों को किसी किताब से अधिक मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं को पढ़ाया।सौ में से सौ अंक लाने वाली पद्मिनी अपने छात्र जीवन की वह घटना जीवन भर जीती हैं, जिससे उनके अध्यापक छटपटाए थे।अपने विद्यार्थी के लिए उस संवेदन संकुल छटपटाहट को लिए ये जीवन जीती हैं जिसे लेकर इनके अध्यापक बार-बार इनके पास आ-आ कर इनकी गलती के ठीक ऊपर उँगली रख-रख कर चेताते रहे थे कि आप लोग अपने उत्तर ठीक से जाँच लें कि कहीं कोई त्रुटि तो नहीं रह गई है।इनके अबोध बालमन को तब भी समझ न आया था कि वे किस ओर इशारा कर रहे हैं।

    हुआ यह था कि जीवन की गणित से बेखबर अपने बचपन में इन्होंने दो को चार बार जोड़ने पर भी प्रतिफल में आठ के बजाय छह ही पाया था।वह प्रश्न दो ही अंकों का था फिर भी एक अध्यापक को यह कैसे सहन होता कि सौ में से सौ अंक लाने वाली उसकी छात्रा के दो अंक कट जाएँ।उनकी छटपटाहट का कारण शायद ये अंक नहीं थे बल्कि अपनी छात्रा के प्रति वह संवेदना थी जो एक साधारण से मनुष्य को असाधारणता देकर एक शिक्षक बनाती है।

    यह घटना मेरे हृदय में कील की तरह धँस गई है।वह इसलिए नहीं कि मैंने जीवन भर कोई कामचोरी की है बल्कि इसलिए कि ऐसा होता हुआ दिखता है।लोग यह चोरी सीनाजोरी के साथ करते हैं।अपने बालपन की एक घटना को वृत्तिवश नहीं प्रवृत्तिवश जीवन भर जीते रहने वाली डॉ. के.पद्मिनी एक आदर्श हैं उन शिक्षक -शिक्षिकाओं के लिए, जो बस कोर्स पूरा करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं।

    और व्यवसायों की तुलना में शिक्षा अब भी पवित्र है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि उसे देशव्यापी प्रदूषित हवा -बयार बिल्कुल ही न लगी हो। प्रति मास ढाई से तीन लाख लेकर भी हमारे आचार्य प्रवर कक्षा काल में भी गप्प में तल्लीन रहकर कक्षा छोड़ते देखे जा सकते हैं।राजनेताओं से भी गिरी राजनीति करते हुए मिल सकते हैं। विभागाध्यक्ष को इस या उस जाल में कैसे फँसाएँ।बिल में चार रुपए की वस्तु के चौदह रुपए कैसे दिखाएँ।पुरुष हैं तो अपनी शोधछात्रा के निजी जीवन में गोते कैसे लगाएँ और महिला हैं तो अपने पुरुष कुलपति को रूठे हुए पति की तरह कब और कैसे रिझाएँ ।ये सब

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