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स्वर्गविभा त्रैमासिक ऑन लाइन पत्रिका सितम्बर २०२३
स्वर्गविभा त्रैमासिक ऑन लाइन पत्रिका सितम्बर २०२३
स्वर्गविभा त्रैमासिक ऑन लाइन पत्रिका सितम्बर २०२३
Ebook43 pages17 minutes

स्वर्गविभा त्रैमासिक ऑन लाइन पत्रिका सितम्बर २०२३

By tara

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About this ebook

'त्रैमासिक स्वर्गविभा ऑन लाइन पत्रिका' फिर एक बार आपके सम्मुख है | हमने आपकी ख्वाहिश को नजर रखते हुए ,आपके इस पसंदीदा पत्रिका में ,देश के बेहतरीन लेखकों, कथाकारों और ग़ज़लकारों की रचनाओं को एकत्रित कर प्रकाशित की है | इसे पढ़िये | यह आपको माशूक की अदाएँ, प्यार-मोहव्वत,साकी पैमाना,शमां परवाना,आशिक-काशूक के कई रंग से आपको रुबरू कराएगी,तो दूसरी तरफ ,कहानियों में सामाजिक कुरीतियों,रुढ़िवादियों पर अपनी सशक्त लेखनी से कथाकारों ने कुठाराघात कर,अपने पाठकों को सामाजिक बुराइयों से अवगत कराया है |इन कथाकारों ने ,अपनी कहानी के पात्र-पात्रियों को इतने प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है कि घटनायें आँखों के आगे सजीव हो उठती हैं , हर एक पात्र मानो बातें कर रहे हों |

              हम आशा करेंगे कि हमारे अन्य अंकों की भाँति, पाठकों को यह प्रस्तुति भी पसंद आयेगी | आपके बहुमूल्य मश्विरे की प्रतीक्षा रहेगी |

           

                                               स्वर्गविभा टीम

Languageहिन्दी
Release dateOct 2, 2023
ISBN9788196249267
स्वर्गविभा त्रैमासिक ऑन लाइन पत्रिका सितम्बर २०२३

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    स्वर्गविभा त्रैमासिक ऑन लाइन पत्रिका सितम्बर २०२३ - tara

    Mahatma Gandhi - Wikipedia

    राष्ट्रपिता के चरणों में नमन

    संवेदना

    अंग्रेजी भाषा के साथ कदमताल करती हुई, हिंदी आज केवल भारत, मारीशस अथवा कुछ अन्य देशों तक ही सीमित नहीं है| बल्कि हिंदी भाषी लोग आज दुनिया के कोने-कोने में बसे हुए हैं, या कार्यरत हैं| ऐसा माना जाता है, कि विश्व में लगभग 73 देशों में, व 300 संस्थाओं में हिंदी पढ़ाई जाती है| हिंदी की महत्ता एवं प्रभुता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा भी हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है|

    हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए यह आवश्यक है, हिंदी केवल साहित्य की पारम्परिक विधाओं में सिमट कर न रह जाये| बल्कि इसका प्रयोग हर विषय, जैसे विज्ञान और टेक्नोलोजी, मेडिसिन, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, वाणिज्य प्रबंधन आदि में भी हो सके, जब तक हिंदी जन-जन की जिह्वा पर नहीं चढ़ेगी, तब तक हिंदी का राष्ट्रभाषा बनना नामुमकिन है|

    हिंदी के प्रचार का काम केवल सरकार द्वारा संभव नहीं है| आज तक किसी भी भाषा का प्रचार, सरकार द्वारा नहीं हो सका है| अगर जनता अपने दैनिक जीवन में अपने कार्य कलापों में शामिल नहीं करती है, तब हिंदी का फैलाव मुश्किल है| इतिहास साक्षी है, हिंदी का श्रेष्ठतम साहित्य उन दिनों रचा गया है, जब यह राज या राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि आज की तरह जन-साधारण की भाषा थी|

    दुःख की बात है, कि आज हिंदी अपने ही घर में इतनी उपेक्षित है कि लगता, जैसे

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