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21 Shreshtha Balman ki Kahaniyan: Australia (21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियाँ: ऑस्ट्रेलिया)
21 Shreshtha Balman ki Kahaniyan: Australia (21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियाँ: ऑस्ट्रेलिया)
21 Shreshtha Balman ki Kahaniyan: Australia (21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियाँ: ऑस्ट्रेलिया)
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21 Shreshtha Balman ki Kahaniyan: Australia (21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियाँ: ऑस्ट्रेलिया)

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About this ebook

भारत एक विशाल देश है, जिसमें अनेकों सभ्यताओं, परंपराओं का समावेश है। विभिन्न राज्यों के पर्व-त्योहार, रहन-सहन का ढंग, शैक्षिक अवस्था, वर्तमान और भविष्य का चिंतन, भोजन की विधियां, सांस्कृतिक विकास, मुहावरे, पोशाक और उत्सव इत्यादि की जानकारी कथा-कहानी के माध्यम से भी मिलती है। भारत के सभी प्रदेशों के निवासी साहित्य के माध्यम से एक-दूसरे को जानें, समझें और प्रभावित हो सके, ऐसा साहित्य उपलब्ध करवाना हमारा प्रमुख उद्देश्य है। भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव ) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा 'भारत कथा माला' का अद्भुत प्रकाशन।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateDec 21, 2023
ISBN9789356843875
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    21 Shreshtha Balman ki Kahaniyan - Rita Kaushal

    लक्ष्मी तिवारी

    जन्म : कोटद्वार, उत्तराखंड, भारत

    निवास : पर्थ, ऑस्ट्रेलिया

    पदनाम : लैब असिस्टेंट

    शिक्षा : स्नातकोत्तर ( अंग्रेजी), गढ़वाल विश्वविद्यालय

    प्रकाशित पुस्तकें :

    • ‘पड़ाव’ (उपन्यास), वाणी प्रकाशन - 2017

    • एक कहानी संकलन शीघ्र प्रकाश्य

    ईमेल : laxmipanttiwari@gmail.com

    अंडा चोर

    दो साल पहले सोनू अपना गाँव चंद्रकोट छोड़कर अपने चाचू के घर आ गया था। तब वह दूसरी कक्षा में पढ़ता था। सोनू के गाँव चंद्रकोट से स्कूल बहुत दूर था। ऊँची पहाड़ी की चोटी पर स्कूल तक जाते-जाते सोनू के नन्हे पैर थक जाते थे और वह क्लास में पहुँचते ही सो जाता था, इसलिए उसके माता-पिता ने उसे चाचू के घर भेज दिया। चाचू के कस्बे धौली में स्कूल पास में था। शुरू-शुरू में अपने माता-पिता व बहनों से बिछुड़ कर सोनू बहुत उदास रहता था। उसे हमेशा अपने गाँव चंद्रकोट की याद आती रहती। अपने घर की याद कर वह रोज रोया करता। उसे अपने गाय, बैल व कुत्ता भी याद आते।

    चाचू-चाची सोनू से बहुत प्यार करते थे इसलिए सोनू की उदासी उनसे देखी न जाती थी। उसकी उदासी कैसे दूर हो, सोचकर चाचू को एक उपाय सूझा। एक दिन चाचू अचानक ही घर में एक डलिया लेकर आ पहुँचे। उन्होंने घर के मुख्य दरवाजे से ही जोर से आवाज दी, अरे सोनू ! यहाँ आओ, देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ।

    जैसे ही सोनू आया चाचू ने डलिया का ढक्कन उठा दिया। यह देखकर सोनू की खुशी का ठिकाना न रहा। चाचू उसके लिए मुर्गी के दो प्यारे-प्यारे चूजे लेकर आए थे क्योंकि वो जानते थे कि सोनू को जीव-जंतुओं से बहुत प्रेम था। और वास्तव में सोनू चूजे देखकर खुशी से झूम उठा।

    ये मुर्गी के बच्चे तुम्हारे हैं, आज से इनकी देखभाल तुम्हीं को करनी है सोनू। जब ये चूजे बड़े होकर अंडे देंगे तो हम सब लोग अंडे खाकर अपनी सेहत बनाएँगे, इसलिए आज से ये चूजे तुम्हारे। चाचू ने चूजे सोनू के हवाले करते हुए कहा।

    चूजों को पाकर सोनू की उदासी और अकेलापन सब गायब हो गया। उसने उन्हें अपनी बहनों के नाम पर नाम भी दे डाले, ‘लाली और माली’। चाचू की मदद से उसने घर के पीछे उनके लिए एक छोटा सा मुर्गी - घर भी बनाया। इसके बाद से सोनू को चाचू का गाँव भी अच्छा लगने लगा।

    सोनू हर रोज लाली और माली को अपने हाथों से दाना खिलाता। वह रोज उनके बर्तन में ताजा पानी भरता। सोनू कितना भी थका हो पर हर शाम को लाली और माली को मुर्गी - घर से बाहर निकालता और घर के पीछे वाले बगीचे में उनके साथ खेला करता।

    जल्दी ही लाली और माली चूजों से मुर्गियों में बदलने लगीं। सोनू को पता ही न लगा कि कब लाली के हल्के पीले पंख बदलकर सफेद और माली के पंख काले रंगों में बदल गए। लाली और माली भी सोनू को बेहद प्यार करने लगी थीं। बगीचे में सोनू जहाँ भी टहलता, वे धीरे-धीरे उसके पीछे चलतीं। कभी सोनू दौड़ लगाता तो वे भी उसके पीछे तेजी से दौड़तीं। जब कभी सोनू बैठ जाता तो वे दोनों उसके बहुत करीब आकर गर्दन उठाकर उसका चेहरा निहारा करतीं। और फिर बिना डरे उसकी गोद में आ बैठतीं।

    सोनू लाली और माली से ढेरों बातें करता और वे दोनों भी मन लगाकर उसकी बातें सुनतीं। सोनू को विश्वास हो गया था कि वे दोनों मुर्गियाँ न केवल उसकी बातें सुनती हैं वरन उसकी सारी बातें समझती भी हैं। सोनू अपने साथियों को लाली व माली की बातें सुनाया करता और उसके साथी हमेशा यही कहते कि, "कितना अच्छा होता अगर हमारे पास भी ऐसी ही मुर्गियाँ होतीं।

    एक दिन लाली और माली ने दो अंडे दिये। उस दिन चाचू - चाची और सोनू की खुशी का ठिकाना न था। सोनू ने डरते-डरते अंडों को धीरे से छुआ था। इन अंडों का ऊपरी कवच कड़ा था पर फिर भी वे कितने नाजुक थे। कहीं उसके हाथ लगाने से अंडे टूट गए तो? यही सोच कर सोनू ने अपना हाथ अंडों पर से हटा लिया था, लेकिन जल्दी ही उसके मन का डर दूर हो गया। उसके बाद सोनू हर दिन मुर्गी-घर जाता और दो अंडे ले आता।

    फिर अचानक एक दिन मुर्गी - घर में एक भी अंडा न दिखा। यही दूसरे, तीसरे व चौथे दिन भी हुआ। सोनू को बहुत चिंता हुई। ये सोचकर कि कुछ दिन पहले तक तो मुर्गियाँ रोज अंडा दे रही थीं, फिर ये अचानक उनको क्या हो गया ? कहीं वे भूखी तो नहीं? सोनू ने लाली व माली को खूब खाना भी खिलाया पर उन दोनों ने तब भी अंडा नहीं दिया।

    चाचू ने सोचा कि मुर्गियाँ बीमार हो गई हैं इसीलिए वे अंडा नहीं दे पा रही हैं। अगले दिन चाचू और सोनू दोनों मुर्गियों को लेकर पशुओं के डॉक्टर के यहाँ गए। लाली और माली बीमार नहीं थीं, बल्कि डॉक्टर ने तो ये भी कहा कि, मानो या न मानो वे रोज अंडा दे रही हैं। डॉक्टर की बात सुनकर चाचू और सोनू को बहुत आश्चर्य हुआ। यदि मुर्गियाँ अंडा दे रही हैं तो सोनू को मुर्गी - घर में अंडे क्यों नहीं मिलते थे? ये तो बड़ी ही निराली बात थी, जो किसी को भी समझ नहीं आ रही थी।

    सबने मिलकर बहुत सोच-विचार किया और इस नतीजे पर पहुँचे कि लाली और माली अपने अंडे खुद ही खाने लगी हैं। सोनू गहरी सोच में पड़ गया कि अचानक ही उन दोनों को अपना अंडा खाने की क्या सूझी ? पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ था। नाहीं सोनू ने ऐसा कभी सुना था कि कोई भी मुर्गी अपने अंडे खुद ही खा जाती हो। अंडों के गायब होने का कोई रहस्य तो जरूर था। मगर क्या था वह रहस्य?

    सोनू की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। कुछ दिन और बीते, मगर मुर्गी - घर में न तो सोनू को, और नाहीं चाचू - चाची को कोई अंडा मिला। अब चाचू मुर्गियों से बहुत नाराज हो गए थे। वे सोनू से बोले कि अगर कल भी मुर्गी - घर में अंडे नहीं मिले तो वे लाली और माली को बाजार में बेच देंगे। सोनू चाचू की बात सुनकर बहुत दुःखी हो गया। मुर्गियाँ उसकी गहरी दोस्त थीं, उन्हें बाजार में बेचने की बात से ही उसका मन घबराने लगा। वह दौड़ते हुए मुर्गियों के पास पहुँचा।"

    तुम दोनों क्या सचमुच अपने अंडे खुद खा जाती हो? सोनू ने पूछा।

    नहीं। लाली और माली ने साफ-साफ ‘न’ में गर्दन हिलाई।

    सच? सोनू ने फिर से पूछा।

    मुर्गियों ने इस बार ‘हाँ’ में गर्दन हिलाई। सोनू को विश्वास हो गया था कि मुर्गियाँ सच बोल रही हैं। वे अपना अंडा खुद नहीं खाती हैं। सोनू ने मुर्गियों का उत्तर चाचू-चाची को समझाने की कोशिश की तो उन्हें सोनू की बात पर विश्वास नहीं आया।

    सोनू की बात पर चाचू ने हँस कर कहा कि, मुर्गियाँ भी कभी इंसान की बात समझती हैं क्या? ये अंडाखोर मुर्गियाँ हैं, कल शाम को इन्हें बाजार में बेचकर आना ही होगा।

    उस रात सोनू को जरा भी नींद नहीं आई। मुर्गियाँ अंडे कब देती थीं, ये कहना मुश्किल था। परेशान सोनू चटाई बिछाकर मुर्गी घर के आगे ही बैठ गया। रात हो गई थी मगर अब तक कोई अंडा न दिखा था। वह पूरी रात वहीं बैठना चाहता था पर जब चाचू ने बहुत समझाया तो वह अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया। मगर उसे जरा भी नींद न आई। वह सिर्फ एक ही बात सोच रहा था कि अगर कल भी अंडे न मिले तो चाचू, लाली और माली को बाजार में बेच आएँगे।

    अपनी प्यारी मुर्गियों को खोने की बात सोनू सोच भी नहीं सकता था। बस एक ही तरीका था लाली और माली को बचाने का। वह ये कि उसे पता लगाना होगा कि आखिर अंडे जाते कहाँ हैं? यदि कल तक वह पता न लगा सका तो लाली और माली सदा के लिए उससे बिछड़ जाएँगी।

    उस दिन रविवार था। चाचू- चाची को किसी काम से शहर जाना था इसलिए सूरज निकलने से पहले ही वे घर से निकल गए। मौका देख कर सोनू अपने बिस्तर से उठा और चटाई बिछाकर मुर्गीघर के आगे बैठ गया। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब थोड़ी ही देर में माली ने एक अंडा दे डाला। अब सोनू देखना चाहता था कि आखिर अंडा गायब कैसे हो जाता है। सोनू अभी सोच ही रहा था कि तभी उसके सामने कुछ ऐसा हुआ कि उसका मुँह अचम्भे से खुला का खुला रह गया।

    न जाने कहाँ से मुर्गी-घर में एक मोटा सा चूहा निकल आया और अंडे को एक ओर लुढ़काने लगा। एक चूहा इतने बड़े अंडे को भला कैसे गायब कर सकता है, सोनू को समझ न आ रहा था। लेकिन वह मोटा - ताजा चूहा अंडे को जोरों से धक्का दिए जा रहा था और थोड़ी ही देर में चूहा और अंडा दोनों ही मुर्गी-घर के एक कोने में जाकर अदृश्य हो गए। थोड़ी देर में चूहा फिर निकल आया और इस बार लाली के अंडे को भी उसी तरह लुढ़काते हुए पुन: गायब हो गया। ये अजब तमाशा देख सोनू को अब सब कुछ समझ आ गया था। लाली और माली के अंडों को ये मोटा चूहा ले जाता था और सब समझते रहे कि मुर्गियाँ खुद अपना अंडा खा जाती हैं।

    सोनू सोचने लगा कि यदि चूहे वाली बात वह चाचू को बताएगा तो उन्हें विश्वास न होगा इसलिए उसे चाचू को इसका प्रमाण देना होगा। जरूर इस चूहे ने मुर्गी - घर के अंदर बिल बना रखा है और उसी बिल में खोए हुए अंडों का रहस्य छुपा है। सोनू दौड़ कर घर से कुदाल ले आया और जिस गड्ढे से चूहा अंडा लेकर गायब हुआ था सोनू उसे खोदने लगा। जमीन बहुत कड़ी थी, खोदते-खोदते सोनू के हाथों में छाले पड़ गए, पर वह रुका नहीं।

    मुर्गियाँ निर्दोष हैं, यह बात सोनू को चाचू के सामने साबित करनी थी। इसके लिए उसे अंडा चोर चूहे के बिल तक पहुँचना ही था। चाहे उसके हाथ कितने ही दुखें पर वह हार मानने वाला न था। खोदते - खोदते अंत में सोनू बिल तक पहुँच गया। वहाँ का दृश्य देखकर वह चकित रह गया। ढेर सारे अंडे चूहे के बिल में पड़े थे और वहीं कोने में एक अंडे की ओट से वह मोटा चूहा टुकुर-टुकुर सोनू को ताक रहा था।

    सोनू को चूहे पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर चूहे को इतना डरा हुआ देखकर उसका गुस्सा जल्दी ही दया में बदल गया। सोनू मुस्कराते हुए बोला, चूहे राजा चोरी भी करते हो और डरते भी हो। चलो माफ किया तुमको इस बार, लेकिन अब दुबारा ऐसा मत करना। और अब यहाँ से भागते बनो। चाचू ने देख लिया न, तो तुम्हें इतना मारेंगे, इतना मारेंगे कि तुम्हें तुम्हारी नानी याद आ जाएँगीं...समझे कुछ!

    सोनू की बात चूहे को तुरंत समझ आ गई। वह मुँह छुपाकर तेजी से बाहर दौड़ा और झाड़ियों में गायब हो गया। कुछ ही देर में चाचू भी घर लौट आए। बिल में इतने अंडे देखकर वे भी भौचक्के रह गए। उन्हें भी अंडों के गायब होने की बात समझ में आ गई। वे ये सोच कर दुःखी थे कि क्यों वे बेचारी मुर्गियों को बेवजह ही दोषी ठहराते रहे। अच्छा हुआ जो सोनू ने अपनी बुद्धि और मेहनत से अंडों के गायब होने का रहस्य खोल दिया। उन्होंने प्यार से लाली - माली और फिर सोनू को देखा। सोनू समझ गया था कि

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