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21 Shreshth Balman ki Kahaniyan : Meghalaya (21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां : मेघालय)
21 Shreshth Balman ki Kahaniyan : Meghalaya (21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां : मेघालय)
21 Shreshth Balman ki Kahaniyan : Meghalaya (21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां : मेघालय)
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21 Shreshth Balman ki Kahaniyan : Meghalaya (21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां : मेघालय)

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About this ebook

भारत एक विशाल देश है, जिसमें अनेकों सभ्यताओं, परंपराओं का समावेश है। विभिन्न राज्यों के पर्व-त्योहार, रहन-सहन का ढंग, शैक्षिक अवस्था, वर्तमान और भविष्य का चिंतन, भोजन की विधियां, सांस्कृतिक विकास, मुहावरे, पोशाक और उत्सव इत्यादि की जानकारी कथा-कहानी के माध्यम से भी मिलती है। भारत के सभी प्रदेशों के निवासी साहित्य के माध्यम से एक-दूसरे को जानें, समझें और प्रभावित हो सके, ऐसा साहित्य उपलब्ध करवाना हमारा प्रमुख उद्देश्य है। भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा 'भारत कथा माला' का अद्भुत प्रकाशन।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateSep 15, 2022
ISBN9789390730377
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    21 Shreshth Balman ki Kahaniyan - Anita Panda

    अन्यया रॉय

    अन्यया रॉय का जन्म 9 मार्च, 1974 को असम में हुआ। जब ये आठ साल की थीं, शिलांग आ गई थीं। आप रामकृष्ण मिशन विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र में भाषा एवं कम्प्युटर शिक्षिका हैं तथा आकाशवाणी पूर्वोत्तर सेवा, शिलांग में हिंदी की उद्घोषिका एवं समाज सेवी भी हैं। आप महिला काव्य मंच मेघालय की सदस्या हैं। अध्ययन में इनकी गहरी रुचि है। बच्चों के प्रति इनका बहुत लगाव है। इन्होंने बच्चों को बहुत करीब से देखा है और उनके मनोभावों को सूक्ष्मता से कलमबद्ध किया है।

    कीर्ति बड़ी हो गई इनकी कहानी में कीर्ति कुछ ऊँचा और बड़ा करने की चाह में एक ऊँची पानी की टंकी पर चढ़ जाती है और एलिस इन वंडरलैंड की कल्पनिक दुनिया में खो जाती है और भूख लगने पर जगती है। पूछने पर जब वह बताती है कि उसका टंकी पर चढ़ने का कारण कुछ ऊँचा करना है क्योंकि वह कीर्ति है। इस बात पर सबके हँसने का कारण कीर्ति की समझ से परे है। लेखिका ने कीर्ति के माध्यम से बच्चों के मासूमियत और कल्पना शक्ति का सुन्दर चित्रण किया है।

    कीर्ति बड़ी हो गई

    कीर्ति अब बड़ी हो गई है। वह खुद नहीं कह रही, सब कह रहे थे। वह तो तब छोटी थी, जब नर्सरी में पढ़ती थी। मम्मी की उंगली पकड़ने के लिए उसे हाथ यों लंबा करना पड़ता था। कीर्ति की मम्मी बड़ी अजीब है, जब बदमाशी करो तो नहीं डाँटती। घुटनों के बल बैठकर, कंधे पर हाथ रखकर न जाने क्या-क्या समझाती है। पर जब मम्मी का मूड खराब होता है ना, तब खूब डाँटती है। कीर्ति को अपनी मम्मी बहुत अच्छी लगती है। तब और ज्यादा अच्छी लगती है जब वह स्कूल में कीर्ति को लेने जाती है। अक्सर जब वह फोन पर बातें करती है तो कीर्ति दौड़ कर मम्मी के घुटनों को गले लगा लेती है। एक दिन तो गिरते-गिरते बची थी।

    वह जानती है कि एक दिन वह मम्मी जितनी लंबी हो जाएगी। बुआ नानी भी उस दिन कह रही थी, किरण, यह तेरी बेटी है न, एक दिन बहुत बड़ी बनेगी। इसका नाम भी कीर्ति है, यह कोई बड़ा काम जरूर करेगी।

    मम्मी बोली, यही आशीर्वाद रखना बुआ जी, पता नहीं मैं अच्छी माँ बन पाऊँगी या नहीं। कीर्ति को कुछ समझ में नहीं आया। यह तीन अलग चीजें हैं, पर एक-दूसरे से मिलती-जुलती हैं क्या...? कीर्ति का बड़ा बनना, कोई बड़ा काम करना और मम्मी का अच्छी माँ बनना। पर उसके बालमन में कुछ चलने लगा। वह सोचने लगी- मम्मी तो बहुत अच्छी माँ है, पर सबसे अच्छी वह तब लगती है जब वह साड़ी पहनती है। वह जब जींस पहनती हैं ना, तब बहुत स्मार्ट लगती है, इंग्लिश की टीचर रीता मैम से भी ज्यादा स्मार्ट। जब अलमारी से साड़ी निकाल के पहनती है ना, और उसके गले मिलती है ना, इतनी अच्छी खुशबू आती है और मम्मी इतनी प्यारी लगती है कि गोद से उतरने का ही मन नहीं करता।

    कीर्ति अच्छी बच्ची है, स्कूल में सभी कहते हैं। समय पर होमवर्क कर लेती है। बातें बस तभी करती है जब टीचर न हो। इतना सबकुछ करने के बाद प्रथम तो रोशन आता है, पर उसका घर ऊँचा तो नहीं है। वह कुछ ना कुछ शरारत करता रहता है और उसे खूब डाँट पड़ती है। कीर्ति को उदास देखकर नीला मैडम कहती है- प्रथम आने में क्या रखा है कीर्ति? तुम्हारा नाम कीर्ति है ना? तुम कुछ ऊँचा जरूर करोगी।

    कीर्ति के मन में फिर वही सवाल- यह कुछ बड़ा करना क्या होता है और ऊँचा करना क्या होता है? उफ! वह क्या करे? क्या प्रथम आना इतनी बड़ी बात है? खैर, कीर्ति को उससे क्या लेना-देना? उसे तो कुछ बड़ा करना है या फिर ऊँचा करना है, जो रोशन ने नहीं किया।

    आज तो छुट्टी है, मम्मी को तैयार होते देख कीर्ति ने पूछा, मम्मी, आप कहीं जा रही हो? हाँ कीर्ति, तुम जल्दी से नाश्ता कर लो, कुछ जरूरी मीटिंग है इसलिए दफ्तर जाना ही है। किरण जल्दी-जल्दी नाश्ता बनाते हुए आगे बोली- दोपहर का खाना पापा खिला देंगे। कीर्ति आँखें बड़ी कर बोली, और मुझे बीच में भूख लगी तो? बेटा बिस्किट्स है। चिंता मत करो और पापा को परेशान मत करना। कहते हुए एक लंबी सांस लेकर गाड़ी में बैठ गई।

    12:30 बजे फोन आये कई सारे। 1:30 बजे अलार्म भी बजा, पर मीटिंग इतनी लंबी चली कि फोन साइलेंट पर ही रह गया। 2:00 बजे मीटिंग खत्म होते ही जब फोन निकाला तो देखा कि 12 मिस्ड कॉल है। उसमें से 6 कीर्ति के पापा परम की ओर दो पड़ोसी की। उसने फोन किया, पर फोन पर परम की आवाज में कोई गुस्सा नहीं था, किरण को और डर लग गया।

    किरण! फोन क्यों नहीं उठाती हो। कीर्ति नहीं मिल रही है, परम ने कहा।

    बेकार की बात मत करो। कीर्ति नहीं मिल रही है, क्या मतलब है तुम्हारा? खेल रही होगी पड़ोस के आंगन में। बिटू की मम्मी से पूछा? किरण ने घबराकर कहा। सबसे पूछ लिया है। वे सब यहीं हैं। तुम आ जाओ बस मुझे कुछ नहीं सूझ रहा है," परम का स्वर रुआँसा हो आया।

    हाँ, हाँ आती हूं। तुम चिंता मत करो, किरण ने कह तो दिया परन्तु वह भी अन्दर से डरी हुई थी। घर पहुँचते ही किरण ने आवाज लगाईकीर्ति! कीर्ति बेटा! कहीं सो तो नहीं गई बच्ची?

    घर में मिट्ट की माँ समेत तीन चार लोग और थे। सबकी तरफ एक नजर फेरते हुए परम से बोली- अच्छा बताओ, थोड़ी देर पहले कीर्ति क्या कर रही थी?

    परम ने बताया- कीर्ति पौधों से बातें कर रही थी, जो वह हमेशा करती है।

    और तुम क्या कर रहे थे?

    मैं फोन पर था। जरूरी काम था इसीलिए कीर्ति से कहा था कि तुम बाहर जाकर खेलो, यह सुनकर किरण ने परम से कहा- तो बाहर जाकर के बुलाओ न।

    घर के तीन-चार लोग एक साथ बोल पड़े- सब ने बुलाया पर कीर्ति का कोई पता नहीं चला।

    अब बहुत हो गया किरण, पुलिस को फोन करो, परम परेशान होकर बोला।

    अभी रुको! कहती हुई किरण खुद ही बाहर निकली और कीर्ति को पुकारते हुए इधर-उधर ढूंढने लगी।

    पड़ोस के और किरण के घर के बीच में एक पानी की टंकी है। साल में एक बार उसकी सफाई होती है। उसके नीचे के घास-फूस वाली जगह को कोई साफ नहीं करता। घास के साथ कुछ जंगली फूल भी लगे थे। किरण आगे बढ़ी, कहीं कीर्ति झाड़ों के बीच में तो नहीं है। कुछ फूलों की पंखुड़ियाँ बिखरी थीं। जैसे किसी ने एक-एक पंखुड़ी निकाली हो। पर यह क्या? यह तो घर के पीले गुलाब की पंखुड़ी है। यहीं कहीं थी, किरण चिल्ला कर बोली। "देखो-देखो,

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