21 Shreshth Lok Kathayein : Assam (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : असम)
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Book preview
21 Shreshth Lok Kathayein - Goma Devi Sharma
1
असमिया लोककथा
संकलनकर्ता- मालविका मेधा
शिक्षिका, डॉनबोस्को स्कूल गुवाहाटी, असम।
1-1
कोउला और बोउगा
बहुत साल पहले की बात है। तब एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए सीमित साधन हुआ करते थे। गरीब लोग पैदल चलकर ही एक जगह से दूसरी जगह तक जाते थे। अमीरों के लिए घोड़े, बैल गाड़ी और पालकी का प्रचलन था। ज्यादातर रास्ते जंगलों के बीच से होते हुए गुजरते थे। उसी समय जंगल के करीब कमलपुर नामक एक छोटा-सा गाँव था। वहाँ की आबादी भी बहुत कम थी। एक औरत अपनी बेटी के साथ कमलपुर गाँव में रहती थी। अपने पति के असमय देहांत के बाद परिवार के गजारे के लिए उसने खेती करनी शुरू कर दी। इस तरह माँ-बेटी का गुजारा चलने लगा। उसके खेत जंगल के करीब थे। उस जंगल में बहुत सारे खूखार जंगली जानवर रहा करते थे। औरत को जंगली जानवरों से कोई डर नहीं था। दिनभर वह अकेली खेत में काम करती रहती थी। हल चलाना, मिट्टी को समतल करना, धान के बीज बोना, सिंचाई करना, कटाई, सफाई आदि सारा काम वह खुद करती थी।
बेटी धीरे-धीरे बड़ी होने लगी और एक समय आया जब वह गाँव की सुंदर एवं सुशील युवतियों में गिनी जाने लगी। माँ की भी उम्र ढल रही थी और कड़ी मेहनत करने के कारण वह असमय बूढ़ी हो चली थी। बेटी को माँ की बड़ी चिंता होने लगी। एक दिन वह सड़क से कुत्ते के दो पिल्लों को उठा लाई।
बेटी ने माँ से कहा- माँ, आज से ये दोनों भी हमारे साथ ही रहेंगे। इनकी माँ नहीं है। जंगल के किनारे सड़क पर पड़े हुए थे। मैं न उठा लाती तो अब तक वह बदमाश लोमड़ी आकर इन्हें हजम कर जाती। देखो न, कितने प्यारे हैं। इनकी आँखें काली, छोटी और कितनी चमकीली हैं।
माँ को भी दोनों पिल्लों पर दया आ गई और वह दोनों की पीठ को प्यार से सहलाने लगी। ममता भरे हाथों से छूते ही दोनों माँ की गोदी में बैठने को उतावले हो गए। धीरे-धीरे दोनों माँ-बेटी के छोटे परिवार के सदस्य बन गए। दोनों को खाना खिलाए बिना माँ खुद नहीं खाती थी। एक का रंग काला था और दूसरे का सफेद। माँ काले को कोउला और सफेद रंग वाले को बोउगा कहकर बुलाती थी। धीरे-धीरे कोउला और बोउगा बड़े होने लगे। दोनों अब माँ की आँखों के तारे बन गए थे। माँ जहाँ भी जाती, दोनों उसके पीछे-पीछे चलते। माँ की एक आवाज से दोनों अपनी पूँछ हिलाते हुए उसके पास हाजिर हो जाते थे। अब बेटी ने राहत की साँस ली।
जंगल की लोमड़ियाँ बड़ी शैतान थीं। माँ जब अकेली खेत में काम करती रहती थी, दो लोमड़ियाँ हमेशा उसके इर्द-गिर्द घूमती रहती थी। एक दिन माँ ने तंग आकर अपनी दा (बड़ा चाकू) उनकी तरफ मार फेंकी। दा जाकर एक के गले में लगा और अधिक खून बहने के कारण वह उसी वक्त चल बसी। दूसरी ने किसी प्रकार भागकर अपनी जान बचाई। रात को सोते समय जब माँ ने बेटी को यह कहानी सुनाई, बेटी मन ही मन डरने लगी। अब दूसरी लोमड़ी मौके की तलाश में रहेगी कि कब माँ को नुकसान पहुँचाकर अपने साथी की मौत का बदला ले सकें। गाँव के कई लोग दुष्ट लोमड़ी के पंजे से घायल हुए या मर चुके थे। इसलिए बेटी ने माँ की सुरक्षा के लिए इन कुत्तों का इंतजाम कर दिया।
एक दिन महाजन (गाँव के मुखिया) ने अपने रिश्तेदार के बेटे के लिए बेटी का हाथ माँगा तो माँ की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। लड़का पढ़ा-लिखा, होशियार एवं स्वस्थ था। जमीन-जायदाद से भरपूर घर-परिवार पाकर माँ का सीना चौड़ा हो गया। भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि उस गरीब दुखियारी की बेटी ऐसे खाते-पीते घर की बहू बनेगी। बड़े धूमधाम से उसने एकलौती बेटी का विवाह सम्पन्न किया। बेटी भी कोउला और बोउगा के भरोसे माँ को छोड़कर रोती हुई ससुराल चली गई। अब माँ बिल्कुल अकेली रह गई। फिर भी बिना डरे वह अपने पालतू कुत्तों के साथ सुख से रहने लगी। कई बार लोमड़ी रात के समय माँ पर पंजा मारने की नाकाम कोशिश कर चुकी थी। जैसे ही वह कुटिया की तरफ बढ़ती, पता नहीं कहाँ से कोउला और बोउगा हाजिर हो जाते और उसे उल्टे पाँव भागना पड़ता है। वैसे भी लोमड़ी कुत्तों से बहुत डरती हैं।
इस प्रकार कई महीने बीत गए। धीरे-धीरे माँ को बेटी की याद सताने लगी। इतने दिनों उसकी कोई खबर नहीं मिली। इसलिए एक दिन माँ कोउला और बोउगा पर कुटिया की जिम्मेदारी सौंपकर बेटी से मिलने निकल पड़ी। बेटी के लिए खाने के ढेर सारा सामान एक पोटली में बाँधकर पौ फटते ही माँ ने यात्रा शुरू की।
माँ को देखकर दूर छिपी लोमड़ी की बाँछे खिल उठी।
अब कैसे बचेगी तू बुढ़िया? तुम्हें मुझसे अब कोई नहीं बचा सकता। वे मुए कुत्ते तो दूर घर की पहरेदारी करते होंगे।
लोमड़ी मन ही मन मुस्कुरा उठी। बूढी को मारकर कई महीनों तक वह खा सकेगी। ऐसी कल्पना करके उसके मुँह में पानी आ गया।
जैसे ही माँ गाँव की सीमा पार करके जंगल से गुजरने लगी, लोमड़ी उछलकर उसके सामने आ धमकी। अचानक आँखों के सामने भूखी लोमड़ी को देखकर माँ समझ नहीं पाई कि अब करें तो क्या करे? कैसे खुद का बचाव करें? मन का डर मन में ही छुपाकर हँसते हुए उसने कहा- कैसी हो लोमड़ी रानी? बहुत दिनों के बाद दर्शन दिए। सब ठीक तो है न?
लोमड़ी हँस पड़ी। उसने अकड़ दिखाते हुए कहा-
"मेरी चिंता छोड़ बुढ़िया और अपनी खैर मना। अब तुझे बचाने न तो तेरी बेटी आएगी और न ही वे जाँबाज कुत्ते। आज तुझे खाने की मेरी पुरानी ख्वाहिश पूरी करूँगी। अपने भगवान को याद कर ले ताकि मरते वक्त ज्यादा तकलीफ न