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21 Shreshth Lok Kathayein : Gujarat (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : गुजरात)
21 Shreshth Lok Kathayein : Gujarat (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : गुजरात)
21 Shreshth Lok Kathayein : Gujarat (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : गुजरात)
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21 Shreshth Lok Kathayein : Gujarat (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : गुजरात)

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About this ebook

भारत एक विशाल देश है, जिसमें अनेकों सभ्यताओं, परंपराओं का समावेश है। विभिन्न राज्यों के पर्व-त्योहार, रहन-सहन का ढंग, शैक्षिक अवस्था, वर्तमान और भविष्य का चिंतन, भोजन की विधियां, सांस्कृतिक विकास, मुहावरे, पोशाक और उत्सव इत्यादि की जानकारी कथा-कहानी के माध्यम से भी मिलती है। भारत के सभी प्रदेशों के निवासी साहित्य के माध्यम से एक-दूसरे को जानें, समझें और प्रभावित हो सके, ऐसा साहित्य उपलब्ध करवाना हमारा प्रमुख उद्देश्य है। भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा 'भारत कथा माला' का अद्भुत प्रकाशन।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateJun 3, 2022
ISBN9789390730216
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    21 Shreshth Lok Kathayein - Natwar Hedau

    1

    नरो गोहिल

    बंदूक की नाली में से धुआं उठने लगा। हर एक धमाके से आदमी का सिर उड़ जाता था। एक भीषण चीत्कार उठता था। काल के मंडप पर मानो एक-एक कर इंसान रौंदा जा रहा था। करीबन पंद्रह-बीस मिनट तक मौत का यह खेल चला और यकायक सब शांत हो गया। मौत के उस मातम में कितने लोग मर गए, वह तो वे अंधेरी रात में कौन जान सकता है? लेकिन बागियों को इतना तो समझ में आ गया कि हमारा सामना कर सके, ऐसे आदमी अब सदा के लिए सो चुके हैं। अब हमारा सामना कर सके ऐसा शायद ही कोई होगा। अब तो मौज से गांव को लूटो। जी भर के लूटो! और सच ही में बागियों ने गांव को लूट लिया। सारा गांव रामराज्य की तरह खुला ही था। कोई रोक-टोक नहीं थी। सुबह हुई ना हुई की बागी ऊंट भर-भर कर सामान लेकर पास के रेगिस्तान में उतर गए।

    बागियों के खिलाफ लडकर शहीद हो जाने वाले की अभी अर्थियां उठे इससे पहले कुछ लोगों ने गांव के राणा भगवान सिंह जी के दरबार में जाकर फरियाद की। गांव आज मानो बिना मालिक का हो गया था और उसे बागियों ने रौंद डाला था।

    - बागी कहां के लगते थे?

    - बापू! बागी जैसलमेर के थे।

    - जैसलमेर के? अपनी आंखों में कसुंबल रंग को घूटते हुए बापू ने कहा।

    - हां बापू! जैसलमेर के भाटी बोल गए हैं कि तुम्हारे बापू से कहना कि तुम्हारी नाक काट कर जा रहे हैं। अगर हिम्मत है तो चले आए।

    - ऐसा? नरा गोहिल इन बागियों को पाठ पढ़ाना पड़ेगा।

    - हां बापू! सच कहते हो! जैसलमेर के मालिक को अभी-अभी कुछ घमंड आ चुका है। नरा को भेजो तो ठीक हो जाए। एक शागिर्द ने हंसते हुए कहा।

    - बात तो सच है! जैसलमेर के भाटी को नरा जैसा मिल जाए तो ठीक हो जाए! एक बुड्डे ने कहा।

    - तुम ही जाओ! दरबार को भी मालूम हो कि चौहान के गांव में लूट कैसे हो सकती है?

    फिर तो नरा गोहिल अपने दो साथियों को लेकर चल निकला। नरा गोहिल वरुड़ी माता का बड़ा भक्त था। उसकी वरुड़ी माता में बहुत बड़ी श्रद्धा थी। नरा अगर दारू ना पिए तो उसके ऊपर कितने भी शस्त्र क्यों न चलाए जाये, उसे कुछ लगता नहीं। उसकी रक्षा वरुडी मां करती थी। साक्षात् काल को भी चबा जाए, ऐसा नरा गोहिल गांव की आबरू था। उसके अंग-अंग में क्षात्रत्व की धाराएं हमेशा मस्ती करती रहती थी। नरा गोहिल ऊंट पर सवार होकर अपने दो साथियों के साथ जैसलमेर आ पहुंचा।

    - वीरा यहां पर कुछ आराम फरमाए।

    - हां, नरा! मैं भी थका तो हूं। वीरा ने कहा और तीनों आदमी उधर बैठ गए। थोड़ी देर आराम करने के बाद आहिस्ता से नरा ने कहा वीरा जैसलमेर के मालिक की नाक कट जाये, ऐसा कुछ तो करना पड़ेगा। क्या करेंगे?"

    - पहले तो हम जैसलमेर पहुंच जाते हैं।

    तीनों ने थोड़ा समय कुछ गपशप की और गांव में प्रवेश किया। एक रात रुक कर जैसलमेर को देखने लगे। जैसलमेर का बहुत बड़ा दुर्ग आंखों में समाता न था। उसके छप्पन बुर्ज थे। मरुभूमि के इस राजा का किला एक ऊंचे शिखर पर था। किले के चारों ओर भी दीवारें थी। किले के चारों दरवाजे रात को बंद हो जाते थे। किले की उत्तर दिशा पर जैसलमेर शहर था। उसके चारों और दीवारें थी। शहर के तीन दरवाजे और दो गुप्त द्वार थे। जैसलमेर के राजा रावल मूलराज के दरबार गढ़ के पास ही उन्होंने एक बड़ा-सा पशुबाडा देखा। जिनमें करीबन तीन सौ सांढनियां बंधी हुई थी। नरा गोहिल ने सांढनियां देखी तो तुरंत ही उसकी आंख में चमक आ गई। नरा वीरा की और लपका और आहिस्ता से बोला- वीरा! ये सांढनियां जोरदार हैं! इन्हें उठाएंगे तो दरबार को मालूम हो जाए कि हम भी कुछ कम नहीं!

    वीरा हाथी के जैसी चर्बी चढ़ी हुई कोमल चमड़ी वाली तेज-सी दमक रही सांढनियों को आंखें फाड़-फाड़ कर देखता रहा। उसको भी नरा की बात भा गई। ठीक उसी वक्त पशुबाडे का रखवाला अंदर से बाहर आया। उधर चक्कर काट रहे दो लोगों को देखकर उसकी आंखों में संशय आया।

    नरा ने उसे देखकर ही पछ लिया- क्या ये सांढनियां बेचने की है? वह आदमी मौज से हंस पड़ा।

    बोला- ये सारी सांढनियां जैसलमेर के मालिक रावल मूलराज की हैं। उसकी कीमत तो सर के बदले होती है भाई!

    नरा की आंखें गरम हो गई। उसने अपने आप को महा-मुसीबत से काबू में रखा और बोला-

    सच्ची बात है भाई! दरबारों की बात हम कहां कर सकते हैं? मुझे तो लगा कि यह बेचनी होगी! चलो वीरा! यहां हमारा कोई काम नहीं! ऐसा बोलकर दोनों वहां से निकल गए। सारी रात दोनों ने विचार किया और दूसरे दिन दोनों बाडे के पिछले भाग में पहुंचे। नरा बाड़ा में उतर गया और वीरा बाहर खड़ा रहा। तीसरा साथी तैयार होकर जैसलमेर के बाहर खड़ा था। संध्या के रंग धरती पर उतर चुके थे। उस वक्त वीरा बाड़े की चारों दिशा में घूमता रहा। नरा ने बाड़े में घुसकर सब कुछ देख लिया। फिर वह एक सांडनी के पास आया और तलवार से एक झटका दिया। सांढनी खड़ी की खड़ी कट गई। उसकी काली चित्कार ने सारी की सारी सांढनियों को हिला कर रख दिया। सारी सांढनियां एक-दूसरे की ओर आंखें फाड़-फाड़ कर देखने लगी। नरा गोहिल ने सांढनी के बह रहे खून में गमछा डुबोकर दूसरी एक सांढनी को सुंघाया। वह सांढनी भड़क कर खड़ी हो गई। दूसरी को सुंघाया तो वह भी खड़ी हो गई। आठ-दश सांढनियां इस तरह से भड़क कर खड़ी हो गई। उनकी नासिका हिलने लगी। जोर से सांस खींचने लगी। सांढनी की नासिका में मानो चींटिया घुस गई हो, उस तरह अपनी नाक को खुजलाने लगी। और चारों ओर देखने लगी, कुछ पांव पटकने लगी। कुछ इधर-उधर दौड़ने लगी। कुछ अपनी नासिका को घिसने लगी। इस तरह आठ-दश सांढों की गंगरने की आवाज से रक्षक हाथ में खुली तलवार लेकर दौड़ आये।"

    - कौन घुसा है अंदर?

    - नरा गोहिल! गांव से आया हूं, तेरे जैसलमेर के रावल मनराज से कहना की गांव का चौहान कोई ऐरा गैरा नहीं है, बागी बनकर तो चले आते हो लेकिन

    - लेकिन अभी इस वक्त क्या?

    - मैं नरा गोहिल, साढनियों को ले जाता हूं। बोल कर नरा ने एक रक्षक का मस्तक उतार लिया। साक्षात्कार मौत को देख कर बाकी रक्षक भाग गये। नरा गोहिल ने खून से लथपथ कपड़े को तलवार से उठाया और बाड़े की बाहर निकल गया। सारी साढनियां नरा के पीछे भागी। आगे नरा और पीछे सांढनिया। उसके पीछे वीरा। जैसलमेर के पीछे के दरवाजे से नरा सीधा शहर के बाहर निकल गया। थोड़े ही क्षणों में जैसलमेर के बाहर जाकर उसने विकट पहाड़ियों से रास्ता निकाल कर सांढनियों को उतार दिया और तीनों साथी पवन की गति से गांव की ओर निकल पड़े।

    भागे हुए रक्षक जैसलमेर के दरबार के पास पहुंचे। दरबार यह जानकर आग बबूला हो गया और तुरंत ही उसने सैनिकों को बुलाया और कहा कि कुछ भी हो जाए, सांढनियों को वापस लेकर आना होगा। आदेश होने के साथ ही पचास सैनिक की टोली निकल पड़ी। आगे नरा गोहिल और पीछे सारा लाव-लश्कर। गडासीसर के तालाब पास नरा पहुंचा था कि सेना उसके करीब आ पहुंची।

    - सांढनियों को छोड़ दे चोर!

    - "चोर तो जैसलमेर

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