21 Shreshth Balman ki Kahaniyan : Haryana (21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां : हरियाणा)
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Book preview
21 Shreshth Balman ki Kahaniyan - Dr. Ghamandi Lal Agarwal
कृष्णलता यादव
जन्म : 12 दिसम्बर, 1955
शिक्षा : एम.ए., बी.एड.
प्रकाशन : 1. अमूल्य धरोहर (लघुकथा) 2. चेतना के रंग (लघुकथा) 3. भोर होने तक (लघुकथा) 4. पतझड़ में मधुमास (लघुकथा) 5. मीठे बोल (बाल काव्य) 6. मुस्काता चल (बाल काव्य) 7. दोस्ती की मिसाल (बाल कथा) 8. पशु एकता जिंदाबाद (बाल कथा) 9. फायदे गरीबी के (व्यंग्य) 10. मन में खिला वसंत (दोहा) 11. रूप देवगुण की काव्य साधना (समीक्षा) 12. जिया है धूप को (लघु कविता) 13. जादू भरे खिलौने (बाल काव्य) 14. मन बादल (हाइकु)
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से पुरस्कृत।
लेखन विधाएँ : कहानी, कविता, बाल साहित्य, लोक साहित्य, दोहा, लघुकथा, व्यंग्य, लघुकविता, समीक्षा, हाइकु।
रक्षा पेड़ की
एक राजा के राज्य में शेखू नाम का बहुरूपिया रहता था। अपनी पहचान छुपाने के लिए वह दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। अपनी सूझ-बूझ से कठिन से कठिन स्थिति को सरल बनाना उसके बाएँ हाथ का खेल था। वेश बदलकर जनता के बीच घूमता और उनकी समस्याएँ सुलझाने में मदद करता। इसके बदले उसे राज्य की ओर से आर्थिक सहायता मिलती थी। शेखू भी खुश और लोग भी संतुष्ट।
एक दिन सुलोचना नाम की एक महिला ने उसके सामने अपनी समस्या रखी, ‘श्रीमानजी, मेरे घर के आँगन में एक हरा-भरा, छायादार पेड़ है। पच्चीस साल पहले मैंने उसे एक नन्हे पौधे के रूप में लगाया था। वह मेरे लिए संतान के समान है। अगर कोई उसका पत्ता भी तोड़ता है तो दर्द मुझे होता है। मैंने उसे अपने हाथों से पाला-पोसा है इसलिए वह मुझे अपने सुख-दुख का साथी लगता है। अब मेरे बेटे की शादी हो गई है। उसकी पत्नी को पेड़ से झड़ते पत्तों से बहुत चिढ़ है। वह चाहती है कि पेड़ को जल्दी से जल्दी कटवा दिया जाए ताकि न रहे पेड़ और न झड़ें उसके पत्ते। मैं नहीं चाहती कि पेड़ को लेकर घर में कलह-क्लेश हो। दूसरी ओर, मुझे पेड़ का काटा जाना भी पीड़ादायक लगता है। समझ नहीं पा रही हूँ कि ऐसी हालत में क्या किया जाए? इस समस्या का हल जानने के लिए इस विश्वास के साथ आपके यहाँ आई हूँ कि यहाँ हल नहीं निकला तो कहीं भी नहीं निकलेगा।’
शेखू ने भरोसा दिलाया, ‘आपकी पेड़-रक्षक भावना जानकर खुशी हुई। अगर एक आदमी एक पेड़ भी बचाएगा तो पर्यावरण में निखार आएगा। आप सचमुच नेक काम कर रही हैं, इसमें आपका ही नहीं, सबका भला शामिल है और सबकी भलाई के काम में शेखू कभी पीछे नहीं रहता। आपकी समस्या हल करना अब मेरा सबसे जरूरी काम हो चुका है। जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ, तुम चाहती हो कि साँप तो मरे मगर लाठी सलामत रहे।’
‘हाँ, हाँ, बिलकुल ठीक समझा है आपने’।
‘अब आप अपने घर का पता बता दीजिए और निश्चिंत होकर जाइए,’ शेखू ने कहा।
घर का पता बताने के बाद उस महिला ने वहाँ से विदा ली। एक दो दिन बाद सफेद दाढ़ी वाला एक बूढ़ा आदमी छोटी-सी संदूकची लिए सुलोचना के घर के सामने से गुजरता हुआ आवाज लगा रहा था, ‘कंठी, कंगन, झुमके..... ......लो। सोने से कम नहीं, खो जाए तो गम नहीं। बहन-बेटियों आओ! देखने का दाम नहीं; धोखाधड़ी का काम नहीं।’ आवाज सुनकर उस घर की बहू चहकी, ‘बाबा! दिखाओ तो, आपके पास कौन-कौन से गहने हैं। कुछ पसंद आया तो खरीद लूँगी।’
बूढ़ा आदमी चबूतरे पर बैठ गया और संदूकची खोलकर एक-एक कर गहने दिखाने लगा। फिर घर की ओर देखकर बोला, ‘बड़े भाग्य वाली बेटी, ठंडा पानी तो पिलाओ।’ बहू उसी समय पानी ले आई और उत्सुकता से पूछा, ‘बाबा! जानने की इच्छा है कि बड़े भाग्य वाली कैसे हूँ मैं?’ मुस्कराते हुए वह बोला, ‘बेटी, आँगन में हरे-भरे पेड़ वाले घर की मालकिन होना छोटी बात नहीं। आज के सिमटते-सिकुड़ते घरों में आदमी को ठिकाना नहीं। तुम्हारे यहाँ तो पेड़ ने छाता-सा तान रखा है। कितना अच्छा होता जो मेरे घर का आँगन भी इतना बड़ा होता कि मैं एक पेड़ लगा पाता। खैर, मेरे घर न सही, तुम्हारे घर सही। कोई तो पेड़ का लाभ उठा रहा है। कितने गुणकारी होते हैं पेड़-जन्म से मरने तक किसी न किसी तरह इनका उपयोग करते हैं हम।’ उसी क्षण बहू ने मुँह बनाकर कहा, ‘क्या बताऊँ बाबा! इस पेड़ के कारण सफाई चौपट हो जाती है। कभी पत्ते गिरते हैं, कभी फूल, कभी फल तो कभी परिन्दे बींठ करते हैं। कितने दिन से इसे कटवा देने की योजना बना रही हूँ। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी। वैसे इस बारे में आपका क्या विचार है?’
‘अब पूछ लिया तो यही कहूँगा कि पेड़ को कटवाने की बात सपने में भी मत सोचना, बिटिया। तनिक सोचो, कूड़ा कौन नहीं फैलाता? हम-तुम सभी तो कूड़ा फैलाते हैं। उसके मुकाबले इसका कूड़ा तो कुछ भी नहीं। वैसे भी, जिसे तुम कूड़ा बता रही हो, उन्हीं फूल, पत्तों को गड्ढे में दबाकर ऑर्गेनिक खाद बनाई जा सकती है। तब मिलेंगे-आम के आम, गुठलियों के दाम। बताओ, कुछ गलत कहा मैंने?’
‘बाबा, आपकी बात तो सोलह आना सच है, बाबा, पर..’ बहू कुछ कहते-कहते रुक गई।
एक बात और बताता हूँ- ‘कल को तुम्हारे बाल-गोपाल होंगे। पेड़ पर चढ़ती-उतरती गिलहरियों को देखकर वे हँसेंगे-खिलखिलाएँगे, उनके पीछे दौड़ लगाएँगे। थोड़ा बड़े होने पर पेड़ पर चढ़ेंगे-उतरेंगे, कसरत से शरीर में फुर्ती आएगी। तुम उस नजारे को आँखों में बसाओगी। दिल को चैन मिलेगा। इतना ही नहीं, कोयल की कूक, कबूतर की गुटरगूं और चिड़ियों की चीं-चीं से घर में साज-सा बजा करेगा। कितना अच्छा होगा न!’
‘तब तो हम हर सूरत में इस पेड़ की रक्षा करेंगे।’
‘शाबाश! यह हुई न बात। लेकिन इतनी भली बात को धीमी आवाज में क्यों कह रही हो। जोर से कहो ताकि फूल-पत्ते, दरवाजे-खिड़कियाँ, चाँद-तारे, धरती-आकाश सब सुनें। ओह! पेड़ की महिमा सुनाते-सुनाते मैं गहने दिखाना तो भूल ही गया।’ इतना कहकर वह संदूकची में रखे एक-एक गहने की विशेषताएँ बताने लगा। बहू ने झुमके पसंद किए। सौदागर ने एक जोड़ी बिछुए बहू की ओर बढ़ाते हुए कहा कि तुम मेरी बात की लाज रखने जा रही हो। बहुत बड़ी दौलत को बचा रही हो। इस खुशी में, मेरी ओर से, यह छोटी-सी भेंट है। ईश्वर करे, तुम्हारा अपना कद भी इस पेड़ की तरह बढ़ता