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Manhua Hua Kabir
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Ebook184 pages57 minutes

Manhua Hua Kabir

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About this ebook

डॉ. मंजु गुप्ता जी नव सृजित कृति 'मनुआ हुआ कबीर' में 52 विषयों पर दोहे ही दोहे हैं। इन दोहों में भारतीय-संस्कृति और राष्ट्रीय परिवेश की सुरभि महक रही है। एक तरफ तो भारतीय हिन्दू परिवार, सनातन-धर्म, भारतीय परम्पराएँ, त्यौहार, ग्राम्य-जीवन, औषधियाँ, फूल, कोरोना की वैश्विक महामारीआदि विषय गहराई तक छुए गये हैं, वहीं पर दूसरी तरफ श्रमिक-वर्ग के पुरुष, महिलाएँ और बच्चों की दहकाती-पीड़ा ने आपको अन्दर तक दग्ध किया है।

Languageहिन्दी
Release dateSep 28, 2021
ISBN9789389856460
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    Manhua Hua Kabir - Dr. Manju Gupta

    संपादक

    डॉ. मंजु गुप्ता

    इंडिया नेटबुक्स

    समर्पण

    सर्वप्रथम मैं अपनी सर्जना की नवेली नौवीं कृति ‘मनुआ हुआ कबीर’ को देश - विश्व के उन सभी जाँबाजों ने जिन्होंने कोरोना की महामारी में अपनी जान हथेली पर रख के मानवता की रक्षा करने के लिए भगवान बने डॉक्टरों ने कोरोना वॉरियर्स के रूप में कोरोना पीड़ितों को जीवन दान दिया है, जिसमें मेरी दो बेटियों के संग बेटे समान दामाद हैं।

    बड़ी बेटी डॉक्टर हिमानी गुप्ता, एम. डी. एस, बीएआरसी, मुम्बई

    तथा

    दामाद डॉक्टर कामेध चैधरी, एम. डी. एस, मुम्बई

    ––––––––

    दूसरी छोटी बेटी डॉक्टर शुचि गुप्ता फिजिकल थेरेपिस्ट मास्टर ऑफ़ न्यूरोसाइंस, कनाडा

    संग दामाद डॉक्टर सिद्धार्थ ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट मास्टर ऑफ़ न्यूरोसाइंस, कनाडा

    ––––––––

    प्रातः स्मरणीय शैक्षिक क्रांति के जनक ऋषिकेश, उत्तराखण्ड में हमारे पिता स्व. प्रेमपालवाष्र्णेय, युग निर्मात्री हमारी माँ स्व. श्रीमती शंति देवी वाष्र्णेय एवं मेरे अग्रज भाई स्व. विजय कुमार वाष्र्णेय आई.ए.एस

    और संग में मेरे हमसफर आ. श्री स्वतंत्र कुमार गुप्ताजी बी. ई, इंजीनियर ने लेखन के सफर को निर्बाध गति प्रदान की जिसके कारण मेरा सपना साकार हुआ है। उन सभी आत्मीयजनों को मेरी यह कृति सादर समर्पित है।

    कलम की उपलब्धियों का संसार

    ’आकाशवाणी, मुम्बई’ से साहित्यकार, शिक्षिका डॉ. मंजु गुप्ता की कृतियों के  संग साक्षात्कार।

    परम आदरणीय पद्म विभूषण, पद्म श्री डॉ. गोपालदास नीरज जी के साथ उनके निवास स्थान अलीगढ़ में आत्मिक मुलाकात और मेरी पांडुलिपियों पर विमर्श।

    पद्मश्री डॉ अशोक चक्रधर जी के साथ यादगार भेंट एवं मेरी पुस्तकों की प्रस्तुति।

    मनुआ हुआ कबीर (दोहे)

    शैशव की स्मृति

    हमारे पिताजी प्रेमपाल वाष्र्णेय जी 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय गांधी जी की विचारधारा से प्रभावित हो कर हमारी माँ शांति देवी वाष्र्णेय के साथ गंगा के तीर्थ धाम ऋषिकेश में आए थे। माता - पिता ने वहाँ पर शैक्षिक क्रान्ति की थी। ‘भरत मंदिर कॉलिज’ में प्राचार्य और सामाजिक कार्यकर्ता होने के कारण सांस्कृतिक कार्यों में गतिशील रहते थे। समय - समय पर ऋषिकेश में रुद्रप्रयाग, बद्रीनाथ, टिहरी गढ़वाल आदि स्थानों पर जाने के लिए भारत की बड़ी - बड़ी हस्तियों का पड़ाव ऋषिकेश में होता था। इन हस्तियों में जैसे स्व आ. चन्द्रभानु गुप्त जो स्वतंत्रता सेनानी, मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश के थे, महाराष्ट्र के स्व. श्री प्रकाश राज्यपाल, आदि आए थे। मैं मंजु वाष्र्णेय बचपन में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ज्यादा ही सक्रिय होने की वजह से मुझे स्वागत गान गाने और माल्यार्पण के लिए चुना गया और प्रथम राष्ट्रपति महामहीम स्व .डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी के सामने स्व प्रेमपाल वाष्र्णेय द्वारा लिखित यह स्वागत गान गाया था -

    स्वागत है श्रीमान आपका

    आए बन कर कृपा निधान

    युग - युग तक गाएँगे गान

    जय - जय - जय राष्ट्रपति महान।

    यह गीत सुनकर प्रथम राष्ट्रपति महामहिम डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी ने मुझे मुस्करा कर आशीर्वाद दिया था। मेरे नाम पूछकर अर्थ बताने को कहा,

    तो मैंने कहा - सुंदर

    तब उन्होंने कहा अपने नाम को कार्यों से सार्थक करना।

    उनका आशीर्वाद मेरे जीवन में खूब फल रहा है, मुझे ऊर्जा, उत्साह देता है।

    यह फोटो उसी अतीत के सुनहरे पलों को याद कराती है। जैसे - जैसे में बड़ी होती गयी, कलम समाज, देश, संसार की बातें लिखने लगी। हिन्दी के साहित्यकारों से जैसे निदा फाजली, पद्मश्री आ. डॉ. अशोक चक्रधर, पद्मश्री स्व डॉ. गोपालदास नीरज, महात्मा गांधी के पोते आ. तुषार गांधी जी आदि के संग मुलाकातों का सान्निध्य मुझे मिला।

    ––––––––

    ऋषिकेश, उत्तराखंड में भारत के प्रथम राष्ट्रपति महामहिम माननीय स्व. डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद जी के साथ मंजु गुप्ता अपने शैशव के दिनों में।

    गोवा की राज्यपाल महामहिम मृदुला सिन्हा जी के साथ भारत की राष्ट्र भाषा हिंदी बने पर विमर्श।

    अनुक्रम

    1. गणेश चतुर्थी का महापर्व

    2. नूतन साल

    3. माँ

    4. पिता

    5. माता - पिता

    6. बेटी की पुकार

    7. जन्माष्टमी

    8. रक्षाबंधन

    9. होली के छलके रंग

    10. दीपावलियाँ हैं सजी

    11. भैया दोज

    12. दशहरा के राम

    13. रामनवमी

    14. नवरात्रे में देवी माँ का जयकारा

    15. गुरुपर्व

    16. समरसता का वसंत

    17. नाग पंचमी पर्व पर कश्मीर

    18. छठ मैया

    19. मकर-संक्रान्ति (मकर राशि में जाय रवि)

    20. ईद

    21. सर्दी

    22. फूल

    23. बेला

    24. कमल

    25. शीशम

    26. अप्रतिम कुटज

    27. बोय पेड़ बबूल के

    28. मजदूर दिवस

    29. महिला कामगार

    30. मेहनतकश बाल मजदूर

    31. जनसंख्या नियंत्रण

    32. जाँबाज वायु यौद्धा वीर अभिनंदन

    33. प्रधानमंत्री मा. नरेंद्र मोदी जी का जन्मदिवस पर्व

    34. शुभकामना

    35. भारत रत्न डा. भीमराव अंबेडकर

    36. शरद पवार की पावर

    37. जल

    38. गंगा माँ

    39. पर्यावरण

    40. चाँद

    41. प्रमाणपत्र

    42. हमारा जनतंत्र

    43. नागरिकता बिल

    44. स्वास्थ्य और ग्रामीण जन जीवन

    45. नारी पुष्टाहार

    46. धड़कन में हिंदी

    47. सप्तपदी

    48. पापों का घड़ा

    49. गप्पें

    50. नीति के दोहे

    51. दिल्ली का तख्त

    52. कोरोना का कहर

    दोहों ने दोहा है मन

    आदरणीया डॉ. मंजु गुप्ता जी नव सृजित कृति ‘मनुआ हुआ कबीर’ में 52 विषयों पर दोहे ही दोहे हैं। इन दोहों में भारतीय-संस्कृति और राष्ट्रीय परिवेश की सुरभि महक रही है। एक तरफ तो भारतीय हिन्दू परिवार, सनातन-धर्म, भारतीय परम्पराएँ, त्यौहार, ग्राम्य-जीवन, औषधियाँ, फूल, कोरोना की वैश्विक महामारीआदि विषय गहराई तक छुए गये हैं, वहीं पर दूसरी तरफ श्रमिक-वर्ग के पुरुष, महिलाएँ और बच्चों की दहकाती-पीड़ा ने आपको अन्दर तक दग्ध किया है।

    नारी-जीवन के गहरे-जख़्मों को

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