Kacche Dhage
By Sameer
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प्यार एवं इश्क की तड़प के तानबाने में उलझा समीर का नया उपन्यास ‘कच्चे धागे’ आपके हाथ में है।
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Book preview
Kacche Dhage - Sameer
समीर
कच्चे धागे
सुनो अंजला! मैं तुमसे प्यार करता हूँ। तुम्हारे बगैर जिन्दा नहीं रह सकता। तुम्हें मेरा प्यार स्वीकार करना ही पड़ेगा। जवाब दो।
चटाख!
एक जोरदार थप्पड़ की आवाज गूंजी।
मिल गया जवाब?
अंजला ने गुस्से से कहा....या पैर की इज्जत हाथ में लेकर दूं?
नहीं, नहीं...।
विवेक जल्दी से न के संकेत में हाथ हिलाता पीछे हटते हुए बोला‒बस इतना ही काफी है।
अचानक कुंज के बाहर से कई लड़के-लड़कियों के ठहाके सुनाई दिए। विवेक घबरा गया‒भाग कर उसने छलांग लगाई और ऊँची बाड़ फलांग कर कम्पाउण्ड के दूसरे भाग में चला गया। वह बार-बार गाल सहलाता हुआ इधर-उधर देखता जा रहा था और अनजाने में ही एक लड़की से टकरा गया।
उई मां!
एक सुरीली-सी चीख गूंजी।
लड़की गिरने लगी तो विवेक ने जल्दी से कमर में हाथ डालकर संभाल लिया। बिल्कुल रोमांटिक-सा सीन हो गया। लड़की विवेक को देखकर चौंकी और विवेक की गर्दन में बांहें डालकर उसकी आंखों में देखते हुए कहा...हाय, हैंडसम! चलें क्या?
हट!
विवेक ने बुरा-सा मुंह बनाया।
फिर वह तेज-तेज आगे बढ़ता हुआ कुछ सोचकर ठिठक गया...जल्दी से लौट कर लड़की के पास आकर बोला‒आई एम सॉरी!
ओ माई गॉड!
लड़की खुश होकर बोली‒डियर फ्रेंड! मेरी गाड़ी उधर पार्किंग में खड़ी है।
सॉरी! आई वाज इन हरी-मैं तो टकराने की माफी मांग रहा था।
मिस्टर! एक बार टकरा कर तो देखो....जीवन-भर टकराने के ही मौके ढूंढ़ते रहोगे।
बेहूदी कहीं की...।
और विवेक बुरा-सा मुंह बनाकर आगे बढ़ गया। लड़की बड़े प्यार से उसे देखती रही।
अचानक ही एक दूसरी लड़की ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा‒कुछ बात बनी, देवयानी?
अभी तो कुछ नहीं बनी...न जाने कमबख्त को कब अक्ल आएगी।
यह तो अंजला को लाइन पर लाकर ही अकलमंद बनेगा‒अभी तो चांटा खाकर ही आया है।
साला कावर्ड मुंह के पास आई कैडबरी पर होंठ नहीं रखता-ताड़ के पेड़ पर लटके फल के लिए ललचा रहा है, अभी किधर गया होगा।
महेश की तलाश में...। वहीं उसका प्रेम गुरु है।
साला ‘प्रेम शास्त्र’ भी सीखना चाहता है और वह भी संन्यासी से...। अरे अपन से सीधा कामशास्त्र ही सीख लेता।
विवेक बौखलाया-सा किसी और लड़के से टकराया जो बोला‒अबे क्या अंधा हो गया है?
अरे क्षमा करना भाई-महेश को तूने देखा है कहीं?
वह तो गाड़ी में बैठकर चला गया।
व्हाट...ऐसा नहीं हो सकता‒वह रोज मुझे बस्ती तक के लिए लिफ्ट देता है।
वह तो खुद तुझे ढूंढ रहा था‒कह रहा था कि आज उसे मेडिकल चेकअप की रिपोर्टें लेने के लिए जाना है।
ओ गॉड! आज तो मुझे भी खासतौर पर उसके साथ जाना था...मैं तो उसके बताए डायलॉग ही रटता रह गया जो मुझे अंजला से बोलने थे।
अरे! क्या हुआ अंजला का....कुछ पिघली या नहीं?
पिघल कर गाल पर चिपक गई....यह देख उंगलियों के निशान।
लड़का हंस पड़ा।
अबे! तू कॉलेज का नम्बर वन हीरो है... और अंजला को अभी तक नहीं पटा सका।
कोई बात नहीं, निराश होना मैंने नहीं सीखा। उठाकर ले जाऊंगा साली को मंदिर में... एक बार मांग में सिंदूर लगा दूंगा तो आप ही प्रेम करने लगेगी।
तुझे स्वयं प्रेम करना आता है? इसके भी कुछ खास गुर हैं... अगर सीखना चाहे तो देवयानी को गुरु बना ले।
छोड़ यार... किसका नाम ले रहा है... अमन को ऐसी गुरु नहीं चाहिए....जो प्रेमी की सारी ईमेज ही बिगाड़ दे।
फिर वह चौंक पड़ा‒अबे यार! मैं भूल गया...जरा अपनी मोटर साइकिल दे।
नहीं‒पेट्रोल बहुत महंगा हो गया है... अपन का बाप शीशियों में नाप कर पेट्रोल डलवाने को बोलेला है।
विवेक ने जबरदस्ती उसकी जेब में हाथ डाल दिया।
अरे रे विवेक यार....देख, यह ठीक नहीं।
सीधी उंगली से घी न निकले तो उंगली टेढ़ी करनी ही पड़ती है।
यही फार्मूला अंजला के साथ क्यों नहीं आजमाता?
जरा प्रेम-गुरु की सलाह ले लूं।
लड़का बुरे-बुरे मुंह बनाता रह गया और विवेक उसकी चाबी लेकर पार्किंग में आया। मोटर साइकिल स्टार्ट की और बाहर निकल आया और लड़का चिल्लाता ही रह गया‒अबे, अबे मेरी मोटरसाइकिल अभी शोरूम से नई-नई विदा होकर आई है‒अभी तो हनीमून भी नहीं मना सका।
उधर मोटर साइकिल हवा से बातें करती उड़ती चली गई... जो गाड़ी सामने आयी विवेक उसे ओवरटेक करता चला गया। एक जगह ट्रैफिक कॉन्स्टेबल ने चालान के लिए रोकना चाहा... विवेक ने जल्दी से कहा‒हवालदार साहब! मेरी नानी आई. सी. यूनिट में हस्पताल में है... उनकी अंतिम सांसें निकलने से पहले वहां पहुंचना है।
हस्पताल पहुंचना है तो लौट कर मत आना... कहीं तुम्हें भी वहीं भरती करना पड़े।
विवेक ने सुनी-अनसुनी कर दी... मोटरसाइकिल तेजी से दौड़ती रही। एक जगह लोकल ट्रेन की लाइनों के इधर-उधर भीड़ नजर आई... क्रासिंग बंद था... उसे मोटरसाइकिल रोकनी पड़ी।
यह भीड़ कैसी है?
उसने एक हवलदार से पूछा।
कोई एक्सीडेंट हो गया... या होने वाला है।
व्हाट?
एक आदमी आत्महत्या करने के लिए पटरियों के बीच लेटा है।
हाय! तुम उसे रोक नहीं रहे?
अपन ड्यूटी पर नहीं है... बच्चे के लिए फीडिंग बॉटल और बीवी के लिए ब्रेसरी खरीदने आएला है... इस लफड़े में पड़ने का टाइम कहां है।
हवलदार चला गया। विवेक मोटरसाइकिल से उतरा। एक लड़के के कंधे पर हाथ रखा तो वह बोला‒आओ...आओ देखने का बात है...अपन ‘फर्स्ट टैम’ किसी को मरते देखेला है।
विवेक भीड़ को चीरकर अंदर घुसा तो उसने दूसरी ओर महेश की गाड़ी खड़ी देखी...महेश को पटरियों पर यूं लेटे देखकर वह हड़बड़ाकर बोला‒
अबे महेश...यह तू क्या कर रहा है?
महेश कुछ नहीं बोला। लोग चिल्लाने लगे‒
यह कौन आ गएला?
साला... मजा किरकिरा करेंगा।
अरे! ऐसा ‘सीन’ देखने को कब मिलेंगा?
एक ओर किसी फिल्म प्रोड्यूसर की गाड़ी खड़ी थी जिसके साथ एक कैमरामैन 16 एम. एम. का कैमरा लिए उस दृश्य की फिल्में ले रहा था। विवेक को दौड़ते देखकर प्रोड्यूसर बोला‒
यह कौन गधा है?
आदमी है।
फोटोग्राफर ने कहा‒पैरों पर दौड़ रहा है...हमें नजर आ रहा है पूरा दृश्य।
अरे-उसे बचाने जा रहा है।
तो इसको हीरो बनाने का है अपनी फिल्म में।
हीरो के बच्चे! अगर वह आत्महत्या नहीं कर सका तो हमारी फिल्म में हीरो की आत्महत्या का नेचुरल सीन कैसे पड़ेगा।
पड़ेगा सर! अगर वह नहीं लेटा तो आप लेट जाइएगा... अपन ऐसी शानदार फोटोग्राफी करेंगा कि देखने वालों की आंखों में आंसू आ जाएंगे।
उल्लू के पट्ठे! मेरी बीवी को विधवा करेगा?
विधवा की शादी की आप चिन्ता न करें। अपन उससे शादी कर लेंगा।
दूसरी ओर से विवेक हांफता हुआ महेश तक पहुंच गया‒अबे क्या कर रहा है तू?
यह नहीं हो सकता...जब तक अंजला को मैं लाइन पर नहीं ले आता तब तक तुझे जिन्दा रहना पड़ेगा।
क्या हुआ...?
थप्पड़ मार दिया मुझे।
तूने ठीक डायलॉग बोला था।
जो तूने बताया था... सब बोल दिया मैंने... मगर अंजला ने फिर भी मुझे थप्पड़ मार दिया... यह देख! मेरे गाल पर निशान!
चल आ...अंजला से सच्चा प्यार करता है तो मेरे साथ लेट जा...सच्चे प्यार की यही परख है।
अबे! मैं अकेला क्यों मरूं... उसे भी मेरे साथ मरना चाहिए।
वह क्यों मरेगी? वह तो तुझसे प्यार नहीं करती।
अरे! तू कैसा प्रेम-गुरु है?
वास्तव में मेरी अपनी शिक्षा अधूरी है। मैंने स्वयं किसी से प्यार नहीं किया।
तो क्या तू मुझे केवल थ्योरी पढ़कर ही बता रहा था।
तभी अचानक लोकल ट्रेन धड़धड़ाती आवाज के साथ आई और विवेक चीख मारकर महेश से लिपट गया...महेश ने भी चीख मारी-दोनों एक-दूसरे से लिपटे रहे-मगर लोकल ट्रेन बराबर की पटरियों से गुजरती चली गई थी।
जब ट्रेन गुजर गई तो इधर के लोगों ने दोनों को जिन्दा एक-दूसरे से लिपटे देखा। दर्शक बातें करने लगे।
ये दोनों तो ‘साबुत’ पड़े हैं।
ट्रेन जिस पटरी से गुजरी है...ये उस पर नहीं थे।
कहीं दहशत से तो नहीं मर गए? चलकर देखने का है।
इतने में पुलिस की एक जीप आकर रुकी। जिसमें से दरोगा के साथ कुछ कॉन्स्टेबल उतर कर भीड़ की ओर बढ़े। दरोगा चिल्लाया‒क्या हो रहा है?
काहे को भीड़ लगा रखी है?
हवलदार ने लाठी फटकार कर कहा।
दूसरे ही क्षण भीड़ तितर-बितर हो गई। एक कॉन्स्टेबल विवेक और महेश को पटरियों के बीच पड़े देखकर चिल्लाया‒अरे साहब! ये लोग तो मर गएला।
सब-इंस्पेक्टर लपक कर उनके पास पहुंचा। उसने दोनों की नाड़ियां देखीं... फिर उठता हुआ बोला‒दोनों बेहोश हैं।
जेब की तलाशी लूं साहब... यह लौंडा बड़े घर का मालूम पड़ेला है।
बको मत।
एस. आई. इधर-उधर देखकर बोला‒हो सकता है वह सामने खड़ी कार इन्हीं की है।
फिर उन लोगों ने दोनों को उठवा कर जीप में डाल दिया...एक कॉन्स्टेबल जो ड्राइविंग जानता था उसको कार ले आने को कहा।
कुछ देर बाद जीप आगे-आगे और उनकी गाड़ी पीछे-पीछे थाने में पहुंची। सबसे बढ़कर निराशा तो उस फिल्म प्रोड्यूसर को हुई होगी, जिसे ‘आत्महत्या’ का नेचुरल सीन शॉट करने को नहीं मिला था।
2
विवेक को थोड़ा होश आया तो सबसे पहले उसे छत नहर आई...उसने आंखें मलकर पलकें झपकाईं तो उसे याद आया कि वह तो रेल की पटरी पर महेश के साथ लेटा था...अचानक लोकल ट्रेन आई थी और उसका दिल बहुत जोर से धड़का था‒तो क्या मैं मर गया हूं?’ उसने सोचा, फिर मद्धिम से स्वर में पुकारा‒महेश, कहां हो तुम?
ज्यादा दूर नहीं हूं दोस्त।
नजर क्यों नहीं आ रहे...बस तुम्हारी आवाज सुनाई दे रही है।
इसका मतलब है हम दोनों मर गए हैं और परलोक में हैं।
यह तो बहुत बुरा हुआ...अंजला बेचारी सुहागिन बनने से पहले ही विधवा हो गई। वरना तुम्हारी भाभी होती।
बेचारी का दुर्भाग्य-हम अफसोस करने भी नहीं जा सकते।"
मगर तुमने आत्महत्या क्यों की?
अपनी मेडिकल रिपोर्ट चेकअप कराने पर पता चला कि मुझे ‘कैन्सर’ है।
कैन्सर?
विवेक उछल पड़ा‒तब तो तू मर जाएगा।
तभी तो आत्महत्या कर ली।
यार, इलाज कराके तो देखता...शायद बच जाता।
कोई लाभ नहीं होता...कैन्सर का कोई इलाज नहीं, लेकिन तुझे मरने में इतनी जल्दी नहीं करनी चाहिए थी...शायद अंजला मान ही जाती।
मैं तो तेरा साथ देने के लिए मर गया।
अचानक किसी की फटकार सुनकर दोनों उछल पड़े‒क्या बकवास कर रहे हो, तुम लोग?
यार! यह तो तेरे डैडी की आवाज मालूम होती है‒क्या वह भी तेरे साथ मर गए?
फिर एक जोरदार छड़ी की फटकार सुनाई दी और दोनों उछल पड़े...साथ ही उठकर बैठ गए।
अरे!
विवेक महेश को देखकर चीखा‒तू तो जिन्दा है।
और तू भी जिन्दा है।
महेश चीख पड़ा।
सेठ जगमोहन पास खड़े दोनों को घूरकर देख रहे थे‒यह क्या मूर्खता कर रहे थे तुम दोनों...क्यों आत्महत्या कर रहे थे?
डैडी! जीवन से निराश आदमी और क्या कर सकता है?
तुम अपने इस मूर्ख दोस्त की दोस्ती छोड़ दो।
जगमोहन ने गुस्से से विवेक की ओर इशारा किया‒वरना तुम्हें किसी दिन सचमुच मरना पड़ेगा।
डैडी! विवेक मेरा बचपन का दोस्त है।
तभी तो कह रहा हूं‒यह खानदानी बेवकूफ है‒इसका बाप भी मेरा बचपन का गहरा दोस्त था‒हम दोनों ने एक साथ ‘प्रेक्टिकल’ जीवन में कदम रखे थे।
बिना थ्योरी जाने?
विवेक ने आश्चर्य से पूछा।
शटअप!
और विवेक आंखें मिचका कर रह गया‒उसे बिजनेस की जरा भी सेंस नहीं थी...अगर उसके पास दिमाग होता तो हमारी ही तरह बड़ा आदमी बन गया होता।
अंकल! मेरी मां कहती हैं, आदमी अपने नसीबों से छोटा-बड़ा बनता है।
बकवास है...वह ‘कर्मों’ से छोटा-बड़ा बनता है।
अंकल! फिर एक मूर्ख के साथ आप जैसे अक्लमंद की दोस्ती कैसे निभ गई? मतलब यह है कि ऐसे ही मेरी और विवेक की दोस्ती बनी रहने दीजिए...इससे हमें मानसिक सन्तोष मिलता है।
बिल्कुल नहीं...यह भी कोई तुक है सिर्फ ‘मेडिकल रिपोर्ट’ देखने से ही कोई आत्महत्या करने की ठान ले और तुम उससे भी महामूर्ख हो, उसके कहने पर ही तुम उसके साथ रेल की पटरी पर लेट गए...अरे आदमी तो आखिरी सांसों तक जिन्दा रहने के लिए मौत से जूझता है...चलो उठो...गाड़ी में बैठो।
अंकल! मैंने इसे मरने के लिए नहीं कहा था...मरने से रोकने की कोशिश की थी...यह मेरा प्रेम-गुरु है...इससे मैं प्रेमशास्त्र सीखता हूं...मगर अभी तक लड़की नहीं फंसी है।
और....तेरे साथ!
जगमोहन ने छड़ी चलाई तो विवेक कूद कर भाग पड़ा...जगमोहन ने बड़बड़ाते हुए महेश की ओर देखा और बोले‒चलो, उठो! फिर कभी आत्महत्या की कल्पना भी मत करना‒हम जल्दी ही तुम्हें इलाज के लिए अमरीका भिजवाने वाले हैं।
महेश अनमने मन से उठकर अपने पिता के साथ बाहर आकर एअरकंडीशंड गाड़ी में आ बैठा। गाड़ी जगमोहन स्वयं ड्राइव कर रहे थे....दोनों में से किसी को इस बात का ज्ञान नहीं कि पिछली सीट के नीचे विवेक लेटा हुआ है।
सेठ जगमोहन कह रहे थे‒"जिस तरह रतन हमारा दोस्त था वैसे ही तुम्हारी मम्मी और विवेक की मां आपस में गहरी सहेलियां थीं...और एक बहुत बड़ा संयोग कि दोनों ने एक ही हस्पताल में एक ही समय तुम्हें और विवेक को जन्म दिया था।
अच्छा! बड़ा अजीब संयोग है।
हां बेटे! यह बात हमने तुम्हें कभी नहीं बताई...क्योंकि जब तुम दोनों की कुण्डलियां पंडितजी से बनवाई गई थीं तो उन्होंने विवेक की कुण्डली देखकर कहा था कि यह लड़का राजकुमार बनकर जिन्दगी गुजारेगा।
सच...डैडी?
यही तो हम तुम्हें बता रहे हैं...बताओ तुम राजकुमार बनकर जीना चाहते हो या विवेक की भांति कंगाल?
लेकिन डैडी, अभी विवेक की उम्र ही क्या है?
बेटे...पूत कपूत पालने में ही नजर आ जाते हैं...जो नौजवान अच्छा स्वस्थ और सुन्दर होते हुए भी अनचाही लड़की से सम्बन्ध जोड़ सकता है, भला राजकुमार क्या बन सकता है...आजकल की लड़कियां भी राजकुमार ही को पसंद करती हैं।
मगर डैडी...विवेक तो उसे बहुत प्यार करता है।
क्या वह भी विवेक से प्यार करती है?
अभी तक तो नहीं।
"कभी नहीं करेगी...आजकल की लड़कियां भले ही झोपड़पट्टी में जन्म लें,