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Seemaein Toot Gayee - (सीमाएं टूट गई)
Seemaein Toot Gayee - (सीमाएं टूट गई)
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Seemaein Toot Gayee - (सीमाएं टूट गई)

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About this ebook

कोलकाता के एक गरीब क्लर्क के घर में जन्मे निमाई भट्टाचार्य का बचपन अत्यंत संघर्षपूर्ण परिस्थितियों के बीच बीता। कॉलेज जीवन | के दौरान ही उनके पत्रकारिता जीवन की भी शुरुआत हुई। | पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़ने पर उनकी साहित्यिक प्रवृत्ति जागृत हो | उठी। जीवन के विभिन्न पहलुओं से रूबरू होते हुए उन्होंने नारी | जीवन को करीब से महसूस किया। यही कारण है कि उनके लेखन में नारी के चरित्र व समाज में उसके स्थान का मुख्य रूप से चित्रण हुआ। है। श्री निमाई भट्टाचार्य आज बंगला के प्रतिष्ठित व यशस्वी उपन्यासकार हैं। उनके प्रथम उपन्यास ‘राजधानीर पथ्ये’ का मुखबंध स्वयं पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने लिखा था। उनकी मूल बांग्ला रचनाओं से ‘राग असावरी’, ‘देवर भाभी’, ‘अठारह वर्ष की लड़की’, ‘सोनागाछी की चम्पा’, ‘अवैध रिश्ते’, और ‘एक नर्स की डायरी का’ हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हो चुका है। इसी श्रृंखला की नई कड़ी है ‘सीमाएं टूट गईं’।
पढ़िए, एक ऐसे प्रेमी युगल की मार्मिक गाथा जिसने किसी सरहद, मजहब एवं अमीर-गरीब के अंतर को नहीं माना अपितु अपने प्रेम को नई पहचान दी।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateSep 1, 2020
ISBN9789390088386
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    Seemaein Toot Gayee - (सीमाएं टूट गई) - Nemai Bhattacharya

    को

    सीमाएं टूट गई

    ।। एक ।।

    डायनिंग हॉल में प्रवेश करने के बाद दो-चार कदम आगे बढ़ते ही सामने वाली मेज पर उन्हें देखकर मैं हैरान हो उठा । वो भी एकटक नज़रों से मेरी तरफ देखती रही ।

    बस... कुछ पल के लिए वो मेरी तरफ देखने लगे । उसके बाद उन्होंने खड़ी होकर मुस्कराकर कहा-मुझे ऐसा लगता है कि मैंने आपको कहीं देखा है । लेकिन कहा...

    उनको अपनी बात पूरी करने का मौका न देकर मैंने भी मुस्कराकर कहा-आपने ठीक ही कहा । इससे पहले हम दोनों क्लैरेजिस में मिले थे ।

    हां-हां ।

    उन्होंने पलभर के लिए रुककर कहा-मैं वहां अंकल भुट्टो से मिलने गई थी और आप भी उस वक्त वहां पर ही थे... ।

    मैंने एक बार फिर उनकी बातों को बीच में ही काट दिया और मुस्कराकर कहा-मैं वहां किसी अंकल से मिलने के लिए नहीं गया था... मैं वहां कॉमनवेल्थ हेडर ऑफ गवर्नमेंट कॉन्फ्रेंस कवर करने गया था ।

    आप क्या कोई पत्रकार हैं?

    हां मैडम ।

    इस बार उन्होंने अपना दाहिना हाथ मेरी तरफ बढ़ाकर कहा-मैं हूं रोशेनारा सिद्दिकी ।

    मैंने भी अपना दाहिना हाथ उनकी तरफ बढ़ाकर कहा-और मैं हूं प्रियव्रत चटर्जी ।

    रोशेनारा लगभग चिल्ला उठी-ओ माई गॉड । आप बंगाली हैं?

    हां... मैं बंगाली हूं ।

    अगर आपको कोई ऐतराज न हो तो, आप इस मेज पर ही बैठिये ।

    ऐतराज क्यों होगा... जुलफिकर अली भुट्टो साहब की लाडली भतीजी के साथ बैठकर लंच करना तो मेरे लिए सम्मान की बात होगी ।

    अच्छा... पत्रकार लोग क्या हमेशा ऐसी ही चुभती हुई बातें करते हैं?

    सॉरी ।

    रोशेनारा ने अपने दोनों हाथों के ऊपर चेहरा टिकाकर कहा-आप क्या लंदन से सीधा यहां आये हैं?

    हां ।

    अचानक रोम क्यों आये आप?

    चार आना घूमने के लिए, बारह आना सुस्ताने के लिए ।

    सुस्ताने के लिए तो आप लंदन के आस-पास भी जा सकते थे... यहां क्यों आये?

    ऐसी कोई खास वजह नहीं है । दिल्ली वापस जाने से पहले कुछ दिन विश्राम करने के लिए ही मैं यहां आया हूं ।

    इस बार मैंने सवाल किया-आप कहां रहती हैं? लंदन या ढाका?

    मैं कराची में ही रहती हूं...लेकिन फिलहाल पढ़ाई की खातिर बर्लिन में रहती हूं।

    आप यहां क्या किसी काम से आई हैं?

    नहीं-नहीं । किसी काम से नहीं आई हूं । छुट्टी मिलते ही मैं कार्टिनेन्ट की किसी-न-किसी जगह पर चली जाती हूं ।

    बिना रुके ही उन्होंने मुस्कराकर कहा-शायद आपसे मुलाकात होनी थी... इसीलिए इस बार मैं रोम आ गई हूं।

    हे भगवान ।

    प्रौढ़ा वेट्रेस के मेज के पास आकर खड़े होते ही रोशेनारा ने मेरी तरफ देखकर पूछा-आपको व्हाईन पीने में कोई ऐतराज तो नहीं है न?

    मैंने सिर हिलाकर कहा-नहीं ।

    उन्होंने मार्लोत का आर्डर देकर मुझसे पूछा-आप यहां कितने दिन रहेंगे? मैंने मुस्कराकर जवाब दिया-तीन हफ्ते पहले दिल्ली से रवाना हुआ था । अब जेब लगभग खाली हो चुकी है । तीन-चार दिन से ज्यादा शायद रह नहीं पाऊंगा । रोशेनारा कुछ नहीं कहती है ।

    वेट्रेस दो गिलास में व्हाईन परोसकर विदा लेती है ।

    रोशेनारा ने एक गिलास उठाकर कहा-फॉर योर प्लेजेंट एण्ड कम्फर्टेवल स्टे ।

    सेम टू यू ।

    इधर-उधर की बातें करते हुए हम दोनों लंच करते हैं । वेट्रेस के बिल लाकर देते ही मैं जेब से पर्स निकालता हूं...लेकिन रोशेनारा ने आहिस्ते से मेरे हाथ के ऊपर अपना एक हाथ रखकर कहा-प्लीज ।

    लेकिन... ।

    कोई लेकिन नहीं ।

    नोटों के ऊपर एक नजर डालकर वेट्रेस ने मुस्कराकर दो बार कहा-ग्राजी...ग्राजी ।

    मैं समझ गया कि, टीपस् रकम अच्छी ही मिली उसे । नहीं तो वो इस तरह दो बार धन्यवाद प्रकट नहीं करती ।

    रेस्टोरेन्ट के बाहर आते ही रोशेनारा ने पूछा-आप विला देल पाको में क्यों ठहरे हैं?

    बहुत ही छोटे या बड़े होटल में ठहरने को मेरा मन नहीं करता । इससे पहले भी एक बार मैं इस होटल में ठहरा था । अच्छा ही लगा था... सो इस बार भी... ।

    मैं जब भी रोम आती हूं, यहां पर ही ठहरती हूं ।

    आप क्या अक्सर ही यहां आती हैं?

    अक्सर तो नहीं आती हूं...लेकिन साल में दो-एक बार जरूर आती हूं ।

    लिफ्ट में चढ़ने से पहले रोशेनारा ने पूछा-अब आप क्या करेंगे?

    थोड़ी देर विश्राम करूंगा ।

    फिर उसके बाद?

    मैंने मुस्कराकर कहा-आप जैसा कहेगी वैसा ही करूंगा ।

    आप इतने अच्छे बच्चे हैं मुझे पता नहीं था ।

    उन्होंने लिफ्ट से बाहर जाते समय कहा-अपने कमरे में ही रहियेगा... मैं आऊंगी ।

    ☐☐☐

    ब्रिटिश सरकार भारत और पाकिस्तान... दोनों देश के ही डेलीगेटस के रहने का इंतजाम ब्रुक स्ट्रीट की क्लैरेजिस में करती है । सो, पूरे दिन में मुझे कई बार वहां जाना पड़ता था ।

    उस दिन सैकेण्ड फ्लोर पर जाते ही मैंने देखा, पाकिस्तानी विदेश मंत्री अली भुट्टो साहब एक लड़की के कंधे पर हाथ रखकर कह रहे हैं-मैं इन दिनों इतना व्यस्त हूं कि, तुम्हें एक बार के लिए भी डिनर पर नहीं बुला पाया हूं। सच में, मुझे खेद है ।

    अंकल । डिनर के लिए परेशान मत होइए आप । मैं कल सुबह आऊंगी ।

    हां-हां तुम जरूर आना... लेकिन थोड़ा कष्ट उठाकर सुबह आठ बजे के अंदर ही आना । नहीं तो, तुमसे बातें करने के लिए मेरे पास ज्यादा समय नहीं रहेगा ।

    नहीं-नहीं । मैं आठ बजे से पहले ही आ जाऊंगी ।

    पाकिस्तान हाई कमिशन के कुछ अफसर बगल में ही खड़े थे । उनमें से एक अफसर को भुट्टो साहब ने कहा-साबिर । इनको होटल तक पहुंचाने का इंतजाम कर दो और हां... ये भी देखना कि, कल सुबह सही समय पर इनके होटल में गाड़ी पहुंच जाये।

    साबिर ने सिर हिलाकर कहा-जी, सर ।

    लगातार पांच दिनों तक हर सुबह यह दृश्य देखकर मैं समझ गया था कि, भुट्टो साहब इस लड़की से बहुत ही प्यार करते हैं और वह लड़की जरूर भुट्टो साहब की कोई करीबी रिश्तेदार है ।

    पाकिस्तान के इस बहू-आलोचित विदेश मंत्री से मैं इससे पहले भी विभिन्न स्थानों पर मिल चुका हूं । खास करके दिल्ली, कराची, लाहौर, लंदन में और एक बार न्यूयार्क में भी । हर बार भारत-पाक शीर्ष सम्मेलन नाकाम होते ही भुट्टो साहब जिस तरह भारत की आलोचना करते थे, सुनकर सिर्फ भारतीय पत्रकार लोग ही नहीं, पश्चिम के देशों से आये हुए पत्रकार लोग भी हैरान हो जाते थे । फिर यही भुट्टो साहब जब भारतीय विदेश मंत्री के सम्मान में कॉकटेल और डिनर पार्टी देते थे, तब हम लोग उनका व्यवहार देखकर मुग्ध हो जाते थे ।

    पाकिस्तान में राष्ट्रपति आयुब खान साहब के बाद सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति थे जनाब जुलफिकर अली भुट्टो । उन्हीं भुट्टो साहब के साथ उस लड़की की इतनी घनिष्ठता देखकर उससे परिचय करने की इच्छा हुई थी... लेकिन मेरे दिल ने कहा था ये उचित नहीं होगा । शायद उससे परिचय करने की हिम्मत भी मुझमें नहीं थी । मुझे ऐसा लगा था कि वह लड़की ना सिर्फ हसीन है... वह जरूर भुट्टो साहब के जैसे कोई धनवान आदमी की बेटी है । सो मैंने मन की इच्छा को मन में ही दबाकर रखा... लेकिन मैंने कभी सपनों में भी यह नहीं सोचा था कि, रोम आकर उनसे इस तरह परिचय होगा; मैंने यह भी नहीं सोचा था कि वह भी बंगालन है । बिस्तर पर लेटे-लेटे रोशेनारा के बारे में सोचते-सोचते मैं सो गया ।

    ☐☐☐

    टेलीफोन की घंटी बजते ही मेरी नींद टूट गई । रिसीवर उठाकर कहा-चटर्जी बोल रहा हूं ।

    नींद हुई?

    अचानक मन खुशी से भर उठा । मैंने कहा-मैंने नींद को कहा था कि, जब तक रोशेनारा मुझे नहीं बुलाती है तब तक तुम मेरे पास ही रहना ।

    उन्होंने हंसकर कहा-तो अब क्या नींद चली गई?

    आपका फोन आते ही नींद भाग गई ।

    बहुत अच्छा । मेरे कमरे में आ जाइये । कॉफी तैयार है ।

    सच में आ जाऊं?

    हां-हां... आ जाइये ।

    आपके अंकल को अगर पता चले, तो वे मुझे जिंदा गाड़ देंगे ।

    रोशेनारा ने हंसते हुए कहा-अंकल कुछ नहीं करेंगे । आप जल्दी आ जाइये... कॉफी-ठंडी हो रही है ।

    सोफे पर बैठकर कॉफी के प्याले में चुस्की मारकर मैंने कहा-क्लैरेजिस होटल में लगातार कई दिन आपको देखकर आपसे बात करने का मन हुआ था, लेकिन...।

    तो बात क्यों नहीं की?

    कई वजह से ।

    क्या मैं वो सब वजह जान सकती हूं?

    मैंने मुस्कराकर कहा-एक तो आप बहुत ही सुंदर हैं। आप अमीर भी जरूर होंगी । सबसे बड़ी बात, आप भुट्टो साहब की प्यारी हैं । मन में एक डर सा था कि बात करने जाऊं तो शायद बेइज्जत होना पड़ेगा ।

    रोशेनारा ने कॉफी का प्याला नीचे रखकर कहा-बेइज्जत क्यों होंगे आप?

    सोचा था, आप जरूर बहुत ही घमंडी. .. ।

    लेकिन क्यों?

    आपके रूप-यौवन... पैसा और भी कई वजह से... ।

    उन्होंने अपने ही मन में थोड़ा सा हंसकर कहा-देखिये, मैं सुंदर हूं या नहीं, ये मुझे पता नहीं है... लेकिन कई लोगों ने कहा कि, मैं सुंदर हूं । लेकिन अपने रूप की खातिर मैं घमंड क्यों करूं? लड़के-लड़कियां खूबसूरत या बदसूरत होते हैं अपने-अपने मां-बाप के कारण ।

    मैं कुछ टिप्पणी नहीं करता हूं...सिर्फ थोड़ा-सा मुस्कराता हूं ।

    आप हंस क्यों रहे है?

    इसलिए हंस रहा हूं कि, मैंने यह नहीं सोचा था कि, आप इतनी तर्कशील होंगी ।

    मैं हमेशा ही तर्कशील होने की कोशिश करती हूं।

    उन्होंने बिना रुके ही कहा-एक युवती होने के नाते भी घमंड करने का कोई कारण नहीं है ।

    आप ये क्या कर रही हैं? आपके जैसी खूबसूरत लड़की को छोड़ ही दीजिए, आम लड़कियां भी यौवन में आकर अपने आपको बहुत खूबसूरत समझती हैं ।

    उन्होंने हंसते हुए कहा-इस मामले में मैं कुछ नहीं कर सकती हूं ।

    अच्छा ये बताइये... प्रभाव-प्रतिपत्ति के खातिर भी आपको घमंड महसूस नहीं होता है?

    रोशेनारा ने थोड़ा सा हंसकर कहा-अगर आप मेरे अब्बा जान से मिलते तो शायद आप ऐसे सवाल मुझसे नहीं करते ।

    आपके अब्बा क्या कोई बिजनेसमैन हैं? या राजनीतिबिद?

    मेरे अब्बा एक कुशल सर्जन हैं । पाक्लिान में जो तीन-चार मशहूर सर्जन हैं, मेरे अब्बा उनमें से एक हैं ।

    उन्होंने एक गहरी सांस अंदर लेकर कहा-मेरे अब्बा के जैसे इंसान लाखों में एक मिलते हैं । मैं अपने अब्बा के लिए अपने आपको गौरावित महसूस करती हूं । वे मेरे लिए अल्लाह के समान हैं...वो मेरे लिए जीते-जागते अल्लाह हैं ।

    सुनकर अच्छा लग रहा है ।

    मैं थोड़ी देर रुककर पूछता हूं-आप लोग कौन से जिले के रहने वाले हैं? फीकी हंसी हंसकर रोशेनारा ने कहा-अब हम लोग किसी भी जिले के नहीं है। मतलब?

    मेरे पूर्वजों का देश था पूर्वी पाकिस्तान का गल्ला । मेरे अब्बा का जन्म भी कूड़ा में ही हुआ था ।

    तो आप लोग कला के रहने वाले हैं?

    अब हम कूड़ा के लोग नहीं हैं ।

    अब आप लोग कराची में रहते हैं... क्या इसीलिए...

    मुझे अपनी बात खत्म करने का मौका दिये बगैर उन्होंने कहा-तो मैं आपको सबकुछ खोलकर बताती हूं । सारी बातें पता नहीं होने से आप शायद हमारे बारे में सही धारणा नहीं कर पायेंगे ।

    ☐☐☐

    सिद्दिकी मास्टर लगातार तीन रोज से लड़कियों को पढ़ाने नहीं आ रहे हैं.. यह सुनकर ही नवाब अलतफ अली चौधरी का मिजाज बहुत ही गर्म हो उठता है । उन्होंने तुरंत मैनेजर को बुलाकर आदेश दिया-लतीफ । तुम खुद जाओ और यह पता करके आओ कि, सिद्दिकी मास्टर तीन रोज से लड़कियों को पढ़ाने क्यों नहीं आ रहे हैं?

    दो घंटे बाद मैनेजर ने वापस आकर नवाब बहादुर से कहा-हुजूर । सिद्दिकी मास्टर बहुत ही परेशानी में हैं ।

    क्यों? क्या हुआ?

    उनके मकान मालिक के बड़े बेटे ने सिद्दिकी मास्टर का सारा सामान बाहर फेंक दिया है और सिद्दिकी मास्टर को उनके परिवार समेत घर से बाहर कर दिया है ।

    क्या नाम है उनके मकान मालिक का?

    जी मालती नगर के महीउद्दीन ।

    क्या करते हैं वह?

    जी, पाट की दलाली ।

    नवाब अलतफ अली चौधरी ने अपनी दाढ़ी में हाथ फेरते हुए अपने ही मन में कहा-पाट के दलाल के बेटे में इतनी गर्मी?

    अचानक उन्होंने गरजकर कहा-लतीफ ।

    जी हुजूर ।

    वो हरामजादा महीउद्दीन का मकान मुझे आज ही चाहिए। तुम एक काम कर...लोग-बाग, रुपये-पैसे लेकर अभी, इसी वक्त चले जाओ । जब तक उस मकान का कब्जा नहीं मिलता है, मुझे अपना चेहरा मत दिखाना ।

    मैनेजर मुंह से कुछ न कहकर मन-ही-मन कुछ सोचते रहते हैं ।

    मैनेजर को खड़ा हुआ देखकर नवाब बहादुर अपने मिजाज के ऊपर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं । उन्होंने चिल्लाकर कहा-इतनी बड़ी जमींदारी के मैनेजर होकर भी तुम्हें इतना नहीं पता कि, किसी मकान को कैसे खरीदा जाता है या उसके ऊपर कब्जा कैसे किया जाता है?

    मैनेजर साहब के सर नीचा करके दरवाजे की तरफ बढ़ते ही नवाब बहादुर ने कहा-लतीफ । एक बात याद रखना सिद्दिकी मास्टर अपने परिवार के साथ आज रात उसी मकान में ही बितायें ।

    शाम के बाद मैनेजर साहब सिद्दिकी मास्टर को अपने साथ लेकर नवाब बहादुर के पास पहुंचे ।

    सिद्दिकी मास्टर ने दोनों हाथ जोड़कर कहा-हुजूर । मुझ जैसे एक आम स्कूल टीचर के लिए आप इतनी परेशानी... ।

    चुप रहो, मास्टर ।

    नवाब बहादुर ने मुस्कराकर कहा-देखो मास्टर । जमींदारी चलाने के लिए हमें बहुत सारे गलत काम करने पड़ते हैं...लेकिन तुम्हारे तीन पुरखों में से कोई भी गलत रास्ते पर नहीं गये हैं । तुम लोग कोई गलत काम नहीं करते हो । तुम्हारे जैसे एक अच्छा शिक्षक और शरीफ इंसान को एक दलाल का बेटा घर से निकाल देगा, ये मुझसे सहन नहीं होगा ।

    उन्होंने तुरंत नजरें घुमाकर मैनेजर साहब से कहा-लतीफ ।

    जी हुजूर ।

    उस मकान के कागजात सिद्दिकी मास्टर के नाम होंगे और मकान को अच्छी तरह से मरम्मत और रंग-रोगन करने के बाद मकान के बाहर पत्थर पर लिखा रहेगा-सिद्दिकी हाऊस ।

    नवाब बहादुर गद्दी से नीचे उतरकर सिद्दिकी मास्टर के कंधे पर हाथ रखकर बोले-जाओ, मास्टर...चैन से रहो ।

    ☐☐☐

    रोशेनारा ने थोड़ा मुस्कराकर कहा-मकान के बाहर पत्थर पर सिद्दिकी हाऊस लिखा रहने के बावजूद पूरे शहर के लोग कहते हैं-मास्टर का मकान ।

    सिद्दिकी मास्टर का बेटा भी क्या मास्टरी करता था?

    हां ।

    उन्होंने पलभर के लिए रुककर कहा-वे मेरे दादाजी थे । मेरे अब्बा थे उसी गरीब स्कूल मास्टर के बेटे ।

    उसके बाद?

    मेरे अब्बा पढ़ाई में अव्वल थे । उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान सरकार की तरफ से स्कॉलरशिप पाकर कराची के मेडीकल कॉलेज में दाखिला लिया था ।

    रोशेनारा के रुकते ही मैंने कहा-आप रुक क्यों गई? कहिए न, उसके बाद क्या हुआ?

    एम.बी.बी.एस-की फाइनल परीक्षा में सर्जरी में रिकॉर्ड मार्कस मिलने पर अब्बा को गर्वनर्स गोल्ड मेडल मिला था । वो था उनकी जिंदगी का एक टर्निग पोइंट...सिर्फ मेरे अब्बा की जिंदगी का ही नहीं... बल्कि हमारे पूरे परिवार के लिए भी ।

    उनकी बातों से मुझे पता नहीं, क्यों थोड़ी सी विषन्नता महसूस हुई...लेकिन मैं कुछ सवाल न करके सिर्फ उनकी तरफ प्रश्न भरी नज़रों से देखता रहा ।

    एक गहरी सांस छोड़कर रोशेनारा ने कहा-पाकिस्तान के मशहूर डॉक्टर और राष्ट्रपति के व्यक्तिगत चिकित्सक डॉक्टर जहांगीर ने मेरे अब्बा को एफ.आर.सी.एस. पढ़ने के लिए लंदन भेज दिया था ।

    आपके अब्बा एफ.आर.सी.एस. बने थे?

    अब्बा सिर्फ लंदन के ही नहीं... एडिनबरा के भी एफ.आर.सी.एस. हैं।

    हे भगवान ।

    अब्बा के एडिनबरा में रहते समय ही डॉक्टर जहांगीर ने अपनी इकलौती बेटी की शादी अब्बा से कराई थी ।

    आपकी अम्मा कौन से जिले की थीं?

    मेरी अम्मा बंगालन नहीं है... वे पंजाबन हैं ।

    रोशेनारा ने उदास नज़रों से बाहर की तरफ देखते हुए कहा-शादी के बाद मेरे अब्बा एक तरह से अम्मा के हाथों में कैदी बन गये ।

    उन्होंने मेरी तरफ देखकर कहा-विदेश से लौटने के दस साल बाद अब्बा बगूड़ा जा पाये थे ।

    दस साल बाद?

    "हां-हां...

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