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समय के साथ भटकना
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समय के साथ भटकना

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समय के साथ भटकना
कॉपीराइट
विषय तालिका
दो शब्द
अकेलापन
उसका नाम अनीता था
मुलाक़ात
मैसूर महल में
वो सपना
समुद्र के किनारे

ये एक ऐसे लड़के और लड़की की कहानी है जो एक दूसरे से समय की परिधि से परे मिलते हैं और अतीत में हो चुकी घटनाओं को वर्तमान में एक बार फिर से जीने की कोशिश करते हैं, विशेष करके लड़का ऐसा करने की कोशिश करता है!

कहानी वर्तमान से अतीत और अतीत से वर्तमान के समय में भटकती रहती है और पाठक को कहानी लेखन के एक नए दृष्टिकोण से परिचित करवाती है; आशा करते हैं के कहानी आपको पसंद आएगी और आप इस कहानी को अपने मित्रों के साथ भी सांझा करेंगे!

बहुत शुक्रिया!

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateNov 29, 2022
ISBN9781005809676
समय के साथ भटकना

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    समय के साथ भटकना - टी सिंह

    दो शब्द

    ये एक ऐसे लड़के और लड़की की कहानी है जो एक दूसरे से समय की परिधि से परे मिलते हैं और अतीत में हो चुकी घटनाओं को वर्तमान में एक बार फिर से जीने की कोशिश करते हैं, विशेष करके लड़का ऐसा करने की कोशिश करता है!

    कहानी वर्तमान से अतीत और अतीत से वर्तमान के समय में भटकती रहती है और पाठक को कहानी लेखन के एक नए दृष्टिकोण से परिचित करवाती है; आशा करते हैं के कहानी आपको पसंद आएगी और आप इस कहानी को अपने मित्रों के साथ भी सांझा करेंगे!

    बहुत शुक्रिया!

    Chapter 2

    अकेलापन

    बिना किसी शंका के, आनंद, स्वभाव से अंतर्मुखी लेकिन दिल में घूमने का जुनून लिए हुए, अपने विचारों में गहरे डूबा हुआ था और आस पास की दुनिया से पूरी तरह से अनभिज्ञ था।

    पिछले कुछ समय से वह बहुत अकेला था और वो अकेलापन अब उसको कचोटने लगा था और उसको कुछ कुछ असहजता सी महसूस होने लगी थी।

    अमीर परिवार का बेटा आनंद कई महीनो से घर से दूर था और बिना किसी को कोई खबर दिए यूँ ही अलग अलग जगहों पर घूम घूमकर समय व्यतीत कर रहा था। लगता तो था के वो निरुद्देश्य घूम रहा था, परन्तु अगर उसकी आँखों में गौर से देखा जाता तो मालुम होता था के वो किसी उद्देश्य से समय में भटक रहा था और उसको किसी की तलाश थी।

    मुंबई जैसे एक ऐसे शहर में जो कभी सोता ही नहीं था और सब काम काज दिन रात चलता रहता था, आनंद को लग रहा था के जैसे वो उस शहर में एक अजनबी था किसी दूसरी ही दुनिया से आया हुआ, और अपने आस पास की भीड़ को जल्दी जल्दी गुजरते हुए देखकर उसको खुद के अकेलेपन का और भी अधिक एहसास होने लगा था।

    ऐसा लग रहा था कि सभी कहीं जा रहे थे। हमेशा की तरह ही एक भागदौड़ सी मची हुई थी; किसी को किसी की परवाह नहीं थी क्योंकि हर किसी

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