कहानियाँ सबके लिए (भाग 2)
By कहानी वाला
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सुहागरात
मिलन
प्यार हो जाता है
दुनिया आपके हाथ में
अंगूठियाँ
प्रस्ताव
यकीन ही नहीं होता
लिखा था
रिश्ता
छोटी सी जगह
लड़की को डेट पर
प्यार ऐसे भी
कहानी जो पूरी ना हुई
एक ज़माना हो गया
सोलह बरस की
सालगिरह
तलाश
नज़र
आशा
छाया में
चाहती थी
अँधेरा
सोना
अनुराधा
ये कहानी वाला समूह के विभिन्न लेखकों के द्वारा लिखी गयी अनेकों विषयों पर बहुत ही रोचक कहानियाँ है। इस श्रंखला में आपको करीब तीस पुस्तकें मिलेंगी। ये सभी कहानियाँ आप अपने मोबाइल, कंप्यूटर, आई पैड या लैपटॉप पर सिर्फ कुछ पैसे चुकाकर ही पढ़ सकते हैं।
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कहानी वाला
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कहानियाँ सबके लिए (भाग 2) - कहानी वाला
सुहागरात
वो सुहागरात थी मेरी और मैं सजे हुए कमरे में बैठी अपने पति के अंदर आने का इंतज़ार कर रही थी, लेकिन मैं अपने उस प्रेमी के बारे में भी सोच रही थी जिसको मैंने चार बरसों तक प्रेम किया था। मैं उसको बहुत प्यार करती थी और वो भी मुझे बहुत प्रेम करता था।
बिस्तर पर पति के आने का इंतजार करते करते मैं यादों की गली में चार वर्ष पहले के समय में पहुँच गयी। हम दोनों एक ही दफ्तर मे काम करते थे और वहीँ हमारी दोस्ती हुई थी।
वो एक बहुत ही हंसमुख लड़का था और मुझे हमेशा ही हंसाता रहता था। कुछ ही दिनों में हमारी दोस्ती बहुत गहरी हो गयी थी।
एक दिन मुझे वो काफी परेशान दिखा क्योंकि दफ्तर में उसका उसके ग्रुप के लीडर से कुछ तनाव चल रहा था। वो पूरा दिन ही चुप रहा था। मुझे उसको देखकर बहुत बुरा लग रहा था। मैंने उसको हंसाने के सभी प्रयास किये पर कोई लाभ नहीं हुआ।
शाम को दफ्तर के बाद उसने मुझे कहा के क्या वो मुझे मेरे घर तक पहुंचा सकता था। मैं उसके साथ चलने को तैयार हो गयी।
रास्ते में हमने पहले उसकी समस्या के बारे में बात की, पर तभी उसने अचानक मुझसे पूछ लिया के क्या मेरा रिश्ता तय हो गया था के नहीं। मेरे मन में अचानक ही एक शंका उत्पन्न हो गयी।
अगले दिन मेरे दफ्तर की मेरी टीम के सभी सदस्य जल्दी ही चले गए। मैं और वो ही रह गए थे पीछे। हमको कुछ काम करना बाकी था उस समय।
काम के दौरान उसने कहा के वो मुझे उसका पार्टनर बनाना चाहता था पर मैंने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया।
शाम को उसने फिर मुझे घर तक पहुंचा देने के लिए पूछा। मैं फिर उसके साथ चलने को सहमत हो गयी।
रास्ते में जब हम उसके स्कूटर पर बैठे एक पार्क के पास से गुजर रहे थे उसने मुझे प्रोपोज़ कर दिया। विवाह का प्रस्ताव रखने के लिए ना तो वो समय और ना ही वो स्थान ठीक थे।
मुझे ऐसा लगा के जैसे अगर मैंने ना कहा तो वो मुझे उस सुनसान सड़क पर उस बड़े से पार्क के बाहर ही छोड़ जाएगा।
मैंने उसको कोई जवाब नहीं दिया। वास्तव में मैं जानती ही नहीं थी के मुझे उसको क्या जवाब देना चाहिए था। मैं जानती थी के मेरे माता पिता मुझे कभी भी इस तरह विवाह करने की अनुमति नहीं देंगे।
क्योंकि वो प्रेम विवाह के सख्त खिलाफ थे। उसने मुझे आश्वासन देने शुरू किये और फिर अंत में बोला के वो मेरे जवाब का इंतजार करेगा।
घर पहुंचकर मैं रात भर उसके और उसके विवाह प्रस्ताव के बारे में ही सोचती रही। मैं जानती थी के वो एक बहुत अच्छा इंसान था और मुझसे बहुत प्रेम करता था लेकिन मुझे मेरे माता पिता का खौफ था।
मैंने निर्णय लिया के मैं उसको इंकार कर दूंगी लेकिन मेरा दिल नहीं मान रहा था के मैं इंकार कर दूँ! मेरा दिल मुझे बार बार कह रहा था के मुझे उसको एक मौका देना चाहिए था। आखिर मेरे दिल ने मेरे दिमाग को हरा दिया।
अगले दिन इतवार था। मैंने उसको फ़ोन किया और कुछ देर तक इधर उधर की बातें की और फिर मैंने उसको कह दिया के मैं उसके साथ शादी करने को तैयार थी।
वो तो ख़ुशी से फ़ोन पर ही चिल्लाने लगा। उस रात को हमने बहुत देर तक बातें की और बातें करते करते ही सो गयी।
अगले दिन जब मैं दफ्तर पहुँची तो मैंने देखा के वो पहले से ही मेरा इंतजार कर रहा था। उस दिन पहली बार हमने एक दूसरे को बाहों में लिया लेकिन हमने अपने सम्बन्ध को दफ्तर में सबसे छुपा कर रखने का निर्णय भी ले लिया।
उसके बाद हमने एक दूसरे से एकांत में मिलने के लिए एक और जगह चुन ली जहाँ हम दोनों लोगों की नजरों से दूर एक दूसरे के करीब हो सकें!
एक दिन मैं अपने केबिन में अपने कंप्यूटर के सिस्टम को ठीक कर रही थी के तभी वो अंदर आया और उसने अपना सामान मेरे डेस्क पर रख दिया। मैं काम में व्यस्त थी।
उसने जल्दी से मेरे पास आकर मेरे गाल को चूम लिया। उसके बाद वो जल्दी से मेरे केबिन से बाहर चला गया। मैं बस हैरान सी उसको जाते हुए देखती ही रह गयी। उसके होंठों का स्पर्श बहुत अच्छा और सुखद था!
दफ्तर के अन्य लोगों के सामने हम दोनों सहकर्मियों की तरह ही औपचारिक व्यवहार करते थे और दूरी बनाये रखते थे।
एक दिन लंच के बाद हमारी मुलाक़ात दफ्तर के बाहर गलियारे में हो गयी। हम दोनों एक दूसरे की बाहों में समा गये और तभी उसने अपने होंठों को मेरे होंठों पर रख दिया। वो हमारा पहला चुम्बन था। मैं पूरी तरह से ही हिल गयी थी उस समय तो!
कुछ दिनों के बाद हम दोनों एक दूसरे के और भी करीब आ गए। मैं उसको छोड़कर सब कुछ ही भूल चुकी थी।
वो वैसा ही था जैसी के मैंने कल्पना की थी। वो नटखट था, हंसमुख था, उदार था, और बहुत ही प्यार करने वाला था। वो मेरे सपनो का मर्द था!
कुछ महीनो के बाद मेरा ट्रांसफर चंडीगढ़ हो गया और वो उसी दफ्तर में रह गया। हमारा सम्बन्ध दूर का हो गया। दोनों के लिए ही बहुत कठिन होने लगा था उस दूरी को सहन कर पाना।
फ़ोन पर हमारे बीच में कभी कभी कुछ वाद विवाद भी हो जाते थे पर बाद में सब ठीक हो जाता था। हम दोनों एक दूसरे को अच्छे से समझने लगे थे।
जैसे जैसे दिन बीतने लगे मेरे माता पिता को मेरी शादी की चिंता होने लगी। फिर एक दिन मैंने हिम्मत करके उनको अपने सम्बन्ध के बारे में बता ही दिया।
उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया। उनको कोई बड़ा पैसे वाला ज्यादा कमाने वाला दामाद चाहिए था जबकि मेरा प्रेमी तो अभी उस नौकरी में ही ऊपर उठने के लिए संघर्ष कर रहा था।
मेरे प्रेमी की नौकरी मेरे माता पिता की आशाओं के अनुकूल नहीं थी। मैंने उनको विश्वास दिलाने की बहुत कोशिश की लेकिन कुछ नहीं हुआ। मैं बहुत रोई और गिड़गिड़ाई पर कोई लाभ नहीं हुआ।
ना तो मैं अपने माता पिता को छोड़ सकती थी और ना ही मैं उसको छोड़ सकती थी मैं तो बीच मझधार में फंस गयी थी!
तभी अचानक दरवाजा खुला और मैं अतीत की गलियों से वर्तमान में वापिस आ गयी। मैं अपनी सुहाग की सेज पर बैठी अपने पति का इंतजार कर रही थी। मेरी आँखों से आंसू गिर रहे थे। मैंने दरवाजे की तरफ देखा। कोई अंदर आया था।
मैंने सर उठाकर उसका चेहरा देखा। वो मेरे पति थे। वो मेरी तरफ आने लगे। जैसे ही वो पलंग पर बैठे मैंने अपनी बाहें उनके इर्द गिर्द लपेट दी और मेरे मुंह से निकला,आई लव यू!
वो गंभीर हो गए और मुझे पूछने लगे के अचानक मुझे वो क्या हो रहा था। मैंने उनको कसकर भींच लिया और फिर उनको बता दिया के मैं अपने प्रेम के पिछले चार वर्षों को याद कर रही थी।
जी हाँ मेरे पति मेरे चार वर्षों के प्रेमी ही थे जो अब मेरे मेरे पति हो गए थे! जी हाँ मैं अपने माता पिता को समझाने में सफल हो गयी थी और वो सहमत हो गए थे। हमारी शादी प्रेम से शुरू हुई थी पर बाद में वो अरेंज्ड मैरिज बन गयी थी।
उस रात को हम दोनों ही किसी और ही दुनिया में रहे थे। दफ्तर में पार्क में शॉपिंग मॉल में और अन्य बहुत सी जगहों पर हमने छुप छुप कर तो एक दूसरे को बहुत बार चूमा था और एक दूसरे को बाहों में भी लिया था पर हम दोनों ही हर क्षण घबराते रहते थे पर उस रात को सुहाग के बिस्तर पर हम पहली बार खुल कर मिले और फिर रात भर सोये ही नयी और एक दूसरे को तलाशते रहे!
Chapter 2
मिलन
उसकी अरेंज्ड मैरिज हुई थी और वो इन् दो शब्दों के बारे में ही बहुत देर तक सोचती रहती थी।
उसकी परिभाषा भी अजीब सी थी,"अरेंज्ड मैरिज एक ऐसी शादी होती है जिसमे दोनों अपराधी सीधे सीधे अपराध में शामिल नहीं होते हैं!
ऐसी शादी उनकी मर्जी के बिना उनके माता पिता के द्वारा निर्धारित की जाती है।"
वो जानती थी के उसके पास निर्णय लेने की हिम्मत भी तो नहीं थी।
अब उसकी शादी एक ऐसे मर्द से हो चुकी थी जो सफ़ेद घोड़े पर एक योद्धा की तरह सवार होकर आता था और उसके परिवार वाले उसके स्वागत में लग जाते थे।
उसके माता पिता और रिश्तेदारों ने उस पर और उसके पति पर आशीर्वादों की बारिश ही कर दी थी और सभी उनकी कभी ना अंत होने वाली शादी की कामना करते थे!
वो सभी चाहते थे के आशा अपने पति के साथ हमेशा ही खुश रहे।
जहाँ तक आशा की बात है वो तो सिर्फ अपने फर्ज को ही पूरा करती हुई सभी