मन की बातें (लघु उपन्यास)
By सुनयना कुमार
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About this ebook
वो शाम
वो खास दिन
होने वाले पति के घर
वो पहली चिट्ठी
होने वाले पति का जवाब
नया अनुभव
उस सुबह
दो शब्द
उनकी मुलाक़ात के बाद दोनों एक दूसरे से बहुत कुछ कहना और पूछना चाहते थे ताकि शादी से पहले ही वो एक दूसरे के बारे में काफी कुछ जान लें, परन्तु एक तो वो दूर दूर रहते थे और दूसरे आज की तरह मोबाइल फ़ोन नहीं थे, इसलिए होने वाली पत्नी ने होने वाले पति से चिट्ठियों के माध्यम से एक दूसरे को जानने और एक दूसरे को समझने के लिए अनुरोध किया जिसको होने वाले पति ने कुछ कठिनाई के साथ स्वीकार कर लिया और फिर सिलसिला चल निकला!
ये एक बहुत ही सरल, सुन्दर, और प्रेम के रस में डूबी हुई एक ऐसी प्रेम कहानी है जिसमे ना तो बड़े बड़े शब्द हैं, ना बड़ी बड़ी बातें हैं, और ना ही बड़ी बड़ी कल्पनाएं ही हैं! लेकिन इस बात का यकीन कीजिये के ये कहानी आपके मन को गुदगुदा जरूर देगी!
शुभकामना
सुनयना कुमार
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मन की बातें (लघु उपन्यास) - सुनयना कुमार
वो शाम
यह उनकी पहली मुलाकात थी। वो एक अपने लोगों की मुलाक़ात थी जिसको सामाजिक सभा
नाम दिया गया था ताकि एक निश्चित लड़का
एक निश्चित लड़की
से मिल सके और तय कर सके कि वे एक निश्चित वो
बनाने में सक्षम होंगे के नहीं?
जी हाँ ठीक समझा अपने, एक पार्टी थी जिसमे सभी रिश्तेदार, पडोसी, और पारिवारिक दोस्त शामिल हुए थे लड़की और लड़के को आर्शीवाद और शुभकामनाएं देने के लिए!
घबराहट, भय, उत्तेजना, यह सब कुछ था उस पार्टी में, सभी छोटी बड़ी भावनाओं का एक छोटा सा संयोजन। घर में बनी मिठाइयों और नमकीन की महक से घर महक रहा था और खुश्बुओ से भरे उस वातावरण में सभी के चेहरे चमक रहे थे और उनकी ख़ुशी छलक छलक कर बाहर आ रही थी।
हर कोई खुश था क्योंकि उस परिवार की नई पीढ़ी का पहला विकेट गिरा था, जी हाँ ठीक समझा आपने के परिवार की बड़ी बेटी की शादी का आयोजन था।
हाँ, वह पाँचों भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं, और इसलिए उनकी दीदी
की सगाई की खुशी उनके चेहरों पर साफ देखी जा सकती थी; और सभी भाई बहन खुद को विशेष समझते हुए मेहमानो की भीड़ में इधर उधर चहकते फिर रहे थे और सभी से हंस हंस कर मिल रहे थे।
जबकि हर कोई बहुत ज्यादा उत्साहित था, वह तनावग्रस्त, घबराई हुई और थोड़ी डरी हुई भी थी; वो सहमी सहमी सी घबराई आँखों से उस पार्टी की रंगीनियों को देखकर मन ही मन खुश थी के वो सब कुछ उसके कारण ही हो रहा था। गोल्डन बॉर्डर वाली सफेद साड़ी में वह बेहद खूबसूरत लग रही थीं।
लंबे, चमकदार काले बाल जो उसकी पतली, पतली कमर तक पहुँचे हुए थे, आधे पोनीटेल में बंधे हुए थे, उन्होंने उसे सीधे 90 के दशक की फिल्म की नायिका की तरह बना दिया था, मासूम सी दिखने वाली बहुत ही शांत और संतुलित लड़की।
उसकी आँखों में काजल बता रहा था कि इतना काला और इतना गहरा काजल भी इतना सुंदर लग सकता है। मेकअप का हल्का स्पर्श, लेकिन वह बिना ज्यादा मेकअप के भी एक अद्भुत महिला थी।
अगर गौर से देखा तो उसके आत्मविश्वास से भरे हाथ हल्के-हल्के कांपते और माथे पर न केवल छोटी-छोटी बिंदी बल्कि पसीने की छोटी-छोटी बूंदें भी दिख रही थी।
उसकी दिल को थाम देने वाली मुस्कान भी आज कुछ डगमगा रही थी। वह अपने आप को