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खिड़की से (रहस्य)
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खिड़की से (रहस्य)
Ebook40 pages19 minutes

खिड़की से (रहस्य)

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खिड़की से (रहस्य)
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तालिका
दो शब्द
सुबह
दोपहर
शाम

रहस्य और रोमांच से भरी हुई ये एक ऐसी कहानी है जो आपको धीरे धीरे एक ऐसे मोड़ पर पहुंचा देगी जहां आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे!

पूरी कहानी सिर्फ एक कमरे की एक खिड़की के माध्यम से एक बूढ़े के दिमाग से होती हुई आप तक पहुंचेगी और आपको ये सोचने पर मजबूर कर देगी के लेखक की कल्पना की कोई भी सीमा नहीं होती है!

धन्यवाद

सुनयना कुमार

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateOct 6, 2022
ISBN9781005893842
खिड़की से (रहस्य)

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    खिड़की से (रहस्य) - सुनयना कुमार

    दो शब्द

    रहस्य और रोमांच से भरी हुई ये एक ऐसी कहानी है जो आपको धीरे धीरे एक ऐसे मोड़ पर पहुंचा देगी जहां आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे!

    पूरी कहानी सिर्फ एक कमरे की एक खिड़की के माध्यम से एक बूढ़े के दिमाग से होती हुई आप तक पहुंचेगी और आपको ये सोचने पर मजबूर कर देगी के लेखक की कल्पना की कोई भी सीमा नहीं होती है!

    धन्यवाद

    सुनयना कुमार

    Chapter 2

    सुबह

    पहले जो चेहरा गोरा और कसी हुई त्वचा से बहुत सुंदर दिखता था अब उस त्वचा पर झुर्रियां अपने रास्ते बना रही थी।

    जवानी! उसने खुद से कहा, कब की जा चुकी है जवानी।

    उसका आइना हमेशा ही उसको इस दुखद परिवर्तन और अतीत की याद दिलाता था।

    और जैसे ही उसने अपने मन में इस बारे में एक बार फिर सोचा, एक और आवाज ने उसे उसके अकेलेपन की याद दिला दी।

    वो बड़े घर में अकेला रहता था लेकिन उसको ये बताने या ये एहसास करवाने वाला कोई नहीं था जो उसको उसके बुढ़ापे के एहसास से झूठ ही सही पर दूर ले जाता! और उस बूढ़े की हालत को और उसके विचार व्यवहार को देखकर ऐसा लगता था जैसे उसको किसी की जरूरत भी नहीं थी।

    वह जिस एकमात्र इंसान से यह सुनना चाहता था, वह इंसान बहुत दूर चला गया था। और बाकी, ठीक है, वे बस वहीं थे, समय-समय पर फोन कर देते थे, या कभी कभी मिलने आ जाते थे। वे बस मौजूद थे, और कुछ नहीं।

    उसने चाय की चुस्की ली, फिर भी आईने में कुछ ढूंढ रहा था। उसके दांत गिर गए थे, और नकली दाँतों का एक नया जोड़ा पास

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