आखिर बिक गयी
By मोहिनी कुमार
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About this ebook
वो अँधेरी गली
यादों की गली में
समय के साथ
माँ बेटी
जवान हो गयी
अपराध
फिर अँधेरी गली
दो शब्द
ये एक ऐसी बेटी की कहानी है जो होश न सँभालने तक अपनी माँ को ही अपनी दुनिया समझती थी और उसकी हर ख़ुशी उसकी माँ से ही शुरू होकर माँ में ही अंत होती थी।
बिना बाप की बेटी अपनी माँ के साथ ही उस छोटे से घर में रहती थी जिसमे ना तो कोई मेहमान और ना ही कोई रिश्तेदार आते थे।
बेटी हैरान होती थी के जब दुनिया के लोग अपने अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथ तीज त्यौहार मना रहे होते थे तो वो दोनों माँ बेटी अपने घर में ही क्यों रहती थी और कोई उनको अपने घर क्यों नहीं बुलाता था।
जब उस बेटी पर उसकी माँ का रहस्य खुला तो उसकी तो जैसे दुनिया ही उजड़ गयी और उसने एक ऐसा कदम उठा लिया जो अपराध और पाप तो था ही, उसकी दुनिया उजाड़ देने वाला था।
जिस कारण से उसने वो अपराध किया था वही अपराध उसको घर से दूर लेजाकर उसको वो करने को मजबूर कर दिया जिसके कारण उसने अपने घर से दूर जाने का निर्णय लिया था।
ये मार्मिक कहानी अगर आपकी आँखों में आंसू नहीं लाएगी तो कम से कम आपके दिल में एक टीस तो जरूर छोड़ देगी।
शुभकामना
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आखिर बिक गयी - मोहिनी कुमार
वो अँधेरी गली
एकदम सुनसान इलाका था; रात बहुत ही अँधेरी थी; ठण्ड उस रात को कुछ ज्यादा ही थी; हर तरफ कोहरे की ठंडी चादर फ़ैली हुई थी।
वो जीवन में पहली बार इस कदर अकेली थी, अपने घर से बहुत दूर, एक ऐसे शहर में जिसके बारे में वो कुछ भी नहीं जानती थी।
बचपन से जवानी तक कभी घर से ज़रा सा भी दूर नहीं गयी थी; सर्दियों में हमेशा ही गर्म कपड़ों में सुसज्जित रहती थी; जब चाहे जो मन करे वही खाती थी; जो चाहती थी वो सब उसको उसकी माँ दे दिया करती थी।
लेकिन वो उस समय की बात थी जब वो अपनी माँ के साथ अपने घर में रहती थी, परन्तु वक्त ने ऐसी भयानक करवट ली के सब कुछ ही उजड़ गया और वो घर से सैकड़ों मील दूर एक अनजान जगह पर पहुँच गयी थी।
वो उस इलाके की एक कुछ ज्यादा ही अँधेरी गली में एक कोने में खड़ी ठंड से काँप रही थी; उसकी आँखों में तलाश थी और मन बहुत ही अशांत था; लेकिन गली में कभी कभी होने वाली हलचल उसको उधर देखने पर मजबूर कर देती थी!
बीच बीच में कहीं दूर से कुछ चीखों की आवाजें भी आ रही थी लेकिन वो लड़की, नीलिमा, उनकी तरफ ध्यान नहीं दे रही