अनिश्चितता
By सुनयना कुमार
()
About this ebook
दो शब्द
उस शाम की बारिश
फिर वही यादें
दिल की बातें
नया वर्ष
चिट्ठी
असमंजस और अंत
प्रेमी का साथ छूटने के बाद वो एक दूसरे मर्द से शादी करने को बाध्य हो गयी थी; उसकी एक सुन्दर सी बेटी भी हुई थी, लेकिन बेटी का साथ लम्बा नहीं था। बेटी और पति के चले जाने के बाद उस की दो महीने की बेहोशी ने जैसे सबकुछ तोड़कर रख दिया था उसके जीवन में!
फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ एक दिन जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी...
शुभकामना
सुनयना कुमार
Read more from सुनयना कुमार
वो एक रात Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमन की बातें (लघु उपन्यास) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकठिन डगर प्रेम की Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsयूँ हुई शादी (प्रेम और सम्बन्ध) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsखिड़की से (रहस्य) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsअलविदा (प्रेम और परिवार) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsबराबर प्यार करना Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsबदले की खुशबू (रहस्यमयी हत्या) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसिसकते चश्मे (लघु उपन्यास) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsप्यार भूला नहीं (यादें) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsउस लड़की का कुबूलनामा Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Related to अनिश्चितता
Related ebooks
कहानियाँ सबके लिए (भाग 7) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsखूबसूरत चीज है प्यार Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsहिमकण (प्यार और रोमांस) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsवासना से प्यार तक Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसार्थक Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsअसमंजित अतृप्ता Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकाश! नाम दिया जा सकता Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsखंडित (लघु उपन्यास) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsअलविदा (प्रेम और परिवार) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsलव यू फॉरएवर Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsएक अजनबी के साथ सात दिन (प्रेम कहानियाँ) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsअपसामान्य (रहस्य, रोमांच) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsThat Hardly Happens To Someone Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsअंतिम अस्वीकृति (प्रेम और रोमांस) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsएक हवेली नौ अफ़साने Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsCoffee Shop (Chuski Mohhabbat Ki..) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsDo Lafzon ki kahani Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकहानियाँ सबके लिए (भाग 4) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsवह बेदाग थी Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsदूसरी औरत Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsजैसा कि आपने कल्पना की है यह हमेशा चालू नहीं होता है Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsस्वर्ग वहीं था Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsS For Siddhi (एस फॉर सिद्धि) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमेरी पाँच कहानियाँ Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकहानियाँ सबके लिए (भाग 2) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकोशिश जारी रखो (प्रेम और रोमांस) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsआखिर कब तक?: एक सच्ची दासतां Rating: 5 out of 5 stars5/5निराशा से फ़ूलों तक (दुखद प्रेम) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsDo Sakhiyan Aur Prem Ka Uday Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsPinjar Aur Prem Ka Mulya: Do Kahaniya Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Related categories
Reviews for अनिश्चितता
0 ratings0 reviews
Book preview
अनिश्चितता - सुनयना कुमार
दो शब्द
प्रेमी का साथ छूटने के बाद वो एक दूसरे मर्द से शादी करने को बाध्य हो गयी थी; उसकी एक सुन्दर सी बेटी भी हुई थी, लेकिन बेटी का साथ लम्बा नहीं था। बेटी और पति के चले जाने के बाद उस की दो महीने की बेहोशी ने जैसे सबकुछ तोड़कर रख दिया था उसके जीवन में!
फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ एक दिन जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी...
शुभकामना
सुनयना कुमार
Chapter 2
उस शाम की बारिश
सूरज अभी अस्त होना शुरू हुआ था और आसमान नारंगी, लाल, और नीले रंग के मिश्रण जैसा लग रहा था; मैं अपने आप में ही खोयी प्रकृति के उस शानदार और मंत्रामुग्ध कर देने वाले दृश्य को देखने में मग्न थी और अपने आस पास से लगभग अनभिज्ञ थी; मैं अपनी ही यादों में खोयी हुई थी।
तभी मेरी एकाग्रता भंग हुई और मैंने देखा कि एक बूढ़ा जोड़ा अपने सामने के बरामदे पर शाम की चाय का आनंद ले रहा था; वो बूढ़ा और उसकी पत्नी अपनी ही सीमित हो चुकी दुनिया में बहुत खुश दिख रहे थे।
फिर वो घर था जहां महिला अपने बगीचे में पेड़ पौधों को पानी दे रही थी, जबकि उसका पति अपने बच्चों के साथ बैडमिंटन खेल रहा था।
सब लोग अपने लोगों के साथ कितने खुश दिख रहे थे और हर कोई कुछ ना कुछ कर रहा था, पर मैं ही अकेली थी जिसके पास सहारा लेने के लिए किसी का कंधा भी नहीं था; बूढ़े माँ बाप उसके दुःख के कारण पहले से ही दुखी थी इसलिए वो ज्यादा समय उनके सामने रहकर उनको और दुखी नहीं करती थी इसलिए सुबह होते ही वो यूं ही घर से निकलकर किसी ना किसी दिशा में चल पड़ती थी बिना किसी मंजिल के ही।
जैसे-जैसे मैं लक्ष्यहीन चलती रही, मैंने देखा कि जोड़े शाम की सैर पर घरों से बाहर निकल रहे थे, माता-पिता अपने बच्चों के साथ पास के एक मॉल में जा रहे थे, छोटे बच्चे मॉल के ठीक बाहर एक गुब्बारे बेचने वाले के आसपास खड़े थे और वे सभी सामान्य चीजें जो सामान्य लोग अपनी शाम को करते हैं मेरे आस पास हो रही थी; लेकिन मैं रुक नहीं रही थी और धीमे धीमे आगे बढ़ती जा रही थी।
आकाश के रंग उन सब लोगों के चेहरों पर झलक रहे थे और मैं केवल अपने चारों ओर खुश चेहरों को ही देख रही थी; शाम के उस वातावरण में वो सभी लोग खुश दिख रहे थे।
अचानक ये साधारण चीजें जो दूसरों को मुफ्त में मिलती थीं, वे मेरे लिए जीवन के ऐसे व्यंजन बन गए थे, जिन्हें मैं खरीद नहीं सकती