Do Lafzon ki kahani
By S. Khushi
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Do Lafzon ki kahani - S. Khushi
जिंदगी….
मेरा नाम अंजली है, मैं सड़कों पर ऐसे इधर से उधर घूम- घूम के थक के बैठ गई | और ना जाने कितनी सोच घुमड़-घुमड़ के मेरे जेहन को करोदने लगी, देखो ना चारों तरफ सिर्फ लोग ही लोग हैं| इतनी भीड़ है, इन दिल्ली के सड़कों पर, इस भीड़ में कौन कितना अकेला है, किस को क्या तकलीफ है, कौन जानता है, बस सब लगे हैं, मैं नम आंखों से सोचे ही जा रही थी| आप सोचोगे, मैं यह सब क्यों सोच रही हूं, तो मैं आपको बताता चलूं जनाब कि मैं एक मुसाफिर की तरह हो गई हूं, जिसकी मंजिल मिलने का नाम ही नहीं ले रही है| मैं रोज जॉब की तलाश में इधर-उधर भटकती हूं, फिर आकर यहीं बैठ जाती हूं |पता नहीं मेरी जिंदगी मुझे कहां ले जाना चाहती है| मुझसे क्या चाहती है| मुझे क्यों इस तरह से दर -बदर की ठोकरें दे रही है, मैं कुछ नहीं जानती, तभी मेरी निगाहें, मुझसे कुछ दूर पर खड़े, कुछ लोगों पर पड़ी, जो किसी बात पर बहस कर रहे थे, और उनमें से एक बहुत परेशान था, ठीक उसी समय उसकी निगाह मुझ पर भी पड़ी, मैं इधर मुंह करके फिर से कही अपनी सोच में गुम हो गई, और ना जाने कितने- कतरे मेरी आंखों से टपकते हुए मेरे गालों पर आ गिरे| मैं आस पास से अनजान एक बंजारे की तरह थी, जो सिर्फ चले जा रही थी, तभी एक आवाज मेरे कानों से टकराई सुनिए…
मैंने जब नजरें उठाई, तो देखा वह तो वही शख्स था, जो अभी बहुत परेशान दूर खड़ा था, साथ में उसकी मंडली भी आ गई, मैं कुछ घबराई हुई निगाहों से, बोली जी, उसने टिशू पेपर आगे बढ़ाया, मैंने फिर कहा जी कहिए, वह बैठने का इशारा किया और खुद भी बैठ गया| फिर उसने कहा, क्या बात है आप बहुत देर से सिर्फ रोए ही जा रही हैं, जी मैं कुछ अनजान सी बनकर बोली, नहीं नहीं कुछ भी नहीं बस ऐसे ही, अच्छा ऐसे तो कोई नहीं रोता, ठीक है, मैं अपने दोस्त से कहता हूं रोने को, देखता हूं वह ऐसे ही रोता है कि नहीं| फिर मैं थोड़ा सख्त होकर बोली देखे आप अपना काम करिए, मेरा दिमाग खराब मत करिए ठीक है, आप बता दीजिए मैं चला जाऊंगा, वह थोड़ा ढीठ होकर बोला,फिर मेरे मुंह से निकल गया कि मैं अनजान से नहीं बताती, तो उसने लंबा सा हूं बोला, जी मेरा नाम मयंक है, और मैं एक बिजनेसमैन हूं, वह सब खड़े मेरे दोस्त हैं, चलिए सारे दोस्तों से आपको मिलाता हूं, हे दोस्तों यह है, अरे वैसे आपका नाम क्या है? इस बात पर उसके सारे दोस्त हंस पड़े, जी मैं अंजली, फिर सबने एक साथ हाय बोला, पर मयंक उसी टॉपिक पर अटका रहा, फिर ना जाने क्यों मैंने अपनी परेशानी बता दी कि जॉब की तलाश में हूं, उसने थोड़ा सोचा फिर बोला, मेरे साथ काम करोगी? मेरी ऑफिस में, पर आप तो मुझे जानते ही नहीं, मैंने कहा तो उसने मुस्कुराकर कहा, कल ऑफिस आ जाना| मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह सब सच है| जिस जॉब के लिए मैं मारी-मारी फिर रही थी, ऐसे मिलेगी, मैं कुछ बोल नहीं पा रही थी, शायद इंसान को अचानक से वह खुशी मिल जाए जिसकी तलाश में वह रहता है, तो इंसान बिना लफ्जों के हो जाता है, और लफ्ज़ का स्थान आंसू ले लेते है, फिर से आंसू गिरने लगा और मयंक चौक कर बोले, अरे अब क्या हुआ, अरे बाबा मैंने जॉब दे तो दी, मैं आंसू पोछते हुए बोली नहीं, कुछ नहीं, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया और वह बस मुस्कुरा दिये|
तभी मुझे याद आया कि मयंक भी, तो बहुत परेशान थे,मैंने पूछा कि क्या बात थी, आप भी तो कुछ परेशान थे, हूं मे जवाब आया, आप को क्या परेशानी हो गई, मैंने कहा, जी क्या मतलब, क्या जिसके पास पैसा होता है,उसे परेशानी नहीं होती है, वह मुस्कुरा कर बोले. नहीं मेरा यह मतलब नहीं था, मैं तो बस ऐसे ही बोल गई, मैंने कहा. और फिर पूछा, आप क्यों परेशान थे प्लीज बताइए,मेरी परेशानी है, एक लड़की , लड़की मैं बोली, मतलब लव प्रॉब्लम, नहीं शादी प्रॉब्लम, वह बोले, जी मुझे, कुछ नहीं समझ में आ रहा है, अब डिटेल में बताएंगे, तो शायद समझ जाऊं, वैसे भी मुझे, यह सब चीजें थोड़ा कम समझ में आती है, मैं बोली, मयंक गहरी निगाहों से मुझे देखते हुए बोले क्यों आपको लव मैरिज में विश्वास नहीं, अरे नहीं ऐसी कोई बात नहीं है| मैं कुछ संभल कर बोली,अब मै क्या कहेती कि यह आजकल का लव, आज हुआ, कल गायब, इस पर कौन विश्वास करेगा, पर मैं कुछ बोली नहीं| और फिर मैं बोली, लड़की का मतलब? मयंक बोले- मेरी मां को एक ऐसी लड़की चाहिए, मैं उस पर बोल पड़ी, जो संस्कारों वाली हो,जी बस ऐसा ही समझ लीजिए मयंक बोले |
मतलब आपकी शादी, वह कराना चाहती है और आप करना नहीं चाहते, मैं थोड़ा मुस्कुरा कर बोली, जी हां, पर मां की भी चिंता होती है, मैं उन्हें कैसे समझाऊं, अरे तो आप अपनी गर्लफ्रेंड को ले जाकर दिखा दो, कि आप किसी को पसंद करते हो, मैं बोलते- बोलते मुस्कुराने लगी| पर आपको कैसे पता चला कि मेघना मेरी गर्लफ्रेंड है?बस पता चल जाता है, मैंने कहा, और मयंक जोर से हंस पड़े, और कहा अरे आप तो बड़ी चालाक हो, हां वह तो मैं हूँ, मैं भी हंस पड़ी|
फिर मयंक कुछ सोचकर बोले, सुनो मेरा एक काम करोगी, जी क्या? मैं बोली, मां की नजर मे , मेरी गर्लफ्रेंड तुम ही बन जाओ, मैं चीख के पड़ी, क्या ? क्या बोले आप? आप पागल हो गए हैं क्या? आपको समझ में आ रहा है कि आप क्या कह रहे हो? मैं बस बोले जा रही थी, और ना जाने मैं क्या क्या बोली, मुझे भी पता ही नही, मेरी आवाज इतनी तेज हो गई थी कि मयंक के सारे दोस्त, ना जाने कब से आकर, मेरी बातें सुन रहे थे और मैं पागलों की तरह सिर्फ बोले जा रही थी और जब मेरा पेट्रोल खत्म हुआ, तो मैं चुप हुई, तो देखा कि सब मुझे गहरी निगाहों से घूर- घूर के देख रहे हैं और मयंक लगातार सिर्फ देखे ही जा रहे हैं, फिर मैं बेचारी सी, उन सब को देखा और फिर बोली, प्लीज मुझसे यह सब नहीं होगा ,और मयंक कुछ नहीं बोले, वह बस थोड़ा परेशान थे|
तभी मयंक के सारे दोस्त एक साथ बोल उठे, अरे मान जाओ ना यार, हम सब कई महीनों से परेशान हैं, तभी मेघना बोल उठी, अरे करना ही क्या है, बस मां की नजर में तुम मयंक के साथ हो, बस मयंक की मां की नजर में, बाकी हम सब संभाल लेंगे, पर पता नहीं क्यों, मेघना मुझे एक पैसे के लिए पसंद नहीं आ रही थी, थोड़ा सा अपने आप को बदल के मां के सामने जा सकती थी ना, पर खुद की नखरो में कोई कमी नहीं आनी चाहिए, और मुझे बलि का बकरा बना रही है, मैं मन ही मन ढेर सारी गालियां दे डाली उसे, मुझे लग रहा था, सब मिलकर आज मेरी बलि दे ही देंगे|
पर एक साइड में खड़े, मयंक कुछ भी नहीं बोल रहे थे, बस खामोश सब देख रहे थे, एक गहरी खामोशी थी,जैसे उनके अंदर, वह इस सब को लेकर इतना, क्यों परेशान है, मैं अभी भी नहीं समझ पा रही थी, पर ना जाने क्यों मयंक कि यह खामोशी मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी| मैं ना चाहते हुए भी, इनके इस खेल में शामिल हो गई, और मयंक के पास जाकर बोली, सुनो परेशान मत हो, मैं तैयार हूं, जैसा कहोगे कर लूंगी और बस मेरा इतना कहना था कि मयंक खुशी से उछल पड़े, सच कह रही हो, और इतनी तेज से मुझे गले लगाया कि मैं बस खड़ी की खड़ी ही रह गई, और जब मयंक थोड़ा होश संभाले तो पीछे हटते हुए, अरे सॉरी सॉरी एक बच्चे की तरह, अपना कान पकड़ते हुए बोले, इस पल में ना जाने कितनी मासूमियत उनके चेहरे से आकर गुजर गई, मयंक बहुत खुश हो गए थे, फिर तय हुआ कल मिलने का, अरे मुझे तो कल ऑफिस भी जाना है, मैंने सोचा|
आज ऑफिस का पहला दिन है, बस सब कुछ अच्छा हो जाए, मैं मन ही मन दुआ कर रही थी, दिनभर कैसे निकल गया पता ही नहीं चला, पर थकान बहुत हो रही थी, मैंने सोचा, अब घर की तरफ रुख करते हैं, तभी आवाज आई अंजलि , मैंने कहा जी सर, अब तो, मयंक को मयंक कहूं या सर, कुछ समझ में नहीं आया, तो सर ही बोल दिया, वह मुस्कुरा कर बोले हूं, सिर्फ मयंक से काम चला लूंगा, तो मैं हंस पड़ी, और मैंने कहा, हां कहिए, आप कुछ बोल रहे थे, मयंक बोले, हां,आज घर चलते हैं| घर पर अभी, मैं बोली, क्यों कोई परेशानी है? मयंक बोले, नहीं मैंने कहा, तो चलते हैं, सब चल रहे हैं, मयंक ने कहा, जी ठीक है, मैं बोलते हुए हां, में सिर हिला दी, मैंने तो सोचा था, घर पहुंच कर आराम से सो जाऊंगी, पर