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एक तरफा
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एक तरफा

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About this ebook

 IK TARFA is the story of a twenty year old middle class boy, named Anshuman who gets admission in a medical collage for higher education where he meets a girl and they become good friends. With passes of time, Anshuman doesn’t realize when he has fallen in love with his friend. After proposing to her, he remains lost in her thoughts day and nigh and then such a sudden change takes place in his life, where he completely broken.

Languageहिन्दी
Release dateNov 7, 2023
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    एक तरफा - R.J Blacky

    अध्याय-1

    चाँदनी रात में, जब मैं आसमान की ओर देखता तो तारो की भीड़ में खुद को पाता क्योंकि जब बचपन में, मैं ‘माँ‘ से पूछता था कि ‘लोग मरने के बाद कहाँ जाते है?’ तब माँ अपनी ऊँगलियों से तारो की ओर इशारा करती थी। कुछ ऐसे ही ख़यालातो के साथ मेरी आँखे झपक रही थी आधी रात बीत चुकी थी।

    ‘पुरा मोहल्ला जग गया है और तुम्हारी नींद अभी तक न पूरी हुई।’ नीचे से माँ ने आवाज देते हुए कहा।

    तभी एक और आवाज मेरे कानो के पर्दो से आकर टकरा गई। ‘भाई, चाय बन गई है।‘ रिया ने जोर से आवाज देते हुए कहा।

    जब मैंने अपनी आँखे खोली और आसमान की ओर देखा तो सूरज की किरण रूपी पर्दे के पीछे सभी तारे छिप गये थे। सूरज की किरणे खिड़की से होकर कमरे में घुस रही थी मैंने चादर को अपने शरीर मैं लपेटे-ही दूसरी मंजिल से नीचे आ गया।

    वैसे लोग सुबह उठने के बाद सबसे पहले पेट का सफाया करते है लेकिन मैं पहले कुछ खा-पीकर ऊपर से प्रेशर देता हूँ तभी नीचे से कुछ आउटपुट निकलता है। टूथब्रश करने के बाद मैं रोज की तरह नीचे फर्श पर बैठ गया।

    छोटी बहन रिया, मेरे मनपसन्द आलू पराठे और एक गिलास भरकर चाय रखते हुए कहती है-‘जीजू का फोन आया था, कह रहे थे कि छोटे जीजू के साथ लखनऊ चले जाओ, वहाँ मेडिकल फैकल्टी में जा कर पता करो कि तुम लोगो का नाम आया है, कि नहीं।‘

    ‘जब मुझे यह पढ़ाई ही नहीं करनी है, तो वहाँ जाकर क्या करूँगा?’ मैंने झुझलाते हुए कहा।

    ‘बेटा चले जाओ, नहीं तो तुम्हारे जीजू को अच्छा नहीं लगेगा, बुरा मान जायेंगे।‘ मम्मी ने प्यार से कहा।

    ‘मम्मी, इसमें बुरा लगने वाली कौन-सी बात हैं। मुझे इस पढ़ाई में कोई इंटरेस्ट नहीं है।‘

    मैंने मम्मी की ओर देखा। शायद उन्हें मेरी बात पसन्द नहीं आई। कुछ देर सोचने के बाद। ‘कब जाना है?’ मैंने रिया ने पूछा।

    ‘आज ही जाना है‘ रिया ने कहा।

    पास में रखे फोन को उठाकर मैंने अमन जीजू को कॉल लगा दिया।

    ‘हेलो, कहाँ हो तुम?’

    ‘अंशुमान, मैं अभी घर पर हूँ।’ उन्होंने कहा।

    ‘कितने बजे आओगे?‘

    ‘नौ बजे तक आ जाऊँगा।’

    ‘लखनऊ कहाँ है? कुछ पता है ये मेडिकल फैकल्टी पड़ती कहाँ है?’ मैंने पूछा।

    ‘हाँ, भईया बताये है कि मॉल एवन्यू रोड पर है।’

    ‘ ये रोड कहाँ है?’

    ‘लखनऊ में।’ उन्होंने कहा।

    मैंने उन्हें परेशान करने के लिए फिर से एक सवाल पूछा। ‘ये लखनऊ कहाँ पड़ता है?‘

    ‘वहाँ आकर सब बताता हूँ।’ छोटे जीजू ने हँसते हुए जवाब दिया।

    ‘मुझे कुछ भी पता नहीं है।’ मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

    ‘चलो ठीक है आप जल्दी से आईये।’

    मैं नहा-धोकर तैयार हो गया। जब मैंने अपनी रिस्ट वॉच में देखा तो समय हुआ था 7 बजकर 45 मिनट। मैंने तुरंत अमन जीजू को कॉल कर दिया।

    ‘हेलो, कहाँ पहुचें?’

    ‘अभी मैं हरचन्दपुर क्रास कर रहा हूँ। तुम बस स्टॉंप पर आकर मिलो।’ उन्होंने कहा।

    ‘ठीक है, मैं बस स्टॉप पर मिलता हूँ।’

    घर से बस स्टॉप तक पैदल जाने मैं दस से पन्द्रह मिनट लगता है लेकिन अगर बाइक से जाओ तो पाँच मिनट से भी कम समय में पहुँच जाते हैं। मैंने एक दोस्त से हेल्प माँगी उसने मुझे दो मिनट में बस स्टॉप पहुँचा दिया।

    दस मिनट इंतजार करने के बाद मैंने अमन जीजू को कॉल किया।

    ‘हेलो, अभी कहाँ पहुँचे?’

    ‘देखो ये जो रायबरेली डिपो वाली बस आ रही है, मैं उसी में बैठा हूँ।’ उन्होंने कहा।

    बस रूकने के लिए धीमी हुई ही थी कि लोग बस के साथ-साथ दौड़ने लगे। लोग ऐसा इसलिए कर रहे थे क्योंकि बत्तीस लोगो की सीट वाली मिनी बस मैं पैंतालीस लोगो को सफर करना होता है। मैं उस भीड़ का हिस्सा नहीं था क्योंकि अमन जीजू ने मेरी सीट पहले ही रिजर्व कर रखी थी।

    लोग आपस में धक्का-मुक्की कर रहे थे। बस कंडक्टर लोगो से विनती कर रहा था कि ‘पहले यत्रियों को उतर जाने दो, फिर बस में चढ़ो।’ देखते ही देखते मैं भी धक्का-मुक्की के साथ छोटे जीजू के पास पहुँच गया। मैंने एक हल्की-सी स्माइल दी। भाैंहो को उचकाते हुए मैंने उनका हालचाल पूछा। उन्होंने ने भी बदले में एक मुस्कान से मुझे समझा दिया कि वह मस्त है। विंडो सीट पर बैठे एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से मैंने रिक्वेस्ट करके विंडो वाली सीट ले ली।

    मैंने छोटे जीजू से फिर से पूछा। ‘हमें जाना कहाँ है? रास्ता तो पता है, मैं ज्यादा लखनऊ गया नहीं हूँ।’

    ‘हाँ, मुझे पता हैं।’ उन्होंने कहा।

    जैसा कि मैंने सोचा था वैसा-ही माहौल था बस की क्षमता से ज्यादा लोग बस में थे।

    ‘क्या तुमने अपना नोटिफिकशन लेटर डाउनलोड किया?’ छोटे जीजू ने मुझसे पूछा।

    ‘हाँ, मैंने कोशिश की थी लेकिन उसमें कुछ एरर बता रहा था।’

    ‘एक बात बोलूं, मुझे यह कोर्स करना ही नहीं है मुझे मेडिकल फील्ड में बिल्कुल भी इंटरेस्ट नहीं है।’ मैंने कहा।

    ‘देखो, ये कोर्स अच्छा है। भईया, कह रहे थे कि इसका अच्छा स्कोप है। डॉक्टर आजकल बिना ब्लड टेस्ट के ट्रीटमेंट नहीं करते है।’ बस की स्पीड धीमी हुई। विण्डो से बाहर देखा तो पता चला कि बस टोल प्लाजा पहुँच चुकी है।

    ‘लाई चना, लाई चना, लाई चना-- ठण्डा पानी, चिप्स, चिप्स --- ठण्डा पानी ---

    ये आवाज आम है। किसी भी स्टॉप पर आप आसानी से सुन सकते है। एक घुँघराले बालो वाला लड़का धक्का-मुक्की करते हुए हमारे सीट के पास आ पहुँचा। उसके एक हाथ में एक छोटी-सी बकेट थी जिसमें चार पाँच पानी की बोतले पड़ी थी और दूसरे हाथ में चिप्स, नमकीन के पैकेट थे।

    ‘एक पानी की बोतल, दो चिप्स दे दो।’ मैंने कहा।

    उसने कुछ ही सेकेण्डो में बोतल, चिप्स और एक्सट्रा पैसे भी रिटर्न कर दिये।

    ‘जीजू, ये कितना तेज काम करते है। ऐसा लगता है कि जैसे रोबोट हो।’

    छोटे जीजू ने मेरी ओर देखा। ‘यार, जीजू मत बोला करो।’ उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।

    ‘जीजू बोल दिया तो क्या हो गया? रिश्ते में तो आप हमारे जीजू ही लगते हो।’ मैंने कहा।

    ‘वो तो मैं हूँ लेकिन मुझे अच्छा नहीं लगता कि तुम मुझे जीजू कहो। हम एक ही ऐज ग्रुप के है ये सब अच्छा नहीं लगता।’

    ‘वी आर जस्ट फ्रेन्ड’ उन्होंने कहा।

    ‘अच्छा ठीक है आगे से नहीं कहुँगा।’ मैंने कहा।

    ‘क्या तुमको वो दिन याद है जब मैं तुमसे पहली बार मिला था?’ मैंने अमन से पूछा।

    ‘हाँ, मुझे याद है, भईया के इंगेजमेंट में मिले थे।’

    ‘चलो, याद तो है।’

    ‘पता है जब मैं तुम से पहली बार मिला था उस वक्त पापा मेरे साथ थे उन्होंने मेरी ओर देखा और इशारा करके मुझसे तुम्हारे पैर छूने को कहा।’

    ‘मैं तो आश्चर्य में पड़ गया कि भाई, ये छोटा-सा लड़का, है कौन? जिसकी हाइट मुझसे भी कम है और दिखने में छोटा बच्चा लग रहा है। और पापा मुझे इसके पैर छूने को कह रहे है।’

    ‘अब पापा का कहना तो मानना ही था तो पैर छूने के लिए झुका ही था कि तुमने मुझे रोक दिया।’

    ‘सच कहूँ तो मुझको भी बड़ा अजीब लगा था इसलिए मैंने मना कर दिया।’ अमन ने कहा।

    ‘तुम्हें पता है बाकी रिश्तो में वो बात नहीं होती है। जैसा कि दोस्ती में होती है। बाकी रिश्तो में लिमिटेशन होती है, लेकिन दोस्ती मैं हम खुलकर बात कर सकते है।’ मैंने कहा।

    थोड़ी देर बाद मैंने अपने कानो में ईयर फोन लगा लिया और आँखे बन्द करके म्यूजिक सुनने लगा।

    ‘अमन, हम लोग कहाँ पहुँच गये?’ मैंने पूछा।

    ‘हम अभी पी.जी.आई. पहुँचे है।’ उन्होंने जवाब दिया।

    ‘यहाँ से बस स्टॉप कितनी दूर है?’

    ‘अभी यहाँ से थोड़ा दूर है दस-पन्द्रह मिनट लगेंगे। तुम चाहो तो दो-तीन गाने और सुन लो।’

    ‘नहीं, अब गाने नहीं सुनूँगा।’

    मैंने अपनी ईयरफोन को ट्राउजर की पॉकेट में रख लिया। मैं बस की खिड़की से बाहर देखने लगा। कोई बड़ी बिल्डिंग देखता तो उस पर क्या लिखा है उसे पढ़ता और उसको ऊपर से नीचे तक देखता। मुझे याद है कि जब मैं आखिरी बार लखनऊ आया था तब में आठवी मैं पढ़ता था उसके बाद मैं एक-दो बार और आया लेकिन तब रात थी। थोड़ी देर में हम चारबाग बस स्टॉप पहुँच गये। भारत देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य के बस स्टॉप पर भीड़ न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता।

    सौ कदम चलने के बाद हम चारबाग मेट्रो स्टेशन के नीचे पहुँच गये। एक ऑटो वाले को हमारी बातचीत से पता चल गया कि हमें स्टेट मेडिकल फैकल्टी जाना है वह हमारे पास आया।

    ‘मेडिकल फैकल्टी जाना है?’ उसने पूछा।

    अमन ने जवाब देते हुए कहा ‘हाँ, यहाँ से कितनी दूर है?’

    ‘यहाँ से दूर है, पैदल नहीं जा पाओगे। उस तरफ ऑटो बुक करके जाना पड़ता है।’

    ‘कितने पैसे लोगे?’ मैंने ऑटो वाले से पूछा।

    ‘दो सौ रूपये।’ उसने कहा।

    मैंने अमन की ओर देखा। ‘दो सौ कुछ ज्यादा नहीं है।’

    ‘भाई इतने ही पैसे वहाँ का किराया है। तुमको लगता है हम ज्यादा बता रहे है तो ये भाई साहब से भी पूछ लो।’ ऑटोवाले ने कहा।

    ‘क्यों भाई राजू, फैकल्टी का दो सौ किराया लगता है न? उसने दूसरे ऑटोवाले से कहा।

    ‘हाँ, दो सो से कम मैं वहाँ कोई नहीं जायेगा।’

    ‘भाई थोड़ा-सा कम ले लो।’ मैंने उससे रिक्वेस्ट किया।

    ‘ठीक है दस-बीस रूपये कम दे देना।’

    ‘डेढ़-सौ ले लो।’ मैंने कहा।

    ऑटोवाला तैयार हो गया। मुझे लगा मैंने पचास रूपये बचा लिया लेकिन जब ऑटोवाले ने हमें मेडिकल फैकल्टी के पास छोड़ा तो समझ आया कि उसने ज्यादा पैसे ले लिए है। स्टेट मेडिकल फैकल्टी के पास कोई दरगाह थी कोई विशेष दिन होने की वजह से वहाँ पर मेला लगा था रोड पर भीड़ बहुत ज्यादा थी कुछ लड़के फैकल्टी के गेट पर खड़े थे।

    अमन ने एक लड़के से पूछा। ‘क्या आप लोग एडमिशन के बारे मैं जानने के लिए आये है?’

    एक सफेद शर्ट पहने हुए सांवले रंगे के लड़के ने जवाब दिया ‘हाँ, हम सभी उसी के बारे मैं पता करने आये है। लेकिन यहाँ पर तो कोई लिस्ट भी नहीं लगी है।’

    मैंने वही के एक आदमी से पूछा ‘सर, क्या आप मुझे यह बता सकते है कि कोई जानकारी लेने के लिए हमें किससे बात करनी होगी?’

    उसने अपनी कलाई घड़ी में देखा। ‘अभी पौने दस हुआ है, सर दस बजे आते है। तुम सब यही वेट करो, सर आयेंगे तो मैं बता दूँगा। उन्हीं से पूछ लेना।’

    हम दस-पन्द्रह लड़के थे हम सभी आपस में बात करने लगे। दस मिनट बाद प्लेन ब्लू शर्ट पहने एक आदमी पास से गुजर रहा था।

    ‘नमस्ते सर जी!’ ये कुछ बच्चे आये है इनको एडमिशन के बारे मैं कुछ पूछना है।’

    वह आदमी मुड़ा और सीधा हमारे पास आ गया।

    ‘हाँ, तुम लोगो को क्या जानकारी लेनी है?’ उसने कहा।

    ‘सर, हमने पैरामेडिकल का फार्म अप्लाई किया था लेकिन मेरा नोटिफिकेशन लेटर नहीं डाउनलोड हो रहा है।’ हम लोगो में से एक लड़के ने कहा।

    ‘जब नाम आयेगा तभी तो डाउनलोड होगा। तुम्हारी दोनो क्लास की मेरिट कितनी है।’ उन्होंने पूछा।

    ‘सर दोनो को मिलाकर सेवेन्टी बनी हैं।’ उसने कहा।

    ‘और कैटगरी क्या है?’

    ‘सर ओ.बी.सी.।’

    ‘तुम्हारा पहली लिस्ट में नाम नहीं आयेगा।’

    ‘सर, मेरा सेवेन्टी थ्री, ओ.बी.सी कैटगरी है।’ एक और लड़के ने कहा।

    ‘तुम्हारा भी नहीं होगा।’

    सभी अपनी-अपनी मेरिट बता रहे थे तो मैंने भी बोल दिया ‘सर मेरा तिरासी और ओ.बी.सी. कैटगरी है।’ उन्होंने मेरी ओर देखा।

    ‘तुम इधर आओ, तुम्हारा नाम पहली लिस्ट में नहीं आया?’ उन्होंने आश्चर्य से पूछा।

    ‘सर, वो नोटिफिकेशन लेटर नहीं डाउनलोड हो रहा है।’ मैंने दबी हुई आवाज मैं कहा।

    ‘ऐसा कैसे हो सकता है? तुम्हारी मेरिट तो ठीक है तुमे कोई न कोई कॉलेज मिलना चाहिए।’

    भीड़ को देखकर वह समझ गए कि सबको जवाब देना पड़ेगा इसलिए उन्होंने कहा कि ‘जिसकी मेरिट सेवन्टी एट से ज्यादा हो वो मेरे साथ आये, बाकी लोग परेशान न हो अभी एक और लिस्ट आयेगी।’

    हम सर को फॉलो करते हुए उनके ऑफिस में पहुँच गये। उन्होंने अपना कम्प्यूटर ऑन किया और मेरा नाम पूछा।

    ‘सर, अंशुमान।’ मैंने कहा।

    ‘आई.डी., पासवार्ड बताओ।’

    ‘सर, ंदे३ण्ण्/हउंपसण्बवउ’ मैंने कहा।

    ‘बेटा ई-मेल आई.डी. नहीं बताना है। मैंने आई.डी. पासवर्ड पूछा है जो तुम्हें रजिस्ट्रेशन के समय मिला था।’

    मैंने अपना फोन निकालकर चेक किया तो मैसेज में आई.डी. पासवर्ड था। उन्होंने मेरा आई.डी. पासवर्ड फिल करके जैसे ही लॉग इन किया मेरा नोटिफिकेशन लेटर खुलकर आ गया।

    ‘कैसे डाउनलोड होता? तुम तो ई-मेल आई.डी. से लॉग इन कर रहे थे।’ उन्होंने मुझे ऐसे देखा मानो मैं उनकी नजरो में गधा हूँ।

    ‘टी.एस. मिश्रा मेडिकल कॉलेज मिला है जल्दी से एडमिशन ले लो।’ उन्होंने कहा।

    मैं एकदम से खुश हो गया। हम ऑफिस से बाहर आ गये। कुछ मिनट पहले तक मेरी मेडिकल प्रोफेशन में जरा-सी भी रूचि नहीं थी। लेकिन मुझे एक बात याद आ गई जिसनें मुझे एडमिशन लेने के लिए प्रेरित कर दिया। मैंने सोचा कि अगर मैं यह पढ़ाई कर लूँगा तो मेरा वह सपना पूरा हो जायेगा जो मैं पिछले दो सालो से देख रहा हूँ।

    ‘इस पढ़ाई को करने के बाद, क्या मैं अपने नाम के आगे डॉक्टर लिखूँगा।’ मैंने अमन से उत्सुक होकर पूछा।

    ‘हाँ, क्यों नहीं? हॉस्पिटल में सब डॉक्टर ही तो कहते है।’

    ‘मुझे डॉक्टर टाइटल अच्छा लगता है।’

    मुझे अपनी एक बात याद आ गई। जब मैंने अपना नाम अंशुमान पटेल से बदलकर अंशुमान कुमार पटेल करा दिया था जिससे मैं शार्ट में ‘ए.के. पटेल’ लिख सकूँ। इस पढ़ाई को करने के बाद में इसे डॉ ए.के. पटेल लिखूंगा। मन ही मन यह सब सोचकर मुझे बहुत अच्छा लगा रहा था। अमन थोड़ा-सा उदास था उसकी जगह मैं होता तो शायद मुझे भी ऐसा ही फील होता, जैसा कि उसे हो रहा था।

    ‘कोई बात नहीं, तुम परेशान न हो अभी एक और मेरिट लिस्ट आयेगी।’ मैंने उसके कंधो पर हाथ रखते हुए सांत्वना दी।

    ‘अमन एडमिशन की लास्ट डेट क्या है?’ मैंने कहा।

    ‘लास्ट डेट बारह दिसम्बर थी, लेकिन डेट को एक्सटेंड करके बीस दिसंबर कर दिया गया है।’

    यह सुनकर मेरे पूरे शरीर में मानो एक करंट-सी दौड़ गई।

    ‘आज तो अट्ठारह दिसंबर है। मतलब कि मुझे दो दिन के अन्दर ही एडमिशन लेना होगा।’

    मैं मन ही मन सोचने लगा कि बारह दिसंबर लास्ट डेट थी जो एक्सटेंड होकर बीस दिंसबर हो गई। जिन्दगी मुझे कुछ तो इशारा कर रही है इसलिए मुझे यह पढ़ाई कर लेनी चाहिए।

    ‘अमन जरा गूगल करो कि यह कॉलेज लखनऊ में कहाँ है?’ मैंने कहा।

    घर से बात करने के लिए मैंने पापा को कॉल किया।

    ‘हेलो, पापा मेरा नाम आ गया! मुझे टी.एस.मिश्रा मेडिकल कॉलेज मिला है।’ मैंने प्रसन्नता के भाव से कहा।

    जब कुछ अच्छा होता है तो सब ‘बधाई हो’ बोलते है लेकिन मेरी फैमली में ऐसा माहौल नहीं है हमारे वहाँ सीधा काम की बात करते है। और पापा ने वही किया। ‘यह कॉलेज कहाँ पर है?’ उन्होंने पूछा।

    ‘पापा लखनऊ में है लेकिन किस जगह पर है अभी मुझे नहीं पता है। मैं गूगल कर रहा हूँ।’ अमन ने तुरंत मुझे कॉलेज की लोकेशन बता दी।

    ‘पाप मेरा कॉलेज अमौसी रेलवे स्टेशन के पास है।’ मैंने कहा।

    पापा बहुत खुश थे और मैं भी। मैंने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया। मैंने और अमन ने रास्ते मे चाट के ठेले पर आलू चाट और पानी के बताशे खाये। फैकल्टी से बस स्टॉप, ज्यादा दूरी पर नहीं था इसलिए हम पैदल ही चारबाग बस स्टॉप वापस आ गये।

    एक बोतल पानी और दो चिप्स के पैकेट लेकर विंडो सीट के पास बैठ गये। मैंने बस में अमन के साथ एडमिशन प्रोसेस और उससे रिलेटिड सभी डॉक्यूमेंट के बारे में डिस्कस् कर लिया। सफर में अगर विंडो सीट मिल जाये तो म्यूजिक सुनना और विंडो से बाहर का नजारा देखना मुझे पसन्द है। मैंने अपनी पॉकेट से ईयरफोन निकाला और ‘यू ट्यूब’ पर ‘90ै हिट्स’ सर्च किया। ज ैसे-जैसे बस आगे बढ़ रही थी, चीज़े बहुत तेजी से पीछे छूट रही थी। गाने अगर 90S के हो तो आँखे खुद का खुद बंद हो जाती हैं और हम दूसरी दुनिया में खो जाते हैं।

    अमन को लगा कि मैं सो रहा हूँ उसने मेरे शरीर को झकझोरते हुए कहा ‘उठो, हम बछरावाँ पहुँच गये।’

    ‘अमन, मैं सो नहीं रहा हूँ।’ मैंने कहा।

    बछरावाँ में उतरने वाले सभी यात्री अपनी-अपनी कुर्सी छोड़कर बस की गैलरी में आ गये। मैंने और अमन ने भी अपनी-अपनी कुर्सी छोड़ दी। मैं बस से उतरने के लिए आगे बढ़ा लेकिन अमन वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गया।

    ‘तुमको नहीं उतरना है, क्या?’ मैंने कहा।

    ‘नहीं, मैं अपने घर जा रहा हूँ।’

    ‘ये कौन-सी बात हुई! आज मेरे घर चलो, कल अपने घर चले जाना।’

    मेरे रिक्वेस्ट करने के बाद भी अमन जीजू अपने घर चले गये।

    मैं छोटी बहन रिया और मम्मी-पापा एक ही कमरे में बैठे थे। मम्मी मन ही मन खुश थी उन्हें देखकर मुझे ऐसा लग रहा था कि मानो मुझे कोई सरकारी नौकरी मिल गई हो। एक दो मिनट कोई कुछ न बोला फिर पापा ने सबसे जरूरी प्रश्न कर ही दिया।

    ‘बेटा एडमिशन कब लेना है?’

    ‘पापा एडमिशन की लास्ट डेट बीस दिसम्बर है। बाईस हजार पाँच सौ रूपये एडमिशन फीस है और वकील से एक एफिडेविट बनवाना है।’

    मेरी यह बात सुनकर पापा के चेहरे पर हल्की-सी मायूसी छा गई। मैं, मम्मी और छोटी बहन हम तीनो इस मायूसी की वजह समझ गये थे। पापा अपने निचले होठो को दाँतो से दबाकर कुछ सोचने लगे। वह अपने सिर को ऐसे हिला रहे थे कि मानो वो खुद से प्रश्न करके खुद ही उनके जवाब खोज रहे हो।

    दो मिनट बाद पापा के मुँह से जो बात निकली वह हम सबको पहले से ही पता थी।

    ‘पैसे तो अपने पास है नहीं, एडमिशन भी कल परसो में करवाना है।’ उन्होंने मायूस होकर एक उम्मीद के साथ मेरी ओर देखा।

    ‘क्या तुम्हारे पास कुछ पैसे है?’ उन्होंने कहा।

    ‘मेरे पास डेढ़-दो हजार होंगे।’ मैंने कहा।

    पापा ने पैसो के लिए मुझसे इसलिए पूछा क्योंकि मैं एक स्कूल में पढ़ा रहा था। जहाँ मुझे महीने का पाँच हजार मिलता था स्कूल से वापस आकर बच्चों को टूयूशन पढ़ाता था। पापा के पास उस समय कमाई का कोई साधन नहीं था। ऐसे में, मैं कोई बचत कर पाऊँ बहुत मुश्किल था।

    कोई कुछ बोल नहीं रहा था हम सब शांत बैठे हुए सोच रहे थे कि पैसे कहाँ से आये?

    ‘पैसे की व्यवस्था तो करनी ही पड़ेगी। पैसे किससे मांगे जाये?’ इतना कहकर पापा फिर सोचने लगे।

    एक मिनट मौन रहने के बाद।

    ‘चलो पैसे की व्यवस्था तो की ही जायेगी, तब तक मैं वकील से मिलकर तुम्हारा एफिडेविट बनवा देता हूँ।’

    यह कहकर पापा कमरे से बाहर

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