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Sacchai Ki Murat- Chui- Mui
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Ebook94 pages40 minutes

Sacchai Ki Murat- Chui- Mui

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About this ebook

अंत ही अनंत है

ये कहानी है एक ऐेसे सच्चे प्रेम की, जिसे भावनाओं के शब्दों से सींचा गया है, जिसे हम महज़ एक संयोग कहें या एहसासों की ज़मीन
जिस पर प्रेम के बीज बोये गए।
जैसे श्री कृष्ण का प्रेम राधा के लिए पावन था, जिसमें ना मोह, ना माया, ना छल और ना कपट, बस निस्वार्थ प्रेम रहा; अंत से अनंत तक।
राधा जैसे पवन मन की मूरत, जिनके हृदय में सिर्फ श्री कृष्ण, आँखों में श्री कृष्ण, साँसों में श्री कृष्ण, उनके रोम-रोम में श्री कृष्ण बसे हुए थे। ये युगांतर का यथार्थ अद्भुत आत्माओं का संयोग था। राधे नाम जैसे ही श्री कृष्ण के मुँख से निकलता वैसे ही संसार की सारी पीड़ाएँ ख़त्म हो जाती।
यही प्रेम है जो संवेदनांओ को शाश्वत रखता है।

Languageहिन्दी
Release dateMar 5, 2022
ISBN9798201202668
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    Sacchai Ki Murat- Chui- Mui - R.K. Rathod

    यह पुस्तक दुनिया के उन समस्त लोगों को समर्पित करता हूँ जिन्होंने अपने जीवन में प्रेम जैसे सुखद अनुभव को जी भरकर जिया और यह एहसास उनके बिछुड़ जाने के बाद भी आखिरी साँस तक उनके ज़हन में रहा ।

    मैं शुक्रगुज़ार हूँ उस लड़की का जिसने मुझे इस खूबसूरत एहसास को जी भरकर जीने का अवसर दिया, जिससे मेरे एहसासों को शब्द मिले और मैं एक खूबसूरत सफर को लिख पाया ।

    मेरा इश्क़ रूहानी

    मेरा इश्क़ रूहानी हो जाए तो अच्छा होगा,

    ये दिल तुम में खो जाए तो अच्छा होगा।

    शब्दों में पढ़ लेंगे हम एक-दूजे को ,

    फिर मेरी कलम रूहानी हो जाए तो अच्छा होगा।

    हाल में पढ़ लूँ अपने दिल का तेरी आँखों में ,

    फिर ये दिल भी तेरा हो जाए तो अच्छा होगा।

    मैं जिस पन्ने पर लिख दूँ  नाम तुम्हारा ,

    फिर वो मेरी किताब बन जाए तो अच्छा होगा।

    और मैं जो लिख नहीं पाया हाल-ए-दिल का,

    तुम वो भी समझ लो तो अच्छा होगा।

    मैं अपने दिल में लाऊँ ख़याल मोहब्बत का,

    फिर तुम मेरे हो जाओ तो अच्छा होगा।

    मैं साँसों में भर लूँगा तेरी खुशबू को,

    फिर मेरा जिस्म रूहानी हो जाए तो अच्छा होगा।

    मैं पल-पल देखूँ सपने तेरे तन मन के,

    फिर मेरी आँख रूहानी हो जाए तो अच्छा होगा।

    मैं तेरी यादों में रोऊँ बिलख-बिलख कर ,

    फिर मेरा अश्क रूहानी हो जाए तो अच्छा होगा।

    ––––––––

    और मैं तेरी चाहत में मर जाऊँ घुट-घुट कर,

    फिर मेरी मौत रूहानी हो जाए तो अच्छा होगा।

    मेरा इश्क़ रूहानी हो जाए तो अच्छा होगा,

    ये दिल तुम में खो जाए तो अच्छा होगा।

    संयोग का वियोग

    संयोग का भी अपना समय होता है। जब होता है तो दो मुखों से एक ही बात, एक साथ निकालती है। यह हृदय की बात है जो अपने विचारों का एकांतरन करती है।

    जब मैं अपने अंत मन में विचार कर ही रहा हूँ, एक के विचार समांनानतर समय पर दूसरे की ज़ुबान पर होना ही संयोग है, जो अक्सर ना हो कर निरंतर हो, तो उसे ही संयोग का वियोग  कहते है।

    विचारों को समझना और उसे समय के अनुरूप शब्द देना इत्तेफ़ाक़ तो नहीं हो सकता, तो फिर उसे क्या कहें? जब दो इंसानों के हृदय पानी की तरह पवित्र हो और उनके विचार गंगाजल की तरह पावन हो तो उसमें कुछ कहने सुनने की आवश्यकता ना होकर मन का समन होता है। जिसे हम सरल शब्दों में पवित्र प्रेम कह सकते है जो कि हमारे विचारों और भावनाओं का प्रतीक है। भाव प्रकट मात्र से ही प्रतीत हो जाता है कि व्याकुलताएँ किस प्रकार की है और क्या हृदय में है। फिर शब्दों का कोई मोल नहीं रहता, सहजता से जो ख़ामोशी समझ ले उसे व्याख्याओं में प्रामाणित नहीं किया जा सकता, वही आत्मा परमात्मा का रूप लिए मिलते है।

    पीड़ा अगर मुझे यहाँ हो तो भाव वहाँ उसके हृदय में प्रकट हो जाते है। तकलीफ अगर वहाँ उसे हो तो तड़प यहाँ मेरे हृदय में हो जाती है। इसे संयोग कहे या आत्मिय समन; सत्य यही है।

    हम अपने विचारों को बखूबी शब्द दे सकते है, परंतु इस सम्पूर्ण संसार में भावनाओं को व्यक्त कोई शब्द नहीं कर सकता, भावनाओं को व्यक्त किया ही नहीं जा सकता, उसे अंतरमन से ही समझा जा सकता है। उसे

    समझने के लिए एक कोमल हृदय चाहिए जो एक तेरे पास है, एक मेरे पास है

    हम

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