थोड़ा सा धुआं रह गयाल
By पुनीत शर्मा
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गुनाह तो हो गया, अब तो बस सजा काट रहा हूं. प्यार के दर्द को शब्दों में बाँटना, कभी पछताना नहीं प्रेम, प्यार, इश्क, मोहब्बत। हिंदी में लिखे जाने पर ये शब्द भले ही अधूरे हों, लेकिन दुनिया की सभी भाषाओं में ये जो भाव व्यक्त करते हैं, वह अपने आप में संपूर्ण होता है। जिसने भी इस अनुभूति को महसूस किया है, उसके जीवन में इसकी पूर्णता का अहसास सदैव बना रहता है। मेरी कविताओं का यह संग्रह इसी पवित्र अनुभूति के विभिन्न आयामों को शब्दों में पिरोने का एक प्रयास है।
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थोड़ा सा धुआं रह गयाल - पुनीत शर्मा
स्वीकृति
थोड़ा सा धुआँ रह गया
उसी कोशिश में अगला पड़ाव है जिसकी शुरूआत मेरे पहले संग्रह अधूरा इश्क, अधूरे हम
से हुई थी।
मैं अपने माता पिता श्री बलदेव दत्त जी और स्वर्गीय श्रीमती स्वर्ण लता जी की परवरिश को धन्यवाद देता हूँ जिसके बल-बूते पे ही मैंनें अपने जीवन में सब कुछ हासिल किया है।
मैं अपने गुरुजनों का आभारी हूँ जिनकी शिक्षा और मार्गदर्शन आज भी मेरी कला, मेरे कौशल को सही दिशा दिखाती है।
मैं अपने मित्रों और शुभचिंतकों, विशेष रूप से डा. मोनिका ठाकुर, डा. रेणु खेडकर, डा. सुनयन और सुश्री भावना पाण्डे का हृदय से आभारी हूँ जिन्होनें मुझे प्रोत्साहित किया और साथ ही मेरी गलतियाँ सुधारने में भी मदद की।
मैं अपनी भार्या पूजा और सुपुत्री पराकाष्ठा का धन्यवाद करने में सक्षम नहीं हूँ। मेरे कठिन समय में इनके साथ और उत्साहवर्धन ने ही मुझे उबारा और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। मैं इनका आभार शब्दों में परिभाषित नहीं कर सकता।
1.
मेरे इश्क की कहानी
मुझ से ना पूछो मेरे इश्क की कहानी
मैं तो हंस के सुना दूँगा, तुम्हें रोना आ जाएगा
एक नहीं कई बार मैनें जताना चाहा मगर,
फिर सोचा कभी ना कभी, वो खुद ही समझ जाएगा
उसकी हर बात को जाना मैनें पत्थर की लकीर,
नहीं जानता था मेरी हर बात पे वो पानी फेर जाएगा
इस दिल के वो अनमोल सपने जो उसके संग देखे थे मैनें,
कभी महस़ूस ना होने दिया उसने, इन्हें तोड़ कर कहीं द़ूर चला