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बहुत ही सरल लघु कथाएँ
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बहुत ही सरल लघु कथाएँ
Ebook158 pages1 hour

बहुत ही सरल लघु कथाएँ

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About this ebook

इन कहानियों को स्कूल के पाठ्यक्रम में भी पढ़ाया जा सकता है। हमारी कहानियों को अगर आप अपने स्कूल में पढ़ाते हैं तो हमें ख़ुशी होगी और हमें बदले में कुछ भी नहीं चाहिए है।

हमारी इन कहानियों में ना कोई बनावट है और ना ही कोई शब्दों का खेल है, लेकिन हर कहानी एक बहुत गहरा सन्देश है।

ये कहानियां जीवन की दैनिक छोटी छोटी घटनाओं पर आधारित हैं और बहुत ही सरल और सीधी भाषा में लिखी गयी हैं। इन छोटी छोटी कहानियों को आप पढ़ने के बाद अपने छोटे भाई बहनो और बच्चों को भी सुनाना पसंद करेंगे।

हम इस बात पर यकीन करते हैं के अच्छा साहित्य वही होता है जो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे और पढ़ने वालों को शब्दों के जाल में फंसना ना पड़े। हम ये फिर से साफ़ करते हैं के हमारी कहानियों की भाषा ना तो अलंकृत है और ना ही काव्यात्मक। हम सादगी को साहित्य में दूर दूर तक फैलाने में यकीन करते हैं।

तो बस शुरू हो जाइये हमारी इन छोटी छोटी सी कहानियों का आनंद लीजिये।

टी. सिंह

मेरे लिए सब बराबर हैं
अंत किताब में (रहस्य)
आज तृप्त हुई हूँ (प्रेम कहानी)
अजनबी की पुकार (लघु कथा)
आज का रोमियो (मजेदार कहानी)
उड़ जाना चाहती हूँ (रहस्य से भरपूर)
उनको रोक लीजिये (आज की सच्चाई)
एक ऐसा मिलन (आज की कहानी)
एक कौमा एक जान (अति सुन्दर कहानी)
ऐसा कैसा प्यार (नयी कहानी)
कोई नहीं जान सका (रहस्य और रोमांच)
क्या बीन रहे हो (एक मार्मिक कहानी)
गरीबों को कुछ नहीं होता है (मार्मिक कहानी)
जिन्दा रहना है तो (आज की कहानी)
कौन सी खाद डाली थी (रहस्य)
तुम ही जिद्दी थी (कहानी रिश्तों की)
तृप्त नयनो से (प्रेम कहानी)
नसीब बदल लें (आज की कहानी)
प्यार की इन्तेहा (प्रेम कहानी)
प्यार की फुसफुसाहट (एक दुखद कहानी)
प्यार शादी के बाद (सुन्दर कहानी)
बरसात में अजनबी (एक सुन्दर कहानी)
मुझे छूने की हिम्मत कैसे हुई (आज की कहानी)
मेरे दोस्त का पेशा (रहस्य)
मेरे लॉकर का पासवर्ड (रहस्य)
मैं आपकी पत्नी हूँ; वो हमारी बहु है (आज की कहानी)
हम अछूत हैं (मार्मिक कहानी)
हम नहीं, व्यवस्था अछूत है (छोटी कहानी)
आज कह देती हूँ (सुन्दर कहानी)
कर्त्तव्य और अधिकार
मीठी बोली और बला...बला...बला...
लोगों की बातें (आज की कहानी)
वाह री दुनिया, कैसे तेरे रंग (नयी सच्ची कहानी)
अपना पहला घर (मार्मिक कहानी)
माँ, बेटा, और बहु (आज की कहानी)
अप्रत्याशित क्षण (नयी कहानी)
घर अपना पराया (नयी कहानी)

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateMay 11, 2024
ISBN9798224501748
बहुत ही सरल लघु कथाएँ

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    बहुत ही सरल लघु कथाएँ - टी सिंह

    मेरे लिए सब बराबर हैं

    बच्चे के जन्म के समय रूपा को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था।

    डिलीवरी आसान नहीं थी।

    बच्चे के जन्म के बाद रूपा समझ गयी थी के अब तो उसको बच्चे की खातिर ही अपने ससुराल में रहना पड़ेगा।

    कई वर्षों तक जब बच्चा नहीं हुआ था तो उसने फैसला कर लिया था के वो अपने पति को छोड़कर वापिस अपने माता पिता के घर चली जाएगी।

    भगवान् ने भी उसके साथ अन्याय ही किया था। उसको जीवन में कोई भी चीज कभी भी बिना कठिनाइयों के नहीं मिली थी।

    रूपा की माँ उसके साथ थी डिलीवरी के समय और इसीलिए ये बात छुपी रही के बच्चा लड़का था या लड़की।

    लेकिन वो इस बात को कब तक छुपा सकती थी।

    इतने वर्षो बाद घर में खुशियां आयी थी लेकिन रूपा को अधूरापन महसूस हो रहा था।

    घर में सभी लोग खुश थे और हर तरफ से बधाइयां मिल रही थी।

    एक मेहमान ने रूपा के पति से पूछा,अरे संतोष, घर में नया मेहमान लड़का है या लड़की?

    वो तो अभी मुझे भी नहीं मालूम है! संतोष ने कहा।

    कैसा बाप है तू जिसको ये भी नहीं मालुम के वो लड़के का बाप बना है के लड़की का? मेहमान ने कहा।

    अब इस बात को रहने ही दीजिये, आज नहीं तो कल सुबह तो मालूम चल ही जाएगा, संतोष ने कहा।

    संतोष के सभी दोस्तों ने भी उसको बधाइयां दी।

    संतोष को सच में ही नहीं मालूम था के घर में लड़के का जन्म हुआ था के लड़की का। उसको तो बस यही कहा गया था के घर में एक नया मेहमान आया था।

    जैसे ही वो रूपा के पास जाकर पूछने की कोशिश करता वो किसी ना किसी बहाने से बात बदल देती थी और उसको अन्य बातों में उलझा देती थी।

    रूपा ने कहा,ये जानकार अब क्या होगा के बेटा हुआ है या बेटी? क्या यही काफी नहीं है के हम दोनों माता पिता बन गए हैं?

    संतोष रूपा को दुखी नहीं करना चाहता था क्योंकि कई वर्षों के इंतजार के बाद घर में ये ख़ुशी आयी थी।

    संतोष ने कहा,ठीक है, रूप, अब नहीं पूछूंगा। आखिर बच्चा हमारा ही तो है फिर भले ही लड़का हो या लड़की। मुझे दोनों ही स्वीकार हैं।

    क्या आप सच कह रहे हैं? रूपा की आँखों में चमक आ गयी थी।

    हाँ, रूप, मैं सच कह रहा हूँ। मेरे लिए लड़का और लड़की दोनों ही बराबर हैं, संतोष ने मुस्कुरा कर कहा।

    कुछ देर के लिए रूपा ने बहुत राहत महसूस की लेकिन उसके मन में भय तब भी था के संतोष सच का सामना कैसे करेगा!

    बच्चे को लगातार अपने सीने से लगाई हुई रूपा को देखकर संतोष विचलित होने लगा क्योंकि वो भी अपने बच्चे को अपने सीने से लगाना चाहता था।

    वो भी बच्चे को प्यार करना चाहता था।

    उस दिन जब शाम होने तक भी संतोष को मालूम नहीं चला तो उसने रूपा से कहा,तुमको मेरी कसम है, रूपा, मुझे बताओ के सच क्या है?

    तभी हकीकत रूपा की आँखों से आंसुओं के रूप में बहने लगी। सब कुछ बह गया। बस सिर्फ कुछ अधूरा सा रह गया था।

    संतोष धीमे कदमो से कमरे से बाहर जा रहा था।बेटी के जन्म की सच्चाई ने शायद संतोष को एक पल में ही बदल दिया था। रूपा तो जैसे ठगी सी ही खड़ी रह गई और अपने अधूरेपन में खो गयी।

    Chapter 2

    अंत किताब में (रहस्य)

    आधी रात से अधिक समय बीत चुका था लेकिन वो तब भी उस मोटी किताब को बहुत ही ध्यान से पढ़ रहा था।

    उसने वो किताब एक हज़ार डॉलर में खरीदी थी और बेचने वाले ने कहा था के उसको वो किताब लगातार पढ़नी थी और दूसरी रात के अंत होने और सूरज के उदय होने से पहले ही पढ़कर खत्म करनी थी।

    बेचने वाले ने कहा था के अगर दूसरी सुबह होने से पहले उसने उस किताब में से छुपा हुआ रहस्य पता लगा लिया तो वो जीवन भर के लिए सुखी हो जाएगा और करोड़ों डॉलरों का मालिक बन जाएगा। यही उस किताब का रहस्य था।

    वो दूसरी रात थी और वो हर हाल में उस किताब को सूरज की पहली किरण दिखने से पहले ही समाप्त कर लेना चाहता था।

    उसको बताया गया था के उस किताब में छुपा हुआ रहस्य उससे पहले सिर्फ कुछ ही लोगों ने पता लगाया था और वो सब अब बहुत ही अमीर थे।

    बस कुछ ही पन्ने बाकी थे और वो जल्दी जल्दी पढ़ने लगा।

    लेकिन अंतिम पन्ने तक पहुँचते पहुंचते खिड़की में से सूरज की पहली किरण कमरे में प्रवेश कर गयी और उसकी सांस रुक गयी और उसकी किताब उसकी छाती पर धरी रह गयी।

    बेचने वाले ने ये रहस्य उसको नहीं बताया था के दूसरी सुबह सूरज की पहली किरण के ना दिखने तक अगर उसने किताब ना पढ़ी तो आगे क्या होने वाला था! वो रहस्य एक बार फिर से रहस्य ही रह गया।

    Chapter 3

    आज तृप्त हुई हूँ (प्रेम कहानी)

    सारंग ने राधिका को अपनी बाहों में कसकर जकड़ते हुए उसको चूमते हुए कहा,मेरी जान, मेरी राधिका, बस यूं ही मेरी बाहों में समायी रहो!

    राधिका ने कसमसाते हुए कहा,"अरे अरे, इतना जोर से तो

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