Us Raat Ki Chhap
By Simmi Gupta
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About this ebook
यह कहानी एक तरफ़ा मोहब्बत की क़ामयाब कोशिश है। कोई इंसान जब दिल के हाथों मजबूर होकर कुछ हेरफ़ेर कर बैठता है तो कई बार उसकी इस शिद्दत को दिव्य स्वीकृति मिल जाती है। किस तरह अपने प्रेम के बीज को अपने प्रेमी के दिल में बो कर उसे विश्वास और सब्र से सींचा जाता है। यह हमारी कहानी के नायक वीर से सीखा जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ, अक्सर हम भ्रम में क़ैद होकर अपनी हठ को ही अपनी बेड़ियाँ बना लेते हैं। बिना यह समझे कि सच्चाई कब से हमारी आँखों के सामने खड़ी है। वह सच्चाई जो मीत की क़िस्मत में थी लेकिन वह उस रात की छाप की गिरफ़्त में होते उसे देख नहीं सकी।
यह कहानी एक और मुद्दे को सामने लाती है कि विज्ञान और ज्योतिष विद्या जैसे साधन इंसान को हिम्मत और सही रास्ता दिखाने के लिए हैं, ना कि गुमराह करने के लिए।
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कनाडा में रह रहीं, भारत की युवा हिन्दी लेखिका सिम्मी गुप्ता का जन्म एक सिख परिवार में हुआ था और शादी एक हिन्दू परिवार में। सिम्मी जी की ज़िन्दगी का ये पहलू भी किसी रोमांचक कहानी से कम नहीं है। सिम्मी जी ने जीव विज्ञान से स्नातक(B.Sc) किया है। शादी के बाद अपने पति के साथ अनेक देशों में रहीं और 2013 में कनाडा आकर बस गयीं। शुरूआती समय कठिन संघर्षों भरा रहा। सिम्मी की उन्हीं दिनों एक बेटी की माँ भी बन चुकीं थीं। वहाँ सिम्मी जी ने आगे की शिक्षा हासिल की और सरकारी नौकरी हासिल कर ली। किन्तु पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के चलते कुछ समय बाद यह सरकारी नौकरी छोड़ दी। अब एक गृहणी के तौर पर पूरे परिवार को सम्हालने की ज़िम्मेदारी के साथ-साथ लिखना भी शुरू कर दिया था। सिम्मी जी हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेज़ी और पंजाबी में भी बखूबी लिखती हैं। यही नहीं, इन्हें पाक कला और किताबें पढ़ने के साथ-साथ कई भारतीय पारंपरिक नृत्यों का भी ख़ूब ज्ञान है।
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Book preview
Us Raat Ki Chhap - Simmi Gupta
ISBN : 978-9388202848
Published by :
Rajmangal Publishers
Rajmangal Prakashan Building,
1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road
Aligarh-202001, (UP) INDIA
Cont. No. +91- 7017993445
www.rajmangalpublishers.com
rajmangalpublishers@gmail.com
sampadak@rajmangalpublishers.in
——————————————————————-
प्रथम संस्करण : जनवरी 2020
प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन
राजमंगल प्रकाशन बिल्डिंग, 1st स्ट्रीट,
सांगवान, क्वार्सी, रामघाट रोड,
अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत
फ़ोन : +91 - 7017993445
——————————————————————-
First Published : Jan. 2020
eBook by : Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division)
Cover Design : Rajmangal Arts
Copyright © सिम्मी गुप्ता
This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales, and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental. This book is sold subject to the condition that it shall not, by way of trade or otherwise, be lent, resold, hired out, or otherwise circulated without the publisher’s prior consent in any form of binding or cover other than that in which it is published and without a similar condition including this condition being imposed on the subsequent purchaser. Under no circumstances may any part of this book be photocopied for resale. The printer/publishers, distributer of this book are not in any way responsible for the view expressed by author in this book. All disputes are subject to arbitration, legal action if any are subject to the jurisdiction of courts of Aligarh, Uttar Pradesh, India
प्राक्कथन
यह कहानी एक तरफ़ा मोहब्बत की क़ामयाब कोशिश है। कोई इंसान जब दिल के हाथों मजबूर होकर कुछ हेरफ़ेर कर बैठता है तो कई बार उसकी इस शिद्दत को दिव्य स्वीकृति मिल जाती है। किस तरह अपने प्रेम के बीज को अपने प्रेमी के दिल में बो कर उसे विश्वास और सब्र से सींचा जाता है। यह हमारी कहानी के नायक वीर से सीखा जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ, अक्सर हम भ्रम में क़ैद होकर अपनी हठ को ही अपनी बेड़ियाँ बना लेते हैं। बिना यह समझे कि सच्चाई कब से हमारी आँखों के सामने खड़ी है। वह सच्चाई जो मीत की क़िस्मत में थी लेकिन वह उस रात की छाप की गिरफ़्त में होते उसे देख नहीं सकी।
यह कहानी एक और मुद्दे को सामने लाती है कि विज्ञान और ज्योतिष विद्या जैसे साधन इंसान को हिम्मत और सही रास्ता दिखाने के लिए हैं, ना कि गुमराह करने के लिए।
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समर्पण
यह किताब मैं अपने स्वर्गवासी पिताजी श. करनैल सिंह बरिआना को समर्पित करती हूँ। जिन्होंने फिल्मों, धारावाहिकों और कहानियों के ज़रिये मेरे अंदर एक कहानीकार बनने की चिंगारी सुलगा दी। साथ ही मेरे पूरे परिवार और दोस्तों को, जिन्होंने इस चिंगारी को हवा दी और यहाँ तक पहुँचा दिया।
ख़ास धन्यवाद राधिका को जिसने मेरी कहानी पढ़ी और पूछा, सिम्मी तूने सच्ची में यह कहानी लिखी है?
मेरे देवर-देवरानी, जो मदद के लिए हमेशा तैयार थे। मेरे पति देव को, जो हर क़दम मेरा हौसला बढ़ाते रहे।
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अनुक्रमणिका
शीर्षक
प्राक्कथन
समर्पण
1960 मानगढ़
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४ दिन बाद...
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शादी का दिन
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1960 मानगढ़
लगता है अब नींद नहीं आएगी! अच्छी-ख़ासी आँख लगी थी लेकिन कमबख्त़ इस खिड़की को भी थाड-थाड अभी बजना था।
मीत के मन में ख़याल चल रहे थे लेकिन उसकी भारी पलकें खुलने का नाम नहीं ले रही थीं। कुछ देर बाद जब उसकी नींद खिड़की की आवाज़ के कारण खुल गई तो आँखें खुलते ही कमरा अचानक डरावना सा लगने लगा। एक किनारे लालटेन की बत्ती हिल-हिल कर परछाईयाँ बना रही थी। आसपास देखने की अब उसकी हिम्मत नही थी। पिछले कई दिन से लाज मरी रात को अपनी माँ के पास चली जाती थी। वह साथ सोती थी तो उसकी नींद इस तरह कभी नहीं खराब हुई। एक बार सोने के बाद रात को कमरा कैसा दिखता या खिड़की खुली है या बंद इसकी भी ख़बर नहीं हुई कभी। कितनी देर इन्हीं ख़यालों में डूबी मीत बिस्तर की गुनगुनाहट और आराम को छोड़ने का साहस ना जुटा पाई। तभी अचानक हवा के साथ बिजली की कड़कड़ाहट ने उसके शरीर में अजीब सी फुर्ती भर दी।
नींद में घिरी वह भागी-भागी खिड़की के पास गई और खिड़की के कुंडे पकड़ने को खिड़की से बाहर झुकी। मन ही मन वह कोस रही थी काश लाजमरी होती तो यह सब नहीं करना पड़ता।
बूँदों के बीच उसने घोड़े की बेचैन टाप सुनी। टाप के साथ गहनों की भी खनखनाहट सुनी। वह आवाज़ सुन कुछ पल रुकी तो उसके हाथ बारिश के ठंडे पानी से भीग गए और तेज बारिश की बौछार ने कमरे का रुख कर लिया। आख़िर कुछ देर जूझने के बाद खिड़की का कुंडा हाथ आया। पहले एक तरफ का बंद किया फिर दूसरा बंद करने लगी।
इससे पहले की खिड़की पूरी बंद हो मीत की नजर नीचे गली की तरफ चली गई। कुछ हलचल महसूस हुई थी शायद इसलिए या वह आवाज़ का कारण ढूँढ रही थी। बारिश के बावजूद मीत सब भूलकर उस अंधेरे में अपनी जिज्ञासा बढ़ाती आवाज़ का स्रोत ढूँढ़ने लगे। इसी दौरान बिजली की एक ज़बरदस्त चमक के साथ वह अंधेरा हिस्सा जहाँ मीत की नजर टिकी थी रौशन हो उठा। जो उसने देखा एक पल लगा शायद आंखों का धोखा था मगर वह पल उसके दिमाग़ पर छप गया।
एक काला सुंदर घोड़ा, इतना सजा हुआ उसके सामने वाली गली के कोने में बंधा हुआ था। मगर जिस कारण वह द्रिश्य यादगार बन गया वह कुछ और था। घोड़े के साथ लगकर खड़ा था एक आदमी जिसकी नज़र सीधी उसकी खिड़की पर टिकी हुई थी।इतनी दूर से चंद लम्हों के लिए बिजली की चमक ने उसके चेहरे को रौशन किया। दूरी कुछ ज्यादा ही थी इसलिए पहचानना मुश्किल था।
लंबा चौड़ा इंसान, ऐसे ख़राब मौसम में यहाँ गली में खड़ा क्या कर रहा था? बारिश का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था क्योंकि बारिश की तीर जैसी पड़ती बौछार में भी वह वहीं बुत बना खड़ा था। फिर जिस तरह वह कोना रौशन हुआ था वैसे ही अँधेरे में खो गया। अब अंधेरे में भी उस का एहसास था। आख़िर दिल सा थम गया जब किसी अनजान से खिचाव ने उसके वजूद को हिला दिया। मगर फिर उस एहसास की जगह डर ने ले ली। उस पल का तिलस्म टूट गया। अब डर के मारे शरीर काँपने लगा था या फिर शायद बारिश में भीगे कपड़ों की वजह से। उसने झटके से खिड़की की दूसरी किवाड़ भी बंद कर ली। मन में अजीब ख़याल आ रहे थे। कौन हो सकता है? उसकी खिड़की के सामने ही क्यों? उसके कपड़े ज्यादा ही गीले हो गए थे लेकिन हिम्मत नहीं हुई बदलने की। वह काँपती हुई अपने बिस्तर में घुस गई।
कुछ देर पहले की गुनगुनाहट अभी भी बिस्तर में थी मगर शरीर काँप रहा था। दाँत कटकटा रहे थे और बिस्तर में लेट कर भी शरीर का काँपना बंद ना हुआ जैसे ठंड हड्डियों में बस गई थी। कुछ घंटे करवटे बदलते गुज़र गए मगर आंखों से नींद तो ऐसे गायब हुई जैसे गधे के सिर से सींग। बाहर तूफान पूरे जोर पर था। हवा अजीब सी आवाजें कर रही थी। लालटेन की रोशनी भी खत्म होने वाली थी। धीरे धीरे कमरा अंधेरे में घिर गया फिर मीत की कब आँख बंद हुई उसे पता नहीं चला।
जब सुबह आँख खुली तो खिड़की में से सूरज पूरे तेज से झाँक रहा था। बाहर से गली में आने जाने वालों की आवाज़ आ रही थी। कमरा अभी भी खाली था। लाज मरी की खैर नहीं। पता नहीं कहाँ गायब हो गई, यही सोचते हुए मीत बिस्तर में से उठ खिड़की की तरफ भागी। रात की तस्वीर उसके आगे घूम रही थी। वह अजनबी घोड़े वाला। हाय ! उसका दिल उस याद से ही तेज धड़कने लगा। बाहर ना घोड़ा था, ना घोड़े वाला। ना ही बारिश जिसने उसे अंदर तक भिगो दिया था।
मीत के पिताजी मान सिंह ने गाँव की गलियाँ पक्की करवा दी थी। वह मान-गढ़ के जमींदार थे। पक्की गलियाँ होने के बावजूद रात के तूफान ने नीचे गली को टूटी टहनी और पत्तों से भर दिया था। इस वक्त जमादार तेजी से सब साफ कर रहा था। बच्चे इधर उधर भाग रहे थे। बहुत सी औरतें लंबे घूँघट में छुपी, सर पर पानी के घड़े लेकर कुएँ से घर की ओर जा रही थी। इस सब चहल पहल के बीच मीत की नजर तो उस जगह टिकी हुई थी जहाँ रात में वह अजनबी खड़ा था। लेकिन इस वक्त जमादार के झाड़ू से उड़ती धूल के इलावा वहाँ कुछ नहीं था।
कमाल है मीत बीजी, बिना दुपट्टा लिए आप खिड़की के बाहिर आँखें फाड़ फाड़ कर क्या ढूँढ रही हो?
हड़बड़ा कर मीत के हाथ सीने पर चले गए। दिमाग़ फिर से काम करने लगा।
क्यों री लाजमरी ! कहाँ मर गई थी? यह कोई वक़्त है आने का?
मीत ने लौट कर पूछा इससे पहले कि लाजवंती कुछ और पूछे।
मीत बीजी! कितनी बार कहा है मेरा नाम लाजवंती है लाजमरी नहीं। आप मुझे बार बार लाज मरी मत कहा करो। नहीं तो मैं आपके चोरी छिपे वाले कोई काम नहीं करूंगी। हाँ।
लाजवंती बोली और मुँह फूला कर खड़ी हो गई।
लाजवंती से ज्यादा देर गुस्सा रहना मुश्किल था। रस्सी की तरह लटकती उसकी दो चोटियां खींचने का मन करने लगा। रंग सांवला होने के बावजूद उसमें मासूम खिचाव था। एक से कद वाली दोनों उम्र में भी आस पास थी।
उनकी तकरार ज्यादा तर रोज कुछ इसी तरह शुरू होती। लाजवंती बड बड करती कमरा छानने लगी, लेकिन दुप्पट्टा नहीं मिला। मीत एक कोने में खड़ी ध्यान से देख रही थी।
आज का दिन रोज जैसा नहीं था तभी तो इस लड़ाई का आज अंत होना था। लाजवंती मीत के साथ बचपन से थी।उसकी माँ, मीत की माँ का सारा काम संभालती थी। इसलिए बचपन से ही दोनों एक साथ पली बड़ी थी। एक जमींदार की बेटी मीत और दूसरी नौकर की बेटी लाजवंती। नाम भी ठीक था उसका, लाजवंती। बहुत ही भोली और शर्मीली थी। उसकी माँ राजो विधवा थी। लाजवंती के पिता मीत के पिता के ख़ास पहरेदार थे और मीत के पिताजी ज़िन्दा थे आज तो उनकी वजह से।उन्होंने लुटेरों से मानसिंह को बचाते हुए अपनी जान गवा दी थी। इसलिए लाज और राजो इस परिवार की जिम्मेदारी बन गई।
ठीक है! आज से मैं तुझे लाज कहूँगी और तू मुझे मीत कहना। ख़बरदार जो मुझे छोटी बीजी या मीत बीजी कहा!
मीत लाज का नज़र से पीछा करते हुए बोली। लाज जहाँ थी वहीं रुक गई और फिर धीरे धीरे मीत के पास आई और उसका माथा छुआ और नव्ज़ देखी।
हाय हाय! क्या हुआ?आप तो इतनी आसानी से मान गई। तबियत तो ठीक है न आपकी? लेकिन मैं तो आपको मीत बीजी ही बुलाऊँगी। नहीं तो माँ मेरी जान ले लेगी।
उनकी तकरार आज पुराने झगड़ों की तरह लम्बी नहीं खिची, क्योंकि उनकी लड़ाई कई कई दिन चलती थी। दोनों ने एक दूसरे को कुछ पल घूरा, लेकिन फिर अचानक कमरा दो लड़कियों की हँसी से गूँज उठा।
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हद्द कर दी वीर पुत्तर! ऐसी क्या आफत आ गई थी कि इतने तूफ़ान में बाहर जाना पड़ा तुझे।अगर कुछ हो जाता तुझे तो मैं क्या करती? तेरे पिताजी और भाई तो मेरी एक नहीं सुनते,कम से कम तू तो अपना ख़याल रख इस माँ के लिए।
यह कह कर रायपुर के जमींदार की बीवी दुप्पट्टे में मुँह छुपा सुबकने लगी।
वीर को आधी रात को घर आते हुए उसकी माँ ने देख लिया था। और उसके कपड़े अभी पूरी तरह सूखे नहीं थे। तब तो वह माँ को टाल कर कमरे में चला गया था। लेकिन अभी उसके उठने के बाद वह जैसे ही नहा कर निकला उसकी माँ उसके कमरे में उसका इन्तिज़ार कर रही थी।
वीर अपनी माँ को इस हालत में देखकर बिलकुल लाचार हो जाता था। उसके पिता रूपसिंह और दोनों भाई, शेरा और लाली दिल के बिलकुल गरीब थे। पुश्तों की सारी धरोहर धीरे धीरे शराब और शबाब पे लुट रही थी। वह दिन दूर नहीं था जब वह बिना जमीनों के जमींदार रह जाएँगे। किस्मत से उसने अपना ज्यादा वक़्त उनसे दूर गुज़ारा था। उसकी माँ ने उसके भी बिगड़ने के डर से उसे उन सब से दूर अपने भाइयों के पास भेज दिया था। इसी लिए वह उन सब से बिलकुल अलग था और अपनी माँ के दिल के करीब।
मां! बारिश ने मेरा क्या बिगाड़ना था।मैं कोई मिट्टी का थोड़ी बना हूँ।आपके प्यार और देखभाल ने मुझे चट्टान की तरह बना दिया है।जिसका छोटी-मोटी बारिश और तूफान कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
वीर तौलिए से सर पोछते हुए बोला। उसकी माँ कुछ बेहतर दिखने लगी थी।
माँ मुझे कुछ नहीं होगा। भगवान पर भरोसा रखो। मेरा काम मेरी नजर में बहुत जरूरी है। पिता जी और भाई इस वक्त कहाँ हैं?
कम्मो अब संभल गई थी।आँखें लाल थी रोने के कारण लेकिन दुपट्टे से अपने चेहरा पोछते हुए वह बोली, वह लोग बैठक में इकट्ठे होने वाले थे।अभी नाश्ता करके गए हैं। तू भी कुछ खा ले फिर हिम्मत से मिल लेना। तेरे से मिलने को कई बार चक्कर लगा चुका है।
यह कहते हुए वह कमरे से बाहर चली गई।
वीर ने माँ के जाते ही अपना दरवाज़ा हल्के से बंद करा फिर अपने सफ़र वाले थैले में से एक मलमल का दुपट्टा निकाला, हल्के आसमानी रंग का। एक अलग ही ख़ुशबू थी उसमें। कल रात कितने दिनों के बाद कुछ हाथ लगा। कोई समझ नहीं सकता इस तूफान ने जो काम कर दिया वह पिछले तीन महीने से नहीं हुआ था। लगातार हर हफ्ते उसने हवेली के नीचे पहरा दिया लेकिन उस खिड़की पर आज तक कभी कोई नहीं दिखा।
ज़िन्दगी भी क्या रंग दिखाती है। अच्छा खासा डॉक्टर आज मरीज़ बन घूम रहा है। खिड़की में खड़ी वह पहले परछाईं से ज्यादा नहीं लग रही थी मगर बिजली की चमक ने हल्का सा आकार दिया था उस धुंदले सपने को जो उसके दिमाग़ में बचपन से घर कर गया था। हालात कुछ और होते तो सीधा हवेली चला जाता मगर इस वक्त हर काम संभल कर करना पड़ रहा था। खिड़की बंद होते ही उसका ध्यान गया कि उसका दुपट्टा बाहर गिर गया था। अगर उड़ कर वह दुपट्टा पास वाले पेड़ पर ना फसा होता तो उसका रंग आसमानी की जगह मटमैला हो जाता।
मान-गढ़ ने पिछले सालों में काफी तरक़्क़ी की थी। आज़ादी के बाद जमींदारी तो बस नाम की ही रह गई थी लेकिन जमींदार घरानों का दबदबा अभी भी था। जहाँ मान-गढ़ के लोग मानसिंह की इज़्ज़त करते थे वहीं रायपुर के लोग रूप सिंह के आगे डर से झुके हुए थे।
वह घर का सबसे छोटा बेटा था इसलिए उसकी किसी फैसले में चलती नहीं थी। अपने बाप और भाइयों को तो सुधार सकता नहीं था इसलिए अपना मन उसने ऐसे कामों में लगा लिया था जो उसके मन को शांति देते थे और उसे घर से दूर रखते थे। उसे एहसास था कि उसके बड़े भाई की विफल शादी और अत्याचारों के बाद उसके दूसरे भाई की शादी का होना असंभव था। लेकिन उसके अपनी शादी से बचने के बहाने अब ज़्यादा दिन न चलें शायद। जल्द ही उसकी शादी भी एक मुद्दा बनने वाला था। वह उस वक्त के आने से पहले अपने और मीत के रिश्ते की जितनी भी उम्मीद को हकीक़त में बदल सकता था, कर रहा था।
इन दोनों घरानों का बहुत पुराना हिसाब किताब चल रहा था इसलिए कई बार उसका दिल दहल जाता था। लेकिन उस वाक्य को हुए अब बहुत साल हो गए थे। और ना उम्मीद नहीं होना चाहता था। उसे दिल की गहराई में विश्वास था कि उसका रिश्ता इन दोनों घरों के बिगड़े रिश्ते दोबारा जोड़ देगा। वह इन्ही ख़यालों में डूबा हुआ था जो उसे दरवाज़े पर दस्तक सुनाई ना दी। हिम्मत सिंह वीर के बहुत करीब था,उसके बचपन का इकलौता दोस्त। उसकी अगली दस्तक कान के पर्दे फाड़ने वाली थी।
मुझे मालूम है तू अंदर है। माँ जी ने बता दिया है। अब बहुत हो गया लुकाछिपी का खेल। अगर तूने दरवाज़ा नहीं खोला तो मुझे यह तोड़ना पड़ेगा। बहुत जरूरी काम है।
हिम्मत सिंह चिढ़ कर बोल रहा था।
वीर ने फटाफट दुपट्टा थैले में ठूसा और उस थैले को तकिए के नीचे छुपा कर दरवाज़ा खोल दिया। दरवाज़ा खुलते ही हिम्मत सिंह का भारी भरकम शरीर उस से जा टकराया। शायद वह दरवाज़ा तोड़ने की ताक में था। कद-काठी में दोनों एक से थे लेकिन पिछले 1४ सालों की दूरी ने दोनों को अलग अलग तरीक़े से तराशा था हालाँकि उनकी दोस्ती में कोई कमी नहीं आई थी क्योंकि वह आपस में मिलते रहते थे। लेकिन दोनों की परवरिश में बहुत अंतर था। एक पूरा अंगूठा छाप पहलवान और दूसरा पढ़ा लिखा शहरी बाबू बन गया था। दोनों ने एक दूसरे को बाहों में जकड़ लिया। वीर की तो जैसे साँस ही रुक गई। हिम्मत सिंह में बहुत दम था।
क्यों भाई मान-गढ़ तक की सुरंग खोद रहा था क्या दरवाज़ा बंद करके?
हिम्मत सिंह मुस्कुराते हुए बोला। वीर की आंखों में एक अजीब सी चमक आ गई और उसने दरवाज़ा बंद करके हिम्मत को दरवाज़े से दूर खींच लिया।
तुझे पता है अगर किसी ने सुन लिया तो मुसीबत हो जाएगी।
वीर हलके से बोला।
माँ बता रही थी कि तुझे कोई जरूरी काम था मुझसे। बता कि कोई अच्छी ख़बर है या बुरी?
वीर गंभीर स्वर में बोला। हिम्मत ने पहले घड़े पर रखे गिलास से पानी पिया फिर आराम से बिस्तर पर बैठ गया। यह सब देख कर वीर बेचैन हो रहा था। यह अच्छा संकेत नहीं उसने सोचा।
लंबी साँस भरते हुए हिम्मत बोला, ख़बर तो इतनी अच्छी नहीं लेकिन सही तरीक़े से देखा जाए तो बुरी भी नहीं। दिमाग़ लगाना पड़ेगा जो तेरे पास है बाक़ी मैं संभाल लूँगा।
ठीक है पहले ख़बर क्या है यह तो बता।
फिर वीर उसके सामने कुर्सी खिसका कर बैठ गया। वीर के बाल अभी भी गीले थे। अचानक ही हिम्मत बोला, तू कहाँ डुबकी लगा कर आया है।
देख हिम्मत बात जल्दी बता फिर मैं भी बता दूँगा किस तालाब में डुबकी लगाई है।
वीर की आवाज़ से बेचैनी साफ झलक रही थी।
मोहनपुर, जहाँ मैं अखाड़े के काम से गया था, मेरे भरोसे के आदमी ने बताया है कि मानसिंह अपनी बेटी के लिए रिश्ता ढूँढ़ रहा है। परसों ही उसने अपने गाँव के पुरोहित को बुला कर मीत की जन्म-पत्री दी है।वह तब वहीं पुरोहित के यहाँ इन्तिज़ार कर रहा था। उसने बताया कि मानसिंह चाहता है कि मीत के हाथ इसी साल पीले कर दिए जाएँ।
हिम्मत बोला और उसकी आँखें वीर के चेहरे के बदलते हाव भाव पर टिक गई।
उसे पता था कि अभी वीर इस अड़चन के लिए तैयार नहीं था। कुछ महीने ही हुए थे उसे वापस आए हुए।वह पटियाले में सरकारी अस्पताल में डॉक्टर था। माँ की ज़िद के कारण छुट्टी लेकर आया था। हर महीने छुट्टी बढ़ाता जा रहा था। गाँव में डॉक्टर की सख्त जरूरत थी लेकिन उसके पिताजी ने साफ इंकार कर दिया यह कहकर कि जमींदार का बेटा लोगों की गंदगी साफ करें ऐसा हरगिज़ नहीं होगा।
उन दोनों ने एक गुप्त मिशन शुरू किया था। यहाँ रायपुर में किसी को कानों कान ख़बर नहीं थी कि वीर भेस बदल कर दूसरे गाँव में मुफ्त इलाज करता था। हिम्मत सामने बैठे मरीज़ को देख रहा था जिसकी अपनी डॉक्टरी उसके किसी काम की नहीं थी।दिल का रोग ज्यादा बुरा है उसे तो डॉक्टर खुद भी ठीक नहीं कर सकता। मीत को तो ख़बर भी नहीं थी कि कोई पिछले कई सालों से उसका दीवाना है।
उसकी नज़र वीर पर थी जो कमरे की चौड़ाई नाप रहा था। यह परेड करने से कुछ नहीं होगा। आगे क्या करना है?
हिम्मत की आवाज़ ने उसकी चहल कदमी रोक दी।
यह बात तो मेरे दिमाग़ में भी नहीं थी। मानसिंह को ऐसी क्या आफत आ गई। मीत तो अभी 1६-१७ साल की ही है। आजकल इतनी जल्दी लड़की की शादी कौन करता है?
वीर गुस्से में बोला। एक-दो साल की मोहलत मिल जाती तो मैं कुछ तरकीब निकाल लेता।
हिम्मत बोला, मैंने अपने लड़के को कहकर पुरोहित के घर से जन्मपत्रि गायब करवा ली है, शाम तक यहाँ आ जाएगी। जन्मपत्री के मिलाए बिना कुछ होना नहीं है वहाँ, तुम्हें तो याद ही होगा। और मानसिंह के डर के मारे कुछ दिन पुरोहित जन्मपत्री के गायब होने की बात को छुपा कर ही रखेगा। तब तक हम नकली जन्मपत्री वहाँ रखवा देंगे।
फिर कुछ सोच कर हिम्मत बोला, अगले एक दो साल में ऐसा क्या बदल जाएगा जो तेरा काम आसान हो जाए? मुझे नहीं लगता तेरे पास बहुत ज़्यादा समय है। अगर मीत की शादी की जल्दी न होती तो भी मुझे पूरी उम्मीद है कि तेरी शादी की बात पक्की हो जाती।क्योंकि तेरी उम्र तो शादी की निकली जा रही है। मैंने सुना है तेरे लिए रिश्ते ढूँढें जा रहे हैं।अब कम से कम मजबूरी का हम फ़ायदा तो उठा सकते हैं। सो जो हो रहा है अच्छा है। बस अपने मकसद पर ध्यान देते हैं।
किसी अजीब से दर्द ने वीर के चेहरे को ढक लिया। उसकी आँखों के सामने सारा कमरा धुँधला हो गया।
मैं कैसे भूल सकता हूँ। सारी मुसीबत की जड़ ही मानसिंह का अंधविश्वास है। कोई इंसान एक साथ इतना आधुनिक और पिछड़ा कैसे हो सकता है? उनकी इसी ज़िद की वजह से मेरी इकलौती बहन की जान गई और भगवान का मज़ाक देखो उसी घर की लड़की ने मेरी नींद हराम कर रखी है। मैं खुद हैरान हो उठता हूँ कि वही क्यों?
वीर भरी आवाज़ में बोला, बस तू किसी तरह तीन चार दिन तक यह मामला रुकवा दे। तब तक मैं कुछ सोचता हूँ। मैं आज ही अपने सुपरवाइज़र को चिट्ठी लिखता हूँ कि मेरी छुट्टी बढ़ा दें क्योंकि मेरी छुट्टी खत्म होने वाली है। कई बार लगता है मैं यहाँ कर क्या रहा हूँ। वहाँ जाता हूँ तो मन यहाँ अटका रहता है। हालत धोबी के कुत्ते सी हो गई है। बस इस मामले को हल कर के ही कहीं चैन से जी पाऊँगा।
वीर कुर्सी पर बैठते हुए बोला।
दिल उदास मत कर। मैं कुछ करता हूँ। बस अब यह बता किस तालाब में डुबकी लगा कर आया है?
हिम्मत मुस्कुराते हुए बोला।
तू कुछ भूलता नहीं! खैर यह तो नहाने की वजह से गीले हैं।
वीर ने अपने बालों में हाथ फेरते हुए कहा। फिर वीर ने बताया कि कैसे उसने मीत की हवेली के पीछे वाली गली का रास्ता लिया था। फिर बारिश में वहीं रुकना पड़ा और कैसे मीत रात को खिड़की बंद करने आई। और मन ही मन सोचा कि उसके गोरे रंग ने अंधेरे में भी उजाला कर दिया था। यह सोच उसने ठंडी साँस ली।