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विचलित रातें (प्यार की कहानियाँ)
विचलित रातें (प्यार की कहानियाँ)
विचलित रातें (प्यार की कहानियाँ)
Ebook228 pages1 hour

विचलित रातें (प्यार की कहानियाँ)

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About this ebook

वो फ़ोन नंबर
वो अपरिचित थी
प्यार मेरा
नीचे ऊपर
अचानक आया प्रेमी
काश वो समझती
विचलित रातें
मैं आ रहा हूँ
ईर्ष्या या प्रेम
बड़े दिल वाली
दूसरों की ख़ुशी
मेरे बिना
मेरा दिल
हाँ मैं
कामना
वो भी दिन था
विश्वास की बात
साथ साथ
नम आंखें
पहला तूफ़ान
हाँ कहो या ना
प्यार से डरती थी
तुम कहाँ चली गयी
मैं हंस रहा था
गर्मी का दिन
एक सितारे का जन्म
इंतजार करती रही

दो शब्द

एक अच्छा पाठक कभी भी संतुष्ट नहीं होता है क्योंकि वो हर कहानी को कई पक्षों से पढता या सुनता है और फिर उसका विश्लेषण करता है और अपने विचारों को रखता है। लेकिन ज्यादातर लोग कहानियों को मनोरंजन या समय व्यतीत करने के लिए ही पढ़ते हैं। खासकर प्रेम कहानियों को तो लोग अधिकतर इसलिए पढ़ते हैं क्योंकि वो अपने जीवन में घटित प्रेम को उन कहानियों में खोजते है या फिर औरों के अनुभवों से अपने प्यार की तुलना करते हैं।

एक दो प्रेम कहानियों को पढ़ लेने से मनुष्य किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकता है के प्रेम ये है या प्रेम वो है। हम आपका काम आसान कर रहे हैं इसलिए आपको प्रेम के विषय पर लिखी बहुत सी कहानियां इस किताब में प्रस्तुत कर रहे हैं।

टी सिंह जी की लेखनी से निकली इन कहानियों में इतनी विविधता है के आप हैरान रह जायेगे! हम आपको आश्वासन देते हैं के इन कहानियों को पढने के बाद कुछ कहानियां तो आपके दिमाग में हमेशा के लिए ही रह जाएंगी और हो सकता है के आप समय समय पर उनको फिर से भी पढ़ेंगे! तो बस डाउनलोड कीजिये और शुरू हो जाइये।

शुभ कामना

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateJan 17, 2023
ISBN9798215799659
विचलित रातें (प्यार की कहानियाँ)

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    विचलित रातें (प्यार की कहानियाँ) - टी सिंह

    वो फ़ोन नंबर

    एक दिन मुझे एक अनजान नंबर से एक फ़ोन कॉल आयी। उस समय मैं एक मीटिंग में था इसलिए फ़ोन नहीं उठा सका। मीटिंग के बाद मैं अन्य कामो में व्यस्त हो गया।

    जब मुझे उस फ़ोन कॉल की याद आयी तो मैंने सोचा के किसी कंपनी ने कुछ बेचने के लिए वो फ़ोन किया होगा। शाम साढ़े सात बजे मैं दफ्तर छोड़कर चल दिया।

    वैसे मैं कार चलाते समय फ़ोन नहीं उठाता था। फ़ोन फिर से बज रहा था लेकिन मैं कार चलाता ही रहा।

    एक लम्बी ड्राइव के बाद मैं घर पहुँच गया। मैंने स्नान किया और फिर डिनर किया! अपने कमरे में मैंने देखा के एक और कॉल उसी अनजान नंबर से आयी थी। रात के दस बजे का समय हो चुका था।

    मैंने भी उसी अनजान नंबर पर एक मेसेज भेज दिया,हेलो! मैं कार चला रहा था इसलिए फ़ोन उठा नहीं सका। क्या मुझे फिर से फ़ोन कॉल कर सकते हो?

    कुछ देर के बाद मैं सो गया। अगली सुबह मैं ज़रा देरी से उठा। मैंने जल्दी से नहा,धोकर कपडे पहने और दफ्तर की तरफ चल दिया। मैंने दफ्तर में अपनी ईमेल देखी।

    मैंने अपने फ़ोन पर एक मेसेज देखा। वो मेसेज भी उसी अनजान नंबर से आया था।

    मेरे मेसेज का जवाब आ गया था,"हेलो विक्रम! कोई बात नहीं अगर तुम व्यस्त थे या कार चला रहे थे।

    मैंने लिखा,आप कौन हैं?

    क्या तुम नहीं जानते हो मैं कौन हूँ?

    नहीं मैं नहीं जानता।इसीलिए तो तुमको पूछ रहा हूँ।

    अनजान नंबर से फिर मेसेज आया,ओह मैं बहुत विचलित हूँ। बाद में बात होगी।

    मैंने सोचा के शायद मेरे कुछ दोस्त मेरे साथ कोई खेल खेल रहे थे उस अनजान नंबर का प्रयोग करके इसलिए मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और फिर से काम पर लग गया।

    मेरे पास बहुत काम था इसलिए मैं दिनभर फ़ोन को देख भी नहीं सका।

    जब मैं घर पहुंचा मैंने अपने फ़ोन पर १०० मेसेज देखे। वो सभी उस अनजान नंबर से आये थे। मैं एकदम घबरा गया और उन मेसेजिस को गम्भीरता से लेने लगा।

    सभी में एक ही बात लिखी थी,हेलो, प्लीज मुझे मेसेज भेजो। मैं चिंतित हो गया और मैंने जवाब दे दिया।

    हे! आखिर तुम हो कौन?

    तुमने मुझे अभी तक नहीं पहचाना?

    नहीं! मैं बहुत तनाव में हूँ! मेरे साथ इस तरह से खेल मत खेलो!

    ओह माफ़ करना।तो तुम आराम करो।बाद में बात करेंगे।

    पहले मुझे ये बताओ के तुम कौन हो?

    मैंने उस अनजान नंबर पर फ़ोन किया लेकिन कोई जवाब नहीं आया। अगली सुबह मैं कुछ जल्दी ही ऑफिस पहुँच गया।

    तभी अनजान नंबर से मेसेज आया,क्या अब तुम ठीक हो, विक्रम?

    हाँ मैं ठीक हूँ।मुझे ये बताओ के तुम कौन हो?

    तीन मौके हैं। अनुमान लगाओ!

    मैं खेल खेलने के मूड में नहीं हूँ,मैंने गुस्से से कहा।

    कोई जवाब नहीं आया।

    मैंने लिखा,हे आनंद।आनंद अगर तुम मुझे ये मेसेज भेज रहे तो तो मैं सच में तुमको मार दूँगा!

    मैं आनंद नहीं एक लड़की हूँ! अनजान नंबर से जवाब आया।

    :क्या? मैंने हैरान होकर पूछा।

    मेरे पास तो मेरी दोस्त सभी लड़कियों के नम्बर थे और अगर किसी ने नया नंबर लिया होता तो मुझे बता ही दिया होता। मुझे यकीन होने लगा के वो लड़की मेरे साथ खेल खेल रही थी।

    क्यों तुम इतना घबरा क्यों गए हो, विक्रम?

    मैंने कोई जवाब नहीं दिया।मैंने मेसेज की जगह उस नंबर पर फ़ोन लगा दिया लेकिन कोई जवाब नहीं आया ।

    कुछ देर बाद एक मेसेज आया,मैं अभी फ़ोन नहीं उठा सकती हूँ।मैं जल्दी ही तुमसे बात करूंगी।

    ठीक है! तुम्हारा नाम क्या है?

    मैंने कहा था ना के अनुमान लगाओ।

    तुम ही बता दो मैं अनुमान नहीं लगा सकता।

    अच्छा अच्छा अब कहीं रो मत देना।

    मैं रो नहीं रहा।

    मैं गुस्सा गया और मैंने बहुत से एक्स एक्स एक्स एकस टाइप कर दिए और मेसेज भेज दिया। कोई जवाब नहीं आया। लेकिन मैं उत्सुक था के वो लड़की आखिर थी कौन।

    अगले दो दिन तक कोई भी मेसेज नहीं आया। फिर आखिर मैंने ही उस नंबर पर मेसेज भेज दियाहेलो, आई एम् सॉरी। मैं सोच रहा था के मेरे दोस्त मेरे साथ कोई खेल खेल रहे थे इसलिए मुझे गुस्सा आ गया था ।

    कोई बात नहीं!

    थैंक यू, तुमने मुझे माफ़ कर दिया।

    "मैं तुमसे गुस्सा नहीं हूँ।मैंने तुमको दो दिन तक इसी लिए तंग नहीं किया क्योंकि तुम गुस्से में थें।

    मैंने कहा,'शुक्रिया।अच्छा अब तो अपना नाम बता दो।"

    हम बहुत समय पहले एक सड़क पर मिले थे।

    सड़क पर? माफ़ करना मुझे कुछ याद नहीं है। मैंने सोचते हुए कहा।

    लेकिन मैं तुम्हारी मदद भूल नहीं सकती हूँ।

    "अच्छा पहले अपना नाम बता दो!'

    मेरा नाम सिंधु है!

    तुमको मेरा नंबर कैसे मिला?

    ये एक रहस्य है।

    ठीक है!

    वो बोली,तो अब हम दोस्त हैं?

    ओह हाँ हाँ।तुम फ्री कब होती हो मुझे बता दो मैं तुमको फ़ोन करूँगा।

    अगले कुछ दिन उसका कोई मेसेज नहीं आया।

    फिर एक दिन उसने मुझे फ़ोन किया,हेलो!

    हेलो!

    तुम कैसे हो?

    मैं ठीक हूँ।

    अच्छी बात है। अब तो तुम मुझपर यक़ीन करते हो ना?

    मैंने कहा,हाँ हाँ बिलकुल।तुम आवाज बदल कर मत बोलो।

    नहीं नहीं ये मेरी असली आवाज है। इतनी शंका क्यों कर रहे हो?

    उस दिन के बाद हम दोनों ने फ़ोन पर हर दिन ही बातें करनी शुरू कर दी और एक दूसरे को मेसेज भी भेजने लगे। हर दिन ही वो मेरे नजदीक आने लगी मैंने उसका नंबर सेव करके आगे गर्लफ्रेंड लिख दिया था अपने फ़ोन पर!

    उसकी बातों से वो इतनी मासूम और उदार लगने लगी थी के मैं उसकी तरफ खिंचने लगा। उसको बिना देखे ही मुझे उससे प्रेम हो गया था। मेरे भी मन में उसको देखने की इच्छा उत्पन्न होने लगी।

    मैंने उसको एक मेसज भेज दिया,मेरी बात का बुरा मत मानना लेकिन क्या तुम मुझे अपनी एक फोटो भेज सकती हो?

    अचानक ये फोटो की मांग कहाँ से आ गयी?

    सिर्फ तुमको देखना चाहता हूँ और कुछ भी नहीं।

    अगर मैं फोटो में तुमको सुन्दर ना दिखी तो तुम मुझसे बात करना बंद कर दोगे?

    नहीं नहीं ऐसा बिलकुल भी नहीं है!

    तो फिर कैसा है?

    सिर्फ तुमको देखना चाहता हूँ।

    भूल जाओ विक्रम! तुम भी उन् लोगों की तरह ही निकले जों सिर्फ रूप को ही देखते हैं।अब मुझसे बात मत करो।

    मैंने उसको कई बार फ़ोन किये लेकिन उसने जवाब नहीं दिए। मैं परेशान सा ही हो गया था।इसी तरह बिना बातचीत के दो दिन बीत गये।

    फिर तीसरे दिन उसका एक खाली मेसेज आया।

    मैंने लिखा,आई एम सॉरी!

    जवाब आया,सॉरी।

    किस बात के लिए?

    मैं तुमको उस दिन गुस्सा कर दी थी वो गलत था। मैं कुछ ज्यादा ही प्रतिक्रिया दिखा गयी थी।

    नहीं नहीं गलती मेरी ही थी।

    चलो ठीक है विक्रम अब भूल जाओ।

    और वो फोटो?

    तुम भी ना।बस मूर्ख ही हो!

    मैंने एक मुस्कुराता हुआ कार्टून उसको भेज दिया।

    अच्छा अच्छा ठीक है ।अपनी ईमेल देख लो मैंने फोटो भेज दी है।

    मैंने तुरंत ही अपनी ईमेल को खोलकर देखा। वो बहुत ही सुन्दर थी। तुम तो बहुत सुन्दर हो!

    अच्छा बस बस।अब इस तरह शर्माओ मत विक्रम।

    अगले दिन उसका जन्मदिन था। मैंने उसको एक सरप्राइज देने का विचार किया। बहुत खोजने के बाद मुझे उसका एड्रेस मिल गया। उसका फ़ोन उसके ही नाम में था।

    उसके जन्मदिन पर उसको बिना सूचना दिए ही मैं उसके घर पहुँच गया। एक बूढ़ी औरत ने दरवाजा खोला। उसके पीछे एक बूढ़ा आदमी भी खड़ा था।

    मैंने उनको कहा के मैं सिंधु को मिलने आया था। वो मुझे गलियारे के कोने पर एक कमरे की तरफ ले गए।

    उस कमरे की एक दीवार पर सिंधु की एक बहुत सुन्दर फोटो लगी हुई थी। उस फोटो के सामने एक मोमबत्ती जल रही थी। मैं हैरान होकर उसके माता पिता की तरफ देखने लगा। वो मुझे सब बताने लगे।

    तभी मुझे याद आया के सिंधु मुझे सड़क पर मिली थी। उसके चेहरे पर उसका ही खून लगा हुआ था।

    तभी मुझे वो दिन याद आया जब मैंने सिंधु को पहली बार देखा था। मुझे उसका खून से रंगा हुआ चेहरा याद आया। मैं उसके कमरे से भागकर बाहर आ गया।मैंने उसके घर से जाने का निर्णय लिया।

    तभी वो औरत और वो आदमी मेरे पीछे पीछे आ गए और उन्होंने मुझे इंतजार करने को कहा। कुछ देर के बाद वो बूढ़ी औरत एक लिफाफा लेकर आ गयी।

    उन्होंने वो चिट्ठी मेरे हाथ में थमा दी। मैं चिल्ठी को लेकर जल्दी से अपनी मोटरसाइकिल की तरफ चल दिया। मैं अपने घर की तरफ चल दिया।

    सिंधु का चेहरा बार बार मेरी आँखों के सामने आ रहा था। मैंने अपने कमरे में जाकर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। लेकिन उसका ख्याल मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रहा था।

    उस दिन मैं दफ्तर जा रहा था। सुबह का समय था। तभी मुझे एक जोर की आवाज सुनायी दी थी।

    मुझसे आगे गए ट्रक ने मुझसे आगे जा रही एक मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी थी।उस मोटरसाइकिल को एक लड़की चला रही थी। वो नीचे गिर गयी थी।

    मैंने अपनी मोटरसाइकिल रोक दी थी और मैं उसकी तरफ गया था। वो रुक रुक कर सांस ले रही थी। उसका बहुत सा खून बन चुका था।

    वो धीरे से आंखें खोलकर मेरी तरफ देख रही थी। मैंने तुरंत ही एम्बुलेंस को फ़ोन किया और फिर उसके सर पर एक कपडे के टुकड़े से पट्टी सी बांधने लग गया।

    मैं एम्बुलेंस में उस घायल लड़की के साथ ही था और मैंने उसका हाथ थाम रखा था। वो जीना चाहती थी। ये उसकी आँखों में दिख रहा था। उस समय मुझे जीवन की कीमत मालूंम हुई। मैंने उसको अस्पताल में दाखिल करवाकर उसके घर फ़ोन कर दिया था उसके ही मोबाइल फ़ोन से और फिर मैं अस्पताल से बाहर आ गया था।

    मेरी आँखों से आंसू गिरने लगे। तभी मुझे मेरे हाथ में थामी हुई चिट्ठी याद आयी जो सिंधु

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