Wadiyon Ke Us Paar
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About this ebook
साथ तो बचपन से था पर हमारा प्यार कहीं गुम था। ज़िन्दगी से हार न मानने की जिद और चुनौतियों से टकराने की हिम्मत इन्हें किस राह पर ले जाएगी ये तो वक़्त के पन्नों में दबा था। कॉलेज ख़त्म होने वाला था लेकिन आने वाली ज़िन्दगी की पाठशाला जंगल की उस अनजान यात्रा से होकर गुज़रने वाली थी। सैनिक बनकर वादियों में घर बनाने का सपना था लेकिन हक़ीक़त में तो कुछ और ही होना लिखा था, प्यार तो हर कोई करता है पर उसे हम इस तरह निभाएंगे ये तो काव्या और विशाल भी नही जानते थे।
तो चलिए पढ़ते हैं हम चार दोस्तों की मासूम शरारतों, अनजाने से प्यार तकरार और एक महासंग्राम से भरी हुई मेरी पहली कहानी... "वादियों के उस पार"
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पेशे से लेखक एक प्रतिष्ठित कंपनी में सॉफ्टवेर इंजीनियर हैं व वर्तमान में नोएडा में रहते हैं। हालाँकि वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के निवासी हैं। लेखक ने अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात कम उम्र में ही भविष्य के बुलावे पर शहर छोड़ दिया था। इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद लेखक ने भारत के कई बड़े शहरों का रुख़ लिया और समय के साथ अपनी क़िस्से कहानी सुनाने व कविता लिखने के प्रवृत्ति को पहचाना। अपने मित्रों में हमेशा ही व्यंग करते रहने और हर तरह के माहौल को ख़ुशनुमा बना देने की प्रवृत्ति के कारण सभी इनको पसंद करते हैं। इसके अलावा एक बार मौका मिलने पर लेखक ने बैंगलोर में रहते हुए चेन्नई की फ़ैशन इंडस्ट्री में भी अपना हाथ आज़माया लेकिन वहाँ की चकाचौंध भरी दुनिया से जल्द ही अपना रुख़ मोड़ लिया। क़िस्से, कहानियाँ व कविताएँ लिखना इनको हमेशा से ही पसंद था। परंतु प्रकाशित करने का विचार मन में काफ़ी देर से आया। और जब इस दिशा में अपने कदम बढ़ाये तो समय की कमी सदैव आड़े आती रही। ईश्वर की कृपा व बड़े जनों के आशीर्वाद से अपनी लिखी कहानी को प्रकाशित करने की लेखक की यह प्रथम चेष्टा है। लेखक की इस कृति को अपना समय देने के लिए आपका आभार!
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Book preview
Wadiyon Ke Us Paar - Shashank Srivastava
प्रस्तावना
मेरी इस किताब में मैंने खुद के साथ उन तीन लोगों के बारे में लिखा है जिन्होंने अपना जीवन एक दूसरे के साथ रहने और कुछ पाने की कोशिश में लगा दिया। वो सफल हुए या नहीं यह तो आने वाले पन्नों के बीच में दबा है। साथ ही, उनका ये सफ़र कितना रोमांचक है, ये तो बस इन दबे पन्नों को पलटते जाने पर आपको पता चलेगा।
अनाथ आश्रम में पले-बढ़े हम चार दोस्त, विशाल, काव्या, पिया और मैं। हमें ना प्यार का मतलब पता था और न अपने लक्ष्य का। बस एक अनकहा सा वादा था कि ज़िंदगी भर एक दूसरे के साथ रहना है जिसके लिए हम कुछ भी करने को तैयार थे। थोड़ी नोक-झोंक, तकरार, ढेर सारा प्यार, बहुत सारा एड्वेंचर और बर्फ की वादियों में लड़ा गया भयंकर युद्ध...! यह सब कुछ मेरी ज़िंदगी का हिस्सा है या यूं कहें कि मेरी ज़िंदगी ही है।
फ़िलहाल वर्तमान में ये कहानी मैं एक 16 साल के लड़के को सुनाने जा रहा हूँ। आप भी सुनिएगा।
अनुक्रमणिका
प्रस्तावना
अध्याय – 1
अध्याय - 2
अध्याय - 3
अध्याय - 4
अध्याय - 5
अध्याय - 6
अध्याय - 7
अध्याय - 8
अध्याय - 9
अध्याय - 10
अध्याय - 11
अध्याय - 12
अध्याय - 13
अध्याय - 14
अध्याय - 15
अध्याय - 16
अध्याय - 17
अध्याय - 18
लेखक की कुछ कविताएँ
1. पिल्ला और बच्चा
2. कौन जानता है
3. खिड़की वाली सीट
4. नटखट पतंग की तरह
अध्याय – 1
मैंने कभी भी इंडियन आर्मी ज्वाइन करने के बारे में नहीं सोचा था, और ना ही मेरे पास ऐसा कोई लिंक था जिसके जरिए मैं उस मुकाम तक पहुँच सकता था। लेकिन फिर भी ये मेरे जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा बन गया। फिलहाल मैं एक रिटायर्ड कैप्टन हूँ। जो अकेले देहरादून में एक घर में रहता हूँ। मैं आर्मी को अपने जीवन के सिर्फ 6 वर्ष ही दे पाया। लेकिन ऐसा लगता है जैसे वो 6 साल मेरी एक पूरी ज़िन्दगी थे।
खैर, मेरी सोसाइटी में एक लड़का रहता है, उसका नाम राहुल है। इस साल वो अपनी बारहवीं के एग्जाम दे रहा है। वो मेरे पास पढ़ने के लिए आया करता है। मैं उसको तब से जानता हूँ जब वो नौवी कक्षा में था। मुझे नहीं पता कब वो मेरे इतना करीब आ गया। मैं उसे पढ़ाता हूँ, गेम्स खेलता हूँ और साथ में कोई न कोई कहानी सुनाता रहता हूँ। जिनमें से कुछ मेरे जीवन के छोटे मोटे किस्से होते हैं, और कुछ काल्पनिक कहानियाँ। पर वो किस्सों में ज्यादा दिलचस्पी लिया करता है। उसने मुझसे वादा लिया था कि इस बार 12th का आखिरी एग्जाम देने के बाद मैं उसे अपने जीवन की पूरी कहानी सुनाऊंगा। कभी कभी तो लगता है कि मैं सिर्फ उसे कहानी सुनाने के लिए ही इतने बड़े युद्ध में बच गया, पर जो भी हो, पिछले लगभग 4 साल से मेरी ज़िंदगी का एक हिस्सा वो भी बना हुआ है। कल उसका आखिरी एग्जाम था। इसलिए आज सुबह वो 9:00 बजे आने वाला है।
सुबह के 9:00 बज रहे थे और राहुल बस आने ही वाला था। रोज़ की तरह मैंने अपने लिए कड़क चाय बना ली थी और हॉल की बालकनी में राहुल का वेट कर रहा था। बालकनी से राहुल का घर साफ दिखाई दे रहा था। साथ में दिख रहे थे कुछ पहाड़, और उनसे टकराकर बादलों से होकर आती हुई भीनी भीनी हवा मेरी चाय की चुस्कियों में अलग ही स्वाद भर रही थी। इतना सुहावना मौसम था मानो मौसम खुद मेरी कहानी सुनने आया हो; और साथ में वो मुझे मेरे पुराने दिन भी याद दिला रहा था, कुल मिलाकर इस कहानी के लिए एक अच्छा सा माहौल बन गया था।
तभी दरवाजे की घंटी बजी, मैं जानता था राहुल आने वाला है इसलिए दरवाज़ा पूरी तरह बंद नहीं था। मैंने ज़ोर से आवाज़ देकर राहुल को दरवाजा बंद कर के अंदर आने के लिए कहा। उसके चेहरे पर एक अलग ही मुस्कुराहट थी वो झट से दरवाजा बंद करके मेरी तरफ आने लगा। यह मुस्कुराहट उसके चेहरे पर एग्जाम खत्म होने की नहीं थी, बल्कि यह इस कहानी की थी जो मैं उसे सुनाने वाला था।
थोड़ा पास आकर उसने मुझसे कहा, वाह ! कितना अच्छा मौसम है, आप बिल्कुल सही जगह पर खड़े हो वहीं रहो मैं दो कुर्सियां लेकर आता हूँ।
मैंने भी मुस्कुराते हुए कहा, जैसा तुम कहो राहुल आज तुम्हारा दिन है। एक काम करो आते वक्त किचन से अपने लिए एक कप चाय लेते आना।
इतना कहते ही मैंने अपने कप की तरफ देखा और पाया कि चाय तो मेरी भी खत्म हो चली है मैंने बिना रुके अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, यार मेरे लिए भी लेते आना।
ज्यादा समय ना लगाते हुए उसने जल्दी ही बालकनी में सब कुछ अरेंज कर दिया। दो कुर्सी, बीच में एक स्टूल और दोनों के हाथ में गरमा गरम चाय। चाय की पहली चुस्की लेते ही उसने कहा, पूरा माहौल तैयार है, बस अब कहानी शुरू करिए भैया।
थोड़ा हंसते हुए मैंने उसकी चुटकी लेकर कहा, इतनी जल्दी में क्यों हो यार... इतना अच्छा मौसम है थोड़ी चाय तो पी लो, कहानी कहां भागे जा रही है।
वो थोड़ा सा रूठते हुए, कुछ दबे हुए स्वर में बोला, प्लीज भैया इतने दिन बाद तो यह मौका मिला है इस दिन को यूं ही मत जाने दो प्लीज ! आज कहानी शुरू कर दो ना।
हा हा हा हा...! उसका यह रवैया देखकर मै ठहाके मारकर हंस दिया फिर अपनी हंसी रोकते हुए मैंने कहा, "तो सुनो राहुल, इस कहानी के जो चार मुख्य किरदार हैं यानी मैं और मेरे तीन दोस्त उनके बारे में तुमको एक परिचय दे देना जरूरी है, तो ये कहानी हम चार दोस्तों की है... एक मै हूँ चाय का शौक़ीन... जिसे तुम काफ़ी हद तक जानते ही हो, दूसरा है मेरा दोस्त विशाल बिलकुल अपने नाम की तरह ही उसका दिल भी विशाल था। लेकिन था एक नम्बर का शरारती हर बात पर मज़ाक़ करना, माहौल को खुशनुमा बना देने का उसका अनोखा हुनर अब कम ही देखने को मिलता है। फिर आती है पिया, महा नटखट और विशाल को शरारत में बराबर टक्कर देने वाली। छोटी-छोटी बात पर वो दोनों लड़ जाते थे, बिल्कुल बच्चों की तरह। कोई भरोसा नहीं था उसका की कब किस छोटी सी चीज से डर जाए और कब बड़ी सी चीज़ से टकरा जाए। हमारे ग्रुप की चौथी सदस्य थी काव्या। पिया काव्या का बिल्कुल एक मां की तरह ख्याल रखती थी। लेकिन स्वभाव में काव्या पिया से ठीक विपरीत थी.. शांत और कोमल सा स्वभाव.. डायरी लिखने की आदत थी उसकी.. उसकी डायरी के अलावा चाहे उससे कुछ भी मांग लो। और हम उसकी इस बात की इज्जत करते थे। हाँ कभी कभार का चिढ़ाना तो अलग बात है। दोस्त से ज़्यादा हम चारों खुद में एक दूसरे का परिवार थे।
काव्या के बारे में कुछ बातें ऐसी हैं जो मुझे हमेशा याद आती हैं। जैसे कि, एक तरफ तो वो इतनी शांत थी और दूसरी तरफ जब कभी किसी भी विषय पर कॉलेज में कोई प्रतियोगिता होती थी उसमें वो ज़ोर शोर से हिस्सा लेती थी और हमेशा अव्वल आती थी, उस दौरान उसका वो शांत स्वभाव ना जाने कहा गुम हो जाता था। हमेशा कुछ न कुछ पढ़ती रहती थी। ऐसा लगता था कि उसके अंदर एक छुपा हुआ हुनर है जो किसी दिन बाहर जरूर आएगा और हमको चौंका देगा। काफी समय लग गया लेकिन बाद में यह जान पाया कि वो सिर्फ फालतू के मुद्दों को अवॉइड कर देती थी और उन्हीं चीजों में अपनी ऊर्जा लगाती थी जो खास होते थे।
सबसे दिलचस्प उसका एक लॉजिक था भगवान और भूत प्रेत के बारे में। उसके शब्दों में कहूं तो वो कहा करती थी, हम हमेशा सुनते हैं कि किसी ने भूत देख लिया किसी ने प्रेत देख लिया किसी ने किसी मर चुके व्यक्ति की आत्मा देख ली। लेकिन हम कभी यह नहीं सुनते कि किसी ने बोला हो हमने भगवान देख लिया या अगर सुनते भी हैं तो ये बातें बहुत रेयर होती हैं। जिन पर हमें बहुत मुश्किल से यकीन होता है। पर अगर हम इन बातों को सच मान लें तो इस हिसाब से भगवान को देख पाना बहुत मुश्किल है, पर भूत प्रेत और आत्मा का देखा जाना भगवान की तुलना में कुछ आसान है। इसलिए वो हमेशा एक आत्मा को देखना चाहती थी। ताकि वो एक यकीन बना सके कि अगर भूत का अस्तित्व है तो भगवान का अस्तित्व वास्तव में इस दुनिया में है और जिसके दम पर वो झूठ और सत्य के बीच में भेद कर सके।
उसका यह लॉजिक हमारे पल्ले तो नहीं पड़ता था लेकिन जब भी वो यह बात करती थी तो हमारे रोंगटे जरूर खड़े हो जाते थे।
हां भैया मेरे भी रोंगटे खड़े हो गए लेकिन मजा भी आ रहा है ऐसा लग रहा है कुछ अलग ही अनुभव होने वाला है इस कहानी को सुनने के बाद।
, राहुल ने एक स्वर में कहा।
मैंने एक लंबी सांस भरी और कहा, वो तो होगा ही। ठीक है, तो फिर इस कहानी को अपने कॉलेज के आखिरी सालों से शुरू करना सही रहेगा। यहीं अपने देहरादून की दून यूनिवर्सिटी में हमारे ग्रेजुएशन के आखिरी साल का पहला महीना था, यानी बरसात का महीना। और पहाड़ों की बारिश से तो तुम भली भांति परिचित हो। हमारे कॉलेज के गेट से थोड़ा आगे एक काका की चाय की छोटी सी ट्परी (दुकान) थी, यूं समझ लो वो हमारे तीसरे घर की तरह थी।
तीसरा घर?
, राहुल ने चौक के पूछा।
अरे बाबा, घर वो होता है जहां हमें अपना सा लगे अपनेपन का एहसास हो... हमारे लिए दूसरा घर हमारा कॉलेज था और तीसरा काका की ट्परी।
हम्म तब तो ये आपका घर भी मेरा दूसरा घर हुआ, क्योंकि स्कूल तो अब खत्म हो गया... कॉलेज मै गया नहीं.. और यहाँ आपके पास मुझे सबसे ज्यादा अच्छा लगता है।
हाँ ठीक है तुम्हारा ही घर है ये छोटे उस्ताद
, मैंने उसके गाल खींचते हुए कहा।
फिर कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहा, रोज कॉलेज के बाद हम चारों वहीं जाकर थोड़ी देर बैठते थे, और काका के हाथ की बनी गरमा गरम चाय पीते थे। तुम्हें बताना तो नहीं चाहता पर ये कहानी का हिस्सा है.. उन दिनो हम सिगरेट पिया करते थे। काका यह बात जानते थे, इसलिए बिना कहे चाय के साथ वो हमें एक एक सिगरेट भी दे देते थे। पर साथ में हमें प्यार से एक एडवाइज भी देते थे कि बेटा जितनी जल्दी हो सके यह सिगरेट छोड़ दो अच्छी चीज नहीं है।
राहुल ने धीरे से अपना एक हाथ ऊपर किया जैसे कि उसके मन में कोई सवाल आ गया हो जिसे पूछने से वो हिचकिचा रहा हो। मैंने आंखों के इशारों से उसे अपनी बात कहने को कहा। उसने बोला, पर भैया मैंने तो आपको कभी सिगरेट पीते हुए नहीं देखा? क्या आप उस समय बहुत सिगरेट पीते थे? क्या आप चेनस्मोकर थे? और अगर थे तो आपने छोड़ी कैसे?
मैंने सरलता से उसके इस सवाल का जवाब देते हुए कहा, हां तुम कह सकते हो कि हम बहुत सिगरेट पीते थे लेकिन हम चेनस्मोकर नहीं थे। हम जानते थे कि सिगरेट पीना अच्छी बात नहीं होती है लेकिन फिर भी हम इसे छोड़ नहीं रहे थे, अब मैं नहीं पीता हूँ लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैंने छोड़ दी है... बस पीता नहीं हूँ।
थोड़ा ठहर कर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा, एक ऐसी घटना हुई थी जिसके बाद मैंने और विशाल ने यह निश्चय किया था कि जब तक कुछ ऐसा था जो हासिल नहीं हो जाएगा तब तक हम सिगरेट नहीं पिएंगे, अब वो कुछ क्या था जिसके लिए हम इंतजार कर रहे थे वो कहानी में मैं तुम्हें आगे बताऊंगा लेकिन यह एक प्रण जैसा था जो हमने उस दिन लिया।
तो इसका मतलब वो चीज आज तक नहीं हुई इसलिए आप सिगरेट नहीं पीते?
,राहुल ने तुरंत पूछा।
मैंने जवाब दिया, नहीं दरअसल ऐसा कुछ नहीं है, वो घटना हुई लेकिन उसके बाद हमने इस चीज को दोबारा शुरू करना ही उचित नहीं समझा या यूं कहो कि हम भूल गए। और जहां तक अब की बात है तो जैसा कि मैंने अभी कहा, मुझे नहीं लगता कि मैंने छोड़ दी है... बस मैं पीता नहीं। पर तुम याद रखना सिगरेट पीना अच्छी बात नहीं है।
उसने फिर उत्सुकता से पूछा, ठीक है भैया, पर क्या घटना थी वो? आप मुझे कब बताएंगे?
मैंने मुस्कुराते हुए कहा, इस कहानी का ही एक अहम हिस्सा है वो घटना, थोड़ा सा धैर्य रखो मैं तुम्हें सब कुछ बताऊंगा लेकिन एक क्रम में।
तो अब ऐसा लग रहा है कि मैंने परिचय पूरा कर दिया है। और कहानी यहां से शुरू की जा सकती है। तो वो अगस्त का महीना था, जैसा कि मैंने कहा हमारे ग्रेजुएशन के आखिरी साल का पहला महीना। मैं अपनी क्लास में बैठा बैठा बोर हो रहा था। विशाल मेरे साथ ही था लेकिन वो अच्छे से लेक्चर सुन रहा था। मैं खिड़की से बाहर की तरफ देख रहा था बहुत अच्छा मौसम था। बारिश बिल्कुल तभी बंद हुई थी। बस छोटी-छोटी बूंदें पेड़ों की पत्तियों से होकर जमीन पर गिर रही थीं। माली लगे हाथ बगीचे की सफाई करने में लगा हुआ था, और क्लीनर कॉरिडोर को साफ कर रहा था। ठंडी ठंडी बरसाती हवा खिड़की से मुझ तक आ रही थी और मैं उसका भरपूर आनंद ले रहा था। पेड़ की ओट में से मुझे काका की चाय की दुकान साफ दिखाई दे रही थी और मैं बस घंटी बजने का इंतजार कर रहा था। ताकि हम तुरंत बाहर जाकर इस सुंदर से मौसम में एक कप चाय का आनंद ले सकें।
जल्दी ही वो लेक्चर खत्म हो गया और हम दोनों क्लास रूम से बाहर आ गए।
बाहर निकलते वक्त विशाल कुछ लोगों से बातें करने लगा। मैंने विशाल से कहा, यार तुम गप्पे पर बाद में मार लेना लेकिन सबसे पहले चल कर चाय पीते हैं।
उसने तुरंत हां में हां मिलाते हुए जवाब दिया, गप्पे की किसको पड़ी है यार, मुझे भी बस मेरे हाथ में एक गरमा गरम चाय की प्याली और एक सिगरेट का कश चाहिए।
ऐसा लग रहा है इस बार ठंड जल्दी आ जाएगी।
आगे बढ़ते हुए उसने कहा।
लगता तो है... खैर, क्या तुमने पिया से बोला कि हम आज अपना आखिरी लेक्चर नहीं लेने वाले हैं?
, मैंने पूछा।
हां मैंने उसे बताया तो था पर मुझे लगता है कि वो भूल गई। पर कोई बात नहीं, मैं उसको मैसेज कर देता हूँ।
, चलते-चलते विशाल ने कहा।
कॉलेज के गेट के बाहर आते ही पिया का मैसेज भी आ गया जिसमें उसने कहा कि वो काव्या के साथ 10 मिनट में आएगी। कॉलेज के गेट के बाहर की सड़क कीचड़ से पूरी तरह भर गई थी। लेकिन उसके साथ थी मिट्टी की वो भीनी भीनी खुशबू। हल्की हल्की बारिश अभी भी हो रही थी लेकिन ज्यादातर बूंदे पेड़ों से गिर रही थीं। इसलिए जल्दी से दौड़ कर हम दुकान के टीन शेड की ओट में चले गए। लकड़ी की बेंच को खिसका कर हम दोनों उसपर बैठ गए और अपने बालों से पानी झाड़ने लगे। टीन के ऊपर गिरने वाली पानी की बूंदों से इतनी मधुर टिप टिप की आवाज हो रही थी कि एक लाश के अंदर भी जान फूंक दे।
हम यूं ही मौसम का मजा ले रहे थे तभी काका ने कहा, और.. वो दोनों कहां हैं? लगता है अभी तक उनका लेक्चर चल रहा है।
हां काका वो दोनों साथ ही होंगे आप हम चारों के लिए चाय बना दीजिए।
, पास में पड़ी लकड़ी से अपने जूते की मिट्टी हटाते हुए मैंने काका को जवाब दिया।
तुरंत काका ने कहा, मैंने पहले ही बर्तन को अंगीठी पर रख दिया है चाय खौलने वाली है।
उधर दूसरी तरफ विशाल ने रोड पर कुछ ऐसा देखा कि वो जोर जोर से हंसने लगा और बोला, हां काका आप सच में भविष्य देख सकते हो दोनों आ तो रही हैं, पर इस तरह कीचड़ से युद्ध करते हुए आपने उनको नहीं देखा होगा।
अरे हंसते क्यों हो ! जाओ जाकर उनकी मदद करो। उनका पैर फिसल गया तो गिर जाएँगी, और उससे तुम दोनों को ज्यादा तकलीफ होगी।
, काका ने उन्हें देखते हुए हमसे कहा।
अपनी हंसी रोकते हुए मेरा हाथ पकड़ कर विशाल ने कहा, हां हां जाते हैं, लेकिन उन्हें इस तरह कार्टून वाली हरकतें करते देख हंसी रोकना भी मुमकिन नहीं है।
मैंने विशाल की बात को आगे बढ़ाते हुए काका से कहा, आप भी बेकार चिंता करते हो काका आराम से आ जाएंगी दोनों, कोई दिक्कत नहीं होगी। इस तरह की छोटी-मोटी चीजों में भी अगर हमारी जरूरत पड़ने लगी तो बड़ी बड़ी प्रॉब्लम आने पर वो क्या करेंगी।
पिया ने विशाल को दूर से ही हंसते हुए देख लिया और खुद को संभालते हुए वो अंदर आ गई। आते ही उसने सबसे पहले विशाल की पीठ पर जोर का घूंसा मारा और कहा, तुम सिर्फ हमारे ऊपर हंस सकते हो इतना कीचड़ है मदद करने नहीं आ सकते थे?
विशाल ने खुद को बचाते हुए कहा, काका से पूछ लो अभी इसी बारे में बात चल रही थी, लेकिन....
विशाल की बात को बीच में ही काटते हुए मैंने पिया से पूछा, काव्या अभी तुम्हारे साथ ही थी पर वो कहां गई दिख नहीं रही?
वो उस बड़े से नीले ड्रम के पीछे अपना पैर धो रही है।
पिया ने जवाब दिया।
काका ने ड्रम की तरफ देखा और काव्या से कहा, यहां आ जाओ बेटा यहां टब में बारिश का पानी जमा हो गया है जो साफ है इसमें अपना पैर आराम से धो लो।
काव्या धीरे से उस ड्रम के पीछे से उठी और बाहर आयी, उसने पीला सूट पहना हुआ था जिसका दुपट्टा हल्का सा भीग गया था, उठते वक्त उसने अपने बाल खोल लिए थे... खुले बालों के साथ एक हाथ में क्लेचर और दूसरे हाथ में कॉलेज का बैग संभाल कर आती हुई वो इतनी प्यारी लग रही थी कि थोड़ी देर के लिए मैंने उस मौसम की खूबसूरती भुला दी। आगे जाकर उसने बिल्कुल बच्चों की तरह टब में दोनों पैर डाले और ठंडे ठंडे पानी से खेलने लगी। ऐसा लग रहा था उसे हम लोगों के होने से कोई मतलब ही नहीं बस अपनी ही इस छोटी सी खुशी में वो खुश थी। वही एक चीज थी जो उसे सबसे खास बनाती थी हर छोटी चीज को इंजॉय