दूसरी औरत
By प्रकाश भारती
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विक्रम खन्ना शैलजा जौहरी को साथ लिए सकुशल सलीमपुर पहुंच गया। जहां तीन अलग-अलग बैंकों की शाखाओं फर्जी नामों से लिए लाकर्स में साथ लाख की रकम थी। लाकर्स की चाबियाँ अहतियातन विक्रम ने अपने कब्जे में ले ली थीं। लेकिन किस बैंक में किस फर्जी नाम से लाकर था। यह सिर्फ शैलजा ही जानती थी। यानि बाजी उसी के हाथ में थी....।
रामनगर में जले हुए मलवे में मिली निशा की जली लाश को पुलिस शैलजा जौहरी की लाश मान चुकी थी।
यानि कानूनन शैलजा जौहरी मर चुकी थी।
असल में शैलजा खुद को दूसरी औरत में तबदील कर रही थी।
बाल ब्लैक से ब्राउन कर लिए। लंबे से छोटे करेक हेअर स्टाइल भी बदल लिया। स्किन लोशन, क्रीम वगैरा लगाकर और धूप सेककर त्वचा की रंगत को डार्क करने में लगी थी। उठाने-बैठने, चलने-फिरने और बोलचाल का अंदाज और लहजा भी बदल डाला। लिबास और बोलचाल से अब वह गोआनी क्रिशिचयन थी। नाम भी चेंज कर लिया - रीटा ब्रिगेजा।
बिल्कुल दूसरी औरत। कोई साबित नहीं कर सकता था कि वह शैलेजा जौहरी थी। अब उसे बैंक लाकर्स से रकम निकालकर कही दूर जाकर गायब हो जाना था....इस दूसरी औरत का मंसूका पूरा होगा या विक्रम खन्ना अपने मकसद में कामयाब होगा....
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दूसरी औरत - प्रकाश भारती
दूसरी औरत
प्रकाश भारती
Aslan-Reads.pngअसलान रीड्स
के द्वारा प्रकाशन
असलान बिजनेस सॉल्यूशंस की एक इकाई
बोरिवली, मुंबई, महाराष्ट्र, इंडिया
ईमैल: hello@aslanbiz.com; वेबसाइट: www.aslanreads.com
कॉपीराइट © 1991 प्रकाश भारती द्वारा
ISBN 978-93-85898-97-6
इस पुस्तक की कहानियाँ काल्पनिक है। इनका किसी के जीवन या किसी पात्र से कोई
संबंध नहीं है। यह केवल मनोरंजन मात्र के लिए लिखी गई है।
अत: लेखक एवं प्रकाशक इनके लिए जिम्मेदार नहीं है।
यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि प्रकाशक की
लिखित पूर्वानुमती के बिना इसे या इसके किसी भी हिस्से को न तो पुन: प्रकाशित
किया जा सकता है और न ही किसी भी अन्य तरीके से, किसी भी रूप में
इसका व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है।
यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
अंतर्वस्तु
दूसरी औरत
*****
दूसरी औरत
अंधेरी सुनसान सड़क पर भागते विक्रम को पीछे दूर कहीं से आती सायरन की आवाज सुनाई दी |
स्पष्ट था कि फायरों की आवाज सुनकर किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था और अब तक आग के बारे में भी सूचित किया जा चुका होगा |
विक्रम और ज्यादा तेजी से भागने लगा | शैलजा की बांह उसके हाथ में थी | वह बुरी तरह हांफ रही थी |
विक्रम बेरहमी से खींचता हुआ जबरन उसे साथ भागती रहने पर मजबूर कर रहा था|
वह मन ही मन उस घड़ी को कोस रहा था, जब निशा सिंह कि बातों में आकर इस बखेड़े में पड़ा था | उसका रोम-रोम गुस्से से कांप रहा था और यह सारा गुस्सा शैलजा पर था | निशा का कोल्ड ब्लडेड मर्डर उसकी सौतिया डाह का नतीजा रहा हो सकता था | लेकिन बेसमेंट में उसने जान-बूझ कर इरादतन आग लगाई थी | जो अपने आप में इस बात का सुबूत था कि इस दोनों कामों के पीछे उस चालाक औरत की जरुर कोई गहरी चाल थी और उसकी इस चाल ने सर्वनाश का मुकम्मल इंतजाम कर दिया था |
विक्रम का जी चाहा कि उसका गला घोंटकर उसे मार डाले और उसकी लाश वहीं फेंककर कार लेकर भाग जाए | इस तमाम बखेड़े से उसका रिश्ता जोड़ने वाली निशा सिंह मर चुकी थी | इसलिए अब किसी का भी ध्यान उसकी और नहीं जा सकेगा|
लेकिन सूजी का ख्याल आते ही उसे यह विचार दिमाग से झटक देना पड़ा | यह ठीक था कि मौजूदा हालात में शैलजा को साथ रखना एक ऐसे भयानक बम को साथ लिए घूमना था, जिसका रिमोट-कंट्रोल किसी दूसरे के हाथ में था | इसके बावजूद विक्रम ऐसा करने पर विवश था |
शैलजा से आसानी से लॉकर्स की चाबियां तो वह छीन सकता था | लेकिन, लॉकर्स किस नाम से और किस बैंक में थे, उससे यह कबुलवाने का न तो विक्रम के पास वक्त था और न ही इस बात की कोई गारंटी थी कि किसी भी दबाव या मृत्यु भय से वह सच बता ही देगी | वह साफ़ कह चुकी थी कि उस रकम को किसी और के हाथ हर्गिज नहीं पड़ने देगी |
उस चालाक औरत को चालाकी से ही मात दी जा सकती थी और मुनासिब वक्त आने तक उसे न सिर्फ साथ रखना होगा बल्कि बड़ी पूरी हिफाजत भी उसकी करनी पड़ेगी|
इस असलियत को स्वीकारने के बावजूद उसके प्रति विक्रम के क्रोध में कोई कमी नहीं आई | गिरती-पड़ती-सी शैलजा उसके साथ घिसट रही थी | वे पेड़ों के घने साए में खड़ी कार के पास पहुँचने वाले थे |
विक्रम जेब से कार की चाबियां निकाल चुका था | सायरन की आवाज अभी ही काफी पीछे दूर ही कहीं थी |
विक्रमने शैलजा को धकेलकर कार का दरवाजा खोला कंधे पर लटका अटैची नुमा बैग उतारकर पिछली सीट पर फेंका और ड्राइविंग सीट पर बैठकर इंजन स्टार्ट कर दिया|
शैलजा दूसरा दरवाजा खोलकर उसकी बगल में आ गिरी और दरवाजा पुन:बंद कर दिया | उसकी साँसे लुहार की धोंकनी की तरह चल रही थीं |
विक्रम ने कार दौड़ानी आरंभ कर दी | हालात से बौखलाए और गुस्से से सुलगते विक्रम के दिमाग का एक हिस्सा अभी भी सही ढंग से क्रियाशील था | इसीलिए, डैशबोर्ड के सीमित और धूमिल प्रकाश में शैलजा पर निगाह पड़ते ही, वह तेज झटका-सा खाकर रह गया |
वह खाली हाथ थी | उसका हैंडबेग उसके पास नहीं था |
***
इससे पहले आप लोकप्रिय उपन्यासकार प्रकाश भारती के पूर्व प्रकाशित उपन्यास साठ लाख का चक्कर
में पढ़ चुके हैं –
विक्रम खन्ना को डेढ़ लाख रूपये की सख्त जरूरत थी | यह रकम उसे अपने लिए नहीं बल्कि अस्पताल में पड़ी सूजी के ऑपरेशन के लिए चाहिए थी | ऑपरेशन कराये बगैर सूजी का जिंदा रह पाना नामुमकिन था | इसलिए विक्रम किसी भी कीमत पर इस रकम का इंतजाम करना चाहता था |
उसने अपने दोस्त मलकानी से बतौर इनाम मिली नई कांटेसा को बेचने का फैसला किया | अखबार में छपे कार खरीदने के इच्छुक एक आदमी के विज्ञापन को पढ़कर वह उससे मिलने जा पहुँचा |
विज्ञापनदाता के स्थान पर वहाँ उसकी मुलाकात निशा सिंह नामक एक सुन्दर औरत से हुई | निशा सिंह ने कार खरीदने में दिलचस्पी जाहिर की | कार की ट्राई भी ली | बातों ही बातों में उसने बड़ी सफाई से पूछ लिया कि विक्रम किसलिए कार बेचना चाहता था | फिर उसने बताया कि वो कार अस्सी-नब्बे हजार से ज्यादा में नहीं बिक पाएगी | उसने विक्रम पर यह भी जाहिर कर दिया कि वह उसके बारे में सब-कुछ जानती थी |
फिर उसने विक्रम के सामने एक प्रस्ताव रखा | रामनगर में बैंक मेनेजर जयनारायण जौहरी साठ लाख रूपये का गबन करके दो महीने पहले गायब हो गया था |
सारे देश की पुलिस उसे ढूंढ रही थी | लेकिन न तो जौहरी का कोई सुराग मिला और न ही गबन की हुई उस रकम का | उस रकम को बरामद कराने वाले के लिए बैंक की ओर से एक लाख रूपये का इनाम भी घोषित किया गया था |
निशा सिंह ने बताया कि जौहरी वास्तव में मर चुका था और उसके द्वारा गबन की गई वो रकम रामनगर में एक पुरानी हवेली में छिपी थी | जहाँ जौहरी की विधवा शैलजा जौहरी अकेली रहती थी |
निशा ने जो तथ्य पेश किये उनसे इन दोनों बातों की पुष्टि होती थी | निशा की बातों से पता चला कि वास्तव में जौहरी के साथ उसका तगड़ा अफेयर रहा था | जौहरी अपनी बेहद खूबसूरत, चालाक और शराबी पत्नी को छोडकर निशा के साथ कहीं दूर जाकर सैटल होना चाहता था | इसीलिए जौहरी ने बैंक में गबन किया था |
विक्रम ने निशा का ऑफर मंजूर कर लिया | जिसके मुताबिक उसने रामनगर जाकर किसी चोर की भांति हवेली में घुसकर रकम ढूंढनी थी और मिल जाने पर वो रकम दोनों ने आधी-आधी बाँट लेनी थी |
विक्रम का इरादा उस सारी रकम को पुलिस के हवाले करके एक लाख रूपये के घोषित इनाम को हासिल करने का था | लेकिन निशा सिंह को अपने इस इरादे का पता उसने नहीं लगने दिया |
उसी रोज अचानक विक्रम की मुलाक़ात अलका भार्गव से हो गई | अलका भार्गव उसकी मालकिन मिसेज पराशर की रिश्तेदार और दौलतमंद माँ-बाप की बिगड़ी हुई इकलौती औलाद थी | फ्री-सैक्स में यकीन रखने वाली अलका हर उस मर्द के पीछे हाथ धोकर पड़ जाती थी | जो उसे पसंद आ जाता था | उन दिनों वह विक्रम के पीछे पड़ी हुई थी और विक्रम बराबर उसे बेवकूफ बनाकर टालता रहा था | उस रोज अलका ने एक प्रकार से जबरन विक्रम से वादा ले लिए कि वो शाम उसके फ़्लैट में उसी के साथ गुजारेगी |
तब तक निशा के ऑफर को कबूल करने का फैसला विक्रम ने नहीं किया था | बाद में जब निशा से सब तय हो गया और उसी रात रामनगर जाने की जरुरी तैयारियां भी कर ली गई | तब विक्रम अहतियातन अपना रिवाल्वर साथ ले जाने के लिए अपने फ़्लैट पर लौटा| लेकिन अंदर रौशनी पाकर वह समझ गया कि वहाँ जिद्दी अलका मौजूद थी | फलस्वरुप उसे खाली हाथ वापिस लौटना पड़ा |
निशा सिंह ने बताया था कि शैलजा जौहरी एक हिस्टोरिकल सोसायटी का सेमिनार अटैंड करने सलीमपुर में ही आई हुई थी और उसने दो रोज वहीं रहना था |
योजना के मुताबिक निशा सिंह ने विक्रम को अपनी कार द्वारा करीब दो सौ मील दूर रामनगर में हवेली के पिछवाड़े पहूँचाकर वापिस लौट आना था | उस रोज मंगलवार था | शुक्रवार रात में दो बजे उसने उसी स्थान से विक्रम को वापिस ले आना था | इस बीच विक्रम ने हवेली में रकम तलाश करनी थी और निशा ने सलीमपुर लौटकर शैलजा जौहरी पर न सिर्फ नजर रखनी थी बल्कि उसे हर वक्त शराब में धुत्त रखकर वहीं रोके रखना था और अगर किसी वजह से वह रामनगर लौटने लगे तो हवेली में फोन पर उसके आगमन की पूर्व सूचना उसने विक्रम को दे देनी थी |
निशा सिंह ने विक्रम को रामनगर में हवेली के पिछवाड़े पहुँचा दिया |
अँधेरे में डूबी लॉन और गार्डन से घिरी, शहर के बाहरी भाग में स्थित वो पुरानी हवेली काफी बड़ी थी | बेसमेंट की एक खिड़की तोड़कर विक्रम आसानी से भीतर दाखिल हो गया|
कबाड़खाने जैसे बेसमेंट से गुजरकर वह टार्च की रौशनी में सीढियों द्वारा ऊपर पहुँचा | ड्राइंग-रुम में सोफा सैट के कवर, सीट वगैरह को चिरा पाकर विक्रम समझ गया कि किसी और ने भी वहाँ तलाशी लेने की कोशिश की थी |
खाली प्रतीत होने वाली हवेली में, जब विक्रम बैडरूम के पास पहुँचा तो अन्दर से आती मरियल रौशनी देखकर चकरा गया |
वह सावधानीपूर्वक आगे बढ़ा |
अन्दर रिकार्ड प्लेयर के पास मोमबत्ती की रौशनी में नशे में धुत्त शैलजा जौहरी कारपेट पर बेसुध पड़ी थी |
बैडरूम में खड़े विक्रम को अचानक किसी के क़दमों की आहट सुनाई दी |
वह लपककर वार्डरोब में जा छिपा |
आगंतुक अन्दर आया |
अपनी उस स्थिति में आगंतुक का चेहरा तो विक्रम नहीं देख पाया | लेकिन आगंतुक को शैलजा की कनपटी से रिवाल्वर सटाते उसने देख लिया |
वह फ़ौरन बाहर निकलकर उस पर टूट पड़ा |
हाथापाई में मोमबत्ती बूझ गई और हमलादर अपना रिवाल्वर छोडकर भाग गया |
विक्रम ने रिवाल्वर अपनी जेब में डाल ली |
कुछ देर सोचता रहा | फिर शैलजा से रकम का पता लगाने का फैसला कर लिया |
इस काम के लिए हवेली सुरक्षित स्थान नहीं था |
उसने बेहोश शैलजा को कंधे पर लादा, उसका बैग उठाया और बाहर आकर गैराज में खड़ी फिएट की पिछली सीट पर उसे डाल दिया |
उसे साथ लेकर वह करीब पचास मील दूर अपने दोस्त मलकानी के खाली पड़े फ़ार्म हाउस में पहुँच गया |
तब तक सुबह हो गई थी |
शैलजा ने होश में आने पर स्वयं को अपरिचित स्थान पर पाया तो न तो वह हैरान हुई और न ही भयभीत |
विक्रम अपनी असलियत छिपाते हुए उसका विश्वास प्राप्त करने लगा |
तभी कार में एक लड़की वहाँ आ पहुँची | खुद को भटक गई जाहिर करते हुए वह विक्रम से पता पूछने लगी | उसकी खोजपूर्ण निगाहें कॉटेज पर टिकी हुई थीं और जो सवाल वह कर रही थी | उनसे विक्रम को शक हो गया कि वह शैलजा की तलाश में आई थी |
लड़की की कार में लगा रेडियो ऑन था | समाचार प्रसारित किये जा रहे थे |
विक्रम ने रात में बैंक मेनेजर जयनारायण जौहरी की लाश बरामद होने और पुलिस द्वारा शैलजा जौहरी को तलाश किये जाने का समाचार सुना | शैलजा पर अपने पति कि हत्या करने का इल्जाम था |
लड़की को भगाकर वह वापिस कॉटेज में पहुँचा और शैलजा को यह समाचार दे दिया |
लेकिन शैलजा ने उसकी किसी भी बात पर यकीन नहीं किया |
काफी बहस करने के बाद शैलजा उसे छोडकर जाने लगी |
ज्योंही वह कॉटेज से निकली, उस पर दूर कहीं से राइफल द्वारा गोली चलाई गई |
इत्तिफाक से वह बच गई |
विक्रम जब उसे जबरन अन्दर ला रहा था | तब भी फायर किया गया | फिर कॉटेज की खिडकियों पर गोलियां चलाई गई |
शैलजा को कॉटेज में लॉक करके विक्रम पिछले दरवाजे से बहर निकला और हमलावर के सिर पर पहुंचकर उससे राइफल छीनने में कामयाब हो गया |
हमलावर के साथ वही लड़की भी थी |
वे दोनों भाई-बहन थे | हमलावर वही था जिसने रात में भी हवेली में शैलजा की जान लेनी चाही थी |
वे दोनों शैलजा के खून के प्यासे थे |
विक्रम ने राइफल की बट तोडकर उसे फेंक दिया |
पिछली रात मिली रिवाल्वर के दम पर वह दोनों भाई-बहन को उन्हीं की कार में कॉटेज पर ले आया |
उन दोनों ने एक बार फिर शैलजा की जान लेने की कोशिश की | जिसे विक्रम ने नाकामयाब कर दिया |
लड़की ने विक्रम को बार-बार चेतावनी दी कि उस मक्कार औरत के चक्कर में वह अपना सर्वनाश कर लेगा |
विक्रम समझ चुका था कि साठ लाख की रकम के उस बखेड़े से उन दोनों का भी गहरा ताल्लुक था |
उन दोनों को स्टोर में लॉक करके उसने शैलजा से खुलकर बातें की | दोनों में समझौता हुआ |
शैलजा ने बताया कि साठ लाख की वो रकम सलीमपुर में तीन बैंक लॉकरों में थी और लॉकरों की चाबियां हवेली में थी|
विक्रम ने रकम हाथ में आने के बाद रकम सहित शैलजा को पुलिस के हवाले करके, घोषित इनाम पाने का फैसला कर लिया | लेकिन शैलजा पर ऐसा कुछ जाहिर नहीं किया |
रात होते ही भाई-बहन को कॉटेज के बाहर छोडकर विक्रम और शैलजा उनकी कार लेकर भाग गए |
वे वापस रामनगर पहुँचे |]
हवेली के लान में छिपा एक एस.आई. हवेलि को वाच क्र रहा थे |
उसने शैलजा के चेहरे पर टार्च की रौशनी फेंकते हुए उसे चेतावनी दी |
उस वक्त विक्रम एस. आई. के पीछे था |
उसने एस. आई. की खोपड़ी पर रिवाल्वर से तगड़ा प्रहार कर दिया | फिर बेहोश एस.आई. को हथकड़ियों की सहायता से झाड़ियों में जकड़कर बेसमेंट की उसी टूटी खिड़की से हवेली में दाखिल हुए |
शैलजा ने ऊपर जाकर लॉकरों की चाबियां निकाली | विक्रम को ड्राइंग-रुम में छोडकर वह अपने कुछ कपड़े लेने बैडरूम में चली गई | वह एक अटैची लेकर लौटी |
जब वे दोनों बाहर आने के लिए नीचे बेसमेंट में पहुँचे तभी खिड़की पर बाहर से टार्च की रौशनी फेंकी गई |
शैलजा सहमकर विक्रम से सट गई |
फिर बेसमेंट की खिड़की से निशा भीतर दाखिल होती दिखाई दी |
शैलजा ने विक्रम की जेब से रिवाल्वर पार करके निशा को शूट कर दिया और रिवाल्वर वापस विक्रम को लौटा दी |
विक्रम रिवाल्वर वहीं फेंककर फर्श पर पड़ी निशा को देखने लगा |
निशा मर चुकी थी |
इस बीच शैलजा बेसमेंट के कबाड़ में आग लगा चुकी थी | आग तेजी से फैलने लगी|
विक्रम और शैलजा बेसमेंट से निकलकर अँधेरे में भागते चले गए............|
(यहाँ तक आप ‘साठ लाख का चक्कर’ में पढ़ चुके हैं, अब आगे पढ़िए.............)
***
वे सकुशल हाईवे पर पहुँच गए |
दूर-दूर तक अन्य कोई वाहन नजर नहीं आया |
विक्रम दक्षिण की ओर कार दौड़ाने लगा |
वह जानता था, बेहोश पुलिसमैन और मकान में लगी आग को देखने के बाद, मुश्किल से घंटे भर नें पुलिस ने उस इलाके की तमाम सड़के ब्लॉक करा देनी थीं |
गुस्से से दांत पिसते विक्रम को लगा कि वह भयानक मजाक बनकर रह गया था- जिसकी वजह से वह इस बखेड़े में पहले ही गले तक फंस चुका था और अभी भी खुद को फसाए जा रहा था। वही चीज गायब हो चुकी थी।
शैलजा अपने हैंडबैग को मकान में ही छोड़ आई थी। जिसमे लॉकर्स की चाबियां थीं। अब वे चाबियां हमेशा के लिए मकान की राख के ढेर में दबकर रह जानी थीं और बैग में रखे तीस हजार रुपये भी उन्हीं के साथ स्वाहा हो जाने थे।
यानी अब उनके पास कुछ नहीं था। पुलिस उनके पीछे पड़ी हुई थी और वे बगैर पैसे न तो भागकर कहीं दूर जा सकते थे और न ही कहीं खुद को छिपा सकते थे।
विक्रम जितना उत्तेजित्त, परेशान और फिऋमन्द था। शैलजा उतनी ही बेफिऋ थी। वह यूं इत्मीनान से सीट में पसरी हुई थी मानो कुछ हुआ ही नहीं था। कुछ ही देर पहले जो भयानक कांड उसने किया था। उसका मामूली-सा भी असर उस पर नजर नहीं आ रहा था।
उसकी इस हालत पर विक्रम को ताज्जुब से ज्यादा गुस्सा आ रहा था।
वह मुस्कराई।
‘तुम परेशान और गुस्से में लगते हो।’
‘बको मत !’ विक्रम गुर्राया।
‘अजीब बात है, तुम्हारी दगाबाज पार्टनर को आसान मौत देकर उसकी चिता भी मैंने जला दी। इसके लिए मेरी तारीफ करने की बजाय तुम मुझ पर बिगड़ रहे हो।’
‘बको मत !’
‘तुम्हें अपनी सहेली की मौत का दुःख हो रहा है ?’
विक्रम उससे उलझने की बजाय सोचने लगा कि पुलिस ने उस तरफ शहर की सीमा के बाद, जहां से वे गुजर चुके थे, अगला रोड ब्लाँक कहां लगाना था-अगले कस्बे से परे या पहले ?
‘तुम बताते क्यों नहीं ?’ शैलजा ने उसे टोका-‘आखिर बात क्या है ?’
‘तुम नहीं जानती ?’
‘नहीं।’
‘अगर तुम्हें पेचीदगियां पैदा करने और खतरों से खेलने का इतना ही शौक है।’ वह दांत पीसता हुआ बोला-‘तो पुलिस को फोन करके बता दिया होता कि हम तुम्हारे मकान में थे ।’
‘उससे क्या होना था ?’
‘तुम्हारा शौक पूरा हो जाता और उस सूरत में पुलिस से बचने का भी कोई रास्ता शायद निकल आता।’
‘तो अभी कौन-सा