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कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 25)
कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 25)
कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 25)
Ebook140 pages1 hour

कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 25)

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About this ebook

विश्व के प्रत्येक समाज में एक पीढ़ी द्वारा नयी पीढ़ी को कथाएं कहानियां सुनाने की प्रथा कई युगों से चलती चली आ रही है. प्रारंभिक कथाएं बोलकर ही सुनायी जाती थी क्योंकि उस समय लिखाई छपाई का विकास नहीं हुआ था. जैसे जैसे समय बीतता गया और किताबें छपने लगी, बहुत सी पुरानी कथाओं ने नया जीवन प्राप्त किया.

इस पुस्तक में हम आपके लिए 25 प्रेरणा कथाएं लेकर आये हैं. यह इस श्रंखला की पच्चीसवीं पुस्तक है. हर कथा में एक ना एक सन्देश है और इन कथाओं में युवा पाठकों, विशेषकर बच्चों, के दिमाग में सुन्दर विचार स्थापित करने की क्षमता है. ये पुस्तक आपको निराश नहीं करेगी क्योंकि ये कहानियां दुनिया के विभिन्न देशों और समाजों से ली गयी हैं.

कहानियां बहुत ही सरल भाषा में प्रस्तुत की गयी हैं. आप अपने बच्चों को ऐसी कहानियां पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करके उनपर बहुत उपकार करेंगे. आइये मिलकर कथाओं की इस परम्परा को आगे बढ़ाएं.

बहुत धन्यवाद

राजा शर्मा

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateJul 2, 2018
ISBN9781370056187
कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 25)
Author

Raja Sharma

Raja Sharma is a retired college lecturer.He has taught English Literature to University students for more than two decades.His students are scattered all over the world, and it is noticeable that he is in contact with more than ninety thousand of his students.

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    कथा सागर - Raja Sharma

    www.smashwords.com

    Copyright

    कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 25)

    राजा शर्मा

    Copyright@2018 राजा शर्मा Raja Sharma

    Smashwords Edition

    All rights reserved

    कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 25)

    Copyright

    दो शब्द

    पहाड़ी पगडण्डी Pahadi Pagdandi

    मैं हमेशा साथ हूँ Main Hamesha Saath Hoon

    इतनी गहरी दोस्ती Itni Gahri Dosti

    रोजर क्रॉफर्ड: हर कोई जीत सकता है Roger Crawford

    थोड़ी सी खुशी बांटना Thodi Si Khushi Bantnaa

    कहाँ हो मेरे बेटे! Kahan Ho Mere Bete

    सकारात्मक सोच Sakaratmak Soch

    जीवन चित्र Jeevan Chitra

    संक्षिप्त उत्तर Sankshipt Uttar

    सिकंदर और ब्युसेफेलस Sikandar Aur Bucephalus

    मक्खन का शेर Makkhan Ka Sher

    कोर्नेलिया के हीरे Cornelia Ke Heerey

    ऐसे मित्र कहाँ! Aise Mitra Kahaan!

    सच्ची दवाई Sachhi Dawai

    ग्रेस डार्लिंग Grace Darling

    राजा अल्फ्रेड और भिखारी Raja Alfred Aur Bhikhari

    केक जला दिए Cake Jala Diye

    चाय के प्याले Chai Ke Pyale

    राजा जॉन और मठाधीश Raja John Mathadheesh

    आईने वाली लड़की Aainey Wali Ladki

    बत्तखों का रक्षक Batkhon Ka Rakshak

    सीखें खाते खाते Seekhe Khaate Khaate

    गोथम के बुद्धिमान पुरुष Gotham Ke Buddhiman Purush

    कारावास का पौधा Karawaas Ka Paudha

    गरीब अमीर Gareeb Ameer

    दो शब्द

    विश्व के प्रत्येक समाज में एक पीढ़ी द्वारा नयी पीढ़ी को कथाएं कहानियां सुनाने की प्रथा कई युगों से चलती चली आ रही है. प्रारंभिक कथाएं बोलकर ही सुनायी जाती थी क्योंकि उस समय लिखाई छपाई का विकास नहीं हुआ था. जैसे जैसे समय बीतता गया और किताबें छपने लगी, बहुत सी पुरानी कथाओं ने नया जीवन प्राप्त किया.

    इस पुस्तक में हम आपके लिए 25 प्रेरणा कथाएं लेकर आये हैं. यह इस श्रंखला की पच्चीसवीं पुस्तक है. हर कथा में एक ना एक सन्देश है और इन कथाओं में युवा पाठकों, विशेषकर बच्चों, के दिमाग में सुन्दर विचार स्थापित करने की क्षमता है. ये पुस्तक आपको निराश नहीं करेगी क्योंकि ये कहानियां दुनिया के विभिन्न देशों और समाजों से ली गयी हैं.

    कहानियां बहुत ही सरल भाषा में प्रस्तुत की गयी हैं. आप अपने बच्चों को ऐसी कहानियां पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करके उनपर बहुत उपकार करेंगे. आइये मिलकर कथाओं की इस परम्परा को आगे बढ़ाएं.

    बहुत धन्यवाद

    राजा शर्मा

    पहाड़ी पगडण्डी Pahadi Pagdandi

    ये कहानी एक अंधे लड़के की है जो सोचता था के वो किसी काम का नहीं था. वो अपनी छोटी सी दुनिया में रहकर अपने पिताजी की बकरियां चराया करता था.

    १८५७ में एक दिन उस लड़के के पिता और बड़ा भाई तात्या टोपे की फ़ौज मैं भर्ती हो गए. तात्या टोपे अँगरेज़ फ़ौज के विरुद्ध लड़ रहे थे.

    लड़का बहुत ही निराश हो गया. एक दिन भाग्यवश उसका सामना तात्या टोपे से हो गया. तात्या टोपे भारतीय सिपाहियों के नेता थे.

    एक चरवाहे के रूप में वो लड़का तात्या टोपे और उनकी फ़ौज को पहाड़ पर रास्ता दिखते हुए सुरक्षित जगह ले गया. इस घटना ने युद्ध की दिशा ही मोड़ दी.

    १८५७ की लड़ाई झाँसी के पास हुई थी. झाँसी उत्तर प्रदेश का एक शहर है. हम कहानी यहाँ से शुरू करते हैं:

    अपनी पगड़ी अपनी आँखों पर रखे, सुखराम लोधी एक चट्टान का सहारा लेकर बैठा था. सूरज की किरणे उसके पैरों को गरम कर रही थी.

    उसके पैरों को ये जानकारी होती थी के वो कहाँ था. वो पत्थरों और घास से जगह का अंदाजा लगा लेता था. जब एक चिड़िया चहचायी, वो समझ गया के चिड़िया क्या कह रही थी.

    क्योंकि वो अँधा था, अपने आस पास की आवाजें सुनकर ही वो आस पास के बारे में जानकारी लेता था. राजबीर उसका बड़ा भाई था और शिवप्रिया चौहान उसके दादाजी थे.

    उसके बड़े भाई और दादाजी ये जानते थे के वो चिड़ियों और जानवरों की बातें समझ लेता था. वो दोनों सुखराम का कभी उपहास नहीं उड़ाते थे.

    चौदह बरस के सुखराम को देखकर लोगों को बहुत दुःख होता था. लेकिन सुखराम सोचता था के यदि वो लोग देख सकते के दुनिया कितनी खूबसूरत है तो वो लोग उससे ईर्ष्या करते.

    लोगों को तो घास की हलचल की भी जानकारी नहीं थी. लोग चीजों को छू कर महसूस करने की कला नहीं जानते थे. उनको अलग अलग सुगंधों के बारे में नहीं मालूम था.

    अपने पिताजी की बकरियां चराते समय वो अपनी बकरियों को उनके खुर की आवाज और उनकी गंध से पहचान लेता था. वो जानता था के बकरियां चराना उसके लिए कठिन काम नहीं था.

    सुखराम की आवाज़ सुनकर उसकी बकरियां उसके पास आ जाती थी. जब वो बांसुरी बजाता था, बकरियां उसके पीछे पीछे चलने लगती थी.

    उस दिन जब सूरज की गर्मी कम हो गयी, सुखराम समझ गया के साँझ हो गयी थी और वापिस जाने का समय हो गया था. उसने अपनी बांसुरी बजानी शुरू कर दी.

    ऊपर पहाड़ी पर हलचल होने लगी और वो समझ गया के बकरियों तक उसका सन्देश पहुँच गया था.

    बकरियां अपने सर उठा कर सुखराम की तरफ देखने लगी थी. उसने फिर से बांसुरी बजाई. कुछ ही समय में उसकी बकरियों ने उसको चारों तरफ से घेर लिया.

    अब उन बकरियों को पहाड़ से नीचे उनके बाड़े में ले जाने का समय हो गया था. कल सुबह वो उनको फिर पहाड़ पर ले आएगा. वो अपने जीवन से बहुत खुश था.

    उस दिन जब वो पहाड़ पर था, झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी थी. शक्तिशाली तात्या टोपे की फ़ौज ने भी रानी का साथ देने का निर्णय किया था.

    उसके पिता और उसके बड़े भाई राजबीर अपने घोड़ों की काठियाँ ठीक कर रहे थे. दोनों ने सुखराम को चूमा और विदा ले ली. दोनों ने अपनी बंदूकें अपने हाथों में उठाई हुई थी.

    जब उसके भाई और पिताजी के घोड़ों की टापों की आवाजें मंद होने लगी, उसने महसूस किया के उसकी माँ उसके पास आकर खड़ी हो गई थी. माँ ने अपनी बांह उसके कंधे पर रख दी थी. सुखराम ने कहा, अम्मा, अब आप क्या करेंगी?

    उसकी माँ ने कहा, हम दोनों तेरे दादाजी के पास जा रहे हैं.

    सुखराम ने कहा, पर माँ वहां तो अब अँधेरा होगा. मैं उनके खेतों को पहचानता नहीं. मैं अँधेरे में अपनी बकरियों को उस अजनबी जगह पर कैसे ले जाऊँगा. उस दिन उसको एहसास हुआ के अँधा होने के कारण वो कितना असहाय था.

    अगली सुबह घोड़ागाड़ी तैयार हो गयी. सुखराम, उसकी माँ, उनके मवेशी, बकरियां सभी पंद्रह

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