Jivlaga
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जिवलगा! क्या है ये जिवलगा? क्या मायने होते है, जिवलगा के? जिवलगा यानि जान से प्यारा दोस्त। जिवलगा यानि ऐसा दोस्त, ऐसा सेनापती जो हर सुख दुःख में बढ चढ़के साथ निभाए। जरूरत पड़ने पर अपने आप को कुर्बान कर दे, उसे कहते है जिवलगा। हमने हमारे जीवन काल में सुना होगा, या फिल्मो में देखा होगा की एक दोस्त ने दुसरे दोस्त के लिए अपने प्यार को कुर्बान कर दिया। या फिर अपने दोस्त के खातिर जान न्योछावर कर दी। हमारी कहानी कुछ ऐसी ही है, पर थोडीसी अलग है। क्योकि इस कहानी में ना तो जान न्योछावर करना है, नाही प्यार को कुर्बान करना है। इस कहानी में इससे भी भयानक डर और बेइज्जत होकर जीना है। क्योकि यह कहानी हमारे जिगरी दोस्तों की है, जिसे मैंने “जिवलगा” नाम दिया है।
Nilesh C. Chandurkar
मे भारत देश का एक छोटासा लेखक हु. वैसे मे लेखक नाही हु, वो मेरी हॉबी हे. मन मे एक प्रसिद्ध लेखक बननेकी चाहत हे. ईसी चाहत के खातीर मे कहानिया लिख कर साईट पर डाल राहा हु.
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Jivlaga - Nilesh C. Chandurkar
Chapter 1
यह कहानी प्राचीन भारत के मिर्झापुर राज्य की है, एक ऐसा राज्य जो बहोत खतरनाक-वेश्यी काले जंगल से घिरा हुवा है, जिसमे बहोत ही खौफनाक जानवर, आत्माएं, आदमखोर पेड़ो का वास है। इस काले जंगल को आजतक कोई पार नहीं कर पाया, इसलिए मिर्झापुर राज्य का संपर्क बाकिकी दुनिया से टुटा हुवा है। पर जब भी उन्हें बाहर जाने की जरूरत आन पड़ी, तब इन्हें बहोत लम्बा रास्ता लेना पड़ता है। वह रास्ता इतना लम्बा है, की अगर उसका इस्तेमाल किया जाए तो राज्य से बाहर निकल ने में 1 दिन के मुकाबले में 40-50 दिन लग जाए। काले जंगल की वजह से मिर्झापुर राज्य किसी किले की भाती अभेद्य है, जिसे पाने की चाहत बाहरी राज्य के राज्यकर्ताओ को लुभाती है। महामहिम महाराजा हरिशचंद्र बड़े शान से अपने राज्य पर राज करते है। वे बडेही सत्यवादी राजा है। सही न्याय करना, जरुरत मंदों की मदद करना, यही इनका धर्म है। मिर्झापुर की जनता अपने सत्यवादी राजा से बहोत खुश है। महाराजा की धरम पत्नी महारानी जिनका नाम गोपी है, वो पेट से थी। दोनों की शादी को २५ साल हो गए थे। पर उन्हें उनका वारिस नहीं मिल रहा था। उन्होंने अपने वारिस के लिए बहोत जतन किए। हर मंदिर की चौकट पर गए। हर एक वैद के पास गए, पर सबका यही कहना था की महारानी गोपी कभीभी माँ नहीं बन सकती। और फिर अचानक एक दिन पता चला की महारानी पेट से है। इस सुखद खबर से सारे राज्य में ख़ुशी की लहर छा गई। राज्य में दस दिन का स्वागत उत्सव मनाया गया। जिसमे राज परिवार ने बढचढ कर हिस्सा लिया। सब बेहद खुश है। अब नौ महीने गुजर चुके थे। बच्चे का जनम लेने का दिन पास आने लगा था, की तभी एक दिन महारानी को बहोत बुरा सपना आया। उन्होंने सपने में देखा की उन्हें एक प्यारासा लड़का हुवा, पर वह अचानक शैतान में बदलकर पुरे राज्य को बर्बाद कर दिया। इस सपने ने महारानी को डरा दिया। अगली सुबह उन्होंने अपना भयानक सपना महाराज को बताया।
महाराजने महारानी की बातो पर ध्यान न देते हुए उन्हें समजाया, तुम इस सपने को इतना महत्व क्यों दे रही हो? सपने भी कभी सच होते है क्या? वो भी इतने खतरनाक सपने। तुम इन सब बातो पे ध्यान मत दो; नहीं तो हमारे बच्चे पे असर पड़ेगा।
महाराज की बात मानकर महारानी ने बुरे सपने को भूलने में ही अपनी समझदारी समजी। पर एक अजीबसा डर उनके मन में घर कर गया। इसी डर पे आग लगाने का काम कुदरत ने किया। उसी दिन सुबह से कुदरत अपना रौद्र रूप दिखाने लगी। जिससे महारानी के मन से डरावना सपना निकल नहीं पाया। आज से लेकर बच्चे के जनम के दिन तक, तूफान आने लगे। आसमान काले बादलो से ढक गया। भर दोपहर रात हो गई। पंछी अपने-अपने घोसले में लौटने लगे। जिव-जन्तुओ में अफरा तफरी मचने लगी। आसमान से बिजलिया गरजने लगी। पानी की तरह उनका वर्षाव जमीं पर होने लगा। इस बिजली की वर्षा में हर दिन राज्य के लोग मारे जाने लगे। जिस दिन-जिस वक्त मरने वालों की संख्या सौ हो गई, लगबग उसी वक्त महारानी को प्रसवपीड़ा होने लगी। महाराज ने राज वैद को बुलवाया।
वैद ने महाराज को बताया, महाराज, राज्य के होनेवाले युवराज के आगमन का समय हो गया है।
उसी रात जन्म हुवा एक प्यारे से बालक का। बालक का जन्म होते ही कुदरत शांत हो गई। महारानी और महाराज को लगा की उनका वारिस उनके राज्य में सुख समृद्धि लाएगा। महाराजने नन्हे बालक का नाम समर रखा। पर नियतिने नन्हे बालक के लिए कुछ ओर ही सोच रखा था। जन्म के दुसरे दिन महाराजने अपने राज्य के सबसे महान ऋषिमूनी ‘त्रम्बक’ को अपने बालक समर का भविष्य बताने के लिए आमंत्रित किया। साथ में राज्य के छोटे-बड़े सभी ३००० ऋषियों को आमंत्रण भेजा। सभी का फूलों की वर्षा से स्वागत किया गया। ऋषिमुनी त्रम्बक के स्वागत में चारसो हाथियों को रखा। स्वागत समारोह इतना भव्य था की राज्य की सभी प्रजा आमंत्रित थी। सबसे पहले महाराजने ऋषिमूनीयों को पंचपकवान खिलाके उनका मन तृप्त किया और फिर उनसे अनुरोध किया की वो सब मिलके अपना आशीर्वाद भविष्य के युवराज समर को प्रदान करे। ऋषिमूनीयो ने समर को अपना आशीर्वाद दिया। फिर फूलों से सजे विशाल मैदान में एक भव्य आसन बनाया गया, जहा ऋषि त्रम्बक विराजमान हुए। उनके सामने बालक को रखा गया। बाकीके ऋषिमुनी उन्हें घेरके गोलाकार आकार बनाते हुए बैठे और फिर बालक युवराज की कुंडली बनानी आरंभ की गई। सभी ऋषियों ने बालक की कुंडली बना ली। वह कुंडली देखके सारे ऋषिमुनी अचंबित हो गए। उनको अचंबित देखकर महाराज ने पूछा, गुरुदेव, आप सभी को यहाँ कष्ट तो नहीं हो रहा?
ऋषि त्रम्बक अचंबित थे, उन्हें लगा की उनसे कुंडली बनाने में गलती हो गई। अपने संकोच भरे स्वर में महाराज से कहा, नहीं राजन, हमें लगता है की कुंडली बनाने में कुछ गलती हुई है। मै फिरसे युवराज की कुंडली बनाता हु।
ऋषि त्रम्बक फिरसे कुंडली बनाने लगे। तभी बाकीके ऋषि त्रम्बक के पास अपनी बनाई कुंडली लेकर आए। उन कुंडलियो को देखकर त्रम्बक चिंतित हो गए। उन्हें चिंता में देखकर महाराज ने फिर से पूछा, गुरुदेव, आप चिंतित लग रहे है। कुछ अनर्थ तो नहीं युवराज की कुंडली में।
ऋषि त्रम्बक, अनर्थ नहीं राजन घोर अनर्थ लिखा है, युवराज की कुंडली में
महारानी चिंतित होकर महाराज से, महाराज गुरुदेव ऐसा क्यों कह रहे है? जरा पूछिये ना? मेरा दिल बहोत घबरा रहा है।
महाराज हरिशचंद्र, आप शांत रहे महारानी हम गुरुवर्य से पूछते है।
उन्होंने गुरुदेव त्रम्बक से पूछा, गुरुदेव आप ऐसा क्यों कह रहे है? क्या लिखा है युवराज की कुंडली में?
त्रम्बक, ये मै नहीं कह रहा राजन, युवराज की कुंडली कह रही है। बालक युवराज की कुंडली में ‘काल राक्षस सर्पमित्र’ दोष है। काल राक्षस सर्पमित्र एक ऐसा प्राचीन दोष है, जो हजारो सालो में सिर्फ एक ही बालक को होता है। इस दोष के अंतर्गत बालक पर राक्षस की छाया होती है। जिसके कारन बालक अचानक राक्षस में तब्दील हो जाता है। अपने जीवनचक्र में कब वो राक्षस बन जाए, कोई भी ठीक से नही बता सकता।
महाराज, ये आप क्या कह रहे है गुरुदेव? ऐसा नही हो सकता?
त्रम्बक ऋषिमुनीने महाराज को सलाह देते हुए कहा, "जो कहा है, वो शत प्रतिशत सत्य कहा है राजन। मुझे क्षमा कर दीजिए, अगर आपको इस राज्य की फिक्र