Awadh Darshan
By Chhedi Ram
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About this ebook
Chhedi Ram's initial foray into poetry is encapsulated in his debut work, "Awadh Darshan." Infused with profound devotion, this poetic masterpiece delves into the rich history of Ayodhya. The verses vividly portray the themes of sacrifice, penance, the unwaveri
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Book preview
Awadh Darshan - Chhedi Ram
नगर परिचय
आ गया न्यायालय का निर्णय
होना था मंदिर का शिलान्यास।
बहु सुरक्षा कर्मी थे घूम रहे
मंदिर परिसर के आस- पास।
चल रही स्वच्छता जोरों से
हो रहा अवध का पीत रंग।
सरयू के पावन लहरों में
उठने लगी थी नई तरंग।
कई सदी के बाद आज
अवध पुरी का रंग निखरा।
भक्ति भाव से सराबोर
राम नाम का ध्वज पहरा ।
ऐसा लगने लगा सबको
राम अवतरित हुए फिर से।
राम राज का आगाज हुआ
धरती पर नये सिरे से।
सीता जी के कनक भवन में
भक्तों की बहु भीड़ बढ़ी।
फिर से भवन सजाने की
आ गई थी अब शुभ घड़ी।
सोने से निर्मित मन मोहक
ये था कैकेई जी का भवन।
मुंह देखाई में दिया सिया को
जब आई वो बनकर दूल्हन।
स्वर्ण के सुन्दर बंगले में
था उपयुक्त सकल साधन।
माना जाता है राम सिया
करते थे यहीं पर शयन।
अंजनि पुत्र बजरंग बली
नगर अयोध्या के रखवार।
हनुमान गढ़ी पर जिनका
भक्तों हेतु लगा दरबार।
रोग शोक के संकट हर्ता
पवन सुत अंजनी कुमार।
इस कलयुग में भी जिनका
है जग में जीवित चमत्कर।
भगवान राम ने कहा स्वयं
मम दर्शन करने जो आयेगा।
मुझसे पहले वो मेरा भक्त
हनुमान से मिलने जायेगा।
इस विधि से दर्शक का
होगा पूर्ण सकल मनोरथ।
परम पद प्राप्त करेगा वह
भोग जगत के सकल पदार्थ।
एक सुघर शिवालय बना हुआ
सरयू समीप राम पैड़ी के पास।
उमा सहित भगवान शिव
करते जहां पर सदा निवास।
ऊं नमः शिवाय! नमः शिवाय!
ध्वनि होती रहती आठों पहर।
मन वंछित फल देते सबको।
उमापति महादेव महेश्वर।
शिव जी के हैं नाम अनन्त
पर यहां कहलाते नागेश्वर।
इनके प्राचीन कथा को
लिखा कालिदास ने रचिकर।
श्री रामचन्द्र के छोटे सुत
महा धनुर्धर कुश कुमार।
पावन सरयू में स्नान हेतु
लेकर पहुंचे निज परिवार।
विविध भांति पूजन करके
दिया निर्धनों को दान।
फिर जल क्रीड़ा में मग्न हुए
आभूषण का न रहा ध्यान।
न जाने कब उनके कर से
बाजू बंद गया निकल।
अति परिश्रम करके भी कुश
उसे ढूंढ़ पाने में रहे असफल।
धरती से क्षीर सागर को
जब चलने लगे थे रामचन्द।
तब अपने कर से उतार कर
दिया था कुश को बाजु बंद।
उसके खो जाने से उर में
कुमार कुश जी हुए अधीर।
कुशल गोता खोरों के द्वारा
छनवा डाला सरयू नीर।
सूख गया मुख मंडल उनका
जो कमल समान था खिला।
अति प्रयास करने से भी
उनको बाजूबन्द नहीं मिला।
मन में अति पीड़ा लेकर
लौटे भवन को श्रीरामकुमार।
कोटि प्रयास करने से भी न
बिसार सके पितु का उपहार।
दिनकर दिशि पश्चिम पहुंचे
बीते दिन के तीन पहर।
बढ़ा ताप था जो धरती का
वो धीरे- धीरे गया उतर।
अपनी भगनी को संग लेकर
अवध भवन पहुंचे नाग कुमार।
बाजुबंद कुश जी को देकर
उन्हें झुककर किया नमस्कार।
ये मेरी बहिन कुमुद्रती
जब चूस रही थी मकरंद।
उसी समय एक पंकज में
मिला इसे यह बाजुबन्द।
सूर्य वंश का चिन्ह देख
पढ़कर नाम रघुबर का।
पथ पकड़ लिया हमने राजन्
आपके इस सुन्दर घर का।
मैं कद्रु वंश में जन्मा हूं
है नाम मेरा कुमुद राजन्।
मेघनाद के वश में होकर
जो बने रामचन्द्र के दुश्मन।
महा प्रलय करने वाला
चल रहा था लंका में रण।
एक तरफ थे इन्द्रजीत
एक तरफ थे लक्ष्मण।
लगता था आज समर में
मिट जायेगी जग से सृष्टि।
दोनों तरफ से बाणों की
हो रही थी भयानक वृष्टि।
प्राण नाशक तीरों से
हो रहा तीरों का टक्कर।
लाखों मुन्ड थे पड़े हुए
रुधिर की धारा में सनकर।
एक तरफ हर- हर महादेव
एक तरफ रावण की जयकार।
पूरे नभ में गूंज रहा था
अस्त्र शस्त्रों का झनकार।
एक नारी की रक्षा करने में
लगे हुए थे बहु भालू बन्दर।
जिन्हें हड़पने के खातिर
अड़ा हुआ था दसकन्धर।
धर्म और अधर्म के बीच
था ठना हुआ भीषण संग्राम।
लंका पुर के जन मानस में
था मचा हुआ भारी कोहराम।
अति मायाबी था मेघनाद
कभी धरा तो कभी गगन।
कई बार उसके शर को
न देख पाते थे वीर लखन।
भूधर समान कभी दिखता
कभी अदृश्य हो करता गर्जन।
कभी अपना रूप बदल कर
नभ में करने लगता नर्तन।
सुमित्रा नन्दन के बाणों से
मचा हुआ था हाहाकार।
असुर सैनिकों के तन
गिर रहे कट कट लगातार।
एक इन्द्र विजेता था रण में
एक शेषनाग का अवतार।
दोनों तरफ से था चल रहा
दिव्य बाणों का बौछार।
कभी आ जाती थी आंधी
कभी नभ हो जाता काला।
कभी निकलती बाणों से
प्रलयकारी पावक ज्वाला।
कभी बाणों का बाणों से
हो जाता आपस में टक्कर।
तब दिल को दहलाने वाला
होता नाद बड़ा भयंकर।
लक्ष्मण के तीखे तीरों से जब
असुरों का बचना होता कठिन।
तब माया के बलपर मेघनाद
कभी कर देता रैन तो कभी दिन।
मेघनाद को देख कुपित
कहा विभीषण ने वचन।
आज लखन जी के संग
रहो उपस्थित रघुनन्दन।
मेघनाद है महा छली
रण में कुछ भी कर सकता है।
राक्षसी माया का जाल बिछा
बल लक्ष्मण का हर सकता है।
लक्ष्मण जी से बार -बार
मेघनाद था कहता उधर।
कहां छिपा है तेरा भाई?
मेरे बाणों से डरकर।
लड़ने हेतु मेरे समक्ष
भेज दिया भालू बन्दर।
मृत्यु के भय से छिप कर
बैठा किस बिल के अन्दर?
सुनकर राक्षस की बोली
राम चले करने समर।
केवल एक बाण से उनके
माया हो गई तितर- वितर।
समझ गया था मेघनाद
विजयी होने का गया संकल्प।
लक्ष्मण से प्राण बचाने का
अब करना है कोई विकल्प ।
मन में विचार करके ऐसा
किया उसने एक प्रयास।
महादेव का दिया हुआ
छोड़ दिया एक नागपाश।
माथे पर आघात करके
छोड़ा नागों ने जहर।
अचेत होकर राम लक्ष्मण
गिरे नागपाश में बंधकर।
जिन विषधर सर्पों का
इतना प्रचन्ड था प्रहार।
वो भी थे कद्रु के वंशज
समझो उनको मम परिवार।
राम लक्ष्मण के प्रति उनमें
था तनिक नहीं अरि का भाव
अपने वचन पर अटल रहना
है सर्पों का खास स्वभाव।
पवन पुत्र बजरंग बली
तत्काल गये गरुण के द्वार।
सुनकर राम जी पर संकट
चले गरुण जी पंख पसार।
पक्षीराज गरुण ने आकर
तन से विष को दिया उतार।
कुतर- कुतर कर सर्पों को
उसी समय था दिया मार।
शिव के हम स्वयं उपासक
रघुकुल में रखते विश्वास।
इसीलिए भगनी को लेकर
मैं आया कुंवर आपके पास।
मिट जाय परस्पर शत्रुता
है आपसे मेरी यही चाह।
मेरी प्रिय बहिन कुमुद्रती से
करलो राजन् आप विवाह।
सुनकर विनय कुमुद से
महाराज कुश हुए प्रसन्न।
कुमुद्रती के रूप यौवन ने
उनके चित का किया हरन।
नागों से नित बढ़े प्रीति
अन्तर कलह मिटे परस्पर।
शिवलिंग का स्थापन किया
जिसे नाम दिया श्री नागेश्वर।
2
रामवाट नामक पर्वत
अवध पुरी का है सिंगार।
जहां पर श्री हरि विष्णु ने
मानव रूप लिया अवतार।
संत ऋषि व भक्तों का
बसता इस भूमि में प्रान।
आज इसे सब कहते हैं
राम जी का जनम स्थान।
सूरज कुन्ड का नाम प्रसिद्ध
जहां दर्शन से मिलता वरदान।
प्रभु राम के सकल पुरखे
करते थे यहां आकर स्नान।
है सुख दायक घाटों में
बड़ा मनोहर राम घाट।
उसके समीप में बना हुआ
मनमोहक जानकी घाट।
लक्ष्मण घाट गोप्तार घाट
अति सुन्दर व बड़ा मनोरम।
जिसमें स्नान कर लेने से
हो जाता है पाप भस्म।
और बहुत इतिहास यहां
सीता रसोईं दशरथ महल।
नैनों को सुख देने वाले
हैं और कई सुन्दर स्थल।
तुलसी स्मारक बड़ा पवित्र
जहां रमे हुए श्री तुलसी दास।
जिनके पवित्र लेखनी से
जग में पसरा हरि इतिहास।
इतना सुन्दर अवध नगर
सदियों से पड़ा हुआ खण्हर।
कुछ कर्मठ लोगों के हाथों
फिर से रूप रहा निखर।
दीपावली का परिचय
दीपावली का आया पर्व
सजा अवध का हाट -हाट।
सवा नौ लाख दीप जले
श्री सरयू जी के पावन घाट।
हुआ स्मरण तब मुझको
जो सुना गये थे गुरु अमरनाथ
लंका पर करके विजय
जब अवध लौटे थे रघुनाथ।
दीपावली के पावन पर्व का
चल रहा था मेरा अवकाश।
दर्शन हेतु गया मैं
गुरु महराज के निवास।
विराज मान थे महाराज श्री
छप्पर तले एक चौकी पर।
राम नाम चादर ओढ़े
पहिने तन पर गेरुआ वस्त्र।
गुरुवर के दर्शन मात्र से ही
मिटी मन की चिन्ता सारी।
दिनकर सम गुरु दमक रहे
ज्ञानपुन्ज अमरनाथ तिवारी।
छूकर उनके चरण कमल
मन को मेरे उजास मिला।
ज्यों सर समीप सोया सरोज
पाकर रवि प्रकाश खिला।
थी मेरी तब बाल्यावस्था
कर रहा था मैं अध्ययन।
छात्र समझ कर महराज ने
किया मुझसे एक प्रश्न।
कहो कैसे चल रहा है बेटा
इस समय स्कूली शिक्षा?
क्या परिणाम रहा उसका
जो दिये थे अभी परीक्षा?
पिछले परीक्षा में गुरुवर
मैं पूरी तरह रहा असफल।
हृदय धारा से बहकर
अब थमते नहीं नैन जल।
सत्वना हेतु बोले गुरूवर
क्यों दर्शाते हो कायरता?
परिश्रम करने वाला व्यक्ति
हार पर न रोया करता।
मन मलीन कर लेने से
होता नहीं चिन्त निवारण।
अपने मन को पढ़कर देखो
असफल हुए हो किस कारण?
असफलता से भी मिलता है
मानव जीवन में नया ज्ञान।
फिर अपनी कर्मठता से चातुर
रचता जग में नया वितान।
लेकिन कायर मन वाला नर
सिर धुनकर नित रोता रहता।
अपने असफलता का कारण
औरों के सिर मढ़ता रहता।
दीपावली के अवसर पर
आंसू नहीं बहाते हैं।
आज तुम्हें अवध पुरी का
पावन कथा सुनाते हैं।
2
गुरु का चरण वंदन करके
चित में रख कर श्री गणेश।
शारद मां का स्तुति करके
उमा सहित सुमिर महेश।
राम सिया को चित रख
अंजनीसुत का करके सुमिरन।
जो कथा कहा था गुरुवर ने
मैं करता हूं उसका वर्णन।
असुर समूह सहित जब
स्वर्ग पयाम कीन रावण।
तब लंकापति नियुक्त हुए
राम सखा महराज विभीषण।
भयमुक्त हुए नगर निवासी
आरम्भ हुआ नव प्रभात।
अधर्म का हो गया समापन
हुआ धर्म का फिर शुरुआत।
जिस महा कार्य के हेतु में
लिया श्री हरि ने अवतार।
महादेव की कृपा से उसका
हो गया विधिवत् उपंसहार।
लंका वासियों से लेकर विदा
जब चलने को हुए रामलक्ष्मण।
तब प्रीति भरे वचनों को
कहने लगे महराज विभीषण।
जो कुछ प्राप्त हुआ मुझको
सब रघुबर आपका वरदान।
करवद्ध विनय एक मेरी है
सुन लो हे कृपा निधान!
मैं सेवक हूं हरि चरणों का
बाकी से न कुछ परियोजन।
है महानता आपका स्वामी
सेवक को सौंपा सिंहासन।
स्वर्ण लंका को जीत