धर्मराज: Epic Characters of Mahabharatha
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यमधर्म के अंश से जनित, कुन्ती का प्रथम पुत्र था धर्मराज युधीष्ठिर। कष्टसहिष्णुता, शौर्यता और करुणा मूर्ति था युधिष्ठिर। अपने नाम के अनुसार वह धर्मप्रिय था और उसी मार्ग से चलकर सब के प्यार का पात्र था। जब कौरवों ने पाण्डवों को जूआ खेलने के लिए आमंत्रित किया तब धर्मराज ने अपनी पूरे संपत्ती, राज्य और पत्नी द्रौपदी को भी दाव पर लगादिया। वनवास की अवधी में यक्ष प्रश्नों के सही उत्तर देकर अपने भाईयों का प्राणों की रक्षा कि। महाभारत के युद्ध के पश्चात् ऋषि द्धैपायन के आज्ञा के अनुसार हस्तिनापुर राज्य को संभालकर एक आदर्श राजा प्रतीत हुआ।
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Book preview
धर्मराज - Dr. M.K. Bharathiramanachar
प्रस्तावना
श्रीरंग सदुरुवे नमः
नारायण स्मरण
वेदव्यासजी से लिखित `श्री मन्महाभारत' भारतीय संस्कृति और धर्म का मणिदर्पण है । यह ग्रंथ सार्वभौम तथा सार्वकालिक तत्त्वों का प्रचार करते हुए वेद के प्रतीक के रूप में पंचमवेद माना गया है । अपने सीधे उपदेशों से, उपाख्यान कथाओं से और सत्यम्-शिवम्- सुन्दरम तत्त्वों को हृदय तक पहुँचाते हुए प्रभु-सम्मित, मित्रसम्मित और काँतासम्मित नामक तीनों प्रकारों से युक्त यह ग्रंथ एकमात्र उपदेशात्मक ग्रंथ माना जाता है । यह तो सर्वोत्तम इतिहास, पुराण, काव्य और अनेक ग्रंथों का आधार ग्रंथ है । बेंगलोर की एक जानी मानी संस्था `भारत दर्शन' ने 32 भागों में इस अनुपम ग्रंथ महाभारत का कन्नड़ में प्रकाशन किया है जो अतीव कम दाम पर प्राप्त किये जा सकते हैं ।
इस प्रकाशन से प्रेरणा और स्फूर्ति पाकर `भारत संस्कृति प्रकाशन संस्था' इस अनुपम देन बच्चों के साहित्य के लिए प्रदान कर रही है । उसके इस शुभोद्यम के लिए हमारे अनंत-अनंत प्रणाम ।
छोटे आयुवाले बच्चों के लिए महाभारत के प्रमुख पात्रों का परिचय कराने का स्तुत्य प्रयत्न यहाँ देखने को मिलता है । साथ-साथ बच्चों का मन तथा गुणों का स्तर ध्यान में रखने हुए संक्षेप में, सरल तथा ललित शैली में विषयों की प्रस्तुति की गयी है । कथावस्तु के केवल प्रमुख भागों को प्रस्तुत करके बच्चों में अभिरुचि पैदा करते हुए महभारत की संपूर्ण कथा का आस्वादन कराने का प्रयत्न किया गया है । इसमें कोई संदेह नहीं कि यह एक छोटी पुस्तिका है । हम आशा करते हैं कि आजकल के किशोर इसमें चित्रित पात्रों के गुणदोषों की विवेचना करके अपने चारित्र्य को शुध्द बनाए रखने का प्रयत्न करें और उत्तम नागरीक बनें ।
आदर्श पात्रों में भी कुछ अनादर्श गुण देखने को मिलते हैं । इसी प्रकार अनादर्श पात्रों में भी कुछ आदर्शा गुण मिलते हैं । इसे मानव का स्वाभाविक दृष्टिकोन समह्मकर उन पात्रों से प्राप्त होनेवाले केवल उत्तम गुणों का ही हमें अनुकारण करना चाहिए ।
देखा जाता है कि आयु में बड़े होने पर भी ऎसे अनेक लोग देखने को मिलते हैं जो भारत कथा से अनभिज्ञ हैं या अनेक कारणों से गलत धारणा में आबध्द हैं । अनके लिए भी महाभारत पर आधारित ये पात्र परिचय उपयुक्त होगे ।
हम यह मनोकामना करते हैं कि भारत संस्कृति प्रकाशान संस्था के द्वारा इस प्रकार के और भी अनेक पुस्तक प्रकाशित हों ।
अष्टाँग योग विज्ञान मंदिरम, बेंगलोर
बहुधान्य संवत्सर के श्रवणशुद्ध द्वितीया
बेंगलोर
नारायणस्मरणों के साथ
श्री श्री रंगप्रिय श्रीपाद स्वामीजी
धर्मराज
श्रियै नमः
श्री गुरुभ्यो नमः
जो नाम व्यक्तियों से रखे जाते हैं वे सांकेतिक होते हैं । उसके गुण, क्रिया आदि से संबंध नहीं रखते । लेकिन धर्मराज का नाम ऐसा नहीं है । वह तो उसके गुणस्वभावों का द्योतक ही है । अर्थात् वह अन्वर्य ही है ।
महाराजा पाँडु ने एकांत में कुन्तीदेवी से विचार विनिमय किया । उसे जिस मंत्र का उपदेश हुआ था उससे एक