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Devalika
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About this ebook

"छोड़ जाते हो तुम जब भी मुझे... मेरे हृदय को चुभता है।

'देवालिका' पूर्व में उत्तर भारत के मध्य स्थित शेषालय राज्य की राजकुमारी दिवा की प्रेम कहानी है। जिसे काशी के राजकुमार धनंजय से प्रेम हुआ। परन्तु मगध के शक्तिशाली राजा दुर्जय सिंह को उनका प्रेम रास न आया। कहा जाता है कि दुर्जय के पास सौ अश्वों का शारीरिक बल था। जिसे किसी भी युद्ध में पराजित करना लगभग असम्भव था। दुर्जय ne भरे स्वयंवर से दिवा का हरण कर लिया और बलपूर्वक मगध ले आया।

दिवा और धनंजय का प्रेम यहीं समाप्त नहीं हुआ बल्कि वास्तविक कहानी यहीं से प्रारम्भ हुई। दिवा के हरण के पश्चात् काशी और मगध के बीच महा प्रलयंकारी युद्ध हुआ, जो लगातार नौ दिन तक चल। जिसमें भारत के प्रमुख राज्यों ने हिस्सा लिया। ये कथा धनुर्धारी अमृत्य और यदुवंशज माधव की कहानी भी कहती है।

देवालिका में युद्ध के प्रत्येक दिन का सजीव वर्णन और प्रयोग किये गये अस्त्रों-शस्त्रों की जानकारी बखूबी दी गई है। कथा के प्रमुख बिंदु अमृत्य का धनुर्कौशल, दुर्जय की दुर्जयता, दिवा की सुन्दरता और माधव की कूटनीति हैं। ये कथा हमें राजवंश की ओर ले जाती है। कथा के कुछ हिस्से भगवान परशुराम और अश्वस्थामा से जुड़े हैं तथा प्रथम अध्याय उन्हीं से शुरू हुआ ।

--

युवा लेखक लक्ष्मीकान्त शुक्ल मूल रूप से कानपुर उ.प्र. के रहने वाले हैं। उनका जन्म 24 फरवरी को घाटमपुर कानपुर में हुआ था। लेखन के क्षेत्र में वे बचपन से ही सक्रिय रहे हैं। विभिन्न मंचो एवं साहित्यिक गतिविधियों पर कवि एवं वक्ता के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं। देश के प्रमुख समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में कॉलम लिखना उनका शौक है। सया, ब्लास्ट, 5 शेड्स ऑफ़ लव एवं 'तेरे ही लिए' उनकी प्रमुख कृतियाँ है, जो आज पाठको का मनोरंजन कर रही है। वर्तमान में श्री शुक्ल उ.प्र. सरकार में सेवारत हैं एवं साहित्यिक सेवा सुचारू रूप से कर रहे हैं। शुक्ल जी फिल्म राइटर एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य हैं। उनकी एक खूबी यह भी है कि वे दोनो हाथों से लिखते हैं।

Languageहिन्दी
Release dateFeb 6, 2020
ISBN9781393460985
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    Devalika - Laxmikant Shukl

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    राजमंगल प्रकाशन

    An Imprint of Rajmangal Publishers

    ISBN : 978-9388202787

    Published by :

    Rajmangal Publishers

    Rajmangal Prakashan Building,

    1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road

    Aligarh-202001, (UP) INDIA

    Cont. No. +91- 7017993445

    www.rajmangalpublishers.com

    rajmangalpublishers@gmail.com

    sampadak@rajmangalpublishers.in

    ——————————————————————-

    प्रथम संस्करण : जनवरी 2020

    प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन

    राजमंगल प्रकाशन बिल्डिंग, 1st स्ट्रीट,

    सांगवान, क्वार्सी, रामघाट रोड,

    अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत

    फ़ोन : +91 - 7017993445

    ——————————————————————-

    First Published : Jan. 2020

    eBook by : Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division)

    Cover Design : Rajmangal Arts

    Copyright © लक्ष्मीकान्त शुक्ल

    This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales, and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental. This book is sold subject to the condition that it shall not, by way of trade or otherwise, be lent, resold, hired out, or otherwise circulated without the publisher’s prior consent in any form of binding or cover other than that in which it is published and without a similar condition including this condition being imposed on the subsequent purchaser. Under no circumstances may any part of this book be photocopied for resale. The printer/publishers, distributer of this book are not in any way responsible for the view expressed by author in this book. All disputes are subject to arbitration, legal action if any are subject to the jurisdiction of courts of Aligarh, Uttar Pradesh, India

    जय सिया राम

    ~

    समर्पित

    मेरे माता-पिता एवं

    मेरी प्यारी पत्नी मनीषा को

    ~

    भूमिका

    जीवन जब शुरू होता है तब भविष्य के विषय मे कुछ ज्ञात नही होता। जब जीवन समाप्त होता है तब जीवन का अतीत, वर्तमान और भविष्य एक कहानी बन जाते है। यही कहानी अन्य को प्रेरणा देती है। श्रेष्ठ और प्रेमयुक्त व्यवहार करे जीवन में, आपकी कहानी युगो तक स्मरण की जायेगी। महाभारत के बाद 9 दिन चले एक और महायु़द्व की महागाथा।

    ~~

    अनुक्रमणिका

    शीर्षक              पृष्ठ संख्या

    भूमिका

    अध्याय - 1 : द आवाज़ मीडिया

    अध्याय-2 : वो सुन्दर राजकुमारी

    अध्याय-3 : दिवा और धनंजय प्रेम में

    अध्याय-4 : मगध राज्य

    अध्याय-5 : नंदसेन और दुर्भीक का युद्ध

    अध्याय-6 : दिवा का प्रतियोगी स्वयंवर

    अध्याय-7 : दुर्जय एवं दिवा का विवाह

    अध्याय-8 : माधव का मिलना

    अध्याय-9 : मेघवर्ण का जन्म

    अध्याय-10 : महायुद्ध का शंखनाद

    अध्याय-11 : भव्य की नाग-वन यात्रा

    उपसंहार

    ~~

    अध्याय - 1 : द आवाज़ मीडिया

    ‘‘एक अनोखा कार्य, एक रहस्य जिसे तुम्हें खोजना है उसे जानना है... उससे मिलना है।’’ संपादक ने सामने बैठे लक्ष्मण से कहा। लक्ष्मण के चेहरे पर पूर्व की तरह गंभीर मुद्रा थी। ‘द आवाज़ मीडिया’ में लक्ष्मण स्वतंत्र लेखक थे जो प्रायः रहस्यमयी स्तम्भों को लिखते थे और पूरा देश उनके स्तम्भों का दीवाना था।

    ‘‘आप एक ब्राह्मण हैं साथ ही संस्कृत भाषा के ज्ञानी हैं। इस लिए ये कार्य आपको सौंपते हुए हमें खुशी हो रही है।

    लक्ष्मण! पूरे देश में हमारे जो पाठक हैं उनमें से ज्यादातर इस बार भगवान परशुराम के बारे में जानना चाहते हैं। पुराणों और कथाओं के अनुसार वो चिरंजीवी हैं और कहा जाता है इस समय उड़ीसा के महेंद्रगिरि पर्वत पर रहते हैं।

    सामान्य लोगों के लिए ये कार्य महज हास्यास्पद होगा। परन्तु आपके लिए ये चुनौती पूर्ण होगा क्योंकि द आवाज़ मीडिया जानता है आप ये कार्य पूरा करके ही लौटेगें।’’...सम्पादक ने बात जारी रखते हुए कहा।

    संपादक के चेहरे में उत्सुकता थी। आँखों में कई प्रश्न थे।

    ‘‘चिरंजीवी तो और भी मनुष्य हैं... देवता हैं...तो ऐसे में परशुराम के विषय में ही जाँच पड़ताल क्यों?’’ लक्ष्मण ने थोड़ा सा मुस्कराते हुए पूछा।

    ‘‘ब्राह्मण तो सदा से ही पूज्यनीय रहे हैं और परशुराम तो भगवान विष्णु के अवतार हैं। यही अवतार ऐसा है जो हर युग में जीवंत रहा है जो आज भी धरती पर है। कुछ ग्रन्थों से पता चला वो संस्कृत में बात करते हैं और वर्तमान में तपस्या में लीन हैं। परन्तु उन्हें देखा जा सकता है...उनसे मिला जा सकता है।’’ संपादक ने अपना तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा।

    ‘‘महान धनुर्धारी और दानवीर कर्ण के महागुरू परशुराम से मिलना असम्भव है। मेरी जानकारी तक द्रोणपुत्र अश्वस्थामा भी कृष्ण के शाप से मुक्ति हेतु उनके पास ही आश्रय लिए हुए हैं। उसकी सुरक्षा एवं मुक्ति के चलते भगवान परशुराम से मिल पाना लगभग असम्भव है।’’ लक्ष्मण ने जिसका युवा चेहरा सहज ही किसी सुन्दर दार्शनिक की याद दिला दे, पुनः गम्भीर स्वर में कहा।

    ‘‘वो मिले या नही इसका निर्णय 3 महीने बाद होगा। हमारी कंपनी ने आपके जाने का पूरा इंतजाम कर दिया है।

    ...आप मना नही कर पायेगें क्योंकि आपके साथ... आपकी सहयोगी मिस अनन्या जोशी भी जायेंगी।’’ संपादक ने आँख मारते हुए कहा क्योंकि वो जानते थे लक्ष्मण का अनन्या से गुप्त अफेयर भी चल रहा था।

    अनन्या का नाम सुन सहसा लक्ष्मण भाँप गया जब प्यार साथ हो तब किसी भी परिस्थिति को न नही कहा जाता।

    ‘‘किसी बुद्धिमान ने कहा है ढूढने पर भगवान भी मिल जाते हैं।... तो यकीन मानों भगवान परशुराम मिलेगें...अवश्य।’’ संपादक ने जोशपूर्वक कहा।

    ‘‘ओ.के. 3 महीने बाद आपसे मुलाकात होगी। कब निकलना है?’’ लक्ष्मण ने सहमत होकर पूछा।

    ‘‘परसों।’’ संपादक ने बात समाप्त की।

    ~

    ‘‘कभी-कभी सफर कितना सुहाना हो जाता है...

    प्यार कितना दीवाना हो जाता है

    साथ हो गर हमदम तो सबकुछ कितना प्यारा हो जाता है।’’

    अनन्या, धनुषाकार होठों वाली ख़ूबसूरत लड़की जिसके साथ होने के अहसास से लक्ष्मण का दिल खुशियों के सागर में गोटे लगा रहा था। ट्रेन रफ्तार पकड़ चुकी थी। बगल की बर्थ में अनन्या किसी नॉवेल को पढ़ते हुए बोली, ‘‘लक्ष्मण! हम उसी रोज़ोर्ट में रुकेंगे न!"  

    बेशक! लक्ष्मण ने खास दार्शनिक अंदाज में कहा।

    ...रहस्यमयी सफर की शुरूआत हो चुकी थी।

    ~

    आसमान में तारे टिमटिमा रहे थे। दिल्ली से उड़ीसा तक का सफर लक्ष्मण के लिए रोमांच पैदा करने वाला था। अनन्या सो चुकी थी और लक्ष्मण अपनी बर्थ में लेटा मन ही मन कोई तर्क-वितर्क कर रहा था।

    सहसा उठकर उसने नीचे रखे बैग से ‘महाभारत’ किताब निकाली और जल्दी से ‘द्रोणपर्व’ अध्याय पढ़ने लगा।

    ‘‘परशुराम महेन्द्रगिरि में रहते हैं।... अर्थात कोई तो उनसे मिला होगा।’’ लक्ष्मण ने स्वयं से कहा।

    ~

    सुबह का सूरज निकला। दिल को चुरा लेने वाली ताजगी, पक्षियों का कलरव मन को भा रहा था।

    उड़ीसा की पहाड़ियों में लक्ष्मण और अनन्या पहुँच चुके थे। पीठ पर बैग-गले में कैमरा और हाथों में नक्शा।

    दोनों किसी पर्वतारोही से कम नही लग रहे थे। अनन्या के चेहरे की ताजगी, सुबह की लाली को फीका कर रही थी।

    ‘‘तुम यही खोज-बीन में लगे रहना। वहाँ मम्मी-पापा मेरे लिए लड़का ढूँढ़ रहे हैं।

    3 साल हो गये पत्रकारिता करते-करते। शादी के लिए बात क्या मेरी शादी हो जाने के बाद करोगे।’’ अनन्या ने सहसा शिकायत करते हुए लक्ष्मण से कहा।

    लक्ष्मण उसके प्रश्न पर शांत रहा। उसकी नज़रें पहाड़ियों पर दूर-दूर तक फ़ैल चुकी थीं।

    ‘‘मुझे भी हर खोज-बीज में साथ ले आते हो। घरवाले कितना घबराते हैं...मेरी सुरक्षा को लेकर...

    अगले महीने फिर कोई लड़का मुझे देखने आ रहा है। मैं ज्यादा दिनों तक रोक नही पाऊँगी मिस्टर लक्ष्मण शुक्ला।’’ अनन्या ने फिर कहा।

    ‘‘3 महीने तक आप मेरे साथ यहाँ हैं। ...इस मिशन पर...तो सबकुछ भूल जाईए। मोहब्बत और पत्रकारिता लगभग एक जैसे ही हैं।’’ लक्ष्मण ने समझाते हुए कहा।

    ‘‘...आओ... उन पहाड़ियों के अन्दर चलते हैं।’’ लक्ष्मण ने दूर एक घनी पहाड़ी दिखाते हुए कहा।

    ‘‘नही...नही वहाँ मैं नही जाऊँगी। मुझे डर लगता है। अकेले जाओं।’’ अनन्या ने बेहद डर कर कहा।

    आगे बिल्कुल वीरान पहाड़ी थी। पेड़ों से छन कर सूरज की रोशनी धरती पर पड़ रही थी।

    ‘‘ठीक है तो... वहाँ जाकर गाड़ी में बैठो और मेरा प्रतीक्षा करना।‘‘ लक्ष्मण ने दूर खड़ी जीप की ओर संकेत करके कहा।

    ’‘...और ये लो गन...जानवरों से बचाव के लिए।’’ लक्ष्मण ने अपनी कमर में से एक पिस्तौल अनन्या को देकर कहा।

    ‘‘ठीक है लेकिन जल्दी आना। मैं ज्यादा देर इतंजार नही कर पाऊँगी।’’ अनन्या के चेहरे पर घबराहट थी। उसे अपनी भी चिंता थी और लक्ष्मण की भी।

    पहाड़ी की बनावट समझ से परे थी।...और महेन्द्रगिरि अभी लक्ष्मण की पहॅुच से बहुत दूर था।

    ‘‘कल से पहाड़ पर मैं अकेले ही आऊँगा। आप रिजार्ट में ही रूकना।’’ लक्ष्मण ने आगे बढ़ते हुए कहा। अनन्या तेज कदमों से जीप की ओर गयी।

    ~

    पूरी दोपहर बीत चुकी थी पर लक्ष्मण के हाथ फिलहाल कुछ नही लगा था। किसी की खोज करना कठिन है पर खोज को दोबारा ढूढना उससे भी कठिन। पर लक्ष्मण आगे बढ़ने वालों में से था। हार हो या जीत जिंदगी में आगे बढ़ना ही नियति थी उसकी।

    ~

    द रिजार्ट

    शाम हो चुकी थी। रिजार्ट की सबसे ऊपरी मंजिल से दूर तक फैली पहाड़ियों को देखना मन मोह रहा था। प्रकृति अपनी सुंदरता नदी, झरने, पहाड़ और जंगलों में ही बिखेरती है। जहाँ इंसानों और उसकी क्रिया-कलापों ने कब्जा कर रखा है वहाँ प्रकृति अदृश्य सी हो गयी है। शायद तभी शहर में शांन्ति और सुकून का अहसास शून्य हो गया है।

    लक्ष्मण प्रकृति को निहार ऐसा ही कुछ सोच रहा था। कैमरे में कुछ तस्वीरें कैद की ही थी कि...

    ‘‘एक्सक्यूजमी सर ये रहा महेन्द्रगिरि की गुप्त गुफाओं का नक्शा, आपने मंगाया था।’’ रिजार्ट के सर्विस मैन ने लक्ष्मण को नक्शा देते हुए कहा

    ‘‘इसमें जो आप खोज रहे हैं...उसके अलावा भी बहुत कुछ मिल जायेगा।" सर्विस मैन ने आगे कहा।

    ‘‘मैनेजर साहब को मेरी तरफ से विशेष धन्यवाद देना। मेरी वो हर बार, अपनी सीमा से बाहर जाकर मदद करते हैं।’’ लक्ष्मण ने आभार व्यक्त किया।

    ‘‘श्योर सर! आप हमारे बहुत पुराने मेहमान हैं। आपकी मदद करना इस रिजार्ट की खुश किस्मती है।

    ...सर! मैं आपके लिए कॉफी भिजवाता हूँ। इन वादियों को निहारते हुए, डूबते सूरज के साथ काफी पीने का अपना अलग मजा है।’’

    सर्विस मैन कहते हुए वहाँ से चला गया। लक्ष्मण ने नक्शा गौर से देखा

    ‘‘कल पर्वत के किस ओर जाने का प्लान है?’’ अनन्या ने आते हुए पूछा।

    ‘‘कल महेन्द्रगिरि की कई गुफाओं का मेहमान बनूँगा। गुफाओं में अक्सर प्राचीन खजाने मिलते हैं। शायद हमें भी मिल जाये और मेरे श्वसुर साहब हमारी शादी के लिए तैयार हो जायें।’’ लक्ष्मण ने मजाक करते हुए कहा।

    अनन्या शांत रही...कुछ पल बाद बोली, ‘‘सतर्क होकर जाना। गुफाओं में केवल अँधेरा होता है। उस अंधेरे से रोशनी बहुत कम मिलती है।’’ अनन्या की आवाज़ में गम्भीरता थी। लक्ष्मण के लिए उसका प्रेम गहराता जा रहा था उसी प्रेम के कारण उसका ये प्रोफेशन, जिसमें जान-जोखिम भरा हुआ था, बेहद डरावना लगने लगा था।

    ~

    सुबह हो चुकी थी। ताजी हवा पूरे पर्वत को ताजगी प्रदान कर रही थी। पेड़-पौधे हवा के स्पर्श से झूल से रहे थे।

    पर्वत पर स्थित गुफाओं का मार्ग संकरा था। लक्ष्मण पूरी तैयारी से आया था। पीठ पर बैग, कमर पर टार्च, पिस्तौल और पानी की बोतल कंधे पर तीरों से भरा तुनीर और एक हाथ पर आधुनिक धनुष तो दूसरे पर नक्शा।

    वो मंद-मंद गति से एक गुफा की ओर बढ़ता जा रहा था, जो पेड़ों और झाड़ियों से युक्त थी। चारों ओर वीरान था एक अनजाना भय व्याप्त था। जो जगह सुबह के वक्त इतनी डरावनी हो वहाँ शाम का नजारा क्या होगा, सोचा जा सकता है।

    पूरे पर्वत में बस एक अज़ीब सा स्वर गूँज रहा था। जिसे पहले कभी नही सुना गया था।

    बेशक ही लक्ष्मण एक निडर, साहसी और वीर युवक था जो खुशी से जिंदगी के ऐसे चैलेजिंग रोल अदा करता था। जिसे मृत्यु का भय नही वो जिंदगी में हर असम्भव कार्य कर सकता है।

    लक्ष्मण के क़दम तेज हो चले और वो महेन्द्रगिरि की एक गुफा में प्रवेश कर गया जहाँ उसे परशुराम से जुड़े कई रहस्य मिलने की उम्मीद थी। यद्यपि उसका इस पर्वत पर प्रवेश कानूनन लीगल था परन्तु गुफा में प्रवेश इलीगल परन्तु कुछ खोज पाने का लक्ष्य कभी-कभी सीमाओं को तोड़ देता है।

    ~

    गुफा के प्रवेश द्वारा पर एक बड़ा सा टीला था। जिसे हटाने के लिए लक्ष्मण को काफी मशक्कत करनी पड़ी।

    ...अन्दर गुफा जमीन की ओर खुली, नीचे की ओर सीढ़ियाँ थी जो जर्जर हो चुकी थी। टार्च से देखने पर पता चला ये गुफा जमीन के अन्दर बने घर जैसी थी। हालत ऐसी थी कि कभी भी गुफा जमीन में समा सकती थी। टार्च की रोशनी के साथ लक्ष्मण अंदर आया।

    जर्जर पुराने किले की भाँति अंदर पूरा स्थल, नहाने की जगह, सोने की जगह, सब कुछ था। जैसे वर्षों पूर्व यहाँ कोई रहता था। अंजान घास और कटीले पेड़ उगे थे। पूरी गुफा की छत पर मकड़ों का जाल था गुफा अंदर और बड़ी होती जा रही थी। खतरे की आशंका से ही शायद उड़ीसा प्रशासन ने यहाँ प्रवेश बैन कर रखा था।...ये क्या...! यहाँ एक और टीला था। शायद गुफा के भण्डार गृह को सुरक्षित किए हुए था। लक्ष्मण का बिल पावर इतना मजबूत था कि टीले को वहाँ से हटते देर न लगी।

    टीले के हटते ही कुछ साँप, जो वहाँ डेरा जमाये थे, जमीन में इधर-उधर रेंगने लगे। टाँगों तक बूट होने के कारण लक्ष्मण को साँपों से भय न लगा। टार्च की रोशनी से भण्डार गृह को लक्ष्मण ने गौर से देखा।...फिर बोतल निकाल पानी पिया। उसके चेहरे पर पसीना बह रहा था।

    वहाँ क्या था? ये जानने के लिए लक्ष्मण ने पास पड़े पत्थरों के दो टुकड़ों को रगड़ कर आग जलायी। कुछ ही देर में पूरी गुफा का अँधेरा कहीं भाग गया। कीड़े-मकौड़े भागने लगे। साँप तो बहुत दूर निकल गये थे।

    अन्दर का दृश्य आश्चर्य चकित करने वाला था। यहाँ वर्षों से कुछ एक ताबूत में सुरक्षित था। ताबूत जंजीरों से जकड़ा हुआ था। ताबूत के पास ही एक पुराना आसन पड़ा था जो बता रहा था यहाँ कोई रहता था...कोई तपस्वी शायद।

    सबकुछ जानने के लिए ये जरूरी हो गया था कि ताबूत खोला जाये यहाँ फिर मशक्कत करनी थी। ताबूत की जंजीरों को लक्ष्मण ने धार दार चाकू से काटा, जो अपने साथ जंगली जानवरों से रक्षा हेतु लाया था। परन्तु मार्ग में उसका सामना अबतक किसी जंगली जानवर से नही हुआ था।

    मजबूत काठ का ताबूत चरचराहट के साथ खुला। लक्ष्मण की आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गयी। मुंह खुला का खुला रहा गया।

    ...ताबूत में एक अजीब सा द्रव भरा हुआ था और उस द्रव में एक अद्धितीय सुन्दर स्त्री का मृत शरीर तैर रहा था।

    शायद प्राचीन काल में लोग शरीरों को सुरक्षित रखने हेतु ऐसे द्रवों का प्रयोग करते थे।

    लक्ष्मण की विस्मयता बढ़ती जा रही थी। पत्थरों की आग उस स्त्री का चेहरा स्पष्ट नही कर पा रही थी तो लक्ष्मण ने टार्च की रोशनी में देखा...आश्चर्य की सीमा टूट गयी।

    ‘‘कौन है यह स्त्री...??? इसका चेहरा तो बिल्कुल अनन्या से मिलता है। अनन्या की हमशक्ल...या पूरी अनन्या’’ लक्ष्मण ने उस स्त्री के शरीर को देखते हुए स्वयं से कहा।

    ‘‘ये मुझे क्या मिला! मैं परशुराम की खोज में आया...और यहाँ मुझे एक प्राचीन औरत की डेड बॉडी मिली है, जो अनन्या की हमशक्ल है।

    ये...ये कहाँ आ गया मैं?

    कौन है ये औरत...और अनन्या से शक्ल मिलने का क्या मतलब है?’’ लक्ष्मण ताबूत में रखे उस स्त्री के शव को देख स्वयं से ही कई प्रश्न करने लगा। परन्तु उसके प्रश्नों के जवाब के लिए गुफा में कोई नही था। समय बहुत आगे आ चुका था। पीछे छूटा था तो बस उस स्त्री का शरीर जिसे अब तक पंचतत्वों में विलीन नही किया गया था। पता नही क्यों?

    उस स्त्री का चेहरा बिल्कुल अनन्या के जैसे था। लक्ष्मण की जिंदगी में एक अन्य रहस्य ने जन्म ले लिया था।

    लक्ष्मण परेशान सा होकर इधर-उधर देखने लगा। शायद कुछ और मिले जिसे कुछ पता चले।

    ...वो स्त्री 40-45 वर्ष के बीच होगी शायद कोई राजकुमारी...लक्ष्मण ने टार्च ऑन की। कक्ष खोजा, पास में उसे एक तख्त के नीचे दूसरा ताबूत मिला जो काफी छोटा था और हवाबंद था। लक्ष्मण ने शीघ्रता से उसे खोला और पत्थरों की आग के पास लाकर देखा। उस ताबूत में एक हस्तलिखित किताब थी जिसे पूर्व में मोर पंख से किसी स्याही द्वारा संस्कृत भाषा में लिखा गया था। उसके पृष्ठ आज भी पहले की तरह मजबूत और स्वच्छ थे।

    ‘‘ये तो संस्कृत में लिखी कोई गाथा है।’’ लक्ष्मण ने पृष्ठ पलटते हुए कहा।

    ‘‘ये दिवा है, अक्षय यौवन को धारण करने वाली अद्धितीय रूपवती राजकुमारी दिवा, जन्म से कई देव वरदानों को प्राप्त हैं। मैने मृत्यु बाद इसके शरीर को सुरक्षित किया हुआ है ताकि ये मुक्त न हो और प्रकृति में दोबारा जन्म न ले सकें। क्योंकि इसके जन्म से मानव जाति का महा विनाश हुआ। आगे ऐसा न हो इस लिए मैं इस राजकुमारी के शरीर को हमेशा के लिए प्रतिबंधित कर रहा हूँ ताकि ये किसी भी युग मे दोबारा जन्म न ले।

    इसके जीवन की पूरी कहानी मैने लिखी है।’’ लक्ष्मण ने पहले पृष्ठ पर पढ़ा। इसे किसने लिखा था ये अभी तक अज्ञात था

    किताब काफी बड़ी थी। लक्ष्मण ने किताब को बंद कर बैग में डाला और कुछ पल सोचते हुए ... कुछ पल बाद उसने पूरी ताकत लगाकर बडे़ ताबूत का द्रव ताबूत को एक ओर झुकाते हुए फैलाना शुरू किया। जब काफी द्रव फैल गया तब उसने दिवा के शरीर को निकालकर ताबूत को पुनः बन्द कर दिया।

    फिर विचार कर उसने ताबूत की पीठ पर दिवा के शरीर को रख दिया। आस-पास की छोटी-बड़ी लड़कियाँ, पत्थर आदि इकट्ठा कर लक्ष्मण ने उसी ताबूत में उस राजकुमारी दिवा की चिता सजा दी।

    दिवा के अधरों पर अनेक समय से एक मनमोहक मुस्कान व्याप्त थी। पत्थर से आग जलाकर उसने ताबूत को अग्नि के सुपुर्द कर दिया।

    कुछ ही देर में ताबूत धूँ-धूँकर जलने लगा। आग देखते ही देखते बढ़ती गयी। लक्ष्मण शीघ्रता से गुफा के बाहर आया। कुछ क्षण ही बीते थे कि...वो गुफा धरती में धॅसने लगी।

    आग का धुआँ चारो ओर फैलने लगा। लक्ष्मण के पीछे वहाँ के फारेस्ट आफीसर आ चुके थे।

    ~

    महेन्द्रगिरि सुरक्षा चैकी-2

    पुलिस सुरक्षा बलों के साथ लक्ष्मण अपराधी की मुद्रा में खड़ा था। अनन्या और रिजार्ट के मैनेजर सामने थे।

    ‘‘ये लक्ष्मण शुक्ला हैं, फ्रीलांस लेखक और पत्रकार हैं। पूरा देश इनके रहस्य और रोमांच से भरे लेखों एवं कहानियों का दीवाना है। ऐसी रहस्यमयी जगहों पर जाकर ये लोग अपनी कहानियों के लिए खजाने ढूढ़ते हैं।’’

    इन्हें जाने दीजिए इंस्पेक्टर साहब! इनके प्रोफेशन के लिए सीमा लांघना जरूरी था रिजार्ट के मैनेजर ने समझाते हुए कहा।

    ‘‘मै जाने दे रहा हूँ पर इन्हें और मि0 अनन्या जोशी को यहाँ अब और कुछ भी खोजने की अनुमति नही दे सकता। ये इलाका संवेदनशील और रिजर्व है। सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर रखा है। अनाधिकृत प्रवेश इन्हें जेल में डाल देगा। यहाँ खोज-बीज करनी है तो सरकार की मंजूरी लेकर आइए।’’

    इंस्पेक्टर ने अपनी बात सख्ती के साथ रखी।

    ‘‘...फिर हम अपना टारगेट कैसे पूरा करेंगें। सरकार से अनुमति मिलने में वक्त लगेगा।’’ अनन्या ने सहसा कहा।

    ‘‘कोई बात नही...हम बाद में आयेगें अनुमति के साथ।’’लक्ष्मण ने कहा।

    ‘‘वही ठीक होगा शुक्ला जी! वैसे भी आज पर्वतों में आपके कारण आग लग जाती। सारा जंगल खाक हो जाता अगर हमारी टीम वहाँ पहुँच न जाती। उस नुकसान को हम नजरअंदाज कर रहे हैं। उम्मीद है आप कल यहाँ नही आयेगें। इंस्पेक्टर ने दृढ़ता से कहा।

    ‘‘बेशक।’’ लक्ष्मण मुस्कराया।

    ~

    शाम हो चुकी थी। आसमान में तारे टिमटिमा रहे थे। लक्ष्मण और अनन्या ट्रेन में थे।

    ‘‘तीन महीने का टारगेट हम बिना पूरा किये एक हफ्ते में ही वापस जा रहे हैं। ऐसा पहली बार हुआ है मैं हर बार आपके साथ हर मिशन में साथ रही हूँ और जहाँ तक मै जानती हूँ आपने हर टारगेट को पूरा किया है। तो इस बार ऐसा क्यों...?’’ अनन्या ने सामने बैठे लक्ष्मण से कहा जो कैमरे को एडजस्ट कर रहा था।

    ‘‘क्योंकि इस बार टारगेट ने खुद हमें टारगेट दिया है। अभी उस तार को समझने में वक्त लगेगा। ‘‘ लक्ष्मण ने गम्भीरता से कहा।

    ‘‘इस बार टारगेट हमें एडिटर ने नही, प्रकृति ने दिया था। प्रकृति के इशारे को समझो अनन्या, हम क्या खोजने गये थे और क्या करके, क्या पाकर आये हैं।’’ लक्ष्मण ने फिर कहा।

    ‘‘मैं कुछ समझी नही...और आपकी वजह से वहाँ गुफा में आग कैसे लगी?’’ अनन्या ने पूछा।

    ट्रेन रफ्तार पकड़ चुकी थी। लक्ष्मण ने बैग से उस किताब को निकालकर अनन्या को दिया और कहा)

    ‘‘ये हजारो वर्ष पूर्व लिखी किताब है जो आजतक सुरक्षित है। ऐसे ही उस गुफा में एक पुराना...बहुत पुराना ख़ूबसूरत शरीर सुरक्षित थां जिसका अब तक दाह संस्कार नही किया गया था।

    पता नही किसने...ये मानकर उसका शरीर ताबूत में कैद कर दिया था कि दाह संस्कार न होने से वो दोबारा जन्म नही ले पायेगी। पर यहाँ कौन प्रकृति से जीत सकता है।

    ...वो न जाने कितने दोबारा जन्म ले चुकी है। लक्ष्मण ने अनन्या के चेहरे को देखते हुए कहा।

    ‘‘शायद इसी रहस्य को समझाने के लिए प्रकृति ने मुझे उड़ीसा बुलाया। युगों से वो शरीर प्रकृति में विलीन होने की प्रतीक्षा कर रहा था। उसी के दाह-संस्कार से उस गुफा में आग लग गयी और वो गुफा वहीं धॅस गयी।’’ लक्ष्मण ने आगे कहा।

    ‘‘ओह...ये तो संस्कृत मे है। क्या लिखा है इसमें आप पढ़के हिन्दी की बोलचाल वाली भाषा में अनुवाद करते हुए सुनाओ। ये तो कोई महा गाथा लगती है।’’ अनन्या ने किताब लक्ष्मण को देते हुए कहा।

    ‘‘चले जाते हो तुम जब-जब

    मेरे दिल को चुभता

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